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Loudspeaker Row: बाकी राज्य यूपी से सीखें बिल्ली के गले में घंटी पहनाई जा सकती है, और उतारी भी!

    • सरिता निर्झरा
    • Updated: 30 अप्रिल, 2022 03:57 PM
  • 30 अप्रिल, 2022 03:30 PM
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जिस लाउडस्पीकर के झगड़े पर कहां किस एंगल से पत्थर चला ये तक दिखाने में कामयाब हो गया मीडियो मथुरा और गोरखनाथ मंदिर से तथा मस्जिदों से शांति के साथ उतारे गए लाउडस्पीकर को दिखाना भूल गया. मीडिया की टीआरपी की भूख देश को दंगे में झोंकने से भी गुरेज़ नहीं करती, शायद यही एक कारण है कि भाईचारे और शांति से मसले को सुलझाने की सफलता को दिखाना उनकी प्राथमिकता नहीं रही.

कुछ है जो आंखों से दिखाई नहीं देता. कुछ तो ऐसा है जो मीडियावाले भी समझ नहीं पा रहे. कुछ है जो नज़र से ओझल है लेकिन है और पूरी ताकत से है. जब पूरे हिंदुस्तान में भगवान को आवाज़ देने के लिए किसकी आवाज़ ऊंची होगी इसपर बहस चल रही थी पच्चीस करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में वही काम चुपचाप बिना शोर के होने लगा. जी हां, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में उत्तरप्रदेश में लाउडस्पीकर या तो उतारे जा रहे या ध्वनि कम रखी जा रही है और नये लाउंडस्पीकर न लगाने की बात कही गयी है जिसका हिन्दू मुसलमान दोनों ही धर्म के गुरुओं ने, न सिर्फ स्वागत किया बल्कि उसे लागू भी करवाने में कोई आपत्ति अभी तक ज़ाहिर नहीं हुई. रिपोर्टों की माने तो दस हज़ार से ज़्यादा लाउडस्पीकर उतारे गए हैं और पैंतीस हज़ार से ज़्यादा लाउडस्पीकरों की आवाज़ निर्धारित मानक के हिसाब से कम कराई गई है.

यूपी के विषय में एक अच्छी बात ये रही कि चाहे धर्म और संस्था कोई भी हो लाउड स्पीकर सबके उतारे जा रहे हैं

इसकी शुरुआत हुई मथुरा कृष्ण जन्मभूमि और उसके बाद योगी जी के गढ़ गोरखनाथ मंदिर से. कमाल है न - बदलाव की शुरुआत घर से ही .

लाउडस्पीकर को बनाया मुद्दा

ये मुद्दा गर्मी के मौसम में गर्म चाय सरीखा उछाला था महाराष्ट्र के नेता राज ठाकरे ने. उन्होंने कहा की अगर मस्जिदों के लाउडस्पीकर नहीं उतारे गए तो उन्ही मस्जिदों के सामने बजने लगेगा लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा का पाठ. बस फिर क्या था राम भक्त हनुमान के पाठ को भक्ति और प्रेम की जगह हथियार की तरह जगह जगह पढ़ कर अपने राजनैतिक टिक्कड़ सेंकने निकल पड़े राजनीति में छोटे कद के बड़े नेता .

गुरु हनुमान चालीसा से पाठ पर इतनी छीछालेदर कबहुं न भई . मतलब जुमला फेंकिए लेकिन कैच करने का माद्दा भी तो रखो. ये क्या की जुमला फेंको तुम...

कुछ है जो आंखों से दिखाई नहीं देता. कुछ तो ऐसा है जो मीडियावाले भी समझ नहीं पा रहे. कुछ है जो नज़र से ओझल है लेकिन है और पूरी ताकत से है. जब पूरे हिंदुस्तान में भगवान को आवाज़ देने के लिए किसकी आवाज़ ऊंची होगी इसपर बहस चल रही थी पच्चीस करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में वही काम चुपचाप बिना शोर के होने लगा. जी हां, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में उत्तरप्रदेश में लाउडस्पीकर या तो उतारे जा रहे या ध्वनि कम रखी जा रही है और नये लाउंडस्पीकर न लगाने की बात कही गयी है जिसका हिन्दू मुसलमान दोनों ही धर्म के गुरुओं ने, न सिर्फ स्वागत किया बल्कि उसे लागू भी करवाने में कोई आपत्ति अभी तक ज़ाहिर नहीं हुई. रिपोर्टों की माने तो दस हज़ार से ज़्यादा लाउडस्पीकर उतारे गए हैं और पैंतीस हज़ार से ज़्यादा लाउडस्पीकरों की आवाज़ निर्धारित मानक के हिसाब से कम कराई गई है.

यूपी के विषय में एक अच्छी बात ये रही कि चाहे धर्म और संस्था कोई भी हो लाउड स्पीकर सबके उतारे जा रहे हैं

इसकी शुरुआत हुई मथुरा कृष्ण जन्मभूमि और उसके बाद योगी जी के गढ़ गोरखनाथ मंदिर से. कमाल है न - बदलाव की शुरुआत घर से ही .

लाउडस्पीकर को बनाया मुद्दा

ये मुद्दा गर्मी के मौसम में गर्म चाय सरीखा उछाला था महाराष्ट्र के नेता राज ठाकरे ने. उन्होंने कहा की अगर मस्जिदों के लाउडस्पीकर नहीं उतारे गए तो उन्ही मस्जिदों के सामने बजने लगेगा लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा का पाठ. बस फिर क्या था राम भक्त हनुमान के पाठ को भक्ति और प्रेम की जगह हथियार की तरह जगह जगह पढ़ कर अपने राजनैतिक टिक्कड़ सेंकने निकल पड़े राजनीति में छोटे कद के बड़े नेता .

गुरु हनुमान चालीसा से पाठ पर इतनी छीछालेदर कबहुं न भई . मतलब जुमला फेंकिए लेकिन कैच करने का माद्दा भी तो रखो. ये क्या की जुमला फेंको तुम और सारा दिन बेसिर पैर की चिल्ल्म-चिल्ली से जना परेशान

मुद्दा महाराष्ट्र का था तो उसे संभालना भी उसी राज्य-सरकार की ज़िम्मेदारी थी जिसमे कामयाबी कम और दुर्गति ज़्यादा हुई. ये आग ऐसी फैली की आग की जलन उत्तर प्रदेश तक पहुंची. ज़ाहिर बात है इसे नज़रअंदाज़ करना किसी भी प्रदेश के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि ये ज़रा सी आग किसी भी प्रान्त की शांति को ख़ाक कर सकती है.

बुलडोज़र से लाउडस्पीकर हुआ क्रश ?

यहां हुआ वही जो ऊपर कहा की शोर तो शोर है - अब उसका क्या धर्म तो उतर रहे मंदिर और मस्जिद से लाउडस्पीकर. योगी के सुसाशन की चर्चा समय समय पर होती आई है. इसे ग्राफ के ऊपर या नीच किसी भी तरफ देखें लेकिन चर्चा से इंकार नहीं कर सकते. इस बार लाउडस्पीकर की कार्यवाही पर तो शिवसेना के राज ठाकरे ने भी बधाई दी है.

तो अब घूम फिर के मुद्दा आता है कि क्या है जो योगी जी कर ले गए और उसी मुद्दे पर पत्थर चल पड़े . ऐसा कौन सा मंत्र फूंका गया की जिस लाउडस्पीकर की आवाज़ कम करवाने में शोरगुल, मारपिटाई पत्थरबाज़ी के बीच उत्तरप्रदेश में चूं भी नहीं हुई ?

उत्तर प्रदेश - समझदार प्रदेश

पान की पीक और आशीर्वाद में भी गाली देने वाले प्रदेश ने इतनी समझदारी कब और कैसे सीखी? सीखी या सीखने पर मजबूर हो गए? शासन के तरीक़े कुछ नए कुछ पुराने. गाहे बगाहे आपको पुलिस के डंडे की ताकत की वीडियो नज़र आई होगी. इसमें दो राय नहीं की सभ्य समाज में डंडे का कानून नहीं होना चाहिए पर, का है भैया कि पुरातन संभ्यता होय का ये मतबल थोड़े न है की सबहि सभ्य है. तो इहां कभी कभी डंडा जरुरी है.

हां डंडा किस पर पड़ रहा है, क्यों पड़ रहा है इस पर राजनिति होती है और बढ़िया से होती है पर, किन्तु परन्तु इस बार नहीं हुई, डंडा भी नहीं चला . कम से कम खबर तो नहीं ही आई. जी जी उत्तर प्रदेश में इस बात पर राजनिति नहीं हुई बाकि तो जहांगीरपुरी को खूब भुनाया मिडिया ने भी और कुछ पार्टियों ने भी.

पल पल की खबर - पत्थर पत्थर

मीडिया की बात करें तो गज्जबे है भैया. लॉजिक को पोटली में भर सबसे ऊपर इनका टीआरपी का मुद्दा और योगी जी के सुसाशन को इन्होने भी कोई खास तरजीह नहीं दी. उसमे मसाला जो नहीं था. बस काम हो रहा था वो भी शांति से. जिस लाउडस्‍पीकर के झगड़े पर कहां किस एंगल से पत्थर चला ये तक दिखाने में कामयाब हो गये मथुरा और गोरखनाथ मंदिर से तथा मस्जिदों से शांति से उतारे गए लाउडस्पीकर को दिखाना भूल गए.

मीडिया की टीआरपी भूख देश को दंगे में झोंकने से भी गुरेज़ नहीं करती शायद यही एक कारण है की भाईचारे और शांति से मसले को सुलझाने की सफलता को दिखाना उनकी प्राथमिकता नहीं रही.

सवाल वहीं का वहीं

तो भैया सवाल वही है. करते कैसे हैं? क्या ये दंगो में हुए नुकसान की भरपाई दंगाइयों से ही हुई उसका असर है या अवैध निर्माण पर चलते बुलडोज़र का? हमे पता चले न चले लेकिन कॉर्पोरेट की तरह इनहाउस ट्रेनिंग होनी चाहिए. हर राज्य का मुख्यमंत्री ये गुर सीखे की बिल्ली के गले में घंटी पहनाई भी जा सकती है और उतारी भी - वो भी शांति से .

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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