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क्‍या वाकई कांग्रेस-मुक्त भारत का नारा 'फेक न्यूज' है?

    • सुशांत झा
    • Updated: 11 दिसम्बर, 2018 07:14 PM
  • 11 दिसम्बर, 2018 07:14 PM
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मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के जीतने को इसलिए भी बड़ी उपलब्धि नहीं माना जा सकता क्योंकि वजह एंटी इनकम्बेंसी है. बहरहाल वक्त आ गया है कि 2019 के लिए कांग्रेस को और अधिक गंभीर हो जाना चाहिए.

इस चुनाव के नतीजे निश्चय ही कांग्रेस के लिए खुशी का कारण हैं लेकिन वो खुशी और ज्यादा हो सकती थी अगर बीजेपी बुरी तरह हारती. बीजेपी दुखी तो है लेकिन इतनी दुखी नहीं जितना उसे होना चाहिए था. इसका कारण ये है कि दो राज्यों में उसकी 15 साल से सरकार थी और एक राज्य में उसे बुरी पराजय का अंदेशा था. लेकिन वो मैदान में जमी रही. तीसरी बात पूर्वोत्तर के एक सूबे से कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और दक्षिण के एक राज्य से मिथक सरीखा बन चुका महागठबंधन चुनाव हार गया.

पांच में से तीन राज्यों में मिली जीत को कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों के लिए एक बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है

कुल मिलाकर मामला मिश्रित है. कह सकते हैं कि कांग्रेस-बीजेपी का मामला विधानसभा चुनावों में 51-49 का है. क्या ऐसा लोकसभा चुनाव में भी हो पाएगा? कहना मुश्किल है. क्योंकि उस समय कांग्रेस के सामने वसुंधरा-शिवराज या रमण सिंह नहीं होंगे. उस समय राहुल होंगे और मोदी होंगे और पंद्रह साला सत्ता-विरोधी रुझान भी नहीं होगा.बसपा ने कई राज्यों में अपने मत प्रतिशत दर्शाएं हैं. बहनजी इसे यूपी चुनाव में मोलभाव के लिए जरूर इस्तेमाल करेंगी.

हां, ये जरूर है कि लोकसभा उपचुनावों के बाद जिस हार की श्रृंखला का निर्माण बीजेपी कर रही है, वो घनीभूत हो गई है. राहुल गांधी को करना ये होगा कि स्थानीय गठबंधन करें और अपने चेहरे को जबरन पीएम पद के लिए आरक्षित न करें. बेहतर है कि वे राजस्थान में पायलट और मध्य प्रदेश में सिंधिया का नाम आगे करें और गहलोत जैसे अनुभवी व्यक्ति को 2019 में पीएम पद के लिए बचा कर रख लें.

जिस देश में धर्म और जाति की राजनीति साथ-साथ चल रही हो, उसमें एक ओबीसी प्रधानमंत्री के सामने अगर ओबीसी विपक्षी नेता आ जाए तो कौन सा अनर्थ हो जाएगा? मैं कहीं देख रहा था कि राजस्थान में कुछ...

इस चुनाव के नतीजे निश्चय ही कांग्रेस के लिए खुशी का कारण हैं लेकिन वो खुशी और ज्यादा हो सकती थी अगर बीजेपी बुरी तरह हारती. बीजेपी दुखी तो है लेकिन इतनी दुखी नहीं जितना उसे होना चाहिए था. इसका कारण ये है कि दो राज्यों में उसकी 15 साल से सरकार थी और एक राज्य में उसे बुरी पराजय का अंदेशा था. लेकिन वो मैदान में जमी रही. तीसरी बात पूर्वोत्तर के एक सूबे से कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और दक्षिण के एक राज्य से मिथक सरीखा बन चुका महागठबंधन चुनाव हार गया.

पांच में से तीन राज्यों में मिली जीत को कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों के लिए एक बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है

कुल मिलाकर मामला मिश्रित है. कह सकते हैं कि कांग्रेस-बीजेपी का मामला विधानसभा चुनावों में 51-49 का है. क्या ऐसा लोकसभा चुनाव में भी हो पाएगा? कहना मुश्किल है. क्योंकि उस समय कांग्रेस के सामने वसुंधरा-शिवराज या रमण सिंह नहीं होंगे. उस समय राहुल होंगे और मोदी होंगे और पंद्रह साला सत्ता-विरोधी रुझान भी नहीं होगा.बसपा ने कई राज्यों में अपने मत प्रतिशत दर्शाएं हैं. बहनजी इसे यूपी चुनाव में मोलभाव के लिए जरूर इस्तेमाल करेंगी.

हां, ये जरूर है कि लोकसभा उपचुनावों के बाद जिस हार की श्रृंखला का निर्माण बीजेपी कर रही है, वो घनीभूत हो गई है. राहुल गांधी को करना ये होगा कि स्थानीय गठबंधन करें और अपने चेहरे को जबरन पीएम पद के लिए आरक्षित न करें. बेहतर है कि वे राजस्थान में पायलट और मध्य प्रदेश में सिंधिया का नाम आगे करें और गहलोत जैसे अनुभवी व्यक्ति को 2019 में पीएम पद के लिए बचा कर रख लें.

जिस देश में धर्म और जाति की राजनीति साथ-साथ चल रही हो, उसमें एक ओबीसी प्रधानमंत्री के सामने अगर ओबीसी विपक्षी नेता आ जाए तो कौन सा अनर्थ हो जाएगा? मैं कहीं देख रहा था कि राजस्थान में कुछ जगहों पर सीपीएम भी जीत रही है. देश में तकनीक-आश्रित अर्थव्यवस्था के बाद जिस तरह से रोजगार की कटौती और आय-अवसर की असामनता बढ़ी है, सीपीएम में कुछेक कॉमरेडों की सफलता उसका सूचक है. कांग्रेस बीजेपी दोनों को इस पर विचार करना चाहिए.

हां, आशंका ये है कि इस चुनावी जीत से कहीं राहुल गांधी मंदिरों का दौरा और न तेज कर दें. कहीं और बड़ा जनेऊ न धारण कर लें. सबसे अच्छी बात ये रही कि एक्जिट पोल और ईवीएम की विश्वसनीयता कम से कम अप्रैल 2019 तक बहाल हो गई है. अंत में, राम बिलास पाला बदल सकते हैं. मोदीजी सावधान.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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