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व्यंग्य: तो इसलिए मुख्यमंत्री आवास नहीं छोड़ रहे हैं मांझी

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 06 जून, 2015 06:21 PM
  • 06 जून, 2015 06:21 PM
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बिहार में जीतन राम मांझी का चिपको आंदोलन जारी है. जिस दिन से वो मुख्यमंत्री के बंगले में घुसे हैं, बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहे.

बिहार में जीतन राम मांझी का चिपको आंदोलन जारी है. जिस दिन से वो मुख्यमंत्री के बंगले में घुसे हैं, बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहे. दरअसल एक तांत्रिक और एक पुजारी ने मांझी को यकीन दिला दिया है कि अगर चुनावों तक वो बंगले में बने रहे तो वहां ताउम्र रह सकते हैं.

नीतीश कुमार ने कुर्सी पर दोबारा कब्जा जमा लिया, लेकिन बंगला हाथ नहीं आ रहा. थक हार कर नीतीश ने मुख्यमंत्री के आम और लीची पर पहरा बैठा दिया है. 1, अणे मार्ग के मुख्यमंत्री आवास पर लगे 100 पेड़ों की सुरक्षा में 24 पुलिसवाले तैनात किए गए हैं. जिस अनुपात में पुलिसवाले पेड़ों की सुरक्षा कर रहे हैं शायद बिहार के लोगों को भी ऐसी सुविधा उपलब्ध न हो. बिहार क्या शायद पूरे देश में यही हाल होगा. मांझी, नीतीश के इस कदम से भले ही नाखुश हों, लेकिन मेनका गांधी जरूर खुश होंगी. वैसे बंगले में पुलिसवालों की तैनाती की वजह वो नहीं जो ऊपर से नजर आ रही है. नीतीश कुमार वैसे भी मांझी के रग-रग से वाकिफ हैं, दोनों का बरसों का साथ जो रहा है.

कोलकाता में तांत्रिक अनुष्ठान

तांत्रिक से मांझी की मुलाकात दिल्ली में बीजेपी के एक नेता के घर पर हुई थी. फिर मांझी ने तांत्रिक से अलग से संपर्क किया. तांत्रिक के कहने पर मांझी दो बार कोलकाता भी जा चुके हैं. ये तांत्रिक अनुष्ठान कितने दिन का है ये तो नहीं पता लेकिन वो अब भी चल रहा है. अनुष्ठान के तहत कोलकाता से तांत्रिक द्वारा अभिमंत्रित पानी रोज पटना लाया जाता है. उस पानी को बंगले में एक खास जगह पर रखा जाता है - और ऐसे वक्त जब किसी की नजर न पड़े उसे बंगले के चारों ओर छिड़का जाता है. इस काम में मांझी ने अपने दो करीबी लोगों की ड्यूटी लगाई है जो बारी बारी कोलकाता और पटना के बीच अप-डाउन करते हैं. और नजर बचाकर बंगले के आसपास पानी छिड़कते हैं. वैसे आम और लीची तो नीतीश पर हमले के बहाने हैं, असली दिक्कत तो बंगले के चारों ओर पानी छिड़कने में हो रही है. पुलिसवालों के पहरे के चलते इस काम में मांझी को काफी दिक्कत आ रही है. तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि नीतीश ने भी मांझी की हरकतों पर नजर रखने के लिए पहरा लगाया है, आम और लीची तो नीतीश के लिए भी बहाना ही हैं.

बिहार में जीतन राम मांझी का चिपको आंदोलन जारी है. जिस दिन से वो मुख्यमंत्री के बंगले में घुसे हैं, बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहे. दरअसल एक तांत्रिक और एक पुजारी ने मांझी को यकीन दिला दिया है कि अगर चुनावों तक वो बंगले में बने रहे तो वहां ताउम्र रह सकते हैं.

नीतीश कुमार ने कुर्सी पर दोबारा कब्जा जमा लिया, लेकिन बंगला हाथ नहीं आ रहा. थक हार कर नीतीश ने मुख्यमंत्री के आम और लीची पर पहरा बैठा दिया है. 1, अणे मार्ग के मुख्यमंत्री आवास पर लगे 100 पेड़ों की सुरक्षा में 24 पुलिसवाले तैनात किए गए हैं. जिस अनुपात में पुलिसवाले पेड़ों की सुरक्षा कर रहे हैं शायद बिहार के लोगों को भी ऐसी सुविधा उपलब्ध न हो. बिहार क्या शायद पूरे देश में यही हाल होगा. मांझी, नीतीश के इस कदम से भले ही नाखुश हों, लेकिन मेनका गांधी जरूर खुश होंगी. वैसे बंगले में पुलिसवालों की तैनाती की वजह वो नहीं जो ऊपर से नजर आ रही है. नीतीश कुमार वैसे भी मांझी के रग-रग से वाकिफ हैं, दोनों का बरसों का साथ जो रहा है.

कोलकाता में तांत्रिक अनुष्ठान

तांत्रिक से मांझी की मुलाकात दिल्ली में बीजेपी के एक नेता के घर पर हुई थी. फिर मांझी ने तांत्रिक से अलग से संपर्क किया. तांत्रिक के कहने पर मांझी दो बार कोलकाता भी जा चुके हैं. ये तांत्रिक अनुष्ठान कितने दिन का है ये तो नहीं पता लेकिन वो अब भी चल रहा है. अनुष्ठान के तहत कोलकाता से तांत्रिक द्वारा अभिमंत्रित पानी रोज पटना लाया जाता है. उस पानी को बंगले में एक खास जगह पर रखा जाता है - और ऐसे वक्त जब किसी की नजर न पड़े उसे बंगले के चारों ओर छिड़का जाता है. इस काम में मांझी ने अपने दो करीबी लोगों की ड्यूटी लगाई है जो बारी बारी कोलकाता और पटना के बीच अप-डाउन करते हैं. और नजर बचाकर बंगले के आसपास पानी छिड़कते हैं. वैसे आम और लीची तो नीतीश पर हमले के बहाने हैं, असली दिक्कत तो बंगले के चारों ओर पानी छिड़कने में हो रही है. पुलिसवालों के पहरे के चलते इस काम में मांझी को काफी दिक्कत आ रही है. तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि नीतीश ने भी मांझी की हरकतों पर नजर रखने के लिए पहरा लगाया है, आम और लीची तो नीतीश के लिए भी बहाना ही हैं.

गया में पितृ-पूजा

तांत्रिक अनुष्ठान के साथ ही गया में भी पितृ-पूजा और पिंडदान का विशेष कार्यकर्म भी चल रहा है. इसके जरिए पुरखों को खुश करने की कोशिश की जा रही है. गया के एक पुजारी ने अपना बही-खाता देख कर बताया है कि वो बंगला मांझी के ही पुरखों की जमीन पर बना हुआ है. पुजारी ने मांझी को बताया कि उसके पुरखों के पास मांझी के पुरखे पिंडदान के लिए वहीं से आया करते थे, जहां अब 1, अणे मार्ग है. उसी पुजारी ने मांझी को भरोसा दिलाया है कि अगर पुरखे खुश हो गए तो वो बंगला फिर से उनका हो सकता है.

कांग्रेस भी मांझी के साथ

एक चर्चा है कि बिहार चुनाव में कांग्रेस नीतीश कुमार के साथ जाएगी. दूसरी चर्चा है कि कांग्रेस जीतन राम मांझी के साथ हाथ मिला सकती है. दोनों ही बातें सही बताई जा रही हैं. दरअसल, सोनिया गांधी नीतीश के साथ गठबंधन के पक्ष में हैं, जबकि राहुल गांधी चाहतें हैं कि मांझी के साथ अलाएंस हो. लालू और कांग्रेस का लंबा साथ रहा है, लेकिन सोनिया इस बार क्लीन इमेजवाले को वरीयता देना चाहती हैं. राहुल का तर्क है कि चूंकि वो दलित एजेंडे पर काम कर रहे हैं इसलिए मांझी का साथ फायदे का सौदा रहेगा. बहरहाल, इस बारे में औपचारिक एलान अभी होना बाकी है. पर्दे के पीछे, कांग्रेस ने भी मांझी को कुछ ऐसी ही सलाह दी है - जैसे भी हो सके बंगले में बने रहो. अब मांझी ही नहीं उनके समर्थक भी मान बैठे हैं कि अगर दोबारा सीएम की कुर्सी हासिल करनी है तो चुनाव तक बंगले में बने रहना जरूरी है. चाहे इसके लिए जो करना पड़े.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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