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बीजेपी हारी तो 'माल-ए-गनीमत' के लिए आपस में भिड़ेंगे क्षेत्रीय दल और कांग्रेस

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 10 दिसम्बर, 2018 03:55 PM
  • 10 दिसम्बर, 2018 03:55 PM
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पांच राज्यों के चुनाव कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए सेमी फाइनल की तरह देखे जा रहे हैं. माना जा रहा है कि यदि इन चुनावों में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती हैं तो उसे भाजपा के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों से भी भिड़ना होगा.

अरब कल्चर में युद्ध जीतने वाले हारने वालों का माल लूटते थे. इस माल को माले गनीमत कहा जाता था. जीतने वाले जब माले गनीमत पर लपकते थे तो कभी कभी आपस में भी इन्हें लड़ना पड़ता था. आगामी लोकसभा में अगर भाजपा के खिलाफ जबरदस्त एंटीइंकम्बेंसी रही तो इसका लाभ उठाने के लिए कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दल भी लपकेंगे. और इस छीना-झपटी में भाजपा विरोधी दलों का, आपस में भिड़ना भी तय है.

पांच राज्यों के चुनाव में अगर कांग्रेस को फायदा मिलता है तो ये राहुल गांधी के लिए कई मायनों में फायदेमंद होगा

11 दिसम्बर को आने वाले चुनावी नतीजों में एक्जिट पोल का पूर्वानुमान सही साबित हुआ तो कांग्रेस अपने बढ़ते ग्राफ के आत्मविश्वास के साथ नखरीले क्षेत्रीय दलों से किनारा कर सकती है. कांग्रेस छत्तीसगढ़ जीत भी गयी तो राहुल की छाती छप्पन की नहीं तो छत्तीस इंच की तो हो ही जायेगी. क्योंकि यहां इसकी लड़ाई न सिर्फ भाजपा से बल्कि जेसीसी और बसपा गठबंधन से भी थी. छत्तीसगढ़ में भी यदि कांग्रेस का ग्राफ बढ़ गया तो ये साबित हो जायेगा कि विधान चुनाव में जब भाजपा बनाम कांग्रेस का मुकाबला रहा तो लोकसभा में क्षेत्रीय दलों का हाशिये पर आना तय है.

लोकसभा का सेमीफाइनल कहे जा रहे पांच राज्यों के चुनावी नतीजों में, राहुल गांधी का पसीना रंग लाता है तो भी कांग्रेस को आगे की लड़ाई की कठिन चुनौती का सामना करना पड़ेगा. एक्जिट पोल के अनुमान ये जाहिर करते हैं कि भाजपा चंद महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में जबरदस्त एंटीइंकम्बेंसी के खतरों का नुकसान उठा सकती है.

पोल के अनुमान सही साबित होते हैं तो कांग्रेस अकेले ही भाजपा के खिलाफ माहौल का लाभ उठाने की कोशिश करेगी. इसलिए अब यूपी जैसे सूबे में तो कांग्रेस को दो ताकतों (भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन) से मुकाबला करना पड़ सकता है. भाजपा...

अरब कल्चर में युद्ध जीतने वाले हारने वालों का माल लूटते थे. इस माल को माले गनीमत कहा जाता था. जीतने वाले जब माले गनीमत पर लपकते थे तो कभी कभी आपस में भी इन्हें लड़ना पड़ता था. आगामी लोकसभा में अगर भाजपा के खिलाफ जबरदस्त एंटीइंकम्बेंसी रही तो इसका लाभ उठाने के लिए कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दल भी लपकेंगे. और इस छीना-झपटी में भाजपा विरोधी दलों का, आपस में भिड़ना भी तय है.

पांच राज्यों के चुनाव में अगर कांग्रेस को फायदा मिलता है तो ये राहुल गांधी के लिए कई मायनों में फायदेमंद होगा

11 दिसम्बर को आने वाले चुनावी नतीजों में एक्जिट पोल का पूर्वानुमान सही साबित हुआ तो कांग्रेस अपने बढ़ते ग्राफ के आत्मविश्वास के साथ नखरीले क्षेत्रीय दलों से किनारा कर सकती है. कांग्रेस छत्तीसगढ़ जीत भी गयी तो राहुल की छाती छप्पन की नहीं तो छत्तीस इंच की तो हो ही जायेगी. क्योंकि यहां इसकी लड़ाई न सिर्फ भाजपा से बल्कि जेसीसी और बसपा गठबंधन से भी थी. छत्तीसगढ़ में भी यदि कांग्रेस का ग्राफ बढ़ गया तो ये साबित हो जायेगा कि विधान चुनाव में जब भाजपा बनाम कांग्रेस का मुकाबला रहा तो लोकसभा में क्षेत्रीय दलों का हाशिये पर आना तय है.

लोकसभा का सेमीफाइनल कहे जा रहे पांच राज्यों के चुनावी नतीजों में, राहुल गांधी का पसीना रंग लाता है तो भी कांग्रेस को आगे की लड़ाई की कठिन चुनौती का सामना करना पड़ेगा. एक्जिट पोल के अनुमान ये जाहिर करते हैं कि भाजपा चंद महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में जबरदस्त एंटीइंकम्बेंसी के खतरों का नुकसान उठा सकती है.

पोल के अनुमान सही साबित होते हैं तो कांग्रेस अकेले ही भाजपा के खिलाफ माहौल का लाभ उठाने की कोशिश करेगी. इसलिए अब यूपी जैसे सूबे में तो कांग्रेस को दो ताकतों (भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन) से मुकाबला करना पड़ सकता है. भाजपा के खिलाफ संभावित गठबंधन में कांग्रेस अब सपा-बसपा का कोई भी नखरा ना उठाकर उत्तर प्रदेश में सभी सीटों से लोकसभा चुनाव लड़ सकती है.

माना जा रहा है कि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए संजीवनी हैं

गौरतलब है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में सीटों को लेकर कांग्रेस और बसपा-सपा का सामंजस्य न बनने से दोनों दलों में तल्खियां पैदा हो गई थीं. इन प्रदेशों में बसपा-सपा का प्रभाव बहुत कम था तब पार्टी प्रमुख मायावती कांग्रेस द्वारा दी जा रही कम सीटों पर नहीं मानीं. उत्तर प्रदेश बसपा-सपा का बेस है तो यहां कांग्रेस के लिए ज्यादा सीटें छोड़ने के लिए मायावती राजी नहीं होगी.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बयानों से ज़ाहिर होता है कि उन्होंने यूपी में गठबंधन की कमान मायावती के सुपुर्द कर दी है. वास्तविकता ये है कि सही मायने में भाजपा और कांग्रेस ही दो पार्टियां राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानी जाती हैं. माना जाता है कि विधानसभा में क्षेत्रीय दलों को वोट देने वाले भी दलों लोकसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशियों में से किसी एक को चुनते हैं.

छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में यदि कांग्रेस अकेले दम पर सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है तो वो यूपी में भी भाजपा की एंटीइंकम्बेंसी के लाभ पर कांग्रेस अकेले लपकने की कोशिश करेगी. अब कांग्रेस यूपी में वर्चस्व वाले क्षेत्रीय दल सपा-बसपा के साथ सामंजस्य बनाने का मोह त्यागकर यूपी में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने को अपना चुनौतीपूर्ण लक्ष्य मानेगी.

यूपी कांग्रेस के लिए इसलिए भी सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इस सूबे में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटे हैं. यहां गांधी परिवार का गढ़ भी है और सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लोकसभा क्षेत्र (अमेठी-रायबरेली) भी हैं. इसलिए अब उत्तर प्रदेश में बसपा-सपा के दबाव के आगे अब कांग्रेस घुटने ना टेक कर यूपी की सभी सीटों से चुनाव लड़ने का निर्णय ले सकती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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