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कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद विपक्ष में राहुल का नेतृत्व कितनों को मंजूर होगा

    • आईचौक
    • Updated: 10 दिसम्बर, 2017 05:45 PM
  • 10 दिसम्बर, 2017 05:45 PM
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कांग्रेस 2019 में अकेले दम पर मोदी को चुनौती देने की स्थिति में तो लगती नहीं लिहाजा विपक्ष का साथ तो जरूरी होगा. ऐसे में कांग्रेस की कमान संभालने के बाद राहुल गांधी की चुनौती विपक्षी दलों में उनके नेतृत्व की स्वीकार्यता होगी.

राहुल गांधी 2019 में विपक्ष का नेतृत्व करें ये बात मुलायम सिंह यादव को मंजूर नहीं है. मुलायम ने इस बारे में लालू प्रसाद की राय से असहमति जतायी है. वैसे मुलायम की इस असहमति से कोई खास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि समाजवादी पार्टी की कमान अब अखिलेश यादव के हाथ में है - और यूपी के दोनों लड़के अब भी साथ हैं.

राहुल गांधी को लेकर विपक्षी खेमे में ऐसे नेता भी हैं जो मुलायम सिंह यादव से इत्तेफाक रखते हैं और लालू प्रसाद से भी. 18 दिसंबर के बाद राहुल गांधी के सामने तमाम चुनौतियों में से एक ये भी होगी.

'बोलिए सुरीली बोलियां...'

गुजरात के डाकोर में राहुल गांधी एक चुनावी सभा में थे. जाहिर है निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी ही रहे. तभी सामने मौजूद लोगों में से किसी ने प्रधानमंत्री मोदी के बारे में अभद्र टिप्पणी कर दी. राहुल गांधी वहीं रुक गये और उस व्यक्ति को फटकार लगाई.

इसके बाद राहुल ने उसे सलाह भी दी, "देखिए आप गलत शब्द का प्रयोग मत करिए, वो प्रधानमंत्री हैं, वो एक पद है. आप कांग्रेस पार्टी के हो, प्यार से बात कीजिए, मीठे शब्द प्रयोग करो - और उन्हें हराओ."

जिम्मेदारी आती है तो समझ भी बढ़ जाती है...

मणिशंकर प्रकरण में भी राहुल गांधी का यही अंदाज देखने को मिला. इसमें राहुल गांधी ने न सिर्फ समझदारी दिखायी बल्कि दृढ़ निश्चय का परिचय भी दिया. भले ही ऐसा उन्हें गुजरात चुनाव के दबाव में करना पड़ा हो. ये बात भी अलग है कि मणिशंकर की जगह कोई और होता तो भी वही कदम उठाये जाते या नहीं. मणिशंकर अय्यर राजनीति में आये तो राजीव गांधी के ही कहने पर लेकिन काफी दिनों से हाशिये पर ही चल रहे हैं. बल्कि, वो तो खुद को फ्रीलांस कांग्रेसी भी कहते हैं.

मणिशंकर द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नीच शब्द के इस्तेमाल पर...

राहुल गांधी 2019 में विपक्ष का नेतृत्व करें ये बात मुलायम सिंह यादव को मंजूर नहीं है. मुलायम ने इस बारे में लालू प्रसाद की राय से असहमति जतायी है. वैसे मुलायम की इस असहमति से कोई खास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि समाजवादी पार्टी की कमान अब अखिलेश यादव के हाथ में है - और यूपी के दोनों लड़के अब भी साथ हैं.

राहुल गांधी को लेकर विपक्षी खेमे में ऐसे नेता भी हैं जो मुलायम सिंह यादव से इत्तेफाक रखते हैं और लालू प्रसाद से भी. 18 दिसंबर के बाद राहुल गांधी के सामने तमाम चुनौतियों में से एक ये भी होगी.

'बोलिए सुरीली बोलियां...'

गुजरात के डाकोर में राहुल गांधी एक चुनावी सभा में थे. जाहिर है निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी ही रहे. तभी सामने मौजूद लोगों में से किसी ने प्रधानमंत्री मोदी के बारे में अभद्र टिप्पणी कर दी. राहुल गांधी वहीं रुक गये और उस व्यक्ति को फटकार लगाई.

इसके बाद राहुल ने उसे सलाह भी दी, "देखिए आप गलत शब्द का प्रयोग मत करिए, वो प्रधानमंत्री हैं, वो एक पद है. आप कांग्रेस पार्टी के हो, प्यार से बात कीजिए, मीठे शब्द प्रयोग करो - और उन्हें हराओ."

जिम्मेदारी आती है तो समझ भी बढ़ जाती है...

मणिशंकर प्रकरण में भी राहुल गांधी का यही अंदाज देखने को मिला. इसमें राहुल गांधी ने न सिर्फ समझदारी दिखायी बल्कि दृढ़ निश्चय का परिचय भी दिया. भले ही ऐसा उन्हें गुजरात चुनाव के दबाव में करना पड़ा हो. ये बात भी अलग है कि मणिशंकर की जगह कोई और होता तो भी वही कदम उठाये जाते या नहीं. मणिशंकर अय्यर राजनीति में आये तो राजीव गांधी के ही कहने पर लेकिन काफी दिनों से हाशिये पर ही चल रहे हैं. बल्कि, वो तो खुद को फ्रीलांस कांग्रेसी भी कहते हैं.

मणिशंकर द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नीच शब्द के इस्तेमाल पर राहुल गांधी का कहना था, "कांग्रेस पार्टी हिंदुस्तान के पीएम की कुर्सी का आदर करती है... और कांग्रेस पार्टी में गलत शब्द प्रयोग करके कोई भी पीएम के बारे में नहीं बोल सकता. मोदी जी हमारे बारे में कुछ भी कह सकते हैं. इसलिए हमने मणिशंकर अय्यर पर सख्त कार्रवाई की."

हाल ही में राहुल गांधी को लेकर शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक टिप्पणी आयी जिसमें राहुल की तारीफ की गयी थी. वैसे राहुल की तारीफ के बहाने असली मकसद प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाना लगा. सामना ने संपादकीय में लिखा - 'जिस चुनाव में भाजपा अपनी जीत सुनिश्चित मान रही है उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थके हुए दिखाई दे रहे हैं और इस चुनाव ने राहुल गांधी को एक नेता में बदल दिया है.

संपादकीय में आगे कहा गया, 'चुनाव ने साबित किया है कि राहुल गांधी अब पप्पू नहीं रहे. भाजपा को बड़े मन से यह स्वीकार करना चाहिए.'

शिवसेना ने राहुल गांधी को पसंद किये जाने की वजह भी बतायी. शिवसेना का कहना रहा, 'राहुल गांधी मंदिर गए और पूजा की, भाजपा इससे क्रोध में है. राहुल गांधी मंदिर गए तो इसका स्वागत होना चाहिए. उनका मंदिर जाना एक तरह से हिंदुत्ववाद की जीत है. जब राहुल कांग्रेस को दिखावटी धर्मनिरपेक्षता से नरम हिंदुत्व की तरफ ले जा रहे हैं तो संघ परिवार को इसका स्वागत करना चाहिए.'

राहुल गांधी को लेकर शिवसेना की इस राय के पीछे जो भी वजह हो - और ममता बनर्जी की उद्धव ठाकरे से मुलाकात का भले ही इससे कोई कनेक्शन न हो, फिर भी मणिशंकर कांड में राहुल का फौरी फैसला ऐसा तो है ही कि विपक्षी नेता उनके बारे में नये सिरे से विचार करें.

राहुल गांधी के सपोर्ट में

शिवसेना की तरह ही एनसीपी प्रमुख शरद पवार का भी मानना है कि राहुल गांधी अब बदल चुके हैं. पवार का तो कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल की बदली हुई छवि से डर गए हैं और यही वजह है कि गुजरात में कांग्रेस को मिल रही जबरदस्त प्रतिक्रिया से बीजेपी घबराई हुई है.

सियासत में भी कोई रास्ता पेट से होकर गुजरता है क्या...

हाल ही में लालू प्रसाद ने कहा कि 2019 के लोक सभा चुनाव में राहुल गांधी गैर बीजेपी दलों की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. लालू के बाद उनके बेटे तेजस्वी यादव को भी उम्मीद है कि राहुल गांधी एक न एक दिन देश के प्रधानमंत्री जरूर बनेंगे - उनमें वे सारी काबलियत मौजूद हैं जो एक प्रधानमंत्री में होनी चाहिए.

लेकिन विपक्षी दलों में कई ऐसे नेता हैं जिन्हें यूपीए में सोनिया का नेतृत्व तो कबूल रहा लेकिन राहुल को लेकर अब भी संकोच है. ऐसे नेताओं में सबसे ऊपर तो नाम ममता बनर्जी का ही आता है. ये ममता ही हैं जो विपक्षी खेमे में केजरीवाल को जोड़ने के लिए कांग्रेस से अपील करती हैं, लेकिन राहुल गांधी को लेकर अभी तक उन्होंने कोई सकारात्मक रूख जाहिर नहीं किया है. मायावती तो यूपी विधानसभा चुनाव में खुद के ही पीएम बनने की बात चला रही थीं. फिलहाल तो वो सूबे की सत्ता से भी बाहर हैं, लेकिन लालू की पटना रैली से उनके दूरी बनाये जाने का मतलब भी समझना होगा.

गुजरात चुनाव के नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे और उसी दिन राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने का सर्टिफिकेट भी मिलना है. तब से लेकर और 2019 से पहले राहुल गांधी को कांग्रेस की अंदरूनी चुनौतियों के साथ साथ साथी दलों को भी साथ में रखने के लिए उन्हें साधना होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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