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अपराधियों को संसद-विधानसभा भेजने वालों से संविधान सवाल कर रहा है

    • कौशलेंद्र प्रताप सिंह
    • Updated: 07 नवम्बर, 2022 12:08 PM
  • 07 नवम्बर, 2022 12:08 PM
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महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि मेरे मरने के बाद मेरी सारी किताबों को जला देना, क्योंकि दुनिया मुझे मेरी किताब से नहीं, मेरे आचरण से मुझे याद करेगी. आज उसी दुनिया में गांधी की समाधि पर कसम खाने वालों का आचरण हम सभी देख रहे है.

बिहार के मोकामा उपचुनाव में आरजेडी को जीत मिली है. बाहुबली नेता अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने यहां बीजेपी प्रत्याशी को हरा दिया है. मोकामा के बाहुबली नेताओं के पत्नियों के बीच हुए इस चुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम का पलड़ा भारी रहा है. अनंत सिंह के आपराधिक इतिहास के बारे में हर कोई जानता है. ऐसे में उनकी पत्नी का चुनाव जीतना एक बार फिर वही सवाल खड़े करता है कि संसद और विधानसभा में आपराधिक छवि या उनसे ताल्लुक रखने वालों को क्यों भेजा जा रहा है.

सत्य और अफसोस के साथ संविधान उन लोगों से सवाल पूछ रहा जो जीवन भर संविधान की व्याख्या में अपने को उलझाए रहे. आज विकास की जमी पर मिठाईयां बंट रही हैं और भारतीय राजनीति रो रही है. आखिर क्यों? जिस गांधी, लोहिया और जेपी की तस्वीरों पर माला फूल चढ़ा चढ़ा कर जनता को बरगलाते हो, वही गांधी ने अपने मुवक्किल के पक्ष में साउथ अफ्रीका में तकरीर करते हुए जज से कहते हैं कि मेरा मुवक्किल चुंगी की चोरी किया है. मुवक्किल को जज नहीं गांधी स्वयं कहते हैं कि तुमने चोरी किया है. तुम सरकार के खजाने में चुंगी जमा करो और बरी होकर बाहर जाओ.

गांधी वही नहीं रुकते है. उससे आगे भी कहते हैं कि मेरे मरने के बाद मेरी सारी किताबों को जला देना, क्योंकि दुनिया मुझे मेरी किताब से नहीं, मेरे आचरण से मुझे याद करेगी. आज उसी दुनिया में गांधी की समाधि पर कसम खाने वालों का आचरण हम सभी देख रहे हैं. एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं. पूर्वी उत्तर प्रदेश का हर जिला अपराधियों के कब्जे में है. उसी पूर्वांचल में आजमगढ़ भी आता है. जमीन के सवाल पर एक भाई से कब्र खुदवाता दूसरे भाई से कहता कि उसको उसमें दफन करो और इस तरह 5 भाईयों को उन्हीं के सामने मार डाला गया.

इस कृत्य से प्रसन्न होकर बसपा ने टिकट दिया और वे भारत की पवित्र लोकसभा के सम्मानित पुजारी बन...

बिहार के मोकामा उपचुनाव में आरजेडी को जीत मिली है. बाहुबली नेता अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने यहां बीजेपी प्रत्याशी को हरा दिया है. मोकामा के बाहुबली नेताओं के पत्नियों के बीच हुए इस चुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम का पलड़ा भारी रहा है. अनंत सिंह के आपराधिक इतिहास के बारे में हर कोई जानता है. ऐसे में उनकी पत्नी का चुनाव जीतना एक बार फिर वही सवाल खड़े करता है कि संसद और विधानसभा में आपराधिक छवि या उनसे ताल्लुक रखने वालों को क्यों भेजा जा रहा है.

सत्य और अफसोस के साथ संविधान उन लोगों से सवाल पूछ रहा जो जीवन भर संविधान की व्याख्या में अपने को उलझाए रहे. आज विकास की जमी पर मिठाईयां बंट रही हैं और भारतीय राजनीति रो रही है. आखिर क्यों? जिस गांधी, लोहिया और जेपी की तस्वीरों पर माला फूल चढ़ा चढ़ा कर जनता को बरगलाते हो, वही गांधी ने अपने मुवक्किल के पक्ष में साउथ अफ्रीका में तकरीर करते हुए जज से कहते हैं कि मेरा मुवक्किल चुंगी की चोरी किया है. मुवक्किल को जज नहीं गांधी स्वयं कहते हैं कि तुमने चोरी किया है. तुम सरकार के खजाने में चुंगी जमा करो और बरी होकर बाहर जाओ.

गांधी वही नहीं रुकते है. उससे आगे भी कहते हैं कि मेरे मरने के बाद मेरी सारी किताबों को जला देना, क्योंकि दुनिया मुझे मेरी किताब से नहीं, मेरे आचरण से मुझे याद करेगी. आज उसी दुनिया में गांधी की समाधि पर कसम खाने वालों का आचरण हम सभी देख रहे हैं. एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं. पूर्वी उत्तर प्रदेश का हर जिला अपराधियों के कब्जे में है. उसी पूर्वांचल में आजमगढ़ भी आता है. जमीन के सवाल पर एक भाई से कब्र खुदवाता दूसरे भाई से कहता कि उसको उसमें दफन करो और इस तरह 5 भाईयों को उन्हीं के सामने मार डाला गया.

इस कृत्य से प्रसन्न होकर बसपा ने टिकट दिया और वे भारत की पवित्र लोकसभा के सम्मानित पुजारी बन गए, मतलब सांसद हो गए. उनके भाई को तत्कालीन सरकार ने अपने घर से गिरफ्तार करवा दिया तो वे बसपा विरोधी हो गए. उनके भाषण का एक अंश प्रस्तुत है. बसपा में रहते हुए भाजपा को दलित विरोधी, ठाकुरों, पंडितों और भूमिहारों की पार्टी कहते थे. भाजपा में आते ही बसपा सवर्ण विरोधी पार्टी है. आज अखिलेश जी के साथ लोहिया का गाना छोड़कर नेता जी यानी मुलायम सिंह जी हमारे परिवार हैं. हमारा उत्थान उन्हीं के साथ हुआ है. ऐसा कहते हैं.

सनद रहे अखिलेश जी जब आपने अपने मंच पर गुंडों को चढ़ने से रोक दिया था. तब प्रदेश ताली बजाकर आपका स्वागत किया था. आपमें क्षमता है स्वच्छ राजनीति का, उसे ही करिए. इस तरह वे सपा, बसपा और भाजपा से भी सांसद बने. चूंकि जनता दलों की बनिहार है. उसे वोट दिया. अगर दल ऐसे लोगों को टिकट नहीं देता तो इनका हौसला इतना नहीं बढ़ता की वे मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने की सुपारी लेने लगते.

गाजीपुर की जनता ने तो एक अपराधी के लिए एक विधानसभा सदैव के लिए लिख दिया है. कमोबेश यही हाल चंदौली का है. जहां काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष को अपराधी हरा देता है. वह अध्यक्ष अपने जीवन मे निहायत ईमानदार, गुंडा-गुंडी से सदैव दूर रहने वाले अध्यक्ष को हराने में और गुंडा का साथ देने में विश्वविद्यालय के ही लोग लगे. इसी तरह भदोही में मिश्रा जी, जौनपुर में बाबू साहब हैं. बाबूसाहब तो अपने खिलाफ नामांकन करने वालों को पेड़ पर लटका देते हैं.

इन अपराधियों के खिलाफ उसी विश्वविद्यालय से दो लोग निकले. जो जीप चला चला कर, मोटरसाइकिल पर सवार होकर अभियान चलाया. उसका असर भी दिखा. वह अभियान अनुकरणीय था. पर वह अभियान भी धराशाही हो गया, उसका कारण भी दलीय राजनीति ही रहा होगा. उस अभियान का नेतृत्व डॉक्टर अरविंद शुक्ल जी और डॉक्टर उमेश सिंह जी कर रहे थे. सनद रहे दोनों लोग विश्वविद्यालय छात्र संघ के पदाधिकारी रहे हैं.

पूर्वांचल राज्य के सवाल पर विचार से कांग्रेसी और आचरण से अक्खड़ समाजवादी वर्तमान वक्ताओं में सर्वश्रेष्ठ रत्नाकर जी से वार्ता हो रही थी. रत्नाकर जी ने दो टूक में कहा कि पूर्वांचल राज्य बनते ही अपराधी और हावी हो जाएंगे. उन्हीं की सरकार होगी. अभी तो बड़ा प्रदेश है. मामला तो कुछ नियंत्रण में है. उसी विश्वविद्यालय के छात्र संघ में अपार मतों से जितने वाले संत सूबेदार जी हैं. जो जान हथेली पर लेकर भिंडरावाले को समझाने झुंन्ना गुरु के साथ स्वर्ण मंदिर अमृतसर चले गए थे.

संत जी उसी चंदौली से है, जहां अपराधियों की जय बोली जाती है, और उनको हरा दिया जाता है. उसी क्रम में आगे बढ़ेंगे तो जौनपुर के समता घर मे चंचल मिलेंगे. चंचल भी विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे हैं. राजनीति के दस्तावेज हैं. उनकी लेखनी और चित्र के कायल पूरा भारत ही नहीं, नेता और अभिनेता भी हैं. उन्हें जौनपुर के लोग मत देने में कोताही किए और वे हार गए.

मनोज सिन्हा जैसा विकास पुरूष भी जो आईआईटी टॉपर रहा हो, पूर्वांचल की धूल को माथे का तिलक बनाने के लिए संकल्पित रहा हो, वह भी अपराधियों के सामने बड़ी हार के गिरफ्त में आ जाते हैं. गृहस्थ आश्रम में रहते हुए भी लगभग सन्यासी का जीवन जीने वाले अस्सी के आश्रम से गुंडा-गुंडी के खिलाफ लगातार आवाज़ बुलंद करने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह को टिकट तो मिला, लेकिन अपराधी और उनके सहारे राजनीति करने वाले नेताओं ने उन्हें षडयंत्र से निर्दल कर दिया. यह भी भारतीय राजनीति की बेमिसाल घटना है.

इस क्रम को जितना आगे बढ़ाएंगे, उतना ही बड़े बड़े लोग मिलेंगे जो शहाबुद्दीन जैसे लोगों से लड़ते लड़ते नष्ट हो जाएंगे और शहाबुद्दीन संसद में चला जाएगा. कमोबेश देश के हर प्रदेश में इनका बोलबाला है. नेताओं का सरंक्षण है. अपराधी किसी दल का हो उसका विरोध करना होगा. कहीं से तो बदलाव की शुरूआत करनी ही होगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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