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कभी आलोचना तो कभी उपलब्धियां, आसान नहीं था सोनिया से सोनिया गांधी तक का सफर

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 17 दिसम्बर, 2017 04:41 PM
  • 17 दिसम्बर, 2017 04:41 PM
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भले ही सोनिया गांधी ने अपना रिटायरमेंट ले लिया हो मगर ये कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि वो कई मायनों में एक हिम्मत महिला हैं जिन्होंने कई मौकों पर साहस और परिपक्वता दोनों का परिचय दिया है...

भारतीय राजनीति में 16 दिसम्बर 2017 एक ऐतिहासिक दिन रहेगा. सबसे लंबे समय तक कांग्रेस की अध्यक्ष रहने वाली सोनिया गांधी ने रिटायर होने का फैसला लिया है. राहुल गांधी पार्टी के नए अध्यक्ष हैं. अपने आखिरी भाषण में सोनिया ने सभी कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को साफ संकेत दे दिये हैं कि आगे कांग्रेस को लेकर सारे जरूरी फैसले राहुल गांधी करेंगे अतः किसी भी तरह के विवाद के लिए वो लोग सोनिया की क्षरण में न आएं. लम्बे समय तक कांग्रेस पार्टी को अपनी सेवा दे चुकी सोनिया गांधी को देखकर ये कहना शायद गलत न हो कि वो वाकई बड़ी हिम्मती राजनेता हैं. सोनिया को लेकर कहा जा सकता है कि उन्होंने आलोचना से लेकर उपलब्धियों तक सब देखा है और उनके लिए इटली की साधारण सी सोनिया से कांग्रेस की "सोनिया गांधी" बनने का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था.

भारतीय राजनीति में ऐसे तमाम कारण हैं जिनके चलते सोनिया गांधी को याद किया जाएगा

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. भले ही कांग्रेस समेत सोनिया गांधी की आलोचना की जाए. मगर इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि उन्होंने भारतीय राजनीति का हर दौर बड़ी ही बारीकी से देखा है. और अपनी सूझ बूझ का परिचय देते हुए कई मौकों पर दर्शाया है कि वो एक परिपक्व राजनेता हैं, ऐसा राजनेता जिसे कमजोर आंकना किसी भी दल या नेता के लिए एक बड़ी भूल होगी. ज्ञात हो कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को राजनीति में आने से रोकने वाली सोनिया गांधी ने राजीव गांधी की हत्या के बाद जिस तरह से पार्टी को संभाला वो काबिल ए तारीफ है.

गौरतलब है कि देश की राजनीति में कई मौके आए हैं जब कांग्रेस कमजोर हुई मगर जिस तरह सोनिया ने पार्टी को संभाला उसने न सिर्फ आलोचकों और आम आदमी को बल्कि स्वयं राजनीतिक पंडितों तक को हैरत में डाल दिया. ध्यान रहे कि 1998 में...

भारतीय राजनीति में 16 दिसम्बर 2017 एक ऐतिहासिक दिन रहेगा. सबसे लंबे समय तक कांग्रेस की अध्यक्ष रहने वाली सोनिया गांधी ने रिटायर होने का फैसला लिया है. राहुल गांधी पार्टी के नए अध्यक्ष हैं. अपने आखिरी भाषण में सोनिया ने सभी कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को साफ संकेत दे दिये हैं कि आगे कांग्रेस को लेकर सारे जरूरी फैसले राहुल गांधी करेंगे अतः किसी भी तरह के विवाद के लिए वो लोग सोनिया की क्षरण में न आएं. लम्बे समय तक कांग्रेस पार्टी को अपनी सेवा दे चुकी सोनिया गांधी को देखकर ये कहना शायद गलत न हो कि वो वाकई बड़ी हिम्मती राजनेता हैं. सोनिया को लेकर कहा जा सकता है कि उन्होंने आलोचना से लेकर उपलब्धियों तक सब देखा है और उनके लिए इटली की साधारण सी सोनिया से कांग्रेस की "सोनिया गांधी" बनने का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था.

भारतीय राजनीति में ऐसे तमाम कारण हैं जिनके चलते सोनिया गांधी को याद किया जाएगा

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. भले ही कांग्रेस समेत सोनिया गांधी की आलोचना की जाए. मगर इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि उन्होंने भारतीय राजनीति का हर दौर बड़ी ही बारीकी से देखा है. और अपनी सूझ बूझ का परिचय देते हुए कई मौकों पर दर्शाया है कि वो एक परिपक्व राजनेता हैं, ऐसा राजनेता जिसे कमजोर आंकना किसी भी दल या नेता के लिए एक बड़ी भूल होगी. ज्ञात हो कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को राजनीति में आने से रोकने वाली सोनिया गांधी ने राजीव गांधी की हत्या के बाद जिस तरह से पार्टी को संभाला वो काबिल ए तारीफ है.

गौरतलब है कि देश की राजनीति में कई मौके आए हैं जब कांग्रेस कमजोर हुई मगर जिस तरह सोनिया ने पार्टी को संभाला उसने न सिर्फ आलोचकों और आम आदमी को बल्कि स्वयं राजनीतिक पंडितों तक को हैरत में डाल दिया. ध्यान रहे कि 1998 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार दो लोकसभा चुनाव हारी थी. तब पार्टी के ही लोगों द्वारा कहा गया था कि सोनिया में वो गुण नहीं है कि वो राजनीति संभाल सकें.

साथ ही तब लोगों ने पूरी कांग्रेस पार्टी को एक डूबता हुआ जहाज भी माना था. फिर 1999 में उनकी राजनीतिक परिपक्वता ने सबको तब हैरत में डाला जब उन्होंने राष्ट्रपति से मिलने के बाद 272 सांसदों के समर्थन का दावा किया था और मुलायम सिंह यादव के लिए सिर्फ मुलायम सिंह शब्द का इस्तेमाल किया था.

आज राहुल जिस जमीन पर खड़े हैं वो उनके लिए सोनिया ने तैयार की है

कभी विदेशी मूल और भारतीयता के सवाल पर तो कभी अपनी अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी की वजह से विपक्ष की आलोचना का शिकार रही सोनिया गांधी ने अपने जीवन से जुड़ी हर नकारात्मक बात के सकारात्मक पक्ष देखे और अपनी कमियों पर काम कर अपने आलोचकों और विरोधियों का मुंह बंद किया.

2004 और 2009 कौन भूल सकता है. इंडिया शाइनिंग और भारत उदय के उस दौर में शायद ही किसी ने सोचा हो कि विदेशी मूल की एक महिला देश की राजनीति में तूफान ला देगी. आज राहुल जिस जमीन पर खड़े हैं ये सोनिया की तब की मेहनत की देन है. सोनिया और उनकी राजनीति को ध्यान में रखकर ये कहना गलत नहीं है कि उन्होंने कभी भी मुश्किल हालात से समझौता नहीं किया और असंभव को संभव करके दिखाया.

विदेशी होने के बावजूद जिस तरह उन्होंने 10 सालों तक पार्टी की बागडोर संभाली वो ये बताने के लिए काफी है कि उन्हें हिंदुस्तान की राजनीति में दूर तक का सफर पूरा करना था और उन्होंने वो कर के दिखाया. सोनिया के सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन को ध्यान से देखें तो मिलता है कि उन्होंने राहुल की तरह कभी धर्म आधारित राजनीति नहीं की और जो किया वो खुल के और डंके की चोट पर किया. आज भले ही कांग्रेस की हालत पस्त है मगर ये कहना गलत नहीं है कि यदि पार्टी को सोनिया का साथ और दिशा निर्देश नहीं मिलता तो शायद पार्टी काफी समय पहले ही एक डुबा हुआ जहाज बनकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुकी होती. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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