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गुजरात और हिमाचल की हार-जीत का राहुल पर नहीं होगा असर

    • बिजय कुमार
    • Updated: 17 दिसम्बर, 2017 06:00 PM
  • 17 दिसम्बर, 2017 06:00 PM
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गुजरात चुनाव में राहुल के असर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री को खुद उनके ही गढ़ में चुनौती मिली. वो भी ऐसी की आखिर के दिनों में उन्हें लगातार वहां चुनाव प्रचार करना पड़ा.

गुजरात और हिमाचल प्रदेश, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार-जीत से राहुल गांधी के अध्यक्ष पद पर सवाल तो उठेंगे, लेकिन उसका कोई खास प्रभाव ना तो उन पर और ना ही कांग्रेस पार्टी पर पड़ेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि जब से उन्होंने उपाध्यक्ष पद संभाला था, तभी से हर चुनाव के लिए विपक्षी कांग्रेस की हार की ठीकरा उन्हीं के माथे फोड़ते रहे हैं. साल 2013 के बाद से पंजाब को छोड़कर कांग्रेस पार्टी को लगातार हुए चुनावों में मात ही मिली है. लोकसभा चुनाव में तो पार्टी की वो दशा हुई जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. बावजूद इसके वो पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुने गए हैं और पार्टी के किसी नेता ने ना तो इसका विरोध किया है न हीं उनके खिलाफ किसी ने उम्मीदवारी पेश की थी. जिससे इतना तो साफ़ है कि पार्टी ने उन्हें अपना नेता स्वीकार कर लिया है.

राहुल के लिए अध्यक्ष पद कांटो भरा ताज नहीं है

मौजूदा वक़्त में कांग्रेस पार्टी की सरकार पंजाब, कर्नाटक, मेघालय, मिजोरम और पुडुचेरी में है. हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार है, लेकिन आगे क्या होगा ये चुनाव के नतीजे ही बताएंगे. वहीं बीजेपी गुजरात सहित कुल 12 राज्यों में सरकार चला रही है. गुजरात में चुनाव नतीजे आने वाले...

गुजरात और हिमाचल प्रदेश, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार-जीत से राहुल गांधी के अध्यक्ष पद पर सवाल तो उठेंगे, लेकिन उसका कोई खास प्रभाव ना तो उन पर और ना ही कांग्रेस पार्टी पर पड़ेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि जब से उन्होंने उपाध्यक्ष पद संभाला था, तभी से हर चुनाव के लिए विपक्षी कांग्रेस की हार की ठीकरा उन्हीं के माथे फोड़ते रहे हैं. साल 2013 के बाद से पंजाब को छोड़कर कांग्रेस पार्टी को लगातार हुए चुनावों में मात ही मिली है. लोकसभा चुनाव में तो पार्टी की वो दशा हुई जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. बावजूद इसके वो पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुने गए हैं और पार्टी के किसी नेता ने ना तो इसका विरोध किया है न हीं उनके खिलाफ किसी ने उम्मीदवारी पेश की थी. जिससे इतना तो साफ़ है कि पार्टी ने उन्हें अपना नेता स्वीकार कर लिया है.

राहुल के लिए अध्यक्ष पद कांटो भरा ताज नहीं है

मौजूदा वक़्त में कांग्रेस पार्टी की सरकार पंजाब, कर्नाटक, मेघालय, मिजोरम और पुडुचेरी में है. हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार है, लेकिन आगे क्या होगा ये चुनाव के नतीजे ही बताएंगे. वहीं बीजेपी गुजरात सहित कुल 12 राज्यों में सरकार चला रही है. गुजरात में चुनाव नतीजे आने वाले हैं. इसके अलावा 6 राज्यों में उसके गठबधंन वाली सरकार भी है. कह सकते हैं की 2011 में कांग्रेस पार्टी की स्थिति भी कुछ इसी तरह मजबूत थी. लेकिन तब से पार्टी चुनावों में कुछ अच्छा नहीं कर पायी है.

ऐसे में पार्टी की ओर से राहुल को अध्यक्ष बनाने को लेकर ना सिर्फ बीजेपी बल्कि कुछ विशेषज्ञ भी आलोचना कर रहे हैं. आलोचकों की मानें तो राहुल गांधी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने नहीं टिक पाएंगे. मौजूदा हालात में ये बात सच भी लगती है. लेकिन अगर इतिहास पर नजर डालें तो राहुल के लिए अच्छी खबर ये है कि कुछ इसी तरह कि परिस्थिति में उनकी मां भी अध्यक्ष बनीं थीं. और छह: साल के बाद पार्टी को सत्ता में लाने में कामयाब रहीं थीं. इसकी किसी को भी उम्मीद नहीं थी. वैसे इसके पीछे कि बड़ी वजह बीजेपी के खिलाफ व्याप्त एंटी-इंकम्बैंसी को कहा जा सकता है.

विपक्ष की ओर से राहुल गांधी पर लगातार पप्पू कहकर निजी हमले होते रहे हैं. जिसका जिक्र उन्होंने खुद किया था कि कैसे विरोधी उनके खिलाफ कैंपेन चलाते हैं. जिस दिन आधिकारिक रूप से उन्होंने अध्यक्ष पद संभाला, उस दिन उनकी मां और कांग्रेस पार्टी की ओर से सबसे लम्बे समय तक अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी ने भी कहा था कि राहुल पर बहुत व्यक्तिगत हमले हुए हैं और इनसे वो मजबूत हुए हैं. इसका उदाहरण हमें गुजरात चुनाव में देखने को मिला. जब हर किसी ने कहा कि राहुल में कुछ परिवर्तन देखने को मिले हैं.

मोदी को किसी नेता ने टक्कर दी है तो वो राहुल गांधी ने ही

गुजरात चुनाव के दौरान राहुल ने प्रधानमंत्री पर रोजगार, किसान और विकास को लेकर खूब हमले किये. वो भी खुद उनके गढ़ में. यही नहीं, वहां की जनता ने इसमें कुछ दिलचस्पी भी दिखाई, जिससे पार्टी वहां चुनावों में अच्छा करने की बात कर रही है. इसमें खास बात यह रही की राहुल ने बीजेपी पर घोटालों को लेकर भी हमला बोला.

बता दें कि हाल के वर्षों में कांग्रेस पार्टी के हार की सबसे बड़ी वजह पार्टी की सरकार के दौरान हुए घोटाले ही थे. इसीलिए प्रधानमंत्री को इस दिशा में सोचना पड़ेगा. साथ ही रोजगार और किसान के मुद्दों पर भी खरा उतरना होगा. गुजरात में राहुल के असर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री को खुद उनके ही गढ़ में चुनौती मिली. वो भी ऐसी की आखिर के दिनों में उन्हें लगातार वहां चुनाव प्रचार करना पड़ा. बीजेपी के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बनने वाला है राहुल का सॉफ्ट हिन्दुत्वा कार्ड. जिसे उन्होंने प्रभावी ढंग से खेला है और बीजेपी के हमलों से ये साफ़ हो गया कि ये उनके लिए आने वाले समय में दिक्कत पैदा कर सकता है.

राहुल ने ऐसे वक़्त में कांग्रेस की कमान संभाली है, जब किसी भी पार्टी का नेता आज प्रधानमंत्री की लोकप्रियता के सामने टिक नहीं पा रहा है. ये उनके लिए अच्छी बात है. क्योंकि यही वो वजह है जिसके कारण आज ना ही पार्टी के भीतर और ना ही किसी सहयोगी दल ने इसे लेकर सवाल किया है. जिससे वो नरेंद्र मोदी के चैलेंजर के रूप में देखे जा रहे हैं और अगर भविष्य में उन्हें सफलता मिलती है तो वो एक प्रभावी नेता साबित होंगे. वैसे भी जनता एक समय के बाद विकल्प ढूंढती दिखती है और अगर बीजेपी को अपना राज कायम रखना है तो काम करना ही होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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