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देश के 85 प्रतिशत किसानों को स्वीकार कृषि कानून को वापस कैसे लेगी मोदी सरकार!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 14 दिसम्बर, 2020 04:25 PM
  • 14 दिसम्बर, 2020 04:25 PM
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सरकार (Modi Government) ने कृषि सम्बंधित जो कानून (Farm laws 2020) बनाये हैं देश के अधिकांश राज्यों के किसानों ने इसे अपने फायदे का माना है. ऐसा कानून को चंद लोगों की मांग पर सरकार कैसे वापस ले ले? लाख कोशिशों के बावजूद पंजाब केंद्रित किसान आंदोलन के समर्थन में देश के बीस प्रतिशत किसान भी नहीं उतरे हैं.

नये कृषि कानून (Farm Bill 2020) किसानों के फायदे (Benefits To Farmers) के लिए हैं, इस बात को देश के करीब अस्सी प्रतिशत किसानों ने माना भी है. देश के दस से पंद्रह प्रतिशत किसान इसके विपरीत किसान कानूनों को खुद के लिए घातक मानकर सरकार से इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में सरकार कृषि कानूनों से ख़ुश अस्सी से नब्बे प्रतिशत किसानों को नाराज करने के लिए ये कानून कैसे वापस ले? सरकार ने कृषि सम्बंधित जो कानून बनाये हैं देश के अधिकांश राज्यों के किसानों ने इसे अपने फायदे का माना है. ऐसा कानून को चंद लोगों की मांग पर सरकार कैसे वापस ले ले? एक तबके द्वारा कृषि कानून के विरोध का सिलसिला लम्बा हो गया है लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद पंजाब केंद्रित किसान आंदोलन के समर्थन में देश के बीस प्रतिशत किसान भी नहीं उतरे हैं.

हालांकि चंद किसानों (जिसमें अधिकांश बड़े किसान हैं.) का ये आंदोलन सरकार की गले की हड्डी बन गया है. लगातार वार्ताओं के बावजूद भी कोई रास्ता ना निकलने से मोदी सरकार कशमकश मे है. बड़ी चुनौती ये है कि बड़ी संख्या में देश के किसान जिस तरह इस कानूनों को स्वीकार कर रहे हैं ऐसे ही नाराज दस-पंद्रह प्रतिशत किसान भी कुछेक संशोधनों के साथ इसे स्वीकार कर लें.

किसानों की तरफ से लगातार यही दबाव बनाया जा रहा है कि सरकार कृषि कानून वापस ले ले

मालूम हो कि ये कानून पास होने के बाद ही चंद कृषक संगठन इसको किसान विरोधी बता रहे है. पंजाब के किसानों ने कई सप्ताह से आंदोलन छेड़ रखा है. कांग्रेस शासित पंजाब से लगे हरियाणा और अब कांग्रेस शासित राजस्थान में भी आंदोलन की चिंगारी नजर आ रही है. भाजपा आरोप लगा रही है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल किसानों को दिगभ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं. लगातार चुनावी विफलताओं और कोई ठोस मुद्दा ना...

नये कृषि कानून (Farm Bill 2020) किसानों के फायदे (Benefits To Farmers) के लिए हैं, इस बात को देश के करीब अस्सी प्रतिशत किसानों ने माना भी है. देश के दस से पंद्रह प्रतिशत किसान इसके विपरीत किसान कानूनों को खुद के लिए घातक मानकर सरकार से इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में सरकार कृषि कानूनों से ख़ुश अस्सी से नब्बे प्रतिशत किसानों को नाराज करने के लिए ये कानून कैसे वापस ले? सरकार ने कृषि सम्बंधित जो कानून बनाये हैं देश के अधिकांश राज्यों के किसानों ने इसे अपने फायदे का माना है. ऐसा कानून को चंद लोगों की मांग पर सरकार कैसे वापस ले ले? एक तबके द्वारा कृषि कानून के विरोध का सिलसिला लम्बा हो गया है लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद पंजाब केंद्रित किसान आंदोलन के समर्थन में देश के बीस प्रतिशत किसान भी नहीं उतरे हैं.

हालांकि चंद किसानों (जिसमें अधिकांश बड़े किसान हैं.) का ये आंदोलन सरकार की गले की हड्डी बन गया है. लगातार वार्ताओं के बावजूद भी कोई रास्ता ना निकलने से मोदी सरकार कशमकश मे है. बड़ी चुनौती ये है कि बड़ी संख्या में देश के किसान जिस तरह इस कानूनों को स्वीकार कर रहे हैं ऐसे ही नाराज दस-पंद्रह प्रतिशत किसान भी कुछेक संशोधनों के साथ इसे स्वीकार कर लें.

किसानों की तरफ से लगातार यही दबाव बनाया जा रहा है कि सरकार कृषि कानून वापस ले ले

मालूम हो कि ये कानून पास होने के बाद ही चंद कृषक संगठन इसको किसान विरोधी बता रहे है. पंजाब के किसानों ने कई सप्ताह से आंदोलन छेड़ रखा है. कांग्रेस शासित पंजाब से लगे हरियाणा और अब कांग्रेस शासित राजस्थान में भी आंदोलन की चिंगारी नजर आ रही है. भाजपा आरोप लगा रही है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल किसानों को दिगभ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं. लगातार चुनावी विफलताओं और कोई ठोस मुद्दा ना होने की कुंठा और बौखलाहट में विपक्षी दल किसान हित के कानूनों के खिलाफ भोले-भाले किसानों को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं.

यही कारण है कि कांग्रेस शासित राज्यों में ही कांग्रेस अपनी साजिश में थोड़ी बहुत सफलता पा सकी है. भाजपाईयों ने आरोप लगाया है कि कांग्रेसस किसानों के कंधों पर गंदी राजनीति की बंदूक चलाना चाहती है लेकिन उसे पर्याप्त कंधे मिल नहीं रहे हैं. उत्तर प्रदेश में लाख कोशिशों और साजिशों के बावजूद भारत बंद का जरा भी असर नहीं दिखा. योगी सरकार की सख्त निगरानी और चुस्त-दुरुस्त कानून व्यवस्था के होते सपा और अन्य विपक्षी दल भारत बंद या अन्य किसी विरोध प्रदर्शन को हवा देने में जरा भी सफल नहीं हो पा रहे हैं.

साथ ही भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने विपक्ष द्वारा किसानों को भड़काने की साजिशों को महसूस करते हुए इसकी काट की तैयारी शुरू कर दी है. किसान पंचायतों के जरिए भाजपा किसानों से सीधा संवाद करने जा रही है. सरकार किसी भी दबाव में कृषि कानून वापस लेने के ज़रा भी मूड में नहीं दिख रही. क्योंकि विवादों में घिरे इस कानून को वापस लेने से बड़ी संख्या में किसान ही नाराज हो सकते हैं.

गौरतलब है कि पहले कि तरह अब भाजपा शहरी जनता की ही पार्टी नहीं रही. पार्टी के जनविश्वास का विस्तार बहुत पहले हो चुका है. गांव, किसान और मजदूरों ने नरेंद्र मोदी के युग की भाजपा को अपनाया है. राजनीति में संख्या बल को सबसे बड़ी ताकत माना जाता है. किसानों की बड़ी संख्या नये कृषि कानूनों को स्वीकार रही है.

सियासत और हुकुमत में सफलता पाने के लिए गणित, केमिस्ट्री और मनोवैज्ञानिक दृष्टि में दक्ष होना ज़रूरी है. यही खूबियां भाजपा की तरक्की का फार्मूला हैं. किसान आंदोलन से मोदी सरकार के ना घबराने के पीछे एक कैल्कुलेशन है. गणित में संख्याबल का महत्व होता है और रसायन विज्ञान में अनुपात की वैल्यू होती है. एक गिलास पानी में दो बूंदे दवा का मुख्य महत्व होता हैं.

यही दवा दो बूंदों के बजाय एक गिलास हो और इसमें दो बूंदे पानी डाल कर पिया जाये तो फायदे के बजाय नुकसान हो जायेगा. इसलिए मोदी सरकार उस कानून को वापस कैसे लेगी जिसे करीब पच्चासी प्रतिशत किसान अपने फायदे का मान रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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