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हमें हजम क्यों नहीं हो रहा मोदी का यह फैसला ?

    • योगेश किस्लय
    • Updated: 15 नवम्बर, 2016 04:10 PM
  • 15 नवम्बर, 2016 04:10 PM
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देश में आतंकी हमले होते हैं, जवान शहीद होते हैं, भ्रष्टाचार फैलता है, हम सिर्फ अफसोस जताते हैं. क्या हम वाकई यथास्थितिवादी बन चुके हैं.

आतंकी हमला करें, हम श्रद्धांजलि देते रहे. नक्सली पुलिसवालों को मारते रहें, हम अफ़सोस जाहिर करते रहें. पड़ोसी नकली नोटों से देश की अर्थव्यवस्था झिंझोड़ते रहें, हम कुरता झाड़कर पान चबाते रहें. भ्रष्टाचारी अपना खजाना भरते रहें, हम लाचारगी भरी निगाहों से देखते रहें. महंगाई बढ़ती रहे, हम पेट दबाकर बर्दाश्त करते रहें. वही नेता, वही अभिनेता, वही पत्रकार, वही नौकरशाह, वही व्यवस्था, वही शोषण, वही भाषण.

ये भी पढ़ें- ग्राउंड रिपोर्ट : ऐलान के एक हफ्ते बाद कैसा है भारत का हाल

सुबह होती है शाम होती है, जिंदगी यूं ही तमाम होती है. आज किसी ने व्यवस्था बदलने के लिए हुंकार भरी है तो चंगू-मंगू का बाजार बंद होने लगा है. अब वे खंभा नोचने लगे हैं. उन्हें लगने लगा है अरे जनता जाग रही है - इन्हें धर्म के नाम पर ,जाति के नाम पर ,क्षेत्र के नाम पर ,थोथे वादों के नाम पर अब कैसे उल्लू बनाये रखा जा सकता है? समाजवादी -साम्यवादी -सोशलिस्ट -कांग्रेसी - उदारवादी - अनुदारवादी - क्षेत्रवादी - मनुवादी -गैरमनुवादी - दक्षिणपंथी - वामपंथी - केजरीवादी -ममतावादी सब इकठ्ठा हो गए. अब उनके वोट बैंक का क्या होगा? कुछ दलों ने साथ भी दिया.

 फाइल फोटो- नरेंद्र मोदी

नितीश कुमार, नवीन पटनायक दक्षिण की कई राजनीतिक पार्टियां इस परिवर्तन के साथ हैं. पहली बार तो ऐसा लगा कि आगे बढ़ने के लिए किसी ने पहल की है. ठीक है, इस कदम से पूरा कालाधन नहीं निकलेगा, लेकिन जितना निकलेगा उसके लिए भी तो कोई प्रयास होना चाहिए. देश भर में दस...

आतंकी हमला करें, हम श्रद्धांजलि देते रहे. नक्सली पुलिसवालों को मारते रहें, हम अफ़सोस जाहिर करते रहें. पड़ोसी नकली नोटों से देश की अर्थव्यवस्था झिंझोड़ते रहें, हम कुरता झाड़कर पान चबाते रहें. भ्रष्टाचारी अपना खजाना भरते रहें, हम लाचारगी भरी निगाहों से देखते रहें. महंगाई बढ़ती रहे, हम पेट दबाकर बर्दाश्त करते रहें. वही नेता, वही अभिनेता, वही पत्रकार, वही नौकरशाह, वही व्यवस्था, वही शोषण, वही भाषण.

ये भी पढ़ें- ग्राउंड रिपोर्ट : ऐलान के एक हफ्ते बाद कैसा है भारत का हाल

सुबह होती है शाम होती है, जिंदगी यूं ही तमाम होती है. आज किसी ने व्यवस्था बदलने के लिए हुंकार भरी है तो चंगू-मंगू का बाजार बंद होने लगा है. अब वे खंभा नोचने लगे हैं. उन्हें लगने लगा है अरे जनता जाग रही है - इन्हें धर्म के नाम पर ,जाति के नाम पर ,क्षेत्र के नाम पर ,थोथे वादों के नाम पर अब कैसे उल्लू बनाये रखा जा सकता है? समाजवादी -साम्यवादी -सोशलिस्ट -कांग्रेसी - उदारवादी - अनुदारवादी - क्षेत्रवादी - मनुवादी -गैरमनुवादी - दक्षिणपंथी - वामपंथी - केजरीवादी -ममतावादी सब इकठ्ठा हो गए. अब उनके वोट बैंक का क्या होगा? कुछ दलों ने साथ भी दिया.

 फाइल फोटो- नरेंद्र मोदी

नितीश कुमार, नवीन पटनायक दक्षिण की कई राजनीतिक पार्टियां इस परिवर्तन के साथ हैं. पहली बार तो ऐसा लगा कि आगे बढ़ने के लिए किसी ने पहल की है. ठीक है, इस कदम से पूरा कालाधन नहीं निकलेगा, लेकिन जितना निकलेगा उसके लिए भी तो कोई प्रयास होना चाहिए. देश भर में दस करोड़ लोग लाइन में लग रहे हैं लेकिन इक्का दुक्का मामलो को छोड़ दिया जाये तो कहीं भी इसे लेकर अफरातफरी ,असंतोष नही है. लोगों को भरोसा है कि देश के लिए कुछ करने का मौका मिला है.

ये भी पढ़ें- 500 और 1000 की नोट के बाद 2000 रुपये की नोट में आएगा कालाधन?

मेरे जैसे लोग तो जांघ ठोक रहे हैं कि आओ बेटे, अब तो बराबरी पर आ गए हो. आज से जितना मेहनत करोगे उतना ही कमाओगे. अब तो ईमानदार लोगों में हीन भावना नहीं रही. अब तो 'मेरी साड़ी उसकी साड़ी से कम सफ़ेद क्यों' की कुंठा जाती रही. संभव है कालाधन निकलने के बाद विरोध करने वाले पुनः सत्ता पर आ जाये, क्योंकि बतौर एक मतदाता वह किसी दल से निष्ठापूर्वक जुड़ा हुआ है और तमाम अन्तरविरोध के बाद भी वे मोदी को वोट नही देंगे. लेकिन क्या इस निर्णायक फैसले से होने वाले फायदे के लाभुक वे नही होंगे क्या?

साहब अपनी विचारधारा, पार्टीगत नीतियों से ऊपर उठकर भी सोचिये. इससे ऊपर देश है. मान गए मोदी जी, देश के लिए दुनिया से दुश्मनी लेने को तैयार हैं. चुपचाप पाँच साल भी बिता सकते थे लेकिन यही वह शख्स है जो रोबोट नहीं, जिगरा रखता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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