• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

सीबीआई तो खुद ही 'असंवैधानिक' संस्था है !

    • गिरिजेश वशिष्ठ
    • Updated: 04 फरवरी, 2019 04:12 PM
  • 04 फरवरी, 2019 04:12 PM
offline
बंगाल में कोलकता पुलिस ने CBI अफसरों को थाने में बैठाकर विवाद खड़ा कर दिया है, लेकिन इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में चल रहा एक केस तो पहले ही CBI को विवादास्‍पद बना चुका है. DSPE एक्ट में 'सीबीआई' शब्द ही नहीं लिखा है.

क्या आप जानते हैं कि गोवाहाटी हाईकोर्ट अपने एक फैसले में सीबीआई को असंवैधानिक करार दे चुका है. आपको बता दें कि आज तक उस फैसले को गलत करार नहीं दिया गया. बस इतना है कि केन्द्र सरकार इस फैसले को तारीख पर तारीख के ज़रिए लटकाए हुए है. जब ये फैसला आया था तब भी केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट में 9 नवंबर 2013 को दूसरे शनिवार की छुट्टी के दिन स्टे ले लिया. खास बात, तब से लेकर आज तक सुप्रीम कोर्ट में वह अपील पेंडिंग है.

सरकार हर बार नई तारीख ले लेती है. यही वजह है कि 'सीबीआई' तोते की छवि से बाहर नहीं निकल पाई. अदालत में तर्क दिया गया था कि दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेबलिशमेंट (डीएसपीई) एक्ट-1946, के तहत सीबीआई के गठन या उसके अधिकार क्षेत्र की बात कही जाती है. खास बात है कि डीएसपीई एक्ट में 'सीबीआई' शब्द ही नहीं लिखा है. इस एक्ट में संशोधन हुए, मगर सीबीआई नाम फिर भी शामिल नहीं हो सका. ये एक्ट अंग्रेज़ों ने बनाया था और इसका मकसद द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद करप्शन के मामलों की जांच करने का था. बाद में इसमें दूसरे करप्शन के मामले भी शामिल कर लिए गए.

चूंकि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है इसलिए केन्द्र के पास सीबीआई जैसी पुलिस होने का कोई तार्किक कारण बनता ही नहीं है. लेकिन केन्द्रीय विभागों की जांच जैसे मामलों को लेकर इसे लटकाकर रखा गया. ये भी दूसरी पुलिस की तरह है जिसका सरकार और प्रशासन गलत इस्तेमाल करते रहते हैं.

सीबीआई को को आज भी संवैधानिक दर्जा हासिल नहीं है.

संविधान के जानकारों का कहना है कि किसी भी चैप्टर में सीबीआई के गठन का कहीं कोई प्रावधान ही नहीं है. यही वजह है कि 'केंद्रीय जांच एजेंसी' को आज भी संवैधानिक दर्जा हासिल नहीं है. सीबीआई एक अप्रैल 1963 को एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के तहत बनी थी.

संविधान सभा के सदस्य...

क्या आप जानते हैं कि गोवाहाटी हाईकोर्ट अपने एक फैसले में सीबीआई को असंवैधानिक करार दे चुका है. आपको बता दें कि आज तक उस फैसले को गलत करार नहीं दिया गया. बस इतना है कि केन्द्र सरकार इस फैसले को तारीख पर तारीख के ज़रिए लटकाए हुए है. जब ये फैसला आया था तब भी केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट में 9 नवंबर 2013 को दूसरे शनिवार की छुट्टी के दिन स्टे ले लिया. खास बात, तब से लेकर आज तक सुप्रीम कोर्ट में वह अपील पेंडिंग है.

सरकार हर बार नई तारीख ले लेती है. यही वजह है कि 'सीबीआई' तोते की छवि से बाहर नहीं निकल पाई. अदालत में तर्क दिया गया था कि दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेबलिशमेंट (डीएसपीई) एक्ट-1946, के तहत सीबीआई के गठन या उसके अधिकार क्षेत्र की बात कही जाती है. खास बात है कि डीएसपीई एक्ट में 'सीबीआई' शब्द ही नहीं लिखा है. इस एक्ट में संशोधन हुए, मगर सीबीआई नाम फिर भी शामिल नहीं हो सका. ये एक्ट अंग्रेज़ों ने बनाया था और इसका मकसद द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद करप्शन के मामलों की जांच करने का था. बाद में इसमें दूसरे करप्शन के मामले भी शामिल कर लिए गए.

चूंकि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है इसलिए केन्द्र के पास सीबीआई जैसी पुलिस होने का कोई तार्किक कारण बनता ही नहीं है. लेकिन केन्द्रीय विभागों की जांच जैसे मामलों को लेकर इसे लटकाकर रखा गया. ये भी दूसरी पुलिस की तरह है जिसका सरकार और प्रशासन गलत इस्तेमाल करते रहते हैं.

सीबीआई को को आज भी संवैधानिक दर्जा हासिल नहीं है.

संविधान के जानकारों का कहना है कि किसी भी चैप्टर में सीबीआई के गठन का कहीं कोई प्रावधान ही नहीं है. यही वजह है कि 'केंद्रीय जांच एजेंसी' को आज भी संवैधानिक दर्जा हासिल नहीं है. सीबीआई एक अप्रैल 1963 को एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के तहत बनी थी.

संविधान सभा के सदस्य नजीरुददीन अहमद और डॉ बीआर अंबेडकर ने सीबीआई जैसी संस्था के बाबत कहा था- ऐसी एजेंसी केंद्र सरकार की 'संघ सूची' के पास रहेगी. इसका कामकाज क्रिमिनल केस दर्ज करना या अपराधी को गिरफ़्तार करना नहीं होगा. यह एजेंसी केंद्र सरकार के पास विभिन्न अपराधों की जो सूचनाएं आती हैं, उन्हें क्रॉस चैक कर सकती है.

एजेंसी के पास इंटरस्टेट अपराधों की तुलना कर उसकी रिपोर्ट केंद्र सरकार को देने का अधिकार था. पुलिस, जो कि 'राज्य सूची' का विषय है, उसकी तर्ज पर यह जांच एजेंसी न तो किसी को गिरफ़्तार कर सकती है और न ही किसी से पूछताछ. आज सीबीआई द्वारा किसी को गिरफ़्तार करने, जांच करने या पूछताछ का जो भी अधिकार मिला है, वह दिल्ली स्पेशल पुलिस एक्ट (डीएसपीई) के तहत संभव हो सका है.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉ. एनएस चौधरी ने सीबीआई की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी. इनके मुताबिक गोवाहाटी हाईकोर्ट ने 6 नवंबर 2013 को नरेंद्र कुमार बनाम भारत सरकार केस में फैसला सुनाया था कि सीबीआई संवैधानिक संस्था नहीं है. इसके पास किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार नहीं है. खास बात, हाईकोर्ट ने कहा- संविधान के अनुसार केंद्र सरकार ऐसी एजेंसी या फोर्स नहीं रख सकती. अदालत ने सीबीआई को पूरी तरह असंवैधानिक घोषित कर दिया था. अगर सीबीआई को पुलिस की तरह अधिकार देने हैं तो उसे संविधान की 'समवर्ती सूची' में शामिल करना होगा.

जानकारों का कहना है सीबीआई को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए सरकार को संविधान संशोधन करना होगा. इसके लिए दोनों सदनों में अलग-अलग दो तिहायी बहुमत से प्रस्ताव पास होना जरुरी है. जाहिर बात है जब तक ये काम नहीं होता सीबीआई एक ऐसी संस्था है जिसकी नींव सत्ताधारियों की साजिश पर टिकी है. ये केन्द्र की एक अवैध पुलिस है जो राज्यों के अधिकार में हस्तक्षेप करने के लिए कानून में दखलंदाजी करके बनाई गई है.  

ये भी पढ़ें-

CBI में नियुक्ति-प्रक्रिया की पोल खोल देती है पिछले 5 डायरेक्टरों की पोलिटिकल पोस्टिंग

CBI की लड़ाई 'शेषन' बनने और 'तोता' बनाये रखने में उलझ गयी है!

देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी CBI की जांच आखिर हुई कैसे?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲