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नजर लागी राजा, सरकारी बंगले पे!

    • बालकृष्ण
    • Updated: 03 अगस्त, 2016 02:57 PM
  • 03 अगस्त, 2016 02:57 PM
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मौका जब सरकारी बंगले पर आजीवन कब्जा जमाने का हो तो यूपी से ज्यादा दरियादिली शायद ही किसी प्रदेश के नेता दिखाते हैं. यह एक मात्र ऐसा कार्यक्रम है जिसमें राज्य की सभी पार्टियां एकजुट रहती हैं.

उत्तर प्रदेश में प्रतिद्वंदी पार्टियों के नेता, राजनीति के महाभारत में एक दूसरे को नीचा दिखाने और हर कीमत पर सत्ता हथियाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. लेकिन विधानसभा में मारपीट और गेस्ट हाउस कांड के लिए बदनाम यूपी में एक मुद्दा ऐसा भी है जिसका नाम आते ही धुर विरोधी नेता भी दुश्मनी भूलकर गजब का भाईचारा दिखाते हैं.

मौका जब सरकारी बंगले पर आजीवन कब्जा जमाने का हो तो यूपी से ज्यादा दरियादिली शायद ही किसी प्रदेश के नेता दिखाते हैं. इसी भाईचारे को अमली जामा पहनाने के लिए यूपी की सरकार में 1997 में बाकायदा पूर्व सीएम आवास आवंटन रूल्स बना दिया ताकि सबका बंगला हमेशा के लिए आबाद रहे. नेता जानते हैं कि सत्ता, मुठ्ठी में बंद रेत की तरह है जिसे बांध कर नहीं रखा जा सकता. आज इसके पास तो कल किसी और के पास. इसलिए जब बात सरकारी बंगले को जन्म जन्मांतर तक अपना बनाने की बात हो तो कोई किसी को नहीं छेड़ता. सबको पता है - सरकारी बंगले में रहने वाले, दूसरों के बंगलों में नहीं झांकते.

इसे भी पढ़ें: ये 30 पूर्व मुख्यमंत्री कैसे छोड़ पाएंगे अपने आलीशान बंगले ?

इसलिए सु्प्रीम कोर्ट ने जब से सभी भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों को दो महीने के भीतर बंगला खाली करने का आदेश दिया है, बंगले वालों की नींद उड़ी हुई है. राज्य सरकार ने भी जी जान लगाकर इस फैसले को पलटवाने की पैरवी कैसे की जाए इस पर माथापच्ची शुरू कर दी है. करे भी क्यों नहीं. इस फैसले की गाज मौजूदा मुख्यमंत्री के पिता मुलायम सिंह यादव पर भी गिरी है. बाकी नेता भी इसी चक्कर में हैं कि मुलायम का बंगला बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार कुछ ऐसा दांव चले कि उनका बंगला भी बच जाए.

उत्तर प्रदेश में प्रतिद्वंदी पार्टियों के नेता, राजनीति के महाभारत में एक दूसरे को नीचा दिखाने और हर कीमत पर सत्ता हथियाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. लेकिन विधानसभा में मारपीट और गेस्ट हाउस कांड के लिए बदनाम यूपी में एक मुद्दा ऐसा भी है जिसका नाम आते ही धुर विरोधी नेता भी दुश्मनी भूलकर गजब का भाईचारा दिखाते हैं.

मौका जब सरकारी बंगले पर आजीवन कब्जा जमाने का हो तो यूपी से ज्यादा दरियादिली शायद ही किसी प्रदेश के नेता दिखाते हैं. इसी भाईचारे को अमली जामा पहनाने के लिए यूपी की सरकार में 1997 में बाकायदा पूर्व सीएम आवास आवंटन रूल्स बना दिया ताकि सबका बंगला हमेशा के लिए आबाद रहे. नेता जानते हैं कि सत्ता, मुठ्ठी में बंद रेत की तरह है जिसे बांध कर नहीं रखा जा सकता. आज इसके पास तो कल किसी और के पास. इसलिए जब बात सरकारी बंगले को जन्म जन्मांतर तक अपना बनाने की बात हो तो कोई किसी को नहीं छेड़ता. सबको पता है - सरकारी बंगले में रहने वाले, दूसरों के बंगलों में नहीं झांकते.

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इसलिए सु्प्रीम कोर्ट ने जब से सभी भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों को दो महीने के भीतर बंगला खाली करने का आदेश दिया है, बंगले वालों की नींद उड़ी हुई है. राज्य सरकार ने भी जी जान लगाकर इस फैसले को पलटवाने की पैरवी कैसे की जाए इस पर माथापच्ची शुरू कर दी है. करे भी क्यों नहीं. इस फैसले की गाज मौजूदा मुख्यमंत्री के पिता मुलायम सिंह यादव पर भी गिरी है. बाकी नेता भी इसी चक्कर में हैं कि मुलायम का बंगला बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार कुछ ऐसा दांव चले कि उनका बंगला भी बच जाए.

लखनऊ में मायावती का सरकारी आवास

कहने को तो मायावती और मुलायम सिंह एक दूसरे से बात तक नहीं करते. लेकिन अखिलेश के राज में भी मायावती को माल एवेन्यू में बने अपने बंगले को और भी आलीशान बनाने में कहीं कोई दिक्कत नहीं आयी. आज भी मायावती के इस बंगले के बड़े-बड़े फाटक के पीछे तमाम कारीगर रात दिन काम करके इसे और आलीशान बनाने में लगे हैं.

मायावती का ये बंगला इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि यूपी के नेता सरकारी पैसे को किस तरह मनमाने ढंग से अपने ऊपर खर्च करते हैं. मायवती ने इस बंगले के बगल में बने गन्ना आयुक्त के बंगले को धराशायी करवा अपने बंगले में मिलवा लिया था ताकि दलितों के सम्मान को पूरा विस्तार मिल सके. एक आरटीआई में इस बात का खुलासा हुआ था कि 2012 तक मायावती इस बंगले की साज-सज्जा पर 86 करोड रूपए खर्च कर चुकी थीं. उसके बाद से भी यहां लगातार काम चल रहा है.

 पूर्व मुख्यमंत्री मुलायाम सिंह यादव के पास भी सरकारी बंगला

लखनऊ में सरकारी बंगले का मोह ऐसा है कि कल्याण सिंह और रामनरेश यादव जैसे नेता जो राजभवन की शोभा बढा रहे हैं वो भी बंगला छोडने को तैयार नहीं हैं. देश के गृह मंत्री के तौर पर राजनाथ सिंह के पास दिल्ली में अकबर रोड पर शानदार बंगला है. इसी तरह मायावती के पास दिल्ली में त्यागराज रोड पर बंगला है और मुलायम सिंह के पास भी अशोक रोड पर सरकारी बंगला है. एनडी तिवारी के पास भी उत्तराखंड में सरकारी आवास है. लेकिन लखनऊ के सरकारी बंगले का मोह ऐसा है कि कोई इसे छोड़ना नहीं चाहता है.

इसे भी पढ़ें: व्यंग्य: तो इसलिए मुख्यमंत्री आवास नहीं छोड़ रहे हैं मांझी

लखनऊ के माल एवेन्यू में घूम कर देखें तो आप हैरान रह जाएंगें कि किस तरह एक के बाद एक सरकारी बंगले हमेशा के लिए नेता और उनके परिवार की जागीर बनते जा रहे हैं. इसका सबसे आसान तरीका है ट्रस्ट और संस्था बनाकर बंगला में डेरा जमा देना. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह के बेटे फतेह बहादुर सिंह ने जनसेवा संस्थान बनाकर बंगला हथिया लिया तो कुसुम राय महातम राय ट्रस्ट बनाकर बंगले में डट गयीं. 11 ए माल एवेन्यू में कुछ लोग राजनारायण ट्रस्ट बनाकर बस गए. उत्तर प्रदेश के राज्य सम्पत्ति विभाग के मुताबिक लखनऊ में 383 ट्रस्ट और संस्थाए सरकारी आवासों में काबिज हैं.

लखनऊ के एनजीओ लोकप्रहरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों के कब्जे से सरकारी बंगलों को आजाद कराने का फैसला सुना तो दिया है लेकिन इन बंगलों में डटे लोग तो मान कर चल रहे हैं - जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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