• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

नोटबंदी के विरोध का तो सवाल ही नहीं उठता..

    • डॉ कृष्ण गोपाल मिश्र
    • Updated: 19 नवम्बर, 2016 02:44 PM
  • 19 नवम्बर, 2016 02:44 PM
offline
नोटबंदी से ये तो साफ हो गया है कि भारतीय राजनीति में स्वच्छता, शुचिता और देशहित के लिए कौन कितना गंभीर है, किसे देश की चिन्ता है और किसे अपनी. भारतीय जनता के लिए अपने नेतृत्व को परखने का यह अच्छा अवसर है.

सरकार द्वारा पांच सौ और एक हजार के नोट बंद किये जाने का निर्णय कहीं निर्दोष तो कहीं सदोष है. उसके शुभ-अशुभ परिणाम होना स्वाभाविक है. इस निर्णय के फलस्वरूप भ्रष्टाचार, कालाधन आदि बुराइयों पर होने वाला संभावित नियंत्रण शुभ-परिणाम दायक है जबकि इसके क्रियान्वयन में आने वाली कठिनाइयां, जनसाधारण को होने वाली परेशानियां इसके तात्कालिक कष्टों की साक्षी हैं. जनता जनार्दन ने इस तथ्य को समझा है और इसीलिए वह सारी असुविधाओं और परेशानियों के वावजूद इस निर्णय का दूर तक स्वागत कर रही है.

 

एक हजार और पांच सौ के नोट बंद किये जाने के निर्णय को ‘आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक' का नाम दिया गया है. यह नाम दूर तक सार्थक भी लगता है, क्योंकि जिस प्रकार पाक-आक्रान्त कश्मीर में स्थित आतंकी शिविरों के विरूद्ध हुई सैन्य सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान प्रभावित हुआ उसी प्रकार आर्थिक सर्जि‍कल स्ट्राइक से कालेधन के रक्षक कुबेर आहत हुए हैं. एक ओर पाकिस्तान ने दावा किया था कि सर्जिकल स्ट्राइक हुई ही नहीं और दूसरी ओर भारत के विरूद्ध तब से आज तक निरन्तर सीजफायर तोड़कर अपनी घायल नाग सी छटपटाहट प्रकट कर रहा है. यही स्थिति आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक की भी है.

ये भी पढ़ें- भारत को कैशलेस सोसाइटी में बदल पायेगी नोटबंदी ?

देश के बड़े-बड़े नेता एक ओर कह रहे हैं कि इससे कालेधन पर कोई रोक नहीं लगेगी. ऐसी नोटबंदी जनता पार्टी के शासन में पहले भी हुई...

सरकार द्वारा पांच सौ और एक हजार के नोट बंद किये जाने का निर्णय कहीं निर्दोष तो कहीं सदोष है. उसके शुभ-अशुभ परिणाम होना स्वाभाविक है. इस निर्णय के फलस्वरूप भ्रष्टाचार, कालाधन आदि बुराइयों पर होने वाला संभावित नियंत्रण शुभ-परिणाम दायक है जबकि इसके क्रियान्वयन में आने वाली कठिनाइयां, जनसाधारण को होने वाली परेशानियां इसके तात्कालिक कष्टों की साक्षी हैं. जनता जनार्दन ने इस तथ्य को समझा है और इसीलिए वह सारी असुविधाओं और परेशानियों के वावजूद इस निर्णय का दूर तक स्वागत कर रही है.

 

एक हजार और पांच सौ के नोट बंद किये जाने के निर्णय को ‘आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक' का नाम दिया गया है. यह नाम दूर तक सार्थक भी लगता है, क्योंकि जिस प्रकार पाक-आक्रान्त कश्मीर में स्थित आतंकी शिविरों के विरूद्ध हुई सैन्य सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान प्रभावित हुआ उसी प्रकार आर्थिक सर्जि‍कल स्ट्राइक से कालेधन के रक्षक कुबेर आहत हुए हैं. एक ओर पाकिस्तान ने दावा किया था कि सर्जिकल स्ट्राइक हुई ही नहीं और दूसरी ओर भारत के विरूद्ध तब से आज तक निरन्तर सीजफायर तोड़कर अपनी घायल नाग सी छटपटाहट प्रकट कर रहा है. यही स्थिति आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक की भी है.

ये भी पढ़ें- भारत को कैशलेस सोसाइटी में बदल पायेगी नोटबंदी ?

देश के बड़े-बड़े नेता एक ओर कह रहे हैं कि इससे कालेधन पर कोई रोक नहीं लगेगी. ऐसी नोटबंदी जनता पार्टी के शासन में पहले भी हुई थी और उसका कोई असर नहीं हुआ. एक प्रतिष्ठित नेता का कथन है कि कालाधन तो विदेशों में है, देश में है ही नहीं और दूसरी ओर सरकार का निर्णय बदलवाने के लिए सरकार पर दबाव डाल रहे हैं ; आन्दोलन की धमकी दे रहे हैं ; संसद का कार्य बाधित कर हैं. कहने की आवश्यकता नहीं ये वही लोग हैं जो काले-धन के समर्थक है. कालेधन पर यथास्थिति बनी रहने देना चाहते हैं. जिनका कालेधन और भ्रष्टाचार का विरोध केवल भाषणों तक सीमित है और जो व्यावहारिक स्तर पर इसे संबल देकर निरन्तर पोषित करने के पक्षधर हैं.

श्री अन्ना हजारे के आन्दोलन में भ्रष्टाचार और कालेधन का विरोध करने वालों को अब सरकार पर यह निर्णय वापस लेने का दबाब और धमकी भरा स्वर शोभा नहीं देता. चिटफंड घोटालों में हुई काली कमाई से समृद्ध नेतृत्व से यह आशा करना कि वह कालेधन पर नियंत्रण में सरकार का साथ देगा व्यर्थ ही है. वर्तमान सरकार से पहले की केन्द्र सरकार में हुए घोटालों की काली कमाई छिपाने के लिए वर्तमान सरकार के इस निर्णय को बदलवाने की पुरजोर कोशिशें इसी योजना का अंग है. इसे समझना चाहिए.

कालेधन के विरूद्ध सरकार के इस कदम पर आज देश का जनमानस दो वर्गों में विभक्त है. एक ओर वह बड़ा वर्ग है जिसके पास कालाधन नहीं है. निर्दोष होकर भी वह कालेधन के कुबेरों के पापों का फल भोगने को विवश है. यह वर्ग परेशान होकर भी सरकार के साथ है क्योंकि वह निर्णय की गंभीरता और व्यावहारिक क्रियान्वयन की कठिनाइयों की विवशता को समझता है. दूसरी ओर वे लोग हैं जिन्होने पिछले सात दशकों में अपने घर भरे हैं. वर्तमान सरकार के बार-बार कहने पर भी अपनी काली कमाई उजागर नहीं की और अब नोटों के रद्दी में बदल जाने पर कटे पंछी से फड़फड़ा रहे हैं. अधिकांश विपक्षी नेता भी निहित स्वार्थों के लिए इस वर्ग की आहत भावनाओं को स्वर देकर राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं. क्रियान्वयन की कठिनाइयों में आई परेशानियों ने उन्हें जनता को होने वाली असुविधा के नाम पर राजनीति करने का अवसर भी उपलब्ध करा दिया है और वे भड़काऊ भाषण देकर देश की शांति भंग करने, सरकार की छवि बिगाड़ने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. ऐसी देश-विरोधी अपराधी षडयंत्रकारी शक्तियों से सावधान रहने की आवश्यकता है.

ये भी पढ़ें- हमें हजम क्यों नहीं हो रहा मोदी का यह फैसला ?

आर्थिक सर्जीकल स्ट्राइक के संदर्भ में यह भी रेखांकनीय है कि जहां एक ओर विपक्षी दल के एक बड़े नेता सरकार के निर्णय का खुले मन से स्वागत करके कालाधन और भ्रष्टाचार रोकने के लिए सरकार के साथ दृढ़ता से खड़े हैं वहीं सरकार के अन्दर से एक सहयोगी दल के नेताजी देश हित में किये गये इस सरकारी प्रयत्न पर प्रश्नचिन्ह लगा चुके हैं. इससे साफ हो जाता है कि भारतीय राजनीति में स्वच्छता, शुचिता और देशहित के लिए कौन कितना गंभीर है. किसे देश की चिन्ता है और किसे अपनी. भारतीय जनता के लिए अपने नेतृत्व को परखने का यह अच्छा अवसर है.

जो काम करता है उससे भूलें भी होती हैं. नोट बंद करने के निर्णय में कोई भूल नहीं हुई. यह प्रहार जितना अचानक होना चाहिए था, उतना अचानक हुआ. यही उचित था. यदि नोट बंद होने की सूचनाएं जरा भी लीक हुई होतीं तो काले धन के कुबेर अतिशीघ्र अपना बंदोबस्त कर लेते. सरकार ने उन्हें अवसर नहीं दिया. यही इस निर्णय की सफलता का आधार भी है. दो हजार के नोट एटीएम. मशीनों से तत्काल नहीं निकल सके, समय पर उनके साफ्टवेयर तैयार नहीं हुए. यहां चूक हुई और यही जनता की परेशानी का कारण बनी.

ये भी पढ़ें- गुजरात के सहकारी बैंक ही तोड़ रहे मोदी सरकार का सपना!

यदि सरकारी नीतियां, जनहित के लिए आवश्यक कठोर निर्णय पहले से प्रचारित हो जायें; आयकर का छापा पड़ने की सूचना पहले ही मिल जाय तो संबंधितों को अनुचित लाभ लेने में असुविधा नहीं होती. पहले एक सरकार ने कृषिभूमि की सीमा निश्चित करने का निर्णय लिया था. निर्णय आने, कानून बनने से पहले ही नीति प्रचारित कर दी गई और बड़े-बड़े भूमिधरों ने अपनी भूमि यथोचित बंदोवस्त करके बचा ली. कानून भी बन गया और जमीन भी बची रही. कुछ ऐसी ही आशा-अपेक्षा नोटबंद करने के मामले में भी विपक्ष को रही जिसके पूर्ण न होने से हुए नुकसान से वह मर्माहत है. आवश्यकता, धैर्य और संयम से काम लेने की है ताकि लंबे समय से अस्वस्थ चल रही भारतीय अर्थ व्यवस्था का कायाकल्प कर उसे नई शक्ति प्रदान की जा सके. देश-विरोधी ताकतें कमजोर हों और एक ईमानदार सशक्त भारत की पुनर्रचना संभव हो सके.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲