• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

कैसे सीबीआई की साख को खा गई एक मां की आह!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 06 फरवरी, 2019 04:11 PM
  • 06 फरवरी, 2019 04:11 PM
offline
चिट फंड मामले को लेकर जो कुछ भी कोलकाता में सीबीआई के साथ हुआ उसके बाद देश के आम लोगों के सामने केंद्रीय जांच एजेंसी की खूब किरकिरी हुई है. कहा जा रहा है कि सीबीआई को एक मां की बद्दुआ लगी है.

मां की दुआओं का असर होता है तो बद्दुआएं भी खाली नहीं जातीं. दिल्ली के जेएनयू का लापता छात्र नजीब की जुदाई में रोती-बिलखती उसकी मां की आह सीबीआई की साख को खा गयी. दिल्ली के इस नौजवान की संदिग्ध गुमशुदगी का मामला पूरे देश में चर्चा में रहा. दबाव में सरकार ने इस मामले को सीबीआई के हवाले कर दिया. लेकिन सीबीआई ने अपनी तफ्तीश को इतनी धीमी गति में जारी रखा है कि कई वर्षों बाद भी इस मामले की एक तह भी नहीं खुली. राजनीति लड़ाई में इस्तेमाल होने के आरोपों में घिरी सीबीआई ने नजीब मामले में जितनी सुस्ती बरती शायद ही किसी केस में बरती हो.

पश्चिम बंगाल सरकार से मुंह की खाने वाली सीबीआई पर अब तमाम चर्चाएं तेज हो रही हैं. सोशल मीडिया पर सीबीआई की फजीहत हो रही हैं. कोई लिख रहा है कि केंद्र सरकार के दबाव में सियासी मौकों पर सक्रियता दिखाने वाली सीबीआई की कार्रवाई की रफ्तार सामाजिक न्याय के लिए कछुआ बन जाती है जबकि सियासी मौकों पर खरगोश की तरह अपनी चाल तेज कर देती है.

मोहम्मद कामरान लिखते हैं- मां की बददुआ तलवार से भी ज्यादा तेज होती है और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिल रहा है,  भारत देश की सर्वोच्च संस्था सीबीआई के इतने बुरे दिन आएंगे ये किसी ने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा. गली मोहल्ले, नुक्कड़ पान की दुकानों पर पहले सीबीआई चर्चा अपने अंतर कलह के चलते चर्चा का विषय बनी. सीबीआई निदेशक की तैनाती से लेकर करोड़ो रुपये के लेन देन के आरोपों को झेल रही सीबीआई को कोलकाता पुलिस की गिरफ्तारी के बाद से लोग और भी हल्के मे लेने लगे हैं.

कोलकाता में जो कुछ भी हुआ उससे कहीं न कहीं सीबीआई जैसी संस्था की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लग गए हैं

दिलचस्प बात ये है कि देश की अदालत ने ही एक बार सीबीआई को तोते की संज्ञा दी थी. पश्चिम बंगाल की...

मां की दुआओं का असर होता है तो बद्दुआएं भी खाली नहीं जातीं. दिल्ली के जेएनयू का लापता छात्र नजीब की जुदाई में रोती-बिलखती उसकी मां की आह सीबीआई की साख को खा गयी. दिल्ली के इस नौजवान की संदिग्ध गुमशुदगी का मामला पूरे देश में चर्चा में रहा. दबाव में सरकार ने इस मामले को सीबीआई के हवाले कर दिया. लेकिन सीबीआई ने अपनी तफ्तीश को इतनी धीमी गति में जारी रखा है कि कई वर्षों बाद भी इस मामले की एक तह भी नहीं खुली. राजनीति लड़ाई में इस्तेमाल होने के आरोपों में घिरी सीबीआई ने नजीब मामले में जितनी सुस्ती बरती शायद ही किसी केस में बरती हो.

पश्चिम बंगाल सरकार से मुंह की खाने वाली सीबीआई पर अब तमाम चर्चाएं तेज हो रही हैं. सोशल मीडिया पर सीबीआई की फजीहत हो रही हैं. कोई लिख रहा है कि केंद्र सरकार के दबाव में सियासी मौकों पर सक्रियता दिखाने वाली सीबीआई की कार्रवाई की रफ्तार सामाजिक न्याय के लिए कछुआ बन जाती है जबकि सियासी मौकों पर खरगोश की तरह अपनी चाल तेज कर देती है.

मोहम्मद कामरान लिखते हैं- मां की बददुआ तलवार से भी ज्यादा तेज होती है और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिल रहा है,  भारत देश की सर्वोच्च संस्था सीबीआई के इतने बुरे दिन आएंगे ये किसी ने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा. गली मोहल्ले, नुक्कड़ पान की दुकानों पर पहले सीबीआई चर्चा अपने अंतर कलह के चलते चर्चा का विषय बनी. सीबीआई निदेशक की तैनाती से लेकर करोड़ो रुपये के लेन देन के आरोपों को झेल रही सीबीआई को कोलकाता पुलिस की गिरफ्तारी के बाद से लोग और भी हल्के मे लेने लगे हैं.

कोलकाता में जो कुछ भी हुआ उससे कहीं न कहीं सीबीआई जैसी संस्था की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लग गए हैं

दिलचस्प बात ये है कि देश की अदालत ने ही एक बार सीबीआई को तोते की संज्ञा दी थी. पश्चिम बंगाल की पुलिस द्वारा सीबीआई की फजीहत के बाद भी न्यायालय ने अपने फैसले में पुलिस के इस कदम के खिलाफ कोई सख्त फैसला ना सुनाकर सीबीआई को एक बार फिर बौना साबित कर दिया है. एक ऐसा तोता जिससे जिसे कोई राम-राम रहा दे, फिर दूसरा उसकी धुनाई इसलिए कर दे कि वो तोता उसकी फरमाइश पर रावण - रावण नहीं बोल रहा है. यानी सियासत की चक्की में देश की सम्मानीय एजेंसी को पीसा जा रहा है.

सीबीआई का अभी तक रिकॉर्ड रहा है कि इस एजेंसी ने विपक्षी दलों के कारनामें खोलने के लिए हमेंशा तेजी बरती है किन्तु सामाजिक न्याय से जुड़े आम लोगों के ज्यादातर मामलों में ढीलापन दिखाया है. या किसी नतीजे के ही फाइल बंद कर दी है. नोएडा आरुषि जैसे प्रकरण में भी लम्बे वक्त की इन्वेस्टिगेशन के बाद सीबीआई ने ये फाइल क्लोज कर दी थी. उनके बाद आरूषि के माता-पिता ने दुबारा ये फाइल खुलवायी. वो बात अलग है कि फाइल खुलवा कर आरुषि के माता पिता खुद अपनी पुत्री की हत्या के आरोप में फंस गये थे.

जो भी सीबीआई की हर दौर में एक साख और भरोसा रहा है. इस एजेंसी का नाम ही सुनकर अपराधियों या अपराध में लिप्त बड़ी से बड़ी ताकतों की रुह कांपने लगती है. सीबीआई कर्मियों/अफसरों का एक बड़ा रूतबा रहा है. हमेशा से ही हर सरकार में विपक्ष का आरोप रहता है कि सरकार सीबीआई का बेजा (अनुचित) उपयोग करती है. लेकिन मौजूदा सरकार के दौरान सीबीआई कुछ ज्यादा ही आरोपों में घिरी. यही नहीं सीबीआई से लेकर रॉ जैसी खुफिया एजेंसी तक के अफसरों की इस सरकार में जितनी साख गिरी शायद आजाद भारत में ऐसा कभी ना हुआ है.

अंदाजा लगाइये कि पश्चिम बंगाल में सीबीआई के अफसरों की गिरफ्तारी और पुलिस द्वारा धक्का का मुक्की का मामला हो या कुछ दिन पहले रॉ के अफसर के साथ बदसलूकी हो. ये ताकतवर अफसर ऐसी बेइज़्ज़ती के बाद क्या मुंह लेकर अपने घर या अपने दफ्तर जाते होंगे.

ये भी पढ़ें -

ममता बनर्जी ने बनाया CBI के मारे नेताओं का महागठबंधन!

सीबीआई तो खुद ही 'असंवैधानिक' संस्था है !

वो 'फरार' बंगाल पुलिस अफसर, जिसके पीछे पड़ी CBI आपस में लड़ती रही


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲