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तमिलनाडु में खटकने लगी है स्कूलों में 'ईसाई बनाने की पढ़ाई'!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 27 अप्रिल, 2022 04:59 PM
  • 26 अप्रिल, 2022 07:37 PM
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धर्म परिवर्तन (Religious Conversion) कर ईसाई (Christianity) बनने के दबाव में लावण्या की आत्महत्या का मामला अभी ज्यादा पुराना नहीं हुआ है. लेकिन, दक्षिण भारत के राज्यों से ऐसे कई मामले सामने आते रहते हैं, जहां स्कूलों में धर्म परिवर्तन के लिए बच्चों को निशाना बनाया जा रहा है.

इसी साल जनवरी में तमिलनाडु के तंजावुर की छात्रा लावण्या की आत्महत्या का मामला शायद आप भूले नही होंगे. ईसाई धर्म अपनाने के लिए बनाए जा रहे दबावों और दी जा रही यातनाओं के सामने घुटने टेकते हुए आत्महत्या जैसा कदम उठाने वाली लावण्या के मामले में अभी तक जांच पूरी नहीं हो पाई है. वैसे, धर्म परिवर्तन को लेकर बनाए गए कानूनों के वजह से कई राज्यों में ईसाई मिशनरीज के लिए काम करना मुश्किल हो गया है. लेकिन, दक्षिण भारत के राज्यों में अभी भी धर्म परिवर्तन का खेल खुलेआम चल रहा है. और, बीते कुछ समय में इसका निशाना स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाले बच्चे बन रहे हैं. लावण्या केवल एक उदाहरण मात्र है. क्योंकि, धर्म परिवर्तन के दबाव पर उसने अपनी जान दे दी. लेकिन, दक्षिण भारत के राज्यों से ऐसे कई मामले सामने आते रहते हैं, जहां स्कूलों में बच्चों को निशाना बनाया जा रहा है.

छात्रा का आरोप है कि टीचर ने जीसस को सबसे शक्तिशाली भगवान न कहे जाने पर गुस्सा किया.

धार्मिक आस्था की चीजों का मजाक बनाने से शुरुआत

ऐसा ही एक और मामला तमिलनाडु के तिरुप्पुर में सामने आया है. जहां एक स्कूल की छठी क्लास की छात्रा ने आरोप लगाया है कि दो टीचर्स ने उस पर ईसाई धर्म अपनाने का दवाब बनाया. इतना ही नहीं, धार्मिक आस्था के तौर पर माथे पर लगाई जाने वाली विभूति को लेकर उसे 'विभूति लगाने वाला गधा' तक कहकर उसका सबके सामने मजाक उड़ाया. दक्षिण भारत के राज्यों में ईसाई मिशनरीज की ओर से चलाए जा रहे स्कूलों में ऐसी बात सामान्य मानी जाती हैं. हाल ही में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के एक ईसाई मिशनरी स्कूल ने अभिभावकों को बाइबिल को लेकर फरमान जारी किया था कि उनके बच्चों को बाइबिल की किताब लाना अनिवार्य है. जबकि, गैर-ईसाई लोगों के लिए यह सीधे तौर पर अपनी किताब को थोंपने जैसा है. लेकिन, इससे समझा जा सकता है कि ईसाई मिशनरीज इसी तरह काम करती हैं. दरअसल, ईसाई मिशनरीज के स्कूलों में हिंदू धर्म से जुड़े धार्मिक प्रतीकों का मजाक उड़ाकर बच्चों के मन में उनके धर्म के प्रति अपमान के भाव भरने का काम...

इसी साल जनवरी में तमिलनाडु के तंजावुर की छात्रा लावण्या की आत्महत्या का मामला शायद आप भूले नही होंगे. ईसाई धर्म अपनाने के लिए बनाए जा रहे दबावों और दी जा रही यातनाओं के सामने घुटने टेकते हुए आत्महत्या जैसा कदम उठाने वाली लावण्या के मामले में अभी तक जांच पूरी नहीं हो पाई है. वैसे, धर्म परिवर्तन को लेकर बनाए गए कानूनों के वजह से कई राज्यों में ईसाई मिशनरीज के लिए काम करना मुश्किल हो गया है. लेकिन, दक्षिण भारत के राज्यों में अभी भी धर्म परिवर्तन का खेल खुलेआम चल रहा है. और, बीते कुछ समय में इसका निशाना स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाले बच्चे बन रहे हैं. लावण्या केवल एक उदाहरण मात्र है. क्योंकि, धर्म परिवर्तन के दबाव पर उसने अपनी जान दे दी. लेकिन, दक्षिण भारत के राज्यों से ऐसे कई मामले सामने आते रहते हैं, जहां स्कूलों में बच्चों को निशाना बनाया जा रहा है.

छात्रा का आरोप है कि टीचर ने जीसस को सबसे शक्तिशाली भगवान न कहे जाने पर गुस्सा किया.

धार्मिक आस्था की चीजों का मजाक बनाने से शुरुआत

ऐसा ही एक और मामला तमिलनाडु के तिरुप्पुर में सामने आया है. जहां एक स्कूल की छठी क्लास की छात्रा ने आरोप लगाया है कि दो टीचर्स ने उस पर ईसाई धर्म अपनाने का दवाब बनाया. इतना ही नहीं, धार्मिक आस्था के तौर पर माथे पर लगाई जाने वाली विभूति को लेकर उसे 'विभूति लगाने वाला गधा' तक कहकर उसका सबके सामने मजाक उड़ाया. दक्षिण भारत के राज्यों में ईसाई मिशनरीज की ओर से चलाए जा रहे स्कूलों में ऐसी बात सामान्य मानी जाती हैं. हाल ही में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के एक ईसाई मिशनरी स्कूल ने अभिभावकों को बाइबिल को लेकर फरमान जारी किया था कि उनके बच्चों को बाइबिल की किताब लाना अनिवार्य है. जबकि, गैर-ईसाई लोगों के लिए यह सीधे तौर पर अपनी किताब को थोंपने जैसा है. लेकिन, इससे समझा जा सकता है कि ईसाई मिशनरीज इसी तरह काम करती हैं. दरअसल, ईसाई मिशनरीज के स्कूलों में हिंदू धर्म से जुड़े धार्मिक प्रतीकों का मजाक उड़ाकर बच्चों के मन में उनके धर्म के प्रति अपमान के भाव भरने का काम किया जाता है.

पढ़ाई में कैसे आ जाते हैं जीसस?

खैर, तमिलनाडु के तिरुप्पुर के मामले पर वापस आते हैं. छठी क्लास की छात्रा का आरोप है कि महिला टीचरों में से एक ने पानी में अपना हाथ डालकर ईसा मसीह यानी जीसस के बारे में बात की. इसके बाद उन्होंने अपने हाथ में पानी लिए हुए हिंदू लड़कियों के पेट को तीन बार छुआ. छात्रा ने आरोप लगाया कि एक दिन क्लास के दौरान टीचर ने पूछा कि किसने अपनी जान देकर हमें बचाया? इस पर बच्चों ने अलग-अलग नाम बताए. लेकिन, टीचर ने उनसे पूछा कि उन्होंने जीजस का नाम क्यों नहीं लिया? इतना ही नहीं, छात्रा ने एक अन्य घटना के बारे में बताते हुए आरोप लगाया कि एक टीचर ने क्लास में सबसे शक्तिशाली भगवान के बारे में पूछा, तो भगवान शिव का नाम लेने पर टीचर गुस्से से भर गई. और, कहा कि सभी भगवानों में जीजस सबसे शक्तिशाली हैं. किसी भी स्कूल की पढ़ाई में जीसस को सबसे शक्तिशाली भगवान बताए जाने का चैप्टर, क्लास में बपतिज्मा यानी ईसाई धर्म की दीक्षा के तौर पर पानी का इस्तेमाल किन किताबों में लिखा है, उसे खोजा जाना चाहिए.

लावण्या मामले में जांच के दौरान पुलिस की गड़बड़

छात्रा ने जब इस मामले की जानकारी अपने परिजनों को दी. तो, उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है. लेकिन, अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. छात्रा के पिता का कहना है कि हमने पुलिस में शिकायत कर दी है. पुलिस केवल हमें शांत करने की कोशिश कर रही है. पुलिस ने हमेशा पूछा कि लिखकर दीजिए कि इस मामले में क्या कार्रवाई चाहते हैं? मैंने लिखकर दे दिया है और कार्रवाई का इंतजार कर रहा हूं. वैसे, ये मामला भी उसी तमिलनाडु का है. जहां लावण्या की आत्महत्या मामले में अब तक जांच पूरी नहीं हो पाई है. दरअसल, तमिलनाडु के अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय को सत्तारूढ़ दल डीएमके का स्थायी वोटबैंक माना जाता है. और, ईसाई मिशनरीज पर किसी तरह की कार्रवाई इस वोटबैंक को डीएमके से दूर कर सकती है. तो, माना जा सकता है कि इस ताजा मामले में भी पुलिस ठीक उसी तरह की हीलाहवाली करेगी, जैसी लावण्या मामले की गई थी. 

दरअसल, लावण्या के आत्महत्या मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने अपनी रिपोर्ट में कई सवाल उठाए थे. आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने ट्विटर पर रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को शेयर किया था. जिसमें कहा गया था कि लावण्या को अस्पताल में भर्ती कराने से पहले उसकी मां से पूरी फीस वसूली गई थी. मृतका से राचेल मैरी ने ईसाई बनने की बात कही थी. इतना ही नहीं, मामले की जांच के दौरान परिजनों के जबरन धर्म परिवर्तन के आरोपों पर ध्यान नहीं दिया गया. वैसे, ये गौर करने वाली बात है कि लावण्या के मामले में भी उसे जूलरी पहनने और टीका लगाने से मना किया गया था. ठीक उसी तरह धार्मिक आस्था के तौर पर माथे पर लगाई जाने वाली विभूति को अपमानित करने के लिहाज से छठी की इस छात्रा को 'गधा' कहा गया. जिससे वह अपमानित महसूस करते हुए ऐसा करना बंद कर दे.

क्या छठी क्लास की छात्रा भी हिंदुत्ववादी कट्टरता से भरी है?

जैसा कि भारत के बुद्धिजीवी वर्ग के एक कथित धड़े का मानना है कि देश में हिंदुत्ववादी ताकतों का उभार हो रहा है. इस स्थिति में गौर करने वाली बात है कि एक छठी क्लास की छात्रा के मन में अपने धर्म या भगवान को लेकर कितनी कट्टरता भरी होगी. एक छात्रा जिसे ईसाई मिशनरी स्कूल में उसकी अच्छी पढ़ाई की वजह से भेजा जाता है. वह बिना जाने-बूझे ही इन मिशनरीज की ओर से चलाए जा रहे धर्म परिवर्तन के रैकेट का शिकार हो जाती है. वैसे, हाल ही में यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (SCIRF) की वार्षिक रिपोर्ट में भारत को धार्मिक आधार पर भेदभाव करने वाला बताया गया है. इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत को 'विशेष चिंता वाले देशों' में शामिल किए जाने की सिफारिश की गई है. इसी रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि भारत में 'धर्म परिवर्तन' कानूनों के जरिये मुस्लिमों और ईसाईयों को निशाना बनाया जा रहा है. खैर, दक्षिण भारत के राज्यों से सामने आने वाले धर्म परिवर्तन के मामलों को देखते हुए इस तरह की संस्थाओं और आयोगों की रिपोर्ट की सत्यता पर कितना भरोसा किया जाना चाहिए, ये बड़ा सवाल है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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