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सियासत

भाजपा का बड़ा लड्डू खा सकते हैं रघुराज प्रताप सिंह

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 03 दिसम्बर, 2018 05:16 PM
  • 03 दिसम्बर, 2018 05:16 PM
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उत्तर प्रदेश की सियासत में राजा भैया की निर्णायक भूमिका है. ऐसे में सियासी गलियारों में खबर तेजी से उड़ी है कि कुंडा का बाहुबली किसी भी वक़्त भाजपा के खेमे का रुख कर सकता है.

सदाबहार राजनेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने अपनी सियासत के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर अपने शक्ति प्रदर्शन से यूपी की सियासत में अपना बड़े वजूद का एहसास दिला दिया है. लखनऊ में उनके नवोदित राजनीति दल जनसत्ता की पहली रैली में जुटी भीड़ ने यूपी की जातिगत सियासत को और भी हवा दे दी है. साबित हो गया कि राजा की पच्चीस साल की सियासत जवान, सुंदर, आकर्षक, तंदुरुस्त और सदाबहार है. उनका तजुर्बा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक रहे उनके पिता की विरासत भविष्य में खूब फले-फूलेगी.

फायदेमंद साबित होती जातिगत छवि के होते कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह से बसपा सुप्रीमो से हमेशा तल्ख रिश्ते रहे, किंतु राजा ने यूपी में हर दल के साथ अच्छा सामंजस्य बनाकर रखा है. प्रत्येक दल के साथ उनका हर राजनीतिक सौदा फायदेमंद साबित हुआ है. यूपी में कांग्रेस के सफाये के बाद कभी वो भाजपा सरकारों में तो कभी सपा सरकारों में कैबिनेट मिनिस्टर रहे. इस कुशल और तजुर्बेकार राजनेता की नयी बिसात को अभी शायद बड़े-बड़े राजनीतिक एक्सपर्ट /विश्लेषकों का तजुर्बा भाप भी नहीं पा रहा है.

उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में राजा भैया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता

अपने नवगठित राजनीतिक दल का एलान कर आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी की सीटों से चुनाव लड़ने की हुंकार भरके कुंडा का ये राजा एक नया दांव खेल सकता है. जिससे भाजपा और सपा-बसपा के संभावित गठबंधन राजा के सामने अपने-अपने गठबंधन में शामिल करने के प्रस्ताव रख सकते हैं. अभी तक इनके इस अस्ल दांव की तरफ किसी विश्लेषक की निगाहें ही नहीं गयीं. कोई समझ रहा है कि राजा यूपी में सपा-बसपा के संभावित गठबंधन को फायदा पहुचाकर भाजपा को नुकसान पहुचायेंगे. क्योंकि उनकी पार्टी भाजपा के पारंपरिक सवर्ण वोटों को कतरने के लिए वोटकटवा साबित हो सकती...

सदाबहार राजनेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने अपनी सियासत के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर अपने शक्ति प्रदर्शन से यूपी की सियासत में अपना बड़े वजूद का एहसास दिला दिया है. लखनऊ में उनके नवोदित राजनीति दल जनसत्ता की पहली रैली में जुटी भीड़ ने यूपी की जातिगत सियासत को और भी हवा दे दी है. साबित हो गया कि राजा की पच्चीस साल की सियासत जवान, सुंदर, आकर्षक, तंदुरुस्त और सदाबहार है. उनका तजुर्बा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक रहे उनके पिता की विरासत भविष्य में खूब फले-फूलेगी.

फायदेमंद साबित होती जातिगत छवि के होते कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह से बसपा सुप्रीमो से हमेशा तल्ख रिश्ते रहे, किंतु राजा ने यूपी में हर दल के साथ अच्छा सामंजस्य बनाकर रखा है. प्रत्येक दल के साथ उनका हर राजनीतिक सौदा फायदेमंद साबित हुआ है. यूपी में कांग्रेस के सफाये के बाद कभी वो भाजपा सरकारों में तो कभी सपा सरकारों में कैबिनेट मिनिस्टर रहे. इस कुशल और तजुर्बेकार राजनेता की नयी बिसात को अभी शायद बड़े-बड़े राजनीतिक एक्सपर्ट /विश्लेषकों का तजुर्बा भाप भी नहीं पा रहा है.

उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में राजा भैया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता

अपने नवगठित राजनीतिक दल का एलान कर आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी की सीटों से चुनाव लड़ने की हुंकार भरके कुंडा का ये राजा एक नया दांव खेल सकता है. जिससे भाजपा और सपा-बसपा के संभावित गठबंधन राजा के सामने अपने-अपने गठबंधन में शामिल करने के प्रस्ताव रख सकते हैं. अभी तक इनके इस अस्ल दांव की तरफ किसी विश्लेषक की निगाहें ही नहीं गयीं. कोई समझ रहा है कि राजा यूपी में सपा-बसपा के संभावित गठबंधन को फायदा पहुचाकर भाजपा को नुकसान पहुचायेंगे. क्योंकि उनकी पार्टी भाजपा के पारंपरिक सवर्ण वोटों को कतरने के लिए वोटकटवा साबित हो सकती है.

किसी का मत है कि भाजपा की मिलीभगत से वो सरकार से नाराज सवर्ण वोटों को सपा-बसपा अथवा कांग्रेस की झोली में जाने से रोकने के लिए चुनावी रण में उतरेंगे. ये अनुमान किसी ने नहीं लगाया कि लोकसभा की चुनावी बेला में सजे सियासत के बाजार में होने वाले मोल-भाव में अपना भाव बढ़ाने के लिए रघुराज प्रताप सिंह ने पार्टी का गठन किया है. भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन दोनों ही राजा भैया को अपने-अपने गठबंधन में शामिल कर उनके लिए सीटें छोड़ने का प्रस्ताव रख सकते हैं. और यदि वो पार्टी का गठन नहीं करते तो किसी पार्टी /गठबंधन में उनके लिए सीटें छोड़ने का प्रस्ताव कैसे रखा जाता.

बिना पार्टी के रघुराज प्रताप सिंह के लिए तो कोई सीट छोड़ सकता था लेकिन एक से ज्यादा सीटें मांगने की सौदेबाजी कैसे होती. आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा ही नहीं सपा-बसपा भी काफी दबाव मे है. एससी-एसटी एक्ट मामले पर सवर्णों की नाराजगी और सपा-बसपा के संभावित गठबंधन से भाजपा ज्यादा दबाव में है. इसलिए भाजपा राजा यूपी में राजा के लिए कुछ सीटें छोड़ने के लिए तैयार हो सकती है.

एंटी बीजेपी गठबंधन राजा की जनसत्ता पार्टी को इस शर्त पर कुछ सीटें जिताने मे साथ देने का प्रस्ताव रखेगी कि राजा सभी सीटों पर चुनाव लड़कर भाजपा के क्षत्रीय / स्वर्ण वोटों को कतरें. लेकिन बसपा से राजा भैया के तल्ख रिश्तों के कारण इस राजनीतिक सौदे की संभावना काफी कम है.

ये संभावना ज्यादा है कि भाजपा ये प्रस्ताव रखे कि सभी सीटों पर चुनाव ना लड़कर जनसत्ता पार्टी उसके साथ गठबंधन का हिस्सा बन जाये. और यूपी में क्षत्रिय बाहुल और राजा भैया के प्रभाव वाली 4-6 लोकसभा सीटें उन्हें दे दी जायें. ऐसे में पचास फीसदी यानी तीन लोकसभा सीटों पर भी राजा भैया की पार्टी ने विजय हासिल कर ली तो संसद में राजा की धमाकेदार इंट्री हो जायेगी.

अनुमान लगाया जा सकता है कि यूपी में सपा-बसपा के संभावित प्रभावशाली गठबंधन से मुकाबले के लिए भाजपा ऐसे समझौते करके छोटे दलों के साथ एक गठबंधन तैयार करने की रणनीति बनायेगी. जिसमें भाजपा जहां शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के साथ अप्रत्यक्ष समझौता कर उनको दो-तीन सीटें जिताने में सहयोग करेगी वहीं राजा भैया की पार्टी को अपने गठबंधन में शामिल कर लेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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