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हरीश रावत को लेकर बवाल थमा तो क्‍या, और उबल गया...

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 25 दिसम्बर, 2021 01:47 PM
  • 25 दिसम्बर, 2021 01:47 PM
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हरीश रावत (Harish Rawat) दो बार धोखा खा चुके हैं, तीसरी बार वैसा नहीं होने देंगे - अगर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को ये लगता है कि रावत को उत्तराखंड चुनाव (Uttarakhand Election 2022) में जीत के बाद वो मनमानी कर सकेंगे तो गलत सोच रहे हैं.

हरीश रावत (Harish Rawat) के समर्थकों की मुहिम रंग लायी है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने हरीश रावत की नाराजगी दूर कर दी है. कम से कम अपनी तरफ से तो ऐसा किया ही है - और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद रावत के बयान से भी ऐसा ही लगता है.

हरीश रावत के समर्थकों की मुहिम का एक बेहतरीन नजारा तो देहरादून के कांग्रेस मुख्यालय में ही देखने को मिला है. रावत समर्थकों के हंगामे का वीडियो वायरल हो रखा है. रावत के समर्थकों ने कांग्रेस ऑफिस में ही महामंत्री राजेंद्र शाह को पीट दिया.

बताते हैं कि बातचीत के दौरान राजेंद्र शाह ने हरीश रावत के बारे में कुछ बोल दिया था. समर्थकों ने उसे रावत के खिलाफ अभद्र टिप्पणी के तौर पर लिया और टूट पड़े. ये तो वो घटना है जो सामने आयी है, क्या मालूम ऐसे वाकये और भी हुए हों - जब कांग्रेस दफ्तर में ये सब हो सकता है तो बाकी जगहों के बारे में बस अंदाजा लगाया जा सकता है.

हरीश रावत के नाराजगी भरे ट्वीट आने से पहले से ही उनके समर्थक उनको उत्तराखंड का सबसे बड़ा चेहरा होने की बात करने लगे थे. रावत के मीडिया प्रभारी तो इतने खफा हो गये कि उत्तराखंड कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव को बीजेपी का एजेंट करार दिये थे.

राहुल गांधी की देहरादून रैली से हरीश रावत का पोस्टर हटाये जाने से समर्थकों में सबसे ज्यादा गुस्सा था. और ऐसा दो बार हो चुका था. गुस्सा इसलिए भी और ज्यादा रहा क्योंकि एक रैली में देवेंद्र रावत भी मंच पर मौजूद थे.

जब हरीश रावत को भी लगा कि उनको कम तवज्जो दी जाने लगी है तो धड़ाधड़ा कई ट्वीट कर दिये. आलाकमान को सीधे सीधे टारगेट करते हुए सत्ता और मगरमच्छ के बहाने भड़ास निकाली थी. वैसे ही जैसे

हरीश रावत (Harish Rawat) के समर्थकों की मुहिम रंग लायी है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने हरीश रावत की नाराजगी दूर कर दी है. कम से कम अपनी तरफ से तो ऐसा किया ही है - और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद रावत के बयान से भी ऐसा ही लगता है.

हरीश रावत के समर्थकों की मुहिम का एक बेहतरीन नजारा तो देहरादून के कांग्रेस मुख्यालय में ही देखने को मिला है. रावत समर्थकों के हंगामे का वीडियो वायरल हो रखा है. रावत के समर्थकों ने कांग्रेस ऑफिस में ही महामंत्री राजेंद्र शाह को पीट दिया.

बताते हैं कि बातचीत के दौरान राजेंद्र शाह ने हरीश रावत के बारे में कुछ बोल दिया था. समर्थकों ने उसे रावत के खिलाफ अभद्र टिप्पणी के तौर पर लिया और टूट पड़े. ये तो वो घटना है जो सामने आयी है, क्या मालूम ऐसे वाकये और भी हुए हों - जब कांग्रेस दफ्तर में ये सब हो सकता है तो बाकी जगहों के बारे में बस अंदाजा लगाया जा सकता है.

हरीश रावत के नाराजगी भरे ट्वीट आने से पहले से ही उनके समर्थक उनको उत्तराखंड का सबसे बड़ा चेहरा होने की बात करने लगे थे. रावत के मीडिया प्रभारी तो इतने खफा हो गये कि उत्तराखंड कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव को बीजेपी का एजेंट करार दिये थे.

राहुल गांधी की देहरादून रैली से हरीश रावत का पोस्टर हटाये जाने से समर्थकों में सबसे ज्यादा गुस्सा था. और ऐसा दो बार हो चुका था. गुस्सा इसलिए भी और ज्यादा रहा क्योंकि एक रैली में देवेंद्र रावत भी मंच पर मौजूद थे.

जब हरीश रावत को भी लगा कि उनको कम तवज्जो दी जाने लगी है तो धड़ाधड़ा कई ट्वीट कर दिये. आलाकमान को सीधे सीधे टारगेट करते हुए सत्ता और मगरमच्छ के बहाने भड़ास निकाली थी. वैसे ही जैसे पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा था, आलाकमान को बता दिया है... ईंट से ईंट खड़का देंगे.

सिद्धू की ऐसी बातों को लेकर पंजाब के प्रभारी रहते हुए हरीश रावत ने कहा था, सिद्धू साहब चौके की जगह छक्का जड़ देते हैं. वैसे ट्विटर हरीश रावत ने भी सिद्धू की ही तरह हाथ पैर बांध दिये जाने की शिकायत दर्ज करायी थी.

अब तो हरीश रावत मान गये हैं. अब कोई नाराजगी नहीं रही. हाथ पैर खोल दिये गये हैं. ये बात भी उनके मुंह से ही सुना गया है. जैसे पहले सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर भी गांधी परिवार के दरबार से निकलने के बाद कहा करते थे, हरीश रावत का भी वैसा ही बयान आया है. ठीक वैसे ही रावत भी कह रहे हैं कि सब लोग मिल जुल कर चुनाव लड़ेंगे.

लेकिन हरीश रावत ने एक ऐसी बात भी कह दी है जो चुनाव बाद उनकी भूमिका पर सवाल खड़ा कर रही है. राहुल गांधी से मुलाकात के बाद हरीश रावत बोले, 'हाईकमान ने मुझे बोला है कि उत्तराखंड चुनाव (ttarakhand Election 2022) मेरे नेतृत्व में लड़ा जाएगा,' - लेकिन उसके बाद की जो बातें हैं वे पुरानी आशंकाओं को नये सिरे से जन्म दे रही हैं.

...लेकिन मुख्यमंत्री कौन बनेगा?

हरीश रावत के आक्रामक और ताबड़तोड़ ट्वीट के बाद दिल्ली बुलाया गया था. बताते हैं कि राहुल गांधी से मुलाकात से पहले प्रियंका गांधी ने हरीश रावत से फोन पर बात की थी - और एक बार फिर कांग्रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा को संकटमोचक के तौर पर देखा जाने लगा है.

चुनाव में रावत ही होंगे चेहरा: राहुल गांधी से मुलाकात के बाद जब हरीश रावत मीडिया के सामने आये तो काफी बदले हुए से नजर आये. हो सकता है मन की बात चेहरे पर न आने देने की एक कोशिश हो.

हरीश रावत गाते हुए बोले, 'कदम-कदम बढ़ाये जा, कांग्रेस के गीत गाये जा, ये जिंदगी के उत्तराखंड के वास्ते, उत्तराखंड पर लुटाये जा.'

हरीश रावत अभी तो राहुल गांधी से अपनी बात मनवा ही लिये, आगे के लिए भी पुख्ता एहतियाती इंतजाम कर रखा है.

फिर बोले, हम कांग्रेस के गीत गाएंगे और उत्तराखंड पर जिंदगी लुटाएंगे. रावत ने बताया उत्तराखंड चुनाव के मद्देनजर हमारे नेता राहुल गांधी के साथ सभी की बैठक हुई थी - मुझे चुनाव में कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया है.

जिस बात पर हरीश रावत का ज्यादा जोर दिखा वो है, 'उत्तराखंड चुनाव के दौरान मैं कांग्रेस पार्टी का चेहरा रहूंगा.'

अपनी बात को हरीश रावत ने अपने हिसाब से ठीक से समझाने की कोशिश भी की, 'कांग्रेस अध्यक्ष के पास हमेशा ये विशेषाधिकार रहा है कि चुनाव के बाद पार्टी बैठती है. कांग्रेस अध्यक्ष को नेता के संबंध में सब अपनी राय देते हैं और कांग्रेस अध्यक्ष नेता तय करते हैं.'

हरीश रावत ने ये भी बताया कि बतौर कैंपेन कमेटी के चेयरमैन वो चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व करेंगे.

सुनने में तो ये सब अच्छा अच्छा ही लगता है. असलियत तो अंदर ही अंदर रावत को भी खाये जा रही होगी. सशंकित तो होंगे ही. ट्रैक रिकॉर्ड तो यही कहता है - और हर बार प्रयोग भी उन पर ही हुआ है. जो हुआ है उन पर ही गुजरा है.

रावत मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं: जैसा की हरीश रावत के बयान से ही साफ है, वो चुनावों तक ही कांग्रेस का चेहरा हैं. अगर चुनाव बाद कांग्रेस सत्ता बनाने की स्थिति में होती है तो मुख्यमंत्री का चुनाव नये सिरे से होगा.

ध्यान देने वाली बात ये है कि हरीश रावत ऐसा दो बार कर चुके हैं. ऐसा दो बार हो चुका है जब हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव तो जीत जाती है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व मुख्यमंत्री किसी और को बना देता है.

2002 में हरीश रावत ने चुनावों से पहले तो मुख्यमंत्री बनने का सपना देखा ही होगा, जब कांग्रेस जीत गयी तो सपने के हकीकत में बदलते न देख पाने की कोई वजह नहीं बची थी, लेकिन सपना टूट गया.

कांग्रेस नेतृत्व ने हरीश रावत पर नारायण दत्त तिवारी को तरजीह देते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया - और बेचारे हरीश रावत मन मसोस कर रह गये. ठीक वैसा ही हाल 2012 के विधानसभा चुनाव में हुआ. कांग्रेस नेतृत्व ने ऐसा फैसला लिया कि हरीश रावत का सपना दोबारा टूट गया.

2012 में आलाकमान के आदेश से विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बना दिये और हरीश रावत का नंबर आने में दो साल लग गये. तब से लेकर तमाम अड़चनों के बावजूद 2017 तक हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर बने रहे.

हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने से पहले एक सवाल अक्सर पूछा जाता रहा, 'क्या कारण है कि आप मुख्यमंत्री नहीं बन पाते?'

जाहिर है ये सवाल हरीश रावत को भी अकेले में बार बार परेशान करता होगा. गुजरते वक्त के साथ हरीश रावत ने सवाल का जवाब भी खोज ही लिया था. जैसे राहुल गांधी से मिलने के बाद हरीश रावत कांग्रेस गीत गा रहे थे, पहले भी जवाब उसी अंदाज में देते.

मुस्कुराते हुए कहा करते, 'कांग्रेस सेवादल का सच्चा सिपाही रहा हूं... पहाड़ का हूं... पहाड़ के लोगों में धैर्य बहुत होता है.'

हाल के ट्वीट में भी हरीश रावत की बातों से लगा कि एक पल के लिए उनका धैर्य जवाब देने लगा था, लेकिन तभी वो ये भी साफ कर देते कि वो हिम्मत नहीं हारने वाले हैं - क्योंकि हरीश रावत को मालूम है कि अगला चुनाव ही नहीं नतीजे आने के बाद भी अपनी लड़ाई उनको ही लड़नी है.

अगली बार पहले जैसा नहीं होने वाला

अगर राहुल गांधी को लगता है कि हरीश रावत को भी बाकियों की तरह ही झांसा दे दिया है, तो आगे चल कर काफी निराशा हो सकती है. हरीश रावत ने जिस तरीके से रणनीति बना कर अपने विरोधी साथियों को शिकस्त है - आगे भी वो अपने मन की ही करने वाले हैं.

कांग्रेस में संकटमोचक के तौर प्रियंका गांधी को तात्कालिक सफलता तो मिल जाती है, लेकिन ट्रैक रिकॉर्ड यही बताता है कि वो भी कोई स्थायी समाधान नहीं निकाल पातीं. पंजाब में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने मिल कर जो समाधान निकाला है, वो राजनीतिक तौर पर दुरूस्त नहीं लगता. हां, अगर चुनाव जीत कर कांग्रेस सत्ता में वापसी कर लेती है, फिर तो बल्ले बल्ले है. हर सफलता सारे सवालों का जवाब होती है.

चुनाव जीतने के लिए रावत की रणनीति: पंजाब के प्रभारी रहते हरीश रावत हर छोटी छोटी बात के गवाह रहे हैं. गांधी परिवार क्या होने पर क्या सोचता है, अच्छी तरह जान चुके हैं. राहुल गांधी कब दबाव महसूस करते हैं और कब जरा भी परवाह नहीं करते, बहुत अच्छी तरह समझते हैं - और ये भी समझ चुके हैं कि आखिर में सोनिया गांधी के फैसले लेने में सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर क्या होता है.

हरीश रावत ने राहुल गांधी की देहरादून रैली से अपना पोस्टर हटा दिये जाने पर भी धैर्य का ही परिचय दिया था. अपने ट्वीट से पहले ही समर्थकों को भी ब्रीफ कर दिया था कि लड़ाई कैसे लड़नी है. हो सकता है, कांग्रेस दफ्तर का हंगाला हरीश रावत की हिदायतों का हिस्सा न हो.

समर्थक पहले से ही माहौल बनाने लगे थे कि हरीश रावत को कांग्रेस ने चेहरा नहीं बनाया तो लड़ाई कांग्रेस बनाम मोदी हो जाएगी. जो बात समर्थक मीडिया के जरिये कह रहे थे, हरीश रावत ने राहुल गांधी को भी समझाया ही होगा.

उत्तराखंड की लड़ाई में अगर हरीश रावत को चेहरा बनाया गया तो लड़ाई 'कांग्रेस बनाम मोदी' की जगह 'रावत बनाम धामी' हो जाएगी. बीते हुए बुरे अनुभवों को देखते हुए राहुल गांधी को ये दलील अच्छी लगी होगी और वो मान गये.

हरीश रावत को मालूम है कि बीजेपी चुनावी हार की डर के चलते ही उत्तराखंड में तीन तीन मुख्यमंत्री बदल चुकी है. ऐसे में हरीश रावत कांग्रेस के लिए संभावनाएं देखते हैं तो गलत भी नहीं है. फिर भी जरूरी नहीं कि बीजेपी कांग्रेस की चाल में फंस जाये, यूपी की तरह उत्तराखंड में भी तो अमित शाह कह ही सकते हैं कि अगर वे लोग 2024 में प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को देखते हैं तो पुष्कर सिंह धामी को 2022 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जरूर बिठायें.

मुख्यमंत्री बनने के लिए रावत की रणनीति: हरीश रावत के लिए चुनावों के दौरान कमान अपने हाथ में लेना सबसे ज्यादा जरूरी था - ताकि वो ज्यादा से ज्यादा अपने समर्थकों को टिकट दे सकें.

ये तो नहीं कहा जा सकता कि हरीश रावत खुल कर मनमानी करेंगे, लेकिन जिस तरह से उनको टिकट बंटवारे से किनारे करने की कोशिशें चल रही थी, उसे तो खत्म करने सफल हो ही गये हैं.

अगर कांग्रेस चुनाव जीत जाती है और राहुल गांधी और उनकी टीम हरीश रावत के खिलाफ चली जाती है तो भी ऐसी कोशिशें नाकाम की जा सकें, हरीश रावत ने कुछ ऐसी ही स्ट्रैटेजी बनायी है.

चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस के सरकार बनाने की स्थिति में कांग्रेस विधायक दल की बैठक में अगर हरीश रावत के समर्थक ज्यादा होते हैं तो उनको नजरअंदाज करना मुश्किल हो सकता है - हो सकता है राहुल गांधी को अभी इस बात का अंदाजा न हो.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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