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फ्रांस में Emmanuel Macron की वापसी और हिंदुस्तान की उम्मीदें

    • रमेश ठाकुर
    • Updated: 27 अप्रिल, 2022 07:54 PM
  • 27 अप्रिल, 2022 07:54 PM
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चुनाव नतीजों में अपने प्रतिद्वंद्वी को ठीक ठाक मतों से मात देकर ‘ला रिपब्लिक एन मार्श’ पार्टी के नेता व राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रॉ (Emmanuel Macron) ने दोबारा फ्रांस की सत्ता पर कब्जा किया. उम्मीदों और चुनौतियों के बीच वह दोबारा देश की बागडोर संभालेंगे. उन्हें रिकॉर्ड साठ फीसदी के आसपास वोट प्राप्त हुआ.

यूरोपियन सरजमीं पर विस्तार में लगी दक्षिणपंथी विचारधारा को गहरा झटका लगा है. फ्रांस में सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ, मौजूदा हुकूमत ही यथावत रही. जबकि, धुर दक्षिणपंथी नेत्री ‘मेरी ली पेन’ को उम्मीद थी कि जनता बदलाव करेगी और उन पर भरोसा करेगी, जिससे चुनावों में उनका ही परचम लहराएगा? कमोबेश, वैसा हुआ नहीं, जनता ने फिर से अपने पुराने वाले राष्टृपति पर भरोसा जताया, उन्हें प्रचंड़ बहुमत देकर वापसी करवा दी. निश्चित है, अगर यहां ‘मेरी ली पेन’ की जीत होती तो दक्षिण पंथ विचारधारा की जमीन तैयार हो जाती. चुनाव नतीजों में अपने प्रतिद्वंद्वी को ठीक ठाक मतों से मात देकर ‘ला रिपब्लिक एन मार्श’ पार्टी के नेता व राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्राॅ (Emmanuel Macron) ने दोबारा फ्रांस की सत्ता पर कब्जा किया. उम्मीदों और चुनौतियों के बीच वह दोबारा देश की बागडोर संभालेंगे. उन्हें रिकॉर्ड साठ फीसदी के आसपास वोट प्राप्त हुआ. टक्कर हालांकि विरोधी पार्टी अच्छी दी, पहले राउंड में विपक्षी दल की बढ़त रही थी. पर, नतीजों के एक दिन पहले आए ओपिनियन पोल्स में मैक्राॅ ही आगे थे.

फ्रांस में दोबारा मैक्राॅ का सत्ता में आना भारत फ्रांस संबंधों के लिए एक बड़ी खबर है

राष्ट्रपति मैक्राॅ के दोबारा सत्ता में वापसी के कुछ कारण और भी हैं. कुछ ऐसी ऐतिहासिक परियोजनाएं ऐसी हैं जिन्हें जनता उन्हीं से करवाना चाहती हैं. बीते पांच वर्षों में भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक मुल्कों के साथ सामरिक, व्यापारिक व सियासी संबंध अच्छे बने हैं. विदेश नीतियों में पिछली सरकारों के मुकाबले अच्छा काम हुआ.

भारत जैसे देशों से आयात-निर्यात, आपसी संबंधों की साझेदारी में और गहराई आई. इन्हीं योजनाओं को संबल देने के लिए जनता ने मैक्राॅ पर ही भरोसा करना समझदारी समझी. इमैनुअल...

यूरोपियन सरजमीं पर विस्तार में लगी दक्षिणपंथी विचारधारा को गहरा झटका लगा है. फ्रांस में सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ, मौजूदा हुकूमत ही यथावत रही. जबकि, धुर दक्षिणपंथी नेत्री ‘मेरी ली पेन’ को उम्मीद थी कि जनता बदलाव करेगी और उन पर भरोसा करेगी, जिससे चुनावों में उनका ही परचम लहराएगा? कमोबेश, वैसा हुआ नहीं, जनता ने फिर से अपने पुराने वाले राष्टृपति पर भरोसा जताया, उन्हें प्रचंड़ बहुमत देकर वापसी करवा दी. निश्चित है, अगर यहां ‘मेरी ली पेन’ की जीत होती तो दक्षिण पंथ विचारधारा की जमीन तैयार हो जाती. चुनाव नतीजों में अपने प्रतिद्वंद्वी को ठीक ठाक मतों से मात देकर ‘ला रिपब्लिक एन मार्श’ पार्टी के नेता व राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्राॅ (Emmanuel Macron) ने दोबारा फ्रांस की सत्ता पर कब्जा किया. उम्मीदों और चुनौतियों के बीच वह दोबारा देश की बागडोर संभालेंगे. उन्हें रिकॉर्ड साठ फीसदी के आसपास वोट प्राप्त हुआ. टक्कर हालांकि विरोधी पार्टी अच्छी दी, पहले राउंड में विपक्षी दल की बढ़त रही थी. पर, नतीजों के एक दिन पहले आए ओपिनियन पोल्स में मैक्राॅ ही आगे थे.

फ्रांस में दोबारा मैक्राॅ का सत्ता में आना भारत फ्रांस संबंधों के लिए एक बड़ी खबर है

राष्ट्रपति मैक्राॅ के दोबारा सत्ता में वापसी के कुछ कारण और भी हैं. कुछ ऐसी ऐतिहासिक परियोजनाएं ऐसी हैं जिन्हें जनता उन्हीं से करवाना चाहती हैं. बीते पांच वर्षों में भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक मुल्कों के साथ सामरिक, व्यापारिक व सियासी संबंध अच्छे बने हैं. विदेश नीतियों में पिछली सरकारों के मुकाबले अच्छा काम हुआ.

भारत जैसे देशों से आयात-निर्यात, आपसी संबंधों की साझेदारी में और गहराई आई. इन्हीं योजनाओं को संबल देने के लिए जनता ने मैक्राॅ पर ही भरोसा करना समझदारी समझी. इमैनुअल मैक्राॅ के फ्रांस में लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने पर हिंदुस्तान भी खुश है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मैक्राॅ को अपना अच्छा मित्र बताते हुए गर्मजोशी के साथ बधाई और शुभकामनाएं दी

प्रधानमंत्री मोदी ने उम्मीद जताई कि मैक्राॅ की जीत भारत-फ्रांस के मध्य सामरिक रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करेगी और तेजगति से आगे बढ़ाएगी, साथ ही भविष्य में साथ मिलकर काम करने उम्मीद भी रखी. गौरतलब है, मौजूदा वक्त में दोनों देशों के बीच संबंध मधुर हैं, चाहें राजनीतिक कूटनीतिक के हों, या मौसम, जलवायु परिवर्तन से संबंधित हों. ग्लोबल वार्मिंग को लेकर दोनों देशों के बीच सहयोग रूपी एक एग्रीमेंट भी है.

इसके अलावा और कई ग्लोबल स्तर के समझौते हैं जिन्हें नई हुकूमत के जरिए बल और संबल मिलेगा. हरित क्षेत्र को लेकर भी दोनों देशों के बीच करार है. मैक्राॅ युवा नेता हैं और पहले ऐसे सर्वमान्य व लोकप्रिय हैं जिनपर फ्रांस की जनता ढेरो उम्मीद लगाती हैं. वह पहले ऐसे राष्टृपति भी हैं जो दोबारा सत्ता में आए हैं वह भी प्रचंड़ बहुमत के साथ. इसलिए उम्मीद का पहाड़ उनके कांधों पर है. मैक्राॅ के पिछले कार्यकाल में कई ऐसी उपलब्धियां रहीं जिनके बूते वह दोबारा सत्ता में आए.

कायदे से देखें तो मैक्राॅ का दोबारा राष्ट्रपति बनना यूरोप के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है. जिस तरह से रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर दुनिया दो हिस्सों में बंटी हुई है, उस लिहाज से मैक्राॅ जैसे नेताओं का पावरफुल होना जरूरी हो जाता है. बीते पांच वर्षों में फ्रांस के राष्ट्रपति के रूप में इमैनुएल मैक्राॅ की पहचान प्रमुख वैश्विक नेता के तौर पर उभरी है. उनकी काम करने में निष्पक्षता, साफगोई से बात कहना, नीतियों के निर्णयों में उनके फैसले काबिलितारीफ रहे हैं.

देश की आवाम के अलावा अपनी पार्टी ‘ला रिपब्लिक एन मार्श’ में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ी है. पार्टी के प्रमुख नेता उनके कार्य नीतियों से खुश हैं. वहीं, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एकाध मंचों पर उनकी दूरगामी सोच की तारीफ कर चुके हैं और भी कई ऐसे विदेशी नेता हैं जिनके मुंह से फ्रांस के राष्ट्रपति के लिए तारीफें निकली हैं. इस लिहाज से उनका दोबारा फ्रांस का राष्ट्रपति बनना ना सिर्फ हिंदुस्तान के लिए अच्छा रहेगा, बल्कि यूरोप सहित विश्व बिरादरी के भी हितकर होगा.

फ्रांस के इस मौजूदा चुनाव में बहुत कुछ ऐसा भी हुआ, जो अमूमन हमारे यहां देखने को मिलता है. जैसे नेताओं का चुनावी समर में दलबदल होना. एक पार्टी से छिटककर दूसरे का दामन थाम लेना, वगैरा-वगैरा? फ्रांस में भी कमोबेश इस बार कुछ ऐसा ही हुआ. एक कद्दावर वामपंथी नेता ‘ज्यां लुक मेलेन्श’ जो चुनाव के ऐन वक्त अपनी पार्टी और सहयोगी नेता ‘मेरी ली पेन’ से बगावत करके विजयी गुट में शामिल हो गए थे.

फ्रांस के चुनावी पंड़ित इस बात को मान भी रहे हैं कि मैक्राॅ की जीत में ‘ज्यां लुक मेलेन्शॉं’ और उनके समर्थकों की बड़ी भूमिका रही है. जबकि, धुर दक्षिणपंथी और मैक्राॅ से नाराज कामकाजी वर्ग के मतदाताओं का पूरा ध्रुवीकरण ली पेन के पक्ष में हुआ. इस चुनाव की एक और महत्वपूर्ण और बेहद खास बात? पराजित हुई मेरी ली पेन के हारने के पीछे मुसलमानों के खिलाफ उनका बोलना भी रहा.

एंटी मुस्लिम लाइन उनको ले डूबी. चुनाव से कुछ माह पूर्व उन्होंने मुसलमानों के टोपी पहनने पर सार्वजनिक रूप से प्रतिबंध की मांग उठाई थी. उनकी इस मांग के बाद उनकी लोकप्रियता में इजाफा तो हुआ. पर, जनसमर्थ वोट में तब्दील नहीं हुआ. एक वक्त ऐसा आया, जब उनकी गिनती राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्राॅ से बढ़कर होने लगी, लेनिक जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आया, उनकी हैसियत धरातल पर आती गई.

बयान के बाद मुसलमानों ने उनसे दूरी बना ली, जिससे एक बड़ा वोट बैंक उनसे खिसक गया. जबकि उनकी पार्टी को फ्रांस में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा प्राप्त है. उनके पिता धुर दक्षिणपंथी रहे थे, उन्होंने ही पार्टी की कमान उनको सौंपी थी. बहरहाल, फ्रांस में मैक्राॅ के रूप में फिर से नए राष्ट्रपति का उदय होने वाला है उनसे संबंध भविष्य में मधुर रहे, इसकी उम्मीद भारत करेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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