• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

#MeToo पर सही फैसला तब आएगा जब हम आरोपी और पीड़ित दोनों का पक्ष सुनें

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 02 अक्टूबर, 2019 10:53 AM
  • 02 अक्टूबर, 2019 10:53 AM
offline
#MeToo के तहत सुबोध गुप्ता नाम के कलाकार पर जो फैसला दिल्ली हाई कोर्ट ने लिया है उसे देखकर ये कहना बिलकुल भी गलत नहीं है कि ऐसे भी तमाम प्रकरण हैं जिनमें अपनी निजी दुश्मनी निकालने तक के लिए महिलाओं ने #MeToo का सहारा लिया है.

बात दिसम्बर 2018 की है. क्या सोशल मीडिया, क्या मेन स्ट्रीम मीडिया हर जगह #MeToo अपने चरम पर था. जैसे जैसे दिन बीत रहे थे, #MeToo के नाम पर एक के बाद मामले सामने आ रहे थे. कैम्पेन की आग कितनी ज्यादा तेज थी? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तब कई ऐसे सफेदपोश नाम भी चर्चा में आए जिनपर यकीन करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था. बात  #MeToo की चल रही है तो  सुबोध गुप्ता का जिक्र करना भी स्वाभाविक है. सुबोध गुप्ता कलाकार हैं. गुप्ता पर @herdsceneand नाम के इंस्टाग्राम अकाउंट से एक महिला की तरफ से तमाम तरह के गंभीर आरोप लगे गए थे. महिला ने इसमें सुबोध गुप्ता से सावधान रहने की बात भी कही थी. अपनी इस बेइज्जती से खफा सुबोध ने कोर्ट की क्षरण ली थी. मामले का संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने  गूगल और फेसबुक जो कि इंस्टाग्राम का स्वामित्व रखता है, को आदेश दिया है कि वो गुप्ता से जुड़े सभी पोस्ट अपने प्लेटफोर्म से हटाए. ध्यान रहे कि गूगल और  इंस्टाग्राम पर गुप्ता ने अपनी छवि को धूमिल करने का आरोप लगाया था. साथ ही उन्होंने 5 करोड़ रुपए के मुआवजे की भी मांग की थी.

Me Too के अंतर्गत ऐसे भी तमाम लोग फंसे जिन्हें फंसाने के लिए पूरी तरह से झूठ का सहारा लिया गया.

आपको बताते चलें कि साला 2018 में #MeToo की गाज सुबोध गुप्ता पर भी गिरी थी जहां @herdsceneand नाम के इंस्टाग्राम अकाउंट ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये गुप्ता का चरित्र हनन कर के रख दिया था.

तब उस समय गुप्ता ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज किया था और इन्हें झूठा और मनगढ़ंत बताया था. इन आरोपों के चलते गुप्ता और उनकी छवि को कितना नुकसान...

बात दिसम्बर 2018 की है. क्या सोशल मीडिया, क्या मेन स्ट्रीम मीडिया हर जगह #MeToo अपने चरम पर था. जैसे जैसे दिन बीत रहे थे, #MeToo के नाम पर एक के बाद मामले सामने आ रहे थे. कैम्पेन की आग कितनी ज्यादा तेज थी? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तब कई ऐसे सफेदपोश नाम भी चर्चा में आए जिनपर यकीन करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था. बात  #MeToo की चल रही है तो  सुबोध गुप्ता का जिक्र करना भी स्वाभाविक है. सुबोध गुप्ता कलाकार हैं. गुप्ता पर @herdsceneand नाम के इंस्टाग्राम अकाउंट से एक महिला की तरफ से तमाम तरह के गंभीर आरोप लगे गए थे. महिला ने इसमें सुबोध गुप्ता से सावधान रहने की बात भी कही थी. अपनी इस बेइज्जती से खफा सुबोध ने कोर्ट की क्षरण ली थी. मामले का संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने  गूगल और फेसबुक जो कि इंस्टाग्राम का स्वामित्व रखता है, को आदेश दिया है कि वो गुप्ता से जुड़े सभी पोस्ट अपने प्लेटफोर्म से हटाए. ध्यान रहे कि गूगल और  इंस्टाग्राम पर गुप्ता ने अपनी छवि को धूमिल करने का आरोप लगाया था. साथ ही उन्होंने 5 करोड़ रुपए के मुआवजे की भी मांग की थी.

Me Too के अंतर्गत ऐसे भी तमाम लोग फंसे जिन्हें फंसाने के लिए पूरी तरह से झूठ का सहारा लिया गया.

आपको बताते चलें कि साला 2018 में #MeToo की गाज सुबोध गुप्ता पर भी गिरी थी जहां @herdsceneand नाम के इंस्टाग्राम अकाउंट ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये गुप्ता का चरित्र हनन कर के रख दिया था.

तब उस समय गुप्ता ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज किया था और इन्हें झूठा और मनगढ़ंत बताया था. इन आरोपों के चलते गुप्ता और उनकी छवि को कितना नुकसान पहुंचा इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब ये घटना घटी तब उस समय गुप्ता गोवा के  कला महोत्सव में बतौर क्यूरेटर कार्यरत थे. इस सूचना के बाद कि गुप्ता भी महिलाओं के यौन शोषण में लिप्त हैं आयोजकों ने गुप्ता पर कार्रवाई करते हुए उन्हें उनके पद से हटा दिया था. मामला प्रकाश में आने के बाद तब गोवा में आयोजित सेरेनडिपिटी आर्ट्स फेस्टिवल ने भी एक बयान जारी किया था. बयान में कहा गया था कि 15-22 दिसंबर 2019 के आयोजन के दौरान सुबोध गुप्ता मौजूद नहीं रहेंगे, वह क्यूरेटर के पद से हट गए हैं.

निराधार आरोपों के चलते अपनी दुर्गति होने के कारण गुप्ता बहुत आहत थे और मानहानि के तहत उन्होंने अदालत की क्षरण ली थी. अभी बीते दिनों ही इस मामले पर अदालत ने आर्डर जारी किया है और गूगल और इंस्टाग्राम को आदेश दिया है कि वो तत्काल प्रभाव में उन तमाम पोस्टों को हटाए जिनमें गुप्ता की छवि खंड खंड होते दिखाई दे रही है. इस मामले के बाद कुछ सवाल हैं जो उठ रहे हैं और जिनका जवाब हमें हर सूरत में जानना ही चाहिए.

सोशल मीडिया जस्टिस का होना चाहिए एक ह्युमन एंगल

इस बात के लिए हम गुप्ता को ही बतौर उदाहरण लेंगे. कुछ निराधार आरोपों के चलते गुप्ता का पूरा करियर बर्बाद हो चुका है. यदि इस बर्बादी पर नजर डालें तो इसकी एक बहुत बड़ी वजह सोशल मीडिया को माना जा सकता है. जैसी कार्यप्रणाली सोशल मीडिया की है यहां भले ही कोई किसी को जानता नहीं हो लेकिन पल भर में  किसी को रंक से राजा और राजा से रंक बनाने में ज्यादा वक़्त नहीं लगता. कह सकते हैं कि वो लोग जिन्होंने सिर्फ एक सोशल मीडिया पोस्ट को आधार बनाकर सुबोध गुप्ता की इज्जत को पल भर में तार तार कर दिया उनके अन्दर एक ह्युमन एंगल भी होना चाहिए था. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि तब जाकर ही कहीं बराबरी से बात होती और यदि सुबिध गुप्ता दोषी होते तो उन्हें दोषी कहा जाता.

हमेशा ही पीड़ित के पक्ष पर जोर आरोपी की सुनवाई नहीं

जैसा सोशल मीडिया का रवैया है यहां हमेशा ही पीड़ित पक्ष को तरजीह दी जाती है. व्यक्ति का अपने को पीड़ित बताना भर है ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है जो उसके समर्थन में आ जाएंगे. जैसा कि उपरोक्त मामले में सुबोध के साथ हुआ कह सकते हैं कि उनकी आपबीती की एक बड़ी वजह वो 'जल्दबाजी' है जिसने आंखें मूंदते ही सुबोध की इज्जत को तार तार कर दिया. ये मामला तब सम्पूर्ण कहलाता जब लोगों ने किसी भी तरह की कोई राय कायम करने से पहले सुबोध जोकि उस समय आरोपी थे, उनका पक्ष सुना होता.  

पीड़ित के साथ साथ आरोपी का पक्ष भी सुनना चाहिए

सोशल मीडिया के इस दौर में एक तरफ़ा फैसला करना या फिर एक तरफ़ा राय बनाना गलत है. अगर हम यहां पर पीड़ित के साथ खड़े हैं तो हमारे लिए ये भी जरूरी है कि हम आरोपी का पक्ष सुने. पूर्व में कई मामले ऐसे आ चुके हैं जिनमें हमने देखा है कि लोगों ने निजी दुश्मनी निकालने के लिए सोशल मीडिया बैशिंग का सहारा लिया है. हमें इस बात को भली प्रकार समझना होगा कि मामले पर हमारी अधूरी जानकारी किसी के लिए एक बहुत बड़ा नुकसान साबित हो सकती है. यानी बात का सार ये हुआ कि अगर वाकई हमें निष्पक्ष जांच करनी है और सही फैसला लेना है तो हमें चीजों को बराबरी से देखना होगा. किसी एक के पक्ष को अहम बनाकर हम निष्पक्ष न्याय की कल्पना हरगिज़ नहीं कर सकते.

बहरहाल, बात सुबोध गुप्ता मामले और #MeTOO के मद्देनजर शुरू हुई है. तो बता दें कि आज भले ही अदालत तक को आर्डर जारी कर गूगल और फेसबुक को निर्देश देना पड़ा हो. मगर सुबोध गुप्ता की जितनी बेइज्जती होनी थी वो हो गई. उनके दामन पर दाग लग चुका है. आज भले ही उन्हें मामले को लेकर मुआवजा मिल जाए या फिर वो निर्दोष ही साबित हो जाएं लेकिन आने वाले समय में चरित्र पर लगी इस चोट का दर्द शायद वो सालों साल याद रखें.

ये भी पढ़ें -

Me Too: रावण को सामने लाना होगा, सीता को अग्नि-परीक्षा से बचाना होगा

रेप के 20 साल बाद मेडिकल होना बताता है कि यातनाएं झेलना तो पीड़िता की नियति है

CJI sexual harassment case: न्यायपालिका पर ग्रहण लगाने वालों को पहचानना जरूरी है

 


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲