• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

राज्यसभा में तीन तलाक बिल को फंसाकर कांग्रेस ने अपने लिए गड्ढा खोद लिया है

    • अरविंद जयतिलक
    • Updated: 11 जनवरी, 2018 06:58 PM
  • 11 जनवरी, 2018 06:58 PM
offline
यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने मुस्लिम महिलाओं के साथ छल किया है. 1985 में शाहबानो और अब तीन तलाक मामले में कांग्रेस ने फिर अपना पुराना रंग दिखा दिया है.

तीन तलाक विधेयक को राज्यसभा में फंसाकर आखिरकार कांग्रेस ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह मुस्लिम महिलाओं के हितों के विरुद्ध उन कट्टरपंथियों के साथ है जो महिलाओं को उनका हक देने को तैयार नहीं हैं. वरना कोई कारण नहीं कि लोकसभा में तीन तलाक के खिलाफ विधेयक पर मौन स्वीकृति देने के बाद राज्यसभा में रोड़े अटकाए. और इतना ही नहीं किस्म-किस्म के कुतर्कों के जरिए विधेयक में खामियां भी ढुंढे. वह भी तब, जब देश की सर्वोच्च अदालत पहले ही तीन तलाक को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन मान चुकी है.

कांग्रेस का यह तर्क पूर्णतः बेमानी है कि एक साथ तीन तलाक विरोधी कानून में तीन साल की कैद का प्रावधान अनुचित है और यह तीन तलाक पीड़ित महिलाओं के हित में भी नहीं है. यह कुतर्क कांग्रेस को उन कट्टरपंथियों की कतार में खड़ा करता है जो सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद भी अपने कुतर्कों के जरिए एक साथ तीन तलाक को जायज ठहराने पर आमादा हैं. कांग्रेस ने ऐसे कट्टरपंथियों से गलबहियां कर मुस्लिम महिलाओं को अधर में डाल दिया है.

तीन तलाक विधेयक को राज्यसभा में फंसाकर आखिरकार कांग्रेस ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह मुस्लिम महिलाओं के हितों के विरुद्ध उन कट्टरपंथियों के साथ है जो महिलाओं को उनका हक देने को तैयार नहीं हैं. वरना कोई कारण नहीं कि लोकसभा में तीन तलाक के खिलाफ विधेयक पर मौन स्वीकृति देने के बाद राज्यसभा में रोड़े अटकाए. और इतना ही नहीं किस्म-किस्म के कुतर्कों के जरिए विधेयक में खामियां भी ढुंढे. वह भी तब, जब देश की सर्वोच्च अदालत पहले ही तीन तलाक को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन मान चुकी है.

कांग्रेस का यह तर्क पूर्णतः बेमानी है कि एक साथ तीन तलाक विरोधी कानून में तीन साल की कैद का प्रावधान अनुचित है और यह तीन तलाक पीड़ित महिलाओं के हित में भी नहीं है. यह कुतर्क कांग्रेस को उन कट्टरपंथियों की कतार में खड़ा करता है जो सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद भी अपने कुतर्कों के जरिए एक साथ तीन तलाक को जायज ठहराने पर आमादा हैं. कांग्रेस ने ऐसे कट्टरपंथियों से गलबहियां कर मुस्लिम महिलाओं को अधर में डाल दिया है.

कांग्रेस ने जब लोकसभा में तीन तलाक का समर्थन किया था तो राज्यसभा में क्या दिक्कत थी?

कांग्रेस और विपक्षी दलों का यह तर्क ठीक नहीं कि सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद अब इस मसले पर कानून की जरुरत नहीं है. इससे साबित होता है कि कांग्रेस और विपक्षी दल हजारों साल से मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने और मुस्लिम महिलाओं को उनका हक देने को संजीदा नहीं हैं. अन्यथा कानून बनाने के खिलाफ नहीं होते. लेकिन एक बात जो उन्हें समझ में आनी चाहिए कि कानून बनाए बगैर समाज की कुरीतियों को खत्म नहीं किया जा सकता.

समाज में कुरीतियां कब परंपरा का रुप धारण कर लेती हैं यह समझना कठिन नहीं है. एक वक्त था जब सती प्रथा, बाल विवाह, दहेज और छुआछूत भी परंपरा का हिस्सा थे. लेकिन वास्तविक रुप में ये सामाजिक कुरीतियां ही थीं. इनके विरुद्ध जनजागरण अभियान चलाया गया. लेकिन अंततः कानून बनाकर ही इन बुराइयों से पार पाया जा सका है. अगर कानून नहीं बनता तो इन बुराईयों का अंत संभव नहीं था.

आज अगर कोई परंपरा की आड़ लेकर इन सामाजिक बुराईयों का समर्थन करता है तो दंडित किया जाता है और उसे जेल भी जाना पड़ता है. गौर करना होगा कि हिंदू समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव न हो और उनको उनका हक मिले इसके लिए 1956 में हिंदू विवाह कानून, उत्तराधिकार कानून, नाबालिग व अभिभावक कानून और गोद लेने व गुजारा भत्ता कानून लागू किया गया. लेकिन बिडंबना है कि मुस्लिम समदुाय को इस परिधि से बाहर रखा गया. आखिर क्यों? क्या मुस्लिम महिलाओं को उनका हक नहीं मिलना चाहिए? भला एक लोकतांत्रिक देश में दो तरह के कानून कैसे हो सकते हैं? जब हिंदू महिला के साथ नाइंसाफी पर उसका पति जेल जा सकता है और उसे दंडित किया जा सकता है, तो फिर मुस्लिम महिलाओं का हक छीनने वाले और एक साथ तीन तलाक देने वाले उनके पति को जेल क्यों नहीं जाना चाहिए?

कट्टरपंथियोंकट्टरपंथियों का साथ देकर कांग्रेस ने अपना इतिहास ही दोहरा दिया है

कांग्रेस और विपक्षी दलों का यह तर्क हास्यास्पद है कि दोषी के जेल जाने के बाद उसके परिवार का भरण-पोषण मुश्किल होगा और उसके लिए सरकार को एक फंड बनाना चाहिए. लेकिन कांग्रेस को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या इस तरह का फंड किसी अन्य समुदाय के लिए बना है? अगर नहीं तो फिर इस तरह का कुतर्क क्यों? फिर तो ऐसे जेल जाने वाले प्रत्येक गुनाहगार, हत्यारे और घोटालेबाज के परिवारों की भरण-पोषण की जिम्मेदारी सरकार को उठानी होगी.

जब दहेज और बाल विवाह के दोषियों के जेल जाने के बाद उनके परिवार के भरण-पोषण के लिए किसी तरह का फंड नहीं है तो फिर एक साथ तीन तलाक देने वाले गुनाहगारों के पक्ष में कांग्रेस और विपक्षी दल इस तरह का विचित्र कुतर्क गढ़ क्यों अपनी जग हंसाई करा रहे हैं? उन्हें ये पता होना चाहिए कि दुनिया के जिन इस्लामिक देशों में एक साथ तीन तलाक पर प्रतिबंध है, वहां भी इस तरह का कोई रियायती फंड नहीं बनाया गया है. सीरिया, ट्यूनिशिया, मोरक्को, पाकिस्तान, ईरान, बांग्लादेश तथा मध्य एशियाई गणतंत्र समेत अन्य कई मुस्लिम देशों में तो मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए और तीन तलाक के दुरुपयोग को रोकने के लिए वैयक्तिक विधि का संहिताकरण तक कर दिया गया है. फिर भारत जैसे लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष देश में इस दिशा में क्यों नहीं आगे बढ़ना चाहिए?

लेकिन जिस तरह कांग्रेस एवं विपक्षी दल परोक्ष रुप से तीन तलाक के पक्ष में कट्टरपंथियोंकट्टरपंथियों के साथ खड़े हुए हैं, वह बताता है कि इनका मकसद सिर्फ वोटों की राजनीति करना है. लेकिन कांग्रेस को समझना होगा कि विधेयक का विरोध करके भी वो अपना नुकसान ही कर रही है. देर-सबेर उसे इसका खामियाजा भुगतना होगा. कांग्रेस ने विधेयक का विरोध करके भाजपा को वार करने का मौका दे दिया है. अब भाजपा, कांग्रेस और विपक्षी दलों को मुस्लिम महिलाओं का विरोधी ठहराने से चूकने वाली नहीं है.

कठमुल्ले नहीं चाहते की महिलाओं को आजादी मिले

गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने मुस्लिम महिलाओं के साथ छल किया है. 1985 में भी जब शाहबानो का मामला उछला था तब भी मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए एक सख्त कानून की आवश्यकता महसूस की गयी थी. लेकिन तात्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस दिशा में पहल करने के बजाए अपने हाथ खड़े कर दिए थे. उल्लेखनीय है कि शाह बानो एक 62 वर्षीय मुसलमान महिला और 5 बच्चों की मां थी, जिन्हें 1978 में उनके पति ने तलाक दे दिया था. शाहबानो ने अपनी और अपने बच्चों की जीविका का कोई साधन न होने के कारण पति से गुजाराभत्ता लेने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने निर्देश दिया कि शाहबानो को निर्वाह-व्यय के समान जीविका दी जाए.

लेकिन इस फैसले के विरोध में मुस्लिम नेताओं ने ‘ऑल इंडिया पर्सनल बोर्ड’ नाम की एक संस्था बनायी और देश के सभी भागों में आंदोलन की धमकी दी. तात्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कम्युनिस्ट दल, कट्टरपंथियों के आगे झुक गए और अदालत के फैसले को पलट दिया. यही नहीं बड़ी बेशर्मी से कट्टरपंथियों की मांग मानते हुए इसे धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण कहा था.

मुस्लिम महिलाएं पर हार नहीं मानेंगी

गौर करें तो वोटयुक्ति के लिए कट्टरपंथियोंकट्टरपंथियों के आगे घुटने टेकना तथा देश व समाज हित को ताक पर रखना, कांग्रेस की रीति-नीति में शामिल रहा है. 2012 में कांग्रेस की सरकार ने कट्टरपंथियोंकट्टरपंथियों की धमकी पर सैटानिक वर्सेज के लेखक और बुकर पुरस्कार विजेता सलमान रश्दी को जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल में आने से रोक दिया था. उस लिटरेरी फेस्टिवल में सलमान रश्दी को ‘मिडनाइट चिल्ड्रेन पर बोलना था. यह तो महज एक उदाहरण भर है. इस तरह के कई अनगिनत उदाहरण और हैं जो कांग्रेस के चरित्र को लांक्षित करते हैं.

अच्छी बात यह है कि कांग्रेस के इस दोहरे चरित्र के बावजूद भी मुस्लिम महिलाएं और प्रगतिशील मुस्लिम समाज तीन तलाक के विरोध में तनकर खड़ा है.

ये भी पढ़ें-

शाहबानो से शायरा बानो तक तीन तलाक पर कितनी बदल गई कांग्रेस

ट्रिपल तलाक को बैन करवा कर इशरत ने मधुमक्खी के छत्ते पर हाथ मार लिया !


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲