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सर्जिकल स्‍ट्राइक स्‍टाइल में बीजेपी की बैठक हुई और जम्‍मू-कश्‍मीर में सरकार गिर गई

    • पूजा शाली
    • Updated: 20 जून, 2018 06:48 PM
  • 20 जून, 2018 06:46 PM
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सुबह अचानक दिल्‍ली बुलाए गए जम्‍मू-कश्‍मीर के बीजेपी नेताओं को इल्‍म भी नहीं था कि शाम तक क्‍या होने वाला है. बैठक में राम माधव पहुंचे. उनकी कुछ दो टूक बातों पर हैरान बीजेपी नेताओं ने हां में हां मिलाई और फैसला हो गया.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ अपने तीन साल के गठबंधन को खत्म कर लिया. ये फैसला इतना अचानक था कि इसकी खबर तो खुद जम्मू से दिल्ली बुलाए गए भाजपा के मंत्रियों तक को नहीं थी. पूरे दिन के घटनाक्रम से ये साबित हुआ कि पीडीपी की ही तरह राज्य के बीजेपी नेता भी हाईकमान के फैसले से अनजान थे.

मंगलवार सुबह जम्मू-कश्मीर भाजपा के 15 प्रतिनिधि दिल्ली पहुंचे. बैठक से पहले दिया गया उनका बयान '2019 संसदीय चुनावों से पहले के संगठनात्मक ढांचे' पर केंद्रित था. हालांकि इस तरह से आननफानन में दिल्ली बुलाए जाने की वजह से नेताओं में थोड़ी बेचैनी तो थी. वो भी तब जब 23 जून को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह खुद जम्मू दौरे पर जाने वाले थे. हालांकि, किसी तरह का कोई स्पष्ट एजेंडा नहीं होने से उनका डर थोड़ा कम जरुर हुआ. अमित शाह से एनएसए अजीत डोवाल का मिलना भी किसी अभूतपूर्व घोषणा या फिर घटना की तस्दीक नहीं थी.

पार्टी नेताओं को ही हाईकमान के मंसूबों की जानकारी नहीं थी.

पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता ने यह भी कहा कि मौजूदा तनाव पर चर्चा की जाएगी, लेकिन गठबंधन अभी जारी रहेगा. अन्य नेताओं को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. सिर्फ राज्य भाजपा अध्यक्ष रविंदर रैना ने दावा किया कि एजेंडा ये सुनिश्चित करना है कि अगला सीएम बीजेपी का ही होगा और 2019 में अकेले चुनाव लड़ने के लिए पार्टी की रणनीति पर बात होगी. बीजेपी- पीडीपी का गठबंधन जारी रहेगा या नहीं, इस सवाल को लगातार नजरअंदाज करते रहे. लेकिन इतना जरूर कहा कि पार्टी का फैसला ही अंतिम माना जाएगा. रैना जिस तरह से अपने जवाब संभालकर दे रहे थे उससे साफ था कि ये कोई रुटीन बुलावा नहीं है. लेकिन ये इस हद तक जाएगा इसकी भी किसी को आशा नहीं थी.

शाम होने तक तो पूरा नजारा ही बदल गया था. और...

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ अपने तीन साल के गठबंधन को खत्म कर लिया. ये फैसला इतना अचानक था कि इसकी खबर तो खुद जम्मू से दिल्ली बुलाए गए भाजपा के मंत्रियों तक को नहीं थी. पूरे दिन के घटनाक्रम से ये साबित हुआ कि पीडीपी की ही तरह राज्य के बीजेपी नेता भी हाईकमान के फैसले से अनजान थे.

मंगलवार सुबह जम्मू-कश्मीर भाजपा के 15 प्रतिनिधि दिल्ली पहुंचे. बैठक से पहले दिया गया उनका बयान '2019 संसदीय चुनावों से पहले के संगठनात्मक ढांचे' पर केंद्रित था. हालांकि इस तरह से आननफानन में दिल्ली बुलाए जाने की वजह से नेताओं में थोड़ी बेचैनी तो थी. वो भी तब जब 23 जून को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह खुद जम्मू दौरे पर जाने वाले थे. हालांकि, किसी तरह का कोई स्पष्ट एजेंडा नहीं होने से उनका डर थोड़ा कम जरुर हुआ. अमित शाह से एनएसए अजीत डोवाल का मिलना भी किसी अभूतपूर्व घोषणा या फिर घटना की तस्दीक नहीं थी.

पार्टी नेताओं को ही हाईकमान के मंसूबों की जानकारी नहीं थी.

पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता ने यह भी कहा कि मौजूदा तनाव पर चर्चा की जाएगी, लेकिन गठबंधन अभी जारी रहेगा. अन्य नेताओं को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. सिर्फ राज्य भाजपा अध्यक्ष रविंदर रैना ने दावा किया कि एजेंडा ये सुनिश्चित करना है कि अगला सीएम बीजेपी का ही होगा और 2019 में अकेले चुनाव लड़ने के लिए पार्टी की रणनीति पर बात होगी. बीजेपी- पीडीपी का गठबंधन जारी रहेगा या नहीं, इस सवाल को लगातार नजरअंदाज करते रहे. लेकिन इतना जरूर कहा कि पार्टी का फैसला ही अंतिम माना जाएगा. रैना जिस तरह से अपने जवाब संभालकर दे रहे थे उससे साफ था कि ये कोई रुटीन बुलावा नहीं है. लेकिन ये इस हद तक जाएगा इसकी भी किसी को आशा नहीं थी.

शाम होने तक तो पूरा नजारा ही बदल गया था. और बीजेपी प्रतिनिधिमंडल के आश्चर्य की सीमा नहीं थी.

नाम न बताने की शर्त पर पार्टी मीटिंग के अंदर मौजूद एक नेता ने बीजेपी मुख्यालय में हुई इस बैठक के बारे में बताया-

जम्मू-कश्मीर के नेता 11.40 बजे पार्टी ऑफिस पहुंच गए थे और उन्हें वरिष्ठ नेताओं के पहुंचने तक इंतजार करने के लिए कहा गया. करीब आधे घंटे तक उन्होंने इंतजार किया.

राम माधव हॉल में आए और सहयोगियों के बीच बैठ गए. उन्होंने पार्टी के नेताओं को निर्णय के बारे में सूचित किया. साथ ही उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि बहुत विचार-विमर्श के बाद इस गठबंधन को समाप्त करने का फैसला लिया गया है और पार्टी के हित में ये सर्वोपरि है. उन्होंने सुरक्षा मुद्दों, राज्य का हित और पार्टी के योगदान जैसे कारणों की व्याख्या की. माधव ने पूछा कि क्या कोई नेता इस निर्णय से सहमत नहीं है. वो किसी भी तरह के सवाल के लिए तैयार थे और सभी को एक समान अवसर प्रदान किया.

महबूबा को अब अपने बूते जमीन तलाशनी होगी

कथित तौर पर किसी भी नेता ने इस बात से अपनी असहमति जाहिर नहीं की. खासकर स्थिति की गंभीरता और राम माधव जैसे नेता के कद को देखते हुए भी असहमती जाहिर नहीं की गई. जल्दी ही अमित शाह ने पार्टी के सभी नेताओं को बधाई दे दी. बीजेपी के मंत्रियों और महासचिवों ने तुरंत ही राम माधव और अमित शाह को सर्वसम्मति से अपना समर्थन दे दिया. बीजेपी 25 विधायकों के साथ जम्मू-कश्मीर में बनी हुई है और संबंधित क्षेत्रों में काम करेगी.

इसके बाद राम माधव ने एक वरिष्ठ नेता से पूछा कि राज्य में चुनाव कराने के लिए नवंबर सही रहेगा या नहीं. जल्द ही राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो जाएगा जो तीन से छह महीने के बीच रहेगा. मतलब नवंबर का समय पड़ेगा. पार्टी की तैयारी के बारे में बैठक में लोगों की राय मांगी गई. राज्य के नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व से जवाब देने के लिए कुछ दिन का समय मांगा है. नई रणनीति बनाने के साथ साथ बीजेपी नए चुनावों के लिए भी तैयारी शुरु करने में जुट गई है.

इसके बाद पार्टी नेता मीडिया से दूरी बनाते हुए जम्मू-कश्मीर हाउस लौट आए. अंततः कविंदर गुप्ता ने संवाददाताओं के बस इतना कहा, "केंद्रीय नेतृत्व ने अंतिम निर्णय लिया है और गवर्नर रुल ही सबसे अच्छा विकल्प है. हम मजबूत बनकर उभरेंगे."

भले ही भाजपा नेताओं में हैरानी है लेकिन फिर भी उन सभी नेताओं ने इस ब्रेक-अप का स्वागत किया है. अब राज्य में अपनी एक बेहतर छवि बनाने के मकसद के साथ ये वापस जाएंगे और अब स्वतंत्र कार्यों को पूरा करेंगे. बीजेपी अपनी एक मजबूत, राष्ट्रवादी छवि को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगी. एक ऐसी पार्टी की छवि जो देश की संप्रभुता के आगे अपने निजी हितों की तिलांजली देने में नहीं हिचकती है. अब पूरा जोर सुरक्षा बलों और क्षेत्र के लोगों की समर्थक पार्टी और आतंकवादी समूहों के खिलाफ खड़ी होने वाली पार्टी के रुप में अपने को स्थापित करने का होगा. अगले लोकसभा चुनाव में जम्मू क्षेत्र की दो सीटों और लद्दाख के भी एक सीट को अपने कब्जे में रखने पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

पिछले कुछ महीनों में बीजेपी ने जम्मू में अपनी छवि खराब कर ली है. रस्साना (कठुआ) रेप केस को निष्पक्ष जांच के बावजूद भी बीजेपी नेताओं द्वारा बहुत ही नकारात्मक तरीके से हैंडल किया गया. इससे क्षेत्र में भाजपा नेताओं की छवि खराब हुई. क्षेत्रवासियों को धक्का लगा. अवैध विदेशी बस्तियों, सीमा पर तनाव और हत्याओं का जवाब देना पार्टी के लिए मुश्किल हो रहा था. जम्मू के लोगों द्वारा अलगाव की फीलिंग अपने चरम पर पहुंच गयी थी. अब भाजपा अपनी उसी खोई जमीन को दोबारा हासिल करने की आस लगाए है. कश्मीर में वैसे ही भाजपा का कोई आधार नहीं है. लोगों को उनपर भरोसा नहीं है.

अब बस ये देखना बाकी है कि ये गणित बीजेपी के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित होती है या नहीं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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