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मोकामा उपचुनाव जीतने के लिए बीजेपी को बाहुबली नेता की मदद क्यों लेनी पड़ी?

    • आईचौक
    • Updated: 16 अक्टूबर, 2022 01:50 PM
  • 16 अक्टूबर, 2022 01:50 PM
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बिहार के मोकामा उपचुनाव (Mokama Bypoll) में मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है. बाहुबली नेता अनंत सिंह (Anant Singh) से मुकाबले के लिए बीजेपी (BJP) ने इलाके के ही एक अन्य बाहुबली नेता को हायर किया है - क्या जंगलराज से मुकाबले का कोई और रास्ता नहीं था?

बिहार में जंगलराज से मुकाबले के लिए बीजेपी (BJP) को कोई नया रास्ता नहीं मिल पाया है. जो तरीका खोजा है वो काफी पुराना है. लोहा ही लोहे को काटता है - और बीजेपी को भी अब लगने लगा है कि इसी फॉर्मूले के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा.

एनडीए छोड़ कर नीतीश कुमार के महागठबंधन का मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही बीजेपी हमलावर है. अब तक नीतीश कुमार के चेहरे को आगे कर बीजेपी जंगलराज के खिलाफ बिहार के लोगों से वोट मांगा करती थी, लेकिन अब नीतीश कुमार को ही जंगलराज को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार बताने लगी है - नीतीश कुमार ने आरजेडी नेता लालू यादव से हाथ जो मिला लिया है. और तेजस्वी यादव फिर से बिहार के डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठ जो गये हैं.

2019 के आम चुनाव और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद पहला मौका है जब बीजेपी को नीतीश कुमार से फिर से दो-दो हाथ करना पड़ रहा है. बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन की राजनीति के बीच अब तक सिर्फ 2014 के आम चुनाव और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में ही ऐसे मौके आये थे - और मोकामा विधानसभा सीट (Mokama Bypoll) पर होने जा रहे उपचुनाव में फिर से वैसी ही स्थितियां बन पड़ी हैं.

मोकामा एक जमाने से छोटे सरकार के नाम से जाने जाने वाले बाहुबली नेता अनंत सिंह (Anant Singh) का गढ़ समझा जाता रहा है. वैसे भी अनंत सिंह ने बार बार इसे साबित भी किया है. लालू-राबड़ी के जमाने से ही मोकामा की सीट जेडीयू के जिम्मे रही है, इसलिए बीजेपी को कभी वहां की फिक्र करने की जरूरत ही नहीं पड़ी - और यही वजह रही कि जैसे बिहार में अब तक बीजेपी के पास कोई मुख्यमंत्री चेहरा नहीं तैयार हो सका, मोकामा में विधानसभा उम्मीदवार को भी आउटसोर्स करना पड़ा.

बहरहाल, बीजेपी ने मोकामा में अनंत सिंह के खिलाफ मैदान में उतरने के लिए एक बाहुबली नेता की ही मदद ली है. मोकामा...

बिहार में जंगलराज से मुकाबले के लिए बीजेपी (BJP) को कोई नया रास्ता नहीं मिल पाया है. जो तरीका खोजा है वो काफी पुराना है. लोहा ही लोहे को काटता है - और बीजेपी को भी अब लगने लगा है कि इसी फॉर्मूले के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा.

एनडीए छोड़ कर नीतीश कुमार के महागठबंधन का मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही बीजेपी हमलावर है. अब तक नीतीश कुमार के चेहरे को आगे कर बीजेपी जंगलराज के खिलाफ बिहार के लोगों से वोट मांगा करती थी, लेकिन अब नीतीश कुमार को ही जंगलराज को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार बताने लगी है - नीतीश कुमार ने आरजेडी नेता लालू यादव से हाथ जो मिला लिया है. और तेजस्वी यादव फिर से बिहार के डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठ जो गये हैं.

2019 के आम चुनाव और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद पहला मौका है जब बीजेपी को नीतीश कुमार से फिर से दो-दो हाथ करना पड़ रहा है. बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन की राजनीति के बीच अब तक सिर्फ 2014 के आम चुनाव और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में ही ऐसे मौके आये थे - और मोकामा विधानसभा सीट (Mokama Bypoll) पर होने जा रहे उपचुनाव में फिर से वैसी ही स्थितियां बन पड़ी हैं.

मोकामा एक जमाने से छोटे सरकार के नाम से जाने जाने वाले बाहुबली नेता अनंत सिंह (Anant Singh) का गढ़ समझा जाता रहा है. वैसे भी अनंत सिंह ने बार बार इसे साबित भी किया है. लालू-राबड़ी के जमाने से ही मोकामा की सीट जेडीयू के जिम्मे रही है, इसलिए बीजेपी को कभी वहां की फिक्र करने की जरूरत ही नहीं पड़ी - और यही वजह रही कि जैसे बिहार में अब तक बीजेपी के पास कोई मुख्यमंत्री चेहरा नहीं तैयार हो सका, मोकामा में विधानसभा उम्मीदवार को भी आउटसोर्स करना पड़ा.

बहरहाल, बीजेपी ने मोकामा में अनंत सिंह के खिलाफ मैदान में उतरने के लिए एक बाहुबली नेता की ही मदद ली है. मोकामा के इस बाहुबली नेता का नाम ललन सिंह है, लेकिन ये वो ललन सिंह नहीं हैं जिनके खिलाफ बीजेपी मोर्चा खोल चुकी है. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर ऐसी टिप्पणी कर डाली है कि बीजेपी का खून खौल उठा है.

मोकामा अनंत सिंह ही विधायक हुआ करते थे, लेकिन AK-7 और हैंड ग्रेनेड केस में सजा हो जाने के कारण उनकी विधानसभा की सदस्यता चली गयी थी. और इसीलिए मोकामा में देश के छह राज्यों की सात सीटों के साथ ही उपचुनाव हो रहा है. मोकामा में भी मतदान 3 नवंबर को होगा और वोटों की गिनती और नतीजे 8 नवंबर को आने की अपेक्षा है.

2015 के बाद मोकामा के मैदान में एक बार फिर मुकाबला महागठबंधन और बीजेपी के बीच हो रहा है, लेकिन मोर्चे पर दो बाहुबली तैनात हैं. नामांकन तो दोनों बाहुबलियों की पत्नियों ने भरा है, लेकिन असली जंग तो अनंत सिंह और उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी ललन सिंह के बीच मानी जा रही है.

महागठबंधन की उम्मीदवार अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी से मुकाबले के लिए बीजेपी ने ललन सिंह को हायर किया है - और नीलम देवी को चुनावी मैदान में सोनम देवी चैलेंज कर रही हैं.

क्या बीजेपी के पास बिहार में जंगलराज से मुकाबले का कोई और रास्ता नहीं बचा था? हाल के बिहार दौरे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अगले विधानसभा चुनाव में अपना मुख्यमंत्री चेहरा लाने की बात कर रहे थे. हो सकता है तब तक नीतीश कुमार की जगह तेजस्वी यादव ले चुके हों. क्या तब भी बीजेपी कोई बाहुबली को ही हायर करेगी - क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज कह कर ही बुलाते हैं?

कटप्पा नहीं, बीजेपी इस बार बाहुबली के भरोसे

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय समाज पार्टी के महेंद्र राजभर को कटप्पा और जेल में बंद माफिया डॉन और बीएसपी उम्मीदवार मुख्तार अंसारी को बाहुबली बताया था. मऊ की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनडीए उम्मीदवार को कटप्पा बता कर परिचय कराया था - लेकिन मोदी के कटप्पा तब मायावती के बाहुबली से हार गये थे.

मोकामा में अनंत सिंह के किले पर चढ़ाई के लिए बीजेपी को भी लेनी पड़ी बाहुबलियों की मदद

ऐसा लगता है कि थोड़ा भूल सुधार करते हुए बीजेपी ने मोकामा में बाहुबली के खिलाफ कटप्पा की जगह इलाके के ही बाहुबली को हायर करने का फैसला किया होगा. और जिस बाहुबली नेता ललन सिंह की बीजेपी मदद ले रही है वो बिहार के एक और बाहुबली सूरजभान सिंह के चचेरे भाई हैं. माना जाता है कि अनंत सिंह से अपराध की दुनिया से लेकर राजनीति के मैदान में कोई मुकाबला करता रहा है तो वो ललन सिंह ही हैं - और यही वजह है कि मोकामा का मुकाबला इस बार ज्यादा ही दिलचस्प होने वाला है क्योंकि बीजेपी का सपोर्ट जो हासिल है.

ललन सिंह लगातार पार्टी बदलते रहे हैं. अभी अभी वो जेडीयू छोड़ कर बीजेपी के सपोर्ट में खड़े हो गये हैं, हालांकि बीजेपी ने टिकट उनकी पत्नी को ही दिया है. ललन सिंह पहले रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी में भी रह चुके हैं - और उनके टिकट पर अनंत सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन अब तक कभी कामयाबी नहीं मिल सकी है.

आखिर ये बीजेपी के सपोर्ट का प्रभाव ही तो है, जो अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को ललन सिंह बांग्लादेशी बताने लगे हैं. स्थानीय मीडिया में आयी खबरों के मुताबिक, ललन सिंह ने नीलम देवी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन ये जरूर कहा कि 'वो भारत की निवासी होते हुए भी यहां की नागरिक नहीं हैं...'

2005 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह के खिलाफ लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर ललन सिंह खुद मैदान में उतरे थे, जबकि 2010 में अपनी पत्नी सोनम देवी को चुनाव लड़ाये थे - और फिर 2015 में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के टिकट पर एक बार फिर मैदान में खुद ही उतरे, लेकिन हर बार हार का ही मुंह देखना पड़ा.

2015 के चुनाव में ललन सिंह के परिवार के ही कन्हैया सिंह लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में थे. कन्हैया सिंह चौथे स्थान पर रहे, जबकि ललन सिंह तीसरे स्थान पर. कन्हैया सिंह और ललन सिंह आपस में चचेरे भाई हैं - और ये दोनों ही एक और नामी बाहुबली सूरजभान सिंह के परिवार के ही लोग हैं.

चूंकि कन्हैया सिंह और ललन सिंह एक ही सीट पर अलग अलग पार्टियों के उम्मीदवार रहे, लिहाजा ललन सिंह को सूरजभान सिंह का सपोर्ट कभी नहीं मिला. सूरजभान सिंह, दरअसल, अपने भाई कन्हैया सिंह के सपोर्ट में खड़े रहते थे.

अब स्थितियां बदल चुकी हैं. माना जा रहा है कि सूरजभान सिंह इस बार चचेरे भाई ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी का सपोर्ट कर रहे हैं - ऐसे में अनंत सिंह के दबदबे के चलते नीलम देवी का पलड़ा भारी होने के बावजूद बीजेपी उम्मीदवार के रूप में सोनम देवी से कड़े मुकाबले की उम्मीद जतायी जा रही है.

इस लिहाज से देखा जाये तो बीजेपी ने राजनीति के हिसाब से टिकट तो जिताऊ उम्मीदवार को दिया है, लेकिन सवाल ये है कि क्या ऐसे ही चुनाव लड़ने के बाद भी बीजेपी जंगल राज के नाम पर लालू यादव के परिवार पर उंगली उठा सकेगी - और नीतीश कुमार पर लालू यादव से हाथ मिलाकर जंगलराज को बढ़ावा देने का इल्जाम लगा सकेगी?

मोकामा की जंग के दिलचस्प पहलू और भी हैं

मोकामा उपचुनाव में बीजेपी के जंगलराज से मुकाबले के तरीके के अलावा कई और भी दिलचस्प पहलू हैं - और उनमें से एक है चिराग पासवान की वापसी की संभावना. चिराग पासवान की राह के सबसे बड़ी बाधा नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ देने के बाद ये चीज आसान लग रही है.

ये उपचुनाव सिर्फ बीजेपी ही नहीं, नीतीश कुमार से लेकर लालू यादव तक के लिए भी लिटमस टेस्ट जैसा ही है - हार जीत के फैसले से सब कुछ तो नहीं, लेकिन बहुत कुछ तो साफ हो ही जाएगा कि कौन कितने पानी में है?

मुकाबले का एक दिलचस्प पहलू ये देखना भी होगा कि जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह उर्फ राजीव रंजन का स्टैंड क्या रहता है? ललन सिंह फिलहाल मुंगरे से लोक सभा सांसद हैं और मोकामा विधानसभा भी मुंगेर संसदीय क्षेत्र का ही हिस्सा है.

ये क्या - ललन सिंह और लालू यादव आमने सामने आ गये हैं: मोकामा उपचुनाव असल में ललन सिंह और लालू यादव के बीच अप्रत्यक्ष लड़ाई का दूसरा मुकाबला है - इससे पहले वो कार्तिक मास्टर के मामले में बाजी अपने नाम कर चुके हैं.

नीतीश कुमार की कैबिनेट में कुछ दिन के लिए कानून मंत्री बन कर विवादों में आये कार्तिकेय सिंह ही कार्तिक मास्टर के नाम से जाने जाते हैं - और वो भी मोकामा क्षेत्र से ही आते हैं. विधान परिषद के चुनाव में तेजस्वी यादव ने लालू यादव के कहने पर कार्तिकेय सिंह को टिकट दिया था. वो चुनाव भी जीते. ये जीत यादव बिरादरी से इतर तेजस्वी यादव के सबका साथ सबका विकास वाले फॉर्मूले के तहत ही प्रोजेक्ट की गयी थी.

पटना में सत्ता के गलियारों में तब जो चर्चा रही, वो यही कि लालू यादव के मजबूत सपोर्ट के बावजूद कार्तिकेय सिंह चीजों को मैनेज नहीं कर सके, और जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह के बुने जाल में फंस कर मंत्री पद गंवा दिये. कहते हैं कि खास वजहों से ही उनको कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गयी थी.

अब मोकामा के मैदान में ललन सिंह को अनंत सिंह से पुरानी दुश्मनी निभानी है, जहां नीलम देवी आरजेडी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं - और परिस्थितियां ऐसी बनी हैं कि नीतीश कुमार चाहें तो दूर से बैठे मजे ले सकते हैं. लालू यादव के दबदबे को काउंटर करने का ये नीतीश कुमार का अपना तरीका होता है.

2019 में ललन सिंह को अनंत की पत्नी नीलम देवी ने मुंगेर लोक सभा सीट पर कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन मोदी लहर में ललन सिंह ने सीट निकाल ही ली - अब नीतीश कुमार के पाला बदल लेने के बाद राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं.

चिराग पासवान को फिर से हनुमान बनना होगा: मोकामा में लोक जनशक्ति पार्टी के भी खासे वोटर हैं. अब तक अनंत सिंह के प्रभाव के चलते लोक जनशक्ति पार्टी को कामयाबी नहीं मिल पायी है - ऐसे में चिराग पासवान के लिए खुद को मोदी का हनुमान साबित करने का बड़ा मौका मिल रहा है.

वैसे तो पशुपति कुमार पारस की भी कोशिश होगी कि मोदी कैबिनेट का सदस्य होने के नाते बीजेपी के जहां तक संभव हो सके मददगार बनें, लेकिन वो भी जानते हैं कि बिहार में राजनीतिक वारिस तो बेटा ही होता है - ऐसे में मोकामा के मैदान में एक छोटी सी जंग फिर से चिराग पासवान बनाम पशुपति कुमार पारस की भी देखने को मिल सकती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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