• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

गांधीजी ना होते तो हमारा देश एक बड़े और कारगर हथियार से वंचित रह जाता !

    • vinaya.singh.77
    • Updated: 02 अक्टूबर, 2019 12:25 PM
  • 02 अक्टूबर, 2019 12:25 PM
offline
यह इतिहास कुछ अलग होता, अगर 150 साल पहले 2 अक्टूबर को गांधीजी का जन्म नहीं हुआ होता. सम्पूर्ण विश्व एक ऐसे हथियार से संभवतः वंचित रह जाता, जो हथियार होते हुए भी हिंसा नहीं करता.

2 अक्टूबर, मतलब न सिर्फ हमारे देश, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए बहुत ऐतिहासिक दिन. हिन्दुस्तान के लिए तो इसलिए भी ज्यादा ऐतिहासिक दिन है, क्योंकि इसी दिन भारतीय इतिहास के दो महान पुरुष पैदा हुए थे. अगर मोहन दास करमचंद गांधी को हम 'बापू' के रूप में न सिर्फ मानते हैं, बल्कि पूजते भी हैं तो 'जय जवान जय किसान' का नारा देने वाले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी समर्पण और ईमानदारी की मिसाल हैं.

अब अगर 2 अक्टूबर को यूनाइटेड नेशन ने भी 'विश्व अहिंसा दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय सं 2007 में लिया था तो इसके पीछे भी कारण 'बापू' ही थे. पिछले 150 साल के इतिहास को अगर हम देखें तो पाएंगे कि यह इतिहास कुछ अलग होता, अगर 150 साल पहले 2 अक्टूबर को गांधीजी का जन्म नहीं हुआ होता. सम्पूर्ण विश्व एक ऐसे हथियार से संभवतः वंचित रह जाता, जो हथियार होते हुए भी हिंसा नहीं करता, और वह हथियार है 'अहिंसा'.

गांधीजी के बारे में पढ़ने और जानने का अवसर बचपन से ही मिला, स्कूल में, किताबों में और तीन राष्ट्रीय त्यौहारों पर, 'स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और दो अक्टूबर'. जैसे-जैसे उम्र बीतती गयी, गांधीजी के बारे में और पढ़ने का मौका मिला, उनकी जीवनी 'सत्य के प्रयोग' पढ़ी और उनके बारे में और जानने के प्रति रुझान बढ़ता गया. कभी-कभी लगता कि क्या सचमुच में ऐसा किया जा सकता है जैसा कि गांधीजी ने किया था. बहरहाल नौकरी और भागदौड़ के बीच जो समय बचता, उसमें पुस्तकें पढ़ने की कोशिश करता रहा और एक दिन वह क्षण आया, जिसने मुझे बेहद ख़ुशी से भर दिया.

यह इतिहास कुछ अलग होता, अगर 150 साल पहले 2 अक्टूबर को गांधीजी का जन्म नहीं हुआ होता.

नौकरी के सिलसिले में मुझे दक्षिण अफ्रीका जाने का मौका मिला और तब मेरी गांधीजी के बारे में जानने और उनको समझने का भरपूर अवसर मिला. नेल्सन...

2 अक्टूबर, मतलब न सिर्फ हमारे देश, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए बहुत ऐतिहासिक दिन. हिन्दुस्तान के लिए तो इसलिए भी ज्यादा ऐतिहासिक दिन है, क्योंकि इसी दिन भारतीय इतिहास के दो महान पुरुष पैदा हुए थे. अगर मोहन दास करमचंद गांधी को हम 'बापू' के रूप में न सिर्फ मानते हैं, बल्कि पूजते भी हैं तो 'जय जवान जय किसान' का नारा देने वाले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी समर्पण और ईमानदारी की मिसाल हैं.

अब अगर 2 अक्टूबर को यूनाइटेड नेशन ने भी 'विश्व अहिंसा दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय सं 2007 में लिया था तो इसके पीछे भी कारण 'बापू' ही थे. पिछले 150 साल के इतिहास को अगर हम देखें तो पाएंगे कि यह इतिहास कुछ अलग होता, अगर 150 साल पहले 2 अक्टूबर को गांधीजी का जन्म नहीं हुआ होता. सम्पूर्ण विश्व एक ऐसे हथियार से संभवतः वंचित रह जाता, जो हथियार होते हुए भी हिंसा नहीं करता, और वह हथियार है 'अहिंसा'.

गांधीजी के बारे में पढ़ने और जानने का अवसर बचपन से ही मिला, स्कूल में, किताबों में और तीन राष्ट्रीय त्यौहारों पर, 'स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और दो अक्टूबर'. जैसे-जैसे उम्र बीतती गयी, गांधीजी के बारे में और पढ़ने का मौका मिला, उनकी जीवनी 'सत्य के प्रयोग' पढ़ी और उनके बारे में और जानने के प्रति रुझान बढ़ता गया. कभी-कभी लगता कि क्या सचमुच में ऐसा किया जा सकता है जैसा कि गांधीजी ने किया था. बहरहाल नौकरी और भागदौड़ के बीच जो समय बचता, उसमें पुस्तकें पढ़ने की कोशिश करता रहा और एक दिन वह क्षण आया, जिसने मुझे बेहद ख़ुशी से भर दिया.

यह इतिहास कुछ अलग होता, अगर 150 साल पहले 2 अक्टूबर को गांधीजी का जन्म नहीं हुआ होता.

नौकरी के सिलसिले में मुझे दक्षिण अफ्रीका जाने का मौका मिला और तब मेरी गांधीजी के बारे में जानने और उनको समझने का भरपूर अवसर मिला. नेल्सन मंडेला ने तो कहा ही था कि 'हिन्दुस्तान ने तो बैरिस्टर भेजा था, दक्षिण अफ्रीका ने महात्मा वापस किया'. अगस्त के आखिर में जोहानसबर्ग जाने के बाद पहला मौका 2 अक्टूबर को ही मिला, जब मैंने पता लगाना शुरू किया कि इस देश में गांधीजी की प्रतिमा कहां पर है. पहली बार जोहानसबर्ग के 'गांधी स्क्वायर' में नौजवान गांधी की प्रतिमा जब दिखाई पड़ी तो एकबारगी मैं चौंक पड़ा. मैंने तो हमेशा से उम्र दराज़ गांधीजी को एक कपडे और गांधी ऐनक में ही देखा था, उस नौजवानी की तस्वीर को पहचानना कठिन था. खैर जब उस मूर्ति को चारों तरफ से घूम-घूम कर कई बार देखा और वहां लिखे शिलापट्ट को पढ़ा, तब यक़ीन हुआ कि यह उनकी ही मूर्ति है. मूर्ति के चारों तरफ बस टर्मिनस, एक तरफ गांधीजी के नाम पर छोटा सा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और वहां उपस्थित अश्वेत यात्रियों को देखने के बाद कुछ प्रश्न मन में कौंधने लगे. इन प्रश्नों का उत्तर समय के साथ साथ मिलता गया. सबसे अजीब जो चीज लगी वह यह थी कि वहां कोई श्वेत यात्री क्यों नहीं था.

कुछ हफ़्तों में पता चला कि वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अमूमन अश्वेत नागरिक ही चलते हैं, श्वेत और धनवान तबका अपनी गाड़ियों से ही सफर करता है. ट्रेन भी सिर्फ अश्वेत लोगों को ही एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है, श्वेत लोगों के लिए तो एक स्पेशल ट्रेन है, जिसमें सफर करना छोटे लोगों के बस की बात नहीं थी. नेल्सन मंडेला के देश में, जिन्होंने अश्पृश्यता से कई दशक की लड़ाई के बाद अपने देश को आजाद कराया था, यह सब देखना कष्टकारी था. यह बात सं 2013 की है, मंडेला तब अस्वस्थ होकर हस्पताल में पड़े थे और देश उनके ही दल 'अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस' के हाथों में था. वैसे भी जोहानसबर्ग में अपराध बहुत थे और सड़क पर रात में निकलना खतरे से खाली नहीं था. लेकिन आजादी के 21 साल बाद भी अगर लोगों में इतना भेदभाव मौजूद था, तो कहीं न कहीं यह गांधीजी के विचारों के विपरीत था. मंडेला जी खुद महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने देश की आजादी के लिए गांधीजी के अहिंसा के मार्ग को ही अपनाया था.

जब उनका देश आजाद हुआ तो उन्होंने सबसे पहले कहा कि हमारे देश में किसी भी श्वेत नागरिक के साथ कोई गलत व्यवहार नहीं किया जाएगा और वह लोग उसी तरह देश में रहने के लिए स्वतंत्र हैं जैसे वह पहले रहते थे. यहां तक कि उन्होंने अपने देश की सीमाओं को पड़ोसी गरीब देशों के लिए बंद नहीं किया, जिसके दुष्परिणाम भी दक्षिण अफ्रीका को भुगतने पड़े. दिसंबर के महीने में नेल्सन मंडेला का निधन हो गया और उसी समय मुझे उनके परिवार के सदस्यों से मिलने का मौका मिला. कुछ दिन बाद दिसंबर में ही मुझे डरबन जाने का भी अवसर मिला और वहां जाकर जब मैंने लोगों से फोनिक्स आश्रम के बारे में पूछा तो पता चला कि वह जगह भी अश्वेत लोगों के क्षेत्र में स्थित है जहां सामान्य तौर पर कोई श्वेत पुरुष जाना पसंद नहीं करता. दरअसल, दक्षिण अफ्रीका में रहने के क्षेत्रों का स्पष्ट विभाजन था, श्वेत लोग अमूमन शानदार जगहों पर, जहां सारी सुविधाएं मौजूद थीं, रहते थे. और अश्वेत तथा भारतीय लोग जो कई पीढ़ियों से वहां बसे हैं और अब अपनी भारतीय जड़ों को लगभग भूल चुके हैं, उनके रहने की जगह अलग थी. यह जगह गन्दगी से भरी और सुविधा विहीन थी और इन जगहों पर घूमते हुए आपको अजनबीपन का एहसास होने लगता था. हां, इन अश्वेत और हिन्दुस्तानी लोगों में से जो भी धनवान थे, उनको श्वेत समाज बड़े आराम से स्वीकार कर लेता था और कुछ प्रतिशत में ऐसे लोग साफ़ सुथरे और सुविधायुक्त जगहों पर रहते थे.

अब उस देश में जहां गांधीजी ने भारतीय और गरीब अश्वेत लोगों के अधिकार के लिए जबरदस्त संघर्ष किया और जहां उन्होंने अपना सबसे बड़ा हथियार 'सत्याग्रह' खोजा, वहां पर यह स्थिति किसी को भी विचलित करने के लिए काफी थी. खैर मैं बाद में कई बार 'फोनिक्स आश्रम' भी गया, 'तोलस्तोय फार्म' भी गया, 'सत्याग्रह हाउस' भी गया, 'पीटर मेरिट्ज़बर्ग स्टेशन' भी गया और 'कंस्टीटूशन हिल' भी गया, जहां गांधीजी और मंडेला जी, दोनों जेल में बंद रहे. लेकिन इन जगहों पर जब-जब भी मैं गया, मुझे एक अलग तरह के एहसास की अनुभूति हुई. इन जगहों से हमेशा एक प्रेरणा मिली, जिससे मैं वहां पर तमाम सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जुड़ा रहा.

आज 'बा और बापू' के 150 वर्ष जब हम मना रहे हैं तो मुझे बार-बार यह लगता है कि अगर गांधीजी दक्षिण अफ्रीका नहीं गए होते, या अगर वह 'पीटर मेरिट्ज़बर्ग स्टेशन' पर ट्रेन से फेंके नहीं गए होते तो क्या वह अपने सबसे बड़े अहिंसा के हथियार 'सत्याग्रह' को खोज पाते. शायद हां, क्योंकि गांधीजी जैसी शख्सियतें हमेशा पैदा नहीं होतीं.

ये भी पढ़ें-

Article 370: क्या मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपने फैसले का बचाव कर पाएगी?

आदित्य ठाकरे: बिना अखाड़े में उतरे कुश्ती नहीं खेली जा सकती

#MeToo पर सही फैसला तब आएगा जब हम आरोपी और पीड़ित दोनों का पक्ष सुनें


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲