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दिग्विजय की राह पर सीपी- क्या राहुल की सोहबत में खोट है

    • शरत कुमार
    • Updated: 28 नवम्बर, 2018 02:10 PM
  • 24 नवम्बर, 2018 04:39 PM
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सीपी जोशी के बारे में शायद राजस्थान के बाहर के लोगों को पता नहीं है कि राजस्थान के भीतर हल्की-फुल्की बातचीत में कोई उन्हें क्रेक नेता कह देता है तो कभी गंभीर फिलॉस्फर करार देता है. लेकिन यह सच है कि सीपी जोशी प्रोफेसर हैं और बातें भी प्रोफेसर की तरह करते हैं और यही एक समस्या भी है उनके साथ.

विडंबना देखिए, कांग्रेस के जिन सीपी जोशी को सिर्फ सीपी कहकर बुलाया जाता है, उनके नाम के पीछे लगे ब्राह्मण सूचक निशान 'जोशी' को छोड़ दिया जाता है, वो जातिवाद के आरोप में घिरे हैं. दरअसल ज्ञानी होना व्यक्तित्व को निखारता है मगर ज्ञान का फूहड़ प्रदर्शन पाखंड लाता है. अपने चुनाव प्रचार के दौरान सीपी जोशी ने उमा भारती की जाति बताकर और साध्वी ऋतंभरा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धर्म पूछने का जो काम किया है उसे सही नहीं ठहराया जा सकता है, लेकिन यह भी सच है कि सीपी जोशी के बयानों को उसके पूरे संदर्भ में देखना चाहिए था.

खंड-खंड अक्सर पाखंड हो जाता है. दोनों तरफ से काटकर टीवी चैनल्स पर जिस बयान को दिखाया जा रहा है वह सीपी जोशी के पूरे कथन का मतलब सर्वथा अलग बताती है. उसके आगे सीपी समझा रहे थे कि बीजेपी वाले कैसे हिंदू धर्म के ठेकेदार बनते हैं. उस दौरान बोलते-बोलते ब्रहाम्ण पर भी बोल गए. ठीक से सुनने पर यह समझ में नही आता कि वो क्या कहना चाहते हैं. उमा भारती की जाति तो बताई है मगर ऋतंभरा और नरेंद्र मोदी का धर्म पूछ रहे हैं. अब उनका धर्म तो हिंदू है ये सब जानते हैं, तो भला क्यों पूछ रहे हैं. सार्वजनिक जीवन में आप रहते हैं तो वो बातें नहीं बोलनी चाहिए जिससे समाज में गलत संदेश जाए. लेकिन सीपी जोशी की गलती नहीं है. सीपी जोशी के बारे में शायद राजस्थान के बाहर के लोगों को पता नहीं है कि राजस्थान के भीतर हल्की-फुल्की बातचीत में कोई उन्हें क्रेक नेता कह देता है तो कभी गंभीर फिलॉस्फर करार देता है. लेकिन यह सच है कि सीपी जोशी प्रोफेसर हैं और बातें भी प्रोफेसर की तरह करते हैं और यही एक समस्या भी है उनके साथ.

सीपी जोशी कई बारे अजीब बातें बोल जाते...

विडंबना देखिए, कांग्रेस के जिन सीपी जोशी को सिर्फ सीपी कहकर बुलाया जाता है, उनके नाम के पीछे लगे ब्राह्मण सूचक निशान 'जोशी' को छोड़ दिया जाता है, वो जातिवाद के आरोप में घिरे हैं. दरअसल ज्ञानी होना व्यक्तित्व को निखारता है मगर ज्ञान का फूहड़ प्रदर्शन पाखंड लाता है. अपने चुनाव प्रचार के दौरान सीपी जोशी ने उमा भारती की जाति बताकर और साध्वी ऋतंभरा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धर्म पूछने का जो काम किया है उसे सही नहीं ठहराया जा सकता है, लेकिन यह भी सच है कि सीपी जोशी के बयानों को उसके पूरे संदर्भ में देखना चाहिए था.

खंड-खंड अक्सर पाखंड हो जाता है. दोनों तरफ से काटकर टीवी चैनल्स पर जिस बयान को दिखाया जा रहा है वह सीपी जोशी के पूरे कथन का मतलब सर्वथा अलग बताती है. उसके आगे सीपी समझा रहे थे कि बीजेपी वाले कैसे हिंदू धर्म के ठेकेदार बनते हैं. उस दौरान बोलते-बोलते ब्रहाम्ण पर भी बोल गए. ठीक से सुनने पर यह समझ में नही आता कि वो क्या कहना चाहते हैं. उमा भारती की जाति तो बताई है मगर ऋतंभरा और नरेंद्र मोदी का धर्म पूछ रहे हैं. अब उनका धर्म तो हिंदू है ये सब जानते हैं, तो भला क्यों पूछ रहे हैं. सार्वजनिक जीवन में आप रहते हैं तो वो बातें नहीं बोलनी चाहिए जिससे समाज में गलत संदेश जाए. लेकिन सीपी जोशी की गलती नहीं है. सीपी जोशी के बारे में शायद राजस्थान के बाहर के लोगों को पता नहीं है कि राजस्थान के भीतर हल्की-फुल्की बातचीत में कोई उन्हें क्रेक नेता कह देता है तो कभी गंभीर फिलॉस्फर करार देता है. लेकिन यह सच है कि सीपी जोशी प्रोफेसर हैं और बातें भी प्रोफेसर की तरह करते हैं और यही एक समस्या भी है उनके साथ.

सीपी जोशी कई बारे अजीब बातें बोल जाते हैं

दरअसल इस देश में ज्यादा पढ़ा लिखा ना होना एक पुरानी समस्या रही है. गांव में कहा जाता है- ज्यादा पढ़े तो हर (भोजपुरी में हल को कहते हैं) से गए और कम पड़े तो घर से गए. लोग बताते हैं कि आज तक चैनल की शुरुआत करने वाले एसपी सिंह के पास जो भी नौकरी मांगने आता था उससे उसकी डिग्री पूछते थे और कहते थे कि मुझे तो सिंपल ग्रैजुएट चाहिए. मेरे पास पीएचडी और रिसर्च किए लोगों की जरूरत नहीं है क्योंकि ज्यादा पढ़ा लिखा आदमी ज्यादा दिमाग लगाता है और बेवजह की समस्या पैदा करता है. कांग्रेस के भीतर शशि थरूर, मणिशंकर अय्यर, जयराम रमेश को देखें तो यह बात एक हद तक सही प्रतीत होती है. सीपी जोशी की भूमिका भी राजस्थान की राजनीति में कमोबेश इन नेताओं की तरह रही है. इनका आचरण कभी एक सरल सहज नेता के रूप में नहीं रहा है. यही वजह है कि ये पिछली बार एक वोट से चुनाव हार गए थे. लोगों ने तरह-तरह के आरोप लगाए कि मुख्यमंत्री बनने वाले थे, राजस्थान कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे इसलिए इन्हें साजिश करके हरवा दिया गया लेकिन सच यही है कि वो सीपी जोशी की अपनी करतूतों का फल था कि वो एक वोट से चुनाव हार गए और वह भी कल्याण सिंह से जो इनके पक्के चेले थे. इस बार भी वह अपने चेले के सामने ही मैदान में है. यह दिखाता है उनका स्वभाव ऐसा है कि उनका हर चेला उनके सामने चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो जाता है.

बात 2009 की है. सीपी जोशी मनमोहन सरकार में राजस्थान में लोकसभा चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्री बने थे. कुछ दिन पहले हीं जयपुर में आज तक की नौकरी के बाद स्टार न्यूज़ में विजय विद्रोही दिल्ली गए थे. उन्होंने यह किस्सा सुनाया कि सीपी जोशी के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद मैंने सोचा कि राजस्थान से कोई नेता मंत्री बना है तो राजस्थान हाउस में मिलकर आते हैं. सीपी जोशी ने राजस्थान हाउस में डिनर पर बुलाया था. कुछ उत्साहित कार्यकर्ता सीपी जोशी के पास आ गए और उन्होंने हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो सीपी जोशी ने अपना हाथ ऊपर उठा लिया और कहा कि खाना खाने के लिए हाथ धो लिया है. दूर से प्रणाम कर लो. विजय विद्रोही दूसरे कांग्रेसी नेतआओं की तरह अचंभित रह गए कि ये कैसा नेता है. जब वो इस किस्से को सुना रहे थे मेरे पास बैठे एक शख्स ने कहा कि आपको आज पता लगा है, ये तो शुरू से ऐसे ही हैं. मेरे से इतनी नजदीककी थी और मैं अपने रिश्तेदार के ट्रांसफर के लिए गया था. तब ये पीएचडी मिनिस्टर थे. सबके सामने कहा कि वहां के लोग क्या प्यासे मरेंगे जो मैं ट्रांसफर कर दूं.

प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद सीपी जोशी मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने लगे.

अब बड़ा सवाल है कि अगर सीपी जोशी का व्यवहार और स्वभाव ऐसा रहा है तो इस ऊंचाई तक वह कैसे पहुंचे हैं. लोग कहते हैं कि सीपी जोशी जब राजनीति में आए तो अशोक गहलोत की सरपरस्ती में निखरना शुरू हुए. अशोक गहलोत तरह-तरह की प्रतिभाओं को अपने पास रखते हैं, उनमें से एक यह भी थे. हालांकि उनके पास ज्यादा वैसे लोग रहते हैं जो दिमाग कम लगाएं. अशोक गहलोत जब मंत्री थे तो सबसे ज्यादा मंत्रालय उन्होंने बीड्डी कल्ला को दे रखा था और जब चुनाव हारे तो प्रदेश अध्यक्ष का जिम्मा भी कल्ला को ही सौंपा था. लेकिन बीडी कल्ला कच्चे निकले. लिहाजा अशोक गहलोत ने अपने दूसरे सबसे वफादार सीपी जोशी पर दाव लगाया. सीपी जोशी प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कुछ दिन तक अशोक गहलोत के कहे में रहे लेकिन धीरे-धीरे उनके आसपास के लोग उनकी महत्वाकांक्षा को जगाने लगे और वो मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने लगे.

तब कांग्रेस में बदलाव का दौर था, नए राजकुमार के रूप में राहुल गांधी का कांग्रेसी राजनीति में प्रादुर्भाव हुआ था. सीपी जोशी बहुत अच्छी तरह से अंग्रेजी बोलते हैं और राहुल गांधी उस वक्त अशोक गहलोत की हिंदी भाषा को ठीक से समझ नहीं पाते थे. सीपी जोशी ने अपने ज्ञान का कॉकटेल अंग्रेजी भाषा के साथ बनाया और राहुल गांधी को ऐसा पिलाया कि उन्हें हर तरफ सीपी जोशी दिखने लगे. तब राहुल गांधी राजस्थान आते तो अशोक गहलोत के साथ ऐसे बर्ताव करते जैसे कोई दूसरे दर्जे का नेता हो और सीपी जोशी राजस्थान के कांग्रेस के भविष्य हों. मगर स्वामी भक्त गहलोत ने उस दौर को भी जी लिया. जिस तरह से राहुल गांधी आज सचिन पायलट के साथ सहज दिखते हैं उसी तरह से 2008 में हुए चुनाव प्रचार के दौरान वह गहलोत के बजाए सीपी जोशी के साथ ज्यादा सहज दिखते थे. हालांकि तब अशोक गहलोत प्रतिभा के कायल नहीं बने थे. सीपी जोशी एक वोट से चुनाव हार गए लेकिन कांग्रेसी आलाकमान की पूरी सहानुभूति उनके साथ रही. राहुल गांधी को लगा कि एक काबिल नेता के साथ नाइंसाफी हुई है.

एक समय राहुल गांधी सीपी जोशी के साथ बहुत सहज थे

सीपी भीलवाड़ा से लोकसभा के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार बने. वो दौर था जब राहुल गांधी ने नए-नए घर से निकले थे और लोगों की उम्मीदें जोर मार रही थीं. तब राहुल की लहर में सीपी जोशी सांसद बने. फिर केंद्र में मंत्री बने और जब कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ सीपी जोशी कांग्रेस के आर्थिक प्रस्ताव को पढ़ने के लिए चुने गए. उसके कुछ दिन बाद सीपी जोशी का प्रमोशन हुआ और वो भूतल परिवहन मंत्री बना दिए गए. पवन बंसल को जब रिश्वतखोरी कांड में इस्तीफा देना पड़ा तो सीपी जोशी को सड़क के साथ-साथ रेल मंत्रालय का भी जिम्मा दे दिया गया और तब कहा गया कि कांग्रेस में आज कोई सबसे ताकतवर नेता है तो सीपी जोशी हैं, क्योंकि तब वो राहुल गांधी के आंख-नाक-कान थे. सीपी ने तब राजस्थान में बड़ा बयान देना शुरु किया कि मैं अब अपने गुरु अशोक गहलोत का फौलोवर नहीं रहा बल्कि कोलैबरेटर बन गया हूं. राजस्थान के लोग ज्ञानी सीपी के इस बयान के मायने समझे न समझे इस बयान की चर्चा तब खुब हुई. यह सिलसिला चलता रहा. 2014 का चुनाव कांग्रेस पार्टी हार गई लेकिन सीपी जोशी का दबदबा कांग्रेस में कायम रहा. राहुल गांधी उनकी प्रतिभा से इस कदर प्रभावित रहे कि कांग्रेस और सीपी दोनों की करारी हार के बावजूद सीपी जोशी को बिहार जैसे प्रदेश का प्रभारी बनाया गया.

धीरे धीरे बिहार से निकल कर पूरे पूर्वोत्तर भारत का जनरल सेक्रेट्री इंचार्ज बन गए. कहा जाने लगा कि सीपी जोशी राहुल गांधी इतने करीबी हैं कि 13 राज्यों के प्रभारी हैं. इतना ताकतवर महासचिव कांग्रेस के दिल्ली दफ्तर में कोई नहीं है. लेकिन वहां भी सीपी जोशी के कार्यशैली को लेकर लगातार सवाल उठते रहे. ये अलग बात है कि राहुल गांधी के कानों तक आवाज नहीं गई. बिहार में सीपी जोशी का विरोध लगातार जारी रहा. असम में हेमंत विश्व शर्मा इनकी हरकतों से परेशान होकर पार्टी छोड़ कर चले गए. मणिपुर में तो सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सीपी जोशी ने सरकार बनाने की जल्दी बाजी नहीं दिखाई. वहां कांग्रेस सरकार बनाने की रणनीति का इंतजार करती रही और सीपी जोशी दिल्ली में बैठे रहे. जब कांग्रेस की हालत पतली होती चली गई और एक-एक करके सीपी जोशी के प्रभार वाले राज्य कांग्रेस के हाथ से निकलते चले गए तब राहुल गांधी को लगा अब कांग्रेस में बदलाव की जरूरत है. यहां से गुरु गहलोत की एंट्री हुई.

चेले सीपी ने अब तक दिल्ली में जो दबदबा बनाए रखा था वहां पर गुरु ने गुजरात के रास्ते जोरदार एंट्री मारी और धीरे-धीरे दिल्ली के अकबर रोड दफ्तर पर कब्जा जमा लिया. एक-एक कर सीपी जोशी के प्रभार वाले राज्यों से उनका प्रभार छिनता चला गया. आखिर में कांग्रेस महासचिव पद से भी उनकी विदाई हो गई. तब भी जोशी को कोई खारिज करने के मूड में नही था. अटकलों का बाजार गर्म रहा कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के झगड़े में सीपी जोशी कोई मलाईदार पद पा लेंगे. सीपी जोशी फिर से दिल्ली से निकलकर जयपुर का चक्कर लगाने लगे. लेकिन चुनाव से पहले जब कमेटियों का गठन शुरू हुआ तो सबसे हल्की फुल्की कमेटी के अध्यक्ष सीपी जोशी बनाए गए. प्रचार कमेटी के अध्यक्ष बनते ही यह तय हो गया कि सीपी जोशी के सितारे गर्दिश में हैं. जब टिकटों की घोषणा हुई तो लोकसभा चुनाव लड़ने का सपना देख रहे सीपी जोशी को नाथद्वारा भेज दिया गया.

सीपी आज फिर से विधायक बनने के लिए नाथद्वारा में संघर्ष कर रहे हैं

आ अब लौट चलें के अनमने रास्ते से सीपी वहीं आ खड़े हुए जहां से निकलकर वो दिल्ली की राजनीति में छा गए थे. दस साल के सफर में पाईथोग्रेस के पृथ्वी गोल है के चीर सत्य का ज्ञान पाए सीपी जोशी नाथद्वारा के बोधि वृक्ष के नीचे आकर फिर से खड़े हो गए. लौट के बुद्धू घर को आए. सीपी जोशी के लिए यह सब पचा पाना आसान नहीं था. किसी के लिए नहीं होता. लेकिन शायद इसी को प्रारब्ध कहते हैं. सीपी जोशी ने पिछले कुछ दिनों में जो कुछ किया है वह उनकी अंदर की छटपटाहट को दिखाता है. एक ऐसा नेता जो राहुल गांधी के बगल में बैठकर कभी राजस्थान में मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहा हो तो कभी कांग्रेस में एक ताकतवर पद हासिल करने की हैसियत रखता हो आज वह वापस से विधायक बनने के लिए नाथद्वारा में संघर्ष कर रहा है. यह हमारे और आपके लिए किस्मत या परिस्थितियां हो सकती हैं लेकिन जो व्यक्ति इस दौर से गुजर रहा होता है उसके लिए सब कुछ आसान नहीं होता है. इस दौर में अपना मानसिक संतुलन बनाए रखना बेहद मुश्किल काम होता है. इस छटपटाहट की वजह पहचान बचाए रखने के लिए जद्दोजहद दिखती है. सीपी जोशी कहते हैं कि कांग्रेस का प्रधानमंत्री ही राम मंदिर बनाएगा तो वह समझ रहे होते हैं कि वह क्या कह रहे हैं. इसीलिए इस बयान देने के बाद निजी बातचीत में कहते हैं कि पता नहीं पार्टी मेरे बातचीत का समर्थन करेगी या नहीं. नाथद्वारा में जब उमा भारती की जाति पूछ रहे थे तब ऐसा नहीं था उन्हें पता नहीं था कि वह गलत बोल रहे हैं लेकिन वहां भी राजस्थान की राजनीति में उपस्थिति दर्ज कराने की उनकी जद्दोजहद दिख रही थी. राहुल गांधी से भले ही डांट मिली हो लेकिन लोगों को एक बार फिर से पता चल गया कि सीपी जोशी नाम के नेता का अभी राजस्थान की राजनीतिक वजूद में बचा हुआ है.

यही नहीं सीपी जोशी राजस्थान की राजनीति में एक ब्राह्मण नेता के रूप में आए थे लेकिन वह पार्टी में कभी भी ब्राह्मण चेहरा नहीं बन पाए. जिस तरह से सचिन पायलट गुर्जरों में बेहद लोकप्रिय हैं और अशोक गहलोत माली वोट बैंक के माई बाप हैं उसी तरह से सीपी जोशी की ब्रहामण वोट बैंक पर कभी भी पकड़ नहीं रही. इस बयान के बाद राह चलते चर्चाओं में ब्राह्मण मान रहे हैं कि कोई तो नेता है जो उनकी खोई गरिमा को सार्वजनिक मंच पर इस तरह से स्वीकार करने का साहस रखता है. तो भले ही राष्ट्रीय मंच पर सीपी जोशी की थू-थू हो रही हो लेकिन सीपी जोशी ने अपने ब्राह्मण कॉन्स्टीट्वेंसी को एक बार फिर से सजाया संवारा है. मगर कहने वाले ये भी कह रहे हैं कि सीपी जोशी भले ही राजस्थान में ब्राह्मण चेहरा बनकर उभर जाएं लेकिन राहुल गांधी की नजरों में शायद वह दूसरे दिग्विजय सिंह बन के रह जाएं. क्योंकि दिग्विजय सिंह भी एक समय राहुल गांधी के काफी करीब हुआ करते थे और उनके बेवजह के बयानों की वजह से राहुल गांधी ने उन्हें अपने से दूर छिटका था. कभी-कभी लगता है कि राहुल गांधी के आसपास रहने वाले ज्ञानी महासचिव दिग्विजय और सीपी जोशी के रूप में क्यों सामने आते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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