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बगैर EVM पर उंगली उठे कोई चुनाव प्रक्रिया पूरी होती क्यों नहीं?

    • आईचौक
    • Updated: 16 सितम्बर, 2018 12:04 PM
  • 16 सितम्बर, 2018 12:04 PM
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दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव भी ईवीएम के साथ छेड़छाड़ के आरोपों के बगैर खत्म नहीं हो पाया. एक बात समझ में नहीं आ रही कि ऐसी गड़बड़ियों के पीछे सिर्फ मशीन है या चुनाव ड्यूटी से भागने वाले कर्मचारी?

मजाल क्या कि कोई चुनाव चुपचाप खत्म हो जाये - और EVM को लेकर कोई हंगामा न हो! बीते चुनावों की तरह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में भी बवाल से बच न सका.

सवाल ये है कि जब सब कुछ ठीक ठाक ही है, ईवीएम में किसी बाहरी द्वारा कोई गड़बड़ी की ही नहीं जा सकती तो बार बार वही मशीन फेल क्यों हो जाती है? कहीं चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को इसके बारे में सही जानकारी नहीं होने की वजह से तो ऐसा नहीं होता?

डुसू चुनाव में EVM खराब

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में वोटों की गिनती के दौरान ईवीएम में छेड़खानी के आरोप लगे. इसके साथ ही गिनती को रोक दिया गया. फिर कांग्रेस की छात्र यूनिट एनएसयूआई समर्थक गड़बड़ी का आरोप लगाकर प्रदर्शन करने लगे.

हुआ ये था कि सचिव पद के लिए हुए चुनाव में इस्तेमाल एक EVM में 10 नंबर के बटन पर 40 वोट दर्ज थे. दिलचस्प बात ये रही कि मशीन में नोटा सहित कुछ 9 ही बटन थे. ये पता चलते ही शोर शुरू हो गया.

बाकी चुनावों में तो कोई बड़ी गड़बड़ी होने पर हंगामा थमने का नाम नहीं लेता, लेकिन यहां बिलकुल अलग रहा. छात्र नेता गुस्से में जरूर रहे लेकिन फिर इस बात पर राजी हो गये कि मतगड़ना जारी रखी जाये और ईवीएम में छेड़खानी पर बाद में बात कर ली जाएगी.

हर चुनाव में EVM कठघरे में क्यों खड़ी हो जाती है?

बवाल तो इस बात पर भी मच चुका है कि बटन कोई भी दबाओ खिलता कमल ही है. ऐसा वाकया मध्य प्रदेश में ईवीएम टेस्टिंग के दौरान देखी गयी थी. हालांकि, बाद में चुनाव आयोग ने इस तरह की किसी भी गड़बड़ी को खारिज कर दिया था.

वीवीपैट के इस्तेमाल पर भी इसीलिए जोर दिया जा रहा है. राजस्थान चुनाव के दौरान तो मोबाइल वैन भेज कर लोगों को वीवीपैट के बारे में जागरुक किया जा रहा है. इसका फायदा ये है कि...

मजाल क्या कि कोई चुनाव चुपचाप खत्म हो जाये - और EVM को लेकर कोई हंगामा न हो! बीते चुनावों की तरह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में भी बवाल से बच न सका.

सवाल ये है कि जब सब कुछ ठीक ठाक ही है, ईवीएम में किसी बाहरी द्वारा कोई गड़बड़ी की ही नहीं जा सकती तो बार बार वही मशीन फेल क्यों हो जाती है? कहीं चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को इसके बारे में सही जानकारी नहीं होने की वजह से तो ऐसा नहीं होता?

डुसू चुनाव में EVM खराब

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में वोटों की गिनती के दौरान ईवीएम में छेड़खानी के आरोप लगे. इसके साथ ही गिनती को रोक दिया गया. फिर कांग्रेस की छात्र यूनिट एनएसयूआई समर्थक गड़बड़ी का आरोप लगाकर प्रदर्शन करने लगे.

हुआ ये था कि सचिव पद के लिए हुए चुनाव में इस्तेमाल एक EVM में 10 नंबर के बटन पर 40 वोट दर्ज थे. दिलचस्प बात ये रही कि मशीन में नोटा सहित कुछ 9 ही बटन थे. ये पता चलते ही शोर शुरू हो गया.

बाकी चुनावों में तो कोई बड़ी गड़बड़ी होने पर हंगामा थमने का नाम नहीं लेता, लेकिन यहां बिलकुल अलग रहा. छात्र नेता गुस्से में जरूर रहे लेकिन फिर इस बात पर राजी हो गये कि मतगड़ना जारी रखी जाये और ईवीएम में छेड़खानी पर बाद में बात कर ली जाएगी.

हर चुनाव में EVM कठघरे में क्यों खड़ी हो जाती है?

बवाल तो इस बात पर भी मच चुका है कि बटन कोई भी दबाओ खिलता कमल ही है. ऐसा वाकया मध्य प्रदेश में ईवीएम टेस्टिंग के दौरान देखी गयी थी. हालांकि, बाद में चुनाव आयोग ने इस तरह की किसी भी गड़बड़ी को खारिज कर दिया था.

वीवीपैट के इस्तेमाल पर भी इसीलिए जोर दिया जा रहा है. राजस्थान चुनाव के दौरान तो मोबाइल वैन भेज कर लोगों को वीवीपैट के बारे में जागरुक किया जा रहा है. इसका फायदा ये है कि बटन दबाकर वोट देने के बाद मतदाता ये देख सकता है कि उसका वोट किसे मिला.

ऐसी तो कोई मशीन हो भी नहीं सकती जिसमें कभी कोई गड़बड़ी न हो, लेकिन जिस मशीन के जरिये देश की तकदीर लिखे जाने वालों की किस्मत लिखी जा रही हो - अगर वही गड़बड़ हो जाये तो देश का क्या हाल होगा?

ईवीएम को हैक करने के आरोपों के बाद चुनाव आयोग ने तो हैकॉथन ही आयोजित कर डाला था. नेताओं ने इधर उधर तो ईवीएम हैक करने का दावा किया लेकिन आयोग के इवेंट से सबने दूरी बना ली. फिर ऐसे उपाय क्यों नहीं किये जाते कि रोज रोज सवाल उठने बंद हों.

ऐसा तो नहीं कि मतदान कर्मियों को ईवीएम की सही जानकारी न होने के चलते भी ऐसी घटनाएं होती हों.

चुनाव आयोग के इम्तिहान में 58 % कर्मचारी फेल

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव इस साल के आखिर में होने जा रहे हैं. चुनावी तैयारियों के तहत आयोग की ओर से 18 अगस्त को एक टेस्ट कराया गया. ये लिखित परीक्षा रिटर्निंग और सहायक रिटर्निंग अफसरों के लिए आयोजित की गयी थी.

इस टेस्ट में 561 अधिकारियों ने हिस्सा लिया. इनमें आईएएस अफसर, राज्य सेवा के सीनियर और जूनियर अफसर शामिल थे. हैरानी की बात ये रही कि इनमें सिर्फ 42 फीसदी अधिकारी ही पास हो पाये, बाकी 58 फीसदी फेल हो गये.

ऐसा भी नहीं था कि बड़े मुश्किल सवाल पूछे गये हों. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार जो सवाल पूछे गये वे सामान्य ही कहे जाएंगे.

1. किसी उम्मीदवार की जमानत कब जब्त होती है?

2. अगर किसी व्यक्ति को निचली अदालत से तीन साल की सजा मिली है और हाई कोर्ट ने उसे जमानत दे दी है तो क्या वह चुनाव लड़ सकता है?

3. अगर किसी पार्टी की तरफ से दो उम्मीदवार नामांकन पर्चा दाखिल करते हैं तो किसे आधिकारिक उम्मीदवार माना जाएगा? क्या इस बात पर यकीन किया जा सकता है कि बरसों से काम कर रहे अधिकारी ऐसे नियमों से नावाकिफ होंगे? अगर वास्तव में ये बात सच है तो स्थिति कितनी गंभीर है बस कल्पना ही की जा सकती है.

वैसे मीडिया रिपोर्ट में ही सूत्रों के हवाले से खबर दी गयी है कि अधिकारी जानबूझ कर खुद ही फेल हो गये हैं. दलील भी बड़ी दमदार लगती है - ताकि चुनाव ड्यूटी से बचा जा सके.

क्या इसी भरोसे पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की कोशिशें चल रही थीं? कहीं ईवीएम में गड़बड़ी हो जाती है तो कहीं कर्मचारियों का मतदान के काम में मन नहीं लगता. जब ड्यूटी से बचने के लिए तमाम तरीके के हथकंडे अपनाये जाते हों, फिर सिर्फ ईवीएम को ही क्यों हर पर कठघरे में अकेले खड़ा होना पड़ता है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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