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कुढ़नी का रिजल्ट बता रहा है कि बीजेपी के खिलाफ नीतीश का बंदोबस्त कमजोर है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 09 दिसम्बर, 2022 10:10 PM
  • 09 दिसम्बर, 2022 10:10 PM
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चुनाव नतीजे आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने बिहार के उपचुनाव के नतीजे का भी खास तौर पर जिक्र किया - कुढ़नी उपचुनाव (Kurhani Bypoll) में जेडीयू की हार बता रहा है कि बीजेपी के खिलाफ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की तैयारी बहुत मजबूत तो नहीं है.

बिहार में हुए कुढ़नी उपचुनाव (Kurhani Bypoll) का नतीजा नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पक्ष में जाना चाहिये था. सिर्फ इसलिए नहीं कि ज्यादातर उपचुनावों के नतीजे परंपरा का निर्वहन करते ही नजर आये हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि कुढ़नी में जेडीयू उम्मीदवार ही मैदान में था, न कि महागठबंधन सहयोगी आरजेडी का.

उपचुनावों को लेकर मान्यता और अक्सर परंपरा भी देखी गयी है कि वे सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में ही जाते हैं. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुए उपचुनाव के नतीजे जहां सत्ताधारी कांग्रेस के पक्ष में दर्ज हुए हैं, ओडिशा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल ने भी अपना दबदबा बनाये रखा. उत्तर प्रदेश की मैनपुरी सीट के तो समीकरण ही अलग हो गये थे, लेकिन दो विधानसभा सीटों में से एक तो बीजेपी ने अपनी झोली में भर ही लिया है. यूपी की रामपुर सीट पर योगी आदित्यनाथ के कैंपेन का असर जरूर हुआ, लेकिन खतौली हाथ से निकल गया.

हाल ही में जब छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे, बिहार में सत्ताधारी महागठबंधन और विपक्षी बीजेपी ने एक सीट जीते थे. कुढ़नी की जीत गोपालगंज के बाद बीजेपी की लगातार दूसरी जीत है. वैसे तो मोकामा उपचुनाव में महागठबंधन उम्मीदवार की जीत में ज्यादा योगदान इलाके के बाहुबली अनंत सिंह का ही माना गया, न कि तेजस्वी यादव या नीतीश कुमार के चुनाव प्रचार का.

तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि जैसे गोपालगंज में बीजेपी की जीत में सबसे बड़ा योगदान AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी का समझा गया, कुढ़नी में ऐसे कई फैक्टर थे जो बीजेपी उम्मीदवार केदार गुप्ता की जीत की वजह बने - 2020 के विधानसभा चुनाव में महज 712 वोट कम पड़ जाने के चलते हार जाने वाले केदार गुप्ता ने इस बार 3,649 वोटों के अंतर से जीत हासिल की...

बिहार में हुए कुढ़नी उपचुनाव (Kurhani Bypoll) का नतीजा नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पक्ष में जाना चाहिये था. सिर्फ इसलिए नहीं कि ज्यादातर उपचुनावों के नतीजे परंपरा का निर्वहन करते ही नजर आये हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि कुढ़नी में जेडीयू उम्मीदवार ही मैदान में था, न कि महागठबंधन सहयोगी आरजेडी का.

उपचुनावों को लेकर मान्यता और अक्सर परंपरा भी देखी गयी है कि वे सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में ही जाते हैं. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुए उपचुनाव के नतीजे जहां सत्ताधारी कांग्रेस के पक्ष में दर्ज हुए हैं, ओडिशा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल ने भी अपना दबदबा बनाये रखा. उत्तर प्रदेश की मैनपुरी सीट के तो समीकरण ही अलग हो गये थे, लेकिन दो विधानसभा सीटों में से एक तो बीजेपी ने अपनी झोली में भर ही लिया है. यूपी की रामपुर सीट पर योगी आदित्यनाथ के कैंपेन का असर जरूर हुआ, लेकिन खतौली हाथ से निकल गया.

हाल ही में जब छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे, बिहार में सत्ताधारी महागठबंधन और विपक्षी बीजेपी ने एक सीट जीते थे. कुढ़नी की जीत गोपालगंज के बाद बीजेपी की लगातार दूसरी जीत है. वैसे तो मोकामा उपचुनाव में महागठबंधन उम्मीदवार की जीत में ज्यादा योगदान इलाके के बाहुबली अनंत सिंह का ही माना गया, न कि तेजस्वी यादव या नीतीश कुमार के चुनाव प्रचार का.

तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि जैसे गोपालगंज में बीजेपी की जीत में सबसे बड़ा योगदान AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी का समझा गया, कुढ़नी में ऐसे कई फैक्टर थे जो बीजेपी उम्मीदवार केदार गुप्ता की जीत की वजह बने - 2020 के विधानसभा चुनाव में महज 712 वोट कम पड़ जाने के चलते हार जाने वाले केदार गुप्ता ने इस बार 3,649 वोटों के अंतर से जीत हासिल की है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के लिए ये हार कितनी अहम है, ये इस बात से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) एक उपचुनाव की जीत को कैसे पेश कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात की ऐतिहासिक जीत, हिमाचल प्रदेश में हार जीत के बीच 0.9 फीसदी वोट शेयर का फर्क और कुढ़नी उपचुनाव का एक साथ जिक्र किया है.

कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार केदार गुप्ता की जीत का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा - 'बिहार में बीजेपी की जीत आने वाले दिनों का संकेत दे रहा है.'

हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की हार के लिए निशाने पर आये जेपी नड्डा को तब जरूर राहत मिली होगी जब प्रधानमंत्री मोदी ने उनका नाम लेकर गुजरात की जीत की कार्यकर्ताओं को बधाई दी. जब प्रधानमंत्री कुढ़नी उपचुनाव का जिक्र कर रहे हों, तो भला बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा कैसे चूक जाते, 'ये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए संदेश है कि बिहार के लोग प्रधानमंत्री मोदी के साथ हैं.'

नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने पहले ही दौरे में बिहार को लेकर बीजेपी का एजेंडा साफ कर दिया था. अमित शाह का कहना रहा कि बीजेपी पहले आने वाले आम चुनाव में ज्यादा से ज्यादा लोक सभा जीतने की कोशिश करेगी - और उसके साल भर बाद बिहार में बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री होगा.

ऐसी कम ही संभावना है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों ही मोदी का भाषण लाइव नहीं सुने होंगे और मन ही मन अपनी तरफ से हुई चूक की समीक्षा भी कर रहे होंगे क्योंकि एक बात तो पक्की लगने लगी है, वो ये कि आने वाले चुनावों में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन की तैयारी वैसी मजबूत तो नहीं ही है, जितनी कि होनी चाहिये - तब निश्चित तौर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के मन में अमित शाह की बातें भी गूंज रही होंगी.

नीतीश के खिलाफ कैसे खेल हो गया?

कुढ़नी विधानसभा सीट पर मतदाताओं के आंकड़े देखें तो सबसे ज्यादा कुशवाहा वोटर हैं. करीब 40 हजार. पिछड़े वर्ग के ये वोटर बिहार में लव-कुश के नाम से जाने जाते हैं. कुर्मी और कोइरी जातियों को मिलाकर ही लव-कुश कहा जाता है. नीतीश कुमार की राजनीति में कदम कदम पर लव-कुश की धमक सुनायी देती हो.

क्या कुढ़नी के नतीजे को वास्तव में 2024 का सेमीफाइनल समझ लिया जाये?

चाहे घाट घाट का पानी पीकर जेडीयू में लौट आये उपेंद्र कुशवाहा हों या फिर बरसों साथ निभाने के बाद मोदी कैबिनेट में मंत्री बनने के चक्कर में नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी बन चुके आरसीपी सिंह हों. सबके सब लव-कुश समीकरण की ही राजनीति करते रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार के संरक्षण में.

मनोज कुमार सिंह के नाम से भी जाने जाने वाले मनोज कुशवाहा को टिकट देने का फैसला भी जेडीयू नेतृत्व ने ये सोच समझ कर ही किया होगा, लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ खेल हो गया और वो देखते रह गये.

कुढ़नी उपचुनाव का नतीजा आने के बाद ये सवाल उठने लगा है कि क्या लव-कुश वोटर भी नीतीश कुमार के खिलाफ हो चुका है, या फिर मनोज कुशवाहा के प्रति नाराजगी भारी पड़ रही है - और आखिर क्यों तेजस्वी यादव के मुंह से बार बार माफी का जिक्र भी काम नहीं आया?

कुढ़नी में 23 हजार यादव वोटर हैं और करीब 20 हजार मुस्लिम वोटर. मतलब, आरजेडी के साथ होने की वजह से ये वोट भी जेडीयू उम्मीदवार को ही मिलने चाहिये थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ - तो क्या जेडीयू उम्मीदनवार के पक्ष में तेजस्वी यादव के M-Y फैक्टर वाले वोट ट्रांसफर नहीं करा पाये?

कुशवाहा के बाद कुढ़नी में करीब 35 हजार भूमिहार वोटर भी हैं और हार जीत के फैसले में ये वोटर भी निर्णायक भूमिका निभाने वाले लगते हैं - लेकिन बात बस इतनी ही होती तो काम चल जाता.

गोपालगंज में बीजेपी की जीत में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM की भूमिका महसूस की गयी थी. दरअसल, गोपालगंज में असदुद्दीन ओवैसी के उम्मीदवार अब्दुल सलाम को 12,214 वोट मिले थे - और हार-जीत का फर्क 1,794 वोट रहा.

हालांकि, कुढ़नी में असदुद्दीन ओवैसी के उम्मीदवार गुलाम मुर्तजा तमाम कोशिशों के बावजूद 3,202 वोट ही हासिल कर पाये थे - अगर इसमें 447 वोट और जोड़ दें तो कुढ़नी सीट पर हार जीत का आंकड़ा भी वही है.

मनोज कुशवाहा की हार में आरजेडी के बागी नेता शेखर सहनी की भी बड़ी भूमिका लगती है. वो जानते थे कि जीत तो नहीं ही पाएंगे लेकिन हरा तो सकते ही हैं. शेखर सहनी को वोट तो नोटा से भी कम मिले थे, लेकिन थे तो वे महागठबंधन के हिस्से के ही वोट. शेखर सहनी को 3,716 वोट मिले थे, जबकि नोटा का स्कोर रहा - 4.416 वोट. मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के उम्मीदवार नीलाभ कुमार को मिले 9,988 वोट बता रहे हैं कि भूमिहार वोटों का भी बंटवारा हुआ है. अब मुकेश सहनी ने ये काम बीजेपी से बदला लेने के लिए किया था या फिर नीतीश कुमार से ये सोचने वाली बात है.

चिराग ने नीतीश के सामने फिर फैलाया अंधेरा: गोपालगंज की ही तरह बीजेपी नेतृत्व ने चिराग पासवान का कुढ़नी में भी भरपूर इस्तेमाल किया है - और माना जा सकता है कि कुढ़नी में कमल खिलने में चिराग पासवान की भी बहुत बड़ी भूमिका रही.

पासी और अनुसूचित जातियों के बीच जाकर चिराग पासवान ने बीजेपी के लिए वोट मांगे थे - और नतीजे देख कर तो यही लगता है कि चिराग पासवान ने एक बार फिर नीतीश कुमार को 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों की तरह ही नुकसान पहुंचाया है.

ये भी मान कर चलना होगा कि कुढ़नी की जीत के बाद चिराग पासवान का कद और बढ़ सकता है - और वो कह सकते हैं कि बीजेपी के लाख मुंह मोड़ लेने के बावजूद मोदी के हनुमान के रूप में अब भी उनकी भूमिका बदली नहीं है.

ऐसे कैसे फेल हो गये सारे दांव

मैनपुरी में डिंपल यादव की जीत में थोड़ा बहुत क्रेडिट चाहें तो नीतीश कुमार भी ले सकते हैं. नीतीश कुमार के प्रतिनिधि बन कर जेडीयू नेता केसी त्यागी मैनपुरी में चुनाव प्रचार करने पहुंचे थे, जहां शिवपाल यादव और अखिलेश यादव ने बड़ी ही गर्मजोशी से स्वागत किया था.

कहते हैं कि जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह शुरू से ही कुढ़नी में डेरा डाल कर जमे हुए थे. पूरे चुनाव तेजस्वी यादव और ललन सिंह मिल कर अपने अपनी रैलियों में लोगों को समझाने की कोशिश करते रहे कि ये केवल कुढ़नी का उपचुनाव नहीं है, बल्कि ये 2024 के आम चुनाव का सेमीफाइनल है.

मोकामा और गोपालगंज उपचुनावों में स्वास्थ्य ठीक नहीं होने की वजह से नीतीश कुमार चुनाव प्रचार करने नहीं गये थे, लेकिन कुढ़नी में अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रखी थी - और हां, तेजस्वी यादव ने भी अपनी तरफ से हर संभव साम-दाम-दंड-भेद आजमाये थे - मनोज कुशवाहा के लिए माफी भी मांगी और लालू यादव की तबीयत खराब होने की दुहाई भी देते रहे, लेकिन लोगों ने लगता है सब कुछ अनसुना कर दिया.

तेजस्वी यादव भी, और ललन सिंह भी कहते रहे कि जाने-अनजाने मनोज कुशवाहा से जो गलतियां हो गई हैं, उसके लिए वे माफी मांगते हैं. और लोगों से गुजारिश है कि वे मनोज कुशवाहा को माफ कर दें - वोटर को लगातार ये समझाने की कोशिश हुई कि मनोज कुशवाहा को अपनी गलतियों का अहसास हो चुका है - और वे चाहें तो ढाई साल के लिए माफी देकर एक बार आजमा भी सकते हैं.

तेजस्वी यादव ने पिता के किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़ा हर अपडेट भी दिया. 5 दिसंबर को ही वोटिंग थी और उसी दिन लालू यादव का किडनी ट्रांसप्लांट होना था, लिहाजा लोगों से तेजस्वी यादव कह रहे थे कि मनोज कुशवाहा की जीत की जिम्मेदारी अब उनके ही हवाले हैं.

कुढ़नी के नतीजे का अंदाजा तो उसी दिन लग गया था जब नीतीश कुमार की रैली में हंगामा होने लगा. नीतीश कुमार आचार संहिता की दुहाई देते रहे, लेकिन विरोध प्रदर्शन कर रहे सीटीईटी के अभ्यर्थी सुनने को तैयार नहीं थे - तभी तो जम कर कुर्सियां भी चलीं.

बात एक उपचुनाव हारने की नहीं है, सवाल ये ही कि नीतीश कुमार के खिलाफ ये खेल कैसे हो गया? सारे समीकरण फिट होने के बावजूद सत्ता की गद्दी पर काबिज होकर भी नीतीश कुमार का उम्मीदवार हार जाता है, तो ये 2024 के लिए संतोष जनक संकेत भी नहीं समझा जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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