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10 बिंदुओं में जानें तीन तलाक को क्रिमिनल बनाने के मायने

    • राहुल लाल
    • Updated: 29 दिसम्बर, 2017 03:06 PM
  • 29 दिसम्बर, 2017 03:06 PM
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एक साथ तीन तलाक को गैरकानूनी ठहराने वाला विधेयक गुरुवार को लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया. मुस्लिम समुदाय के लिए इसे मोदी सरकार की तरफ से एक बड़ी पहल माना जा रहा है.

मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की जंग सुप्रीम कोर्ट के बाद अब लोकसभा में भी जीत ली गई है. एक साथ तीन तलाक को गैरकानूनी ठहराने वाला विधेयक गुरुवार को लोकसभा से ध्वनिमत से पारित हो गया.1400 साल पुरानी प्रथा को खत्म करने के लिए बिल पारित करने में केवल 7 घंटे लगे. अब मंगलवार को इस बिल को राज्यसभा में पेश किए जाने की संभावना है. राज्यसभा में सरकार की असली परीक्षा होगी. दरअसल लोकसभा में सरकार के पास संख्या बल है, परंतु राज्यसभा में सरकार की स्थिति थोड़ी कमजोर है. लेकिन कांग्रेस के रूख को देखते हुए संभवतः राज्यसभा में भी इसे पारित कराने में ज्यादा कठिनाई न हो. सरकार के लिए यह एक बड़ी जीत होगी. आइये इस बिल के पास होने के मायने बिंदुवार समझते हैं :

इस फैसले को मोदी सरकार के एक बड़े फैसले के रूप में देखा जा रहा है

1- सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक झटके में दिए जाने वाले तीन तलाक को अमान्य -असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद भी इस तरह के मनमाने तलाक के मामले सामने आने के बाद उस पर कानून आवश्यक हो गया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी तीन तलाक के मामले सामने आने से यही प्रकट हो रहा है कि तलाक की इस मनमानी प्रथा ने बहुत गहरी जड़े जमा ली है. ऐसे में इस नए विधेयक के महत्व को समझा जा सकता है.

2- सरकार की ओर से पेश बिल पर एमआईएमआई ( AIMIM ) अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने तीन संशोधन पेश किए. ओवैसी का संशोधन जब ध्वनिमत से खारिज हो गया तब उन्होंने वोटिंग की माँग की. वोटिंग में ओवैसी के तीनों संशोधन लोकसभा में बुरी तरह खारिज हुए. ओवैसी के दोनों संशोधन के समर्थन में सिर्फ 2-2 वोट पड़े. ओवैसी के पहले एवं दूसरे  संशोधन के खिलाफ 241 वोट पड़े जबकि तीसरे संशोधन के खिलाफ भी 248 वोट पड़े. ओवैसी के तीसरे संशोधन के समर्थन में केवल एकमात्र...

मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की जंग सुप्रीम कोर्ट के बाद अब लोकसभा में भी जीत ली गई है. एक साथ तीन तलाक को गैरकानूनी ठहराने वाला विधेयक गुरुवार को लोकसभा से ध्वनिमत से पारित हो गया.1400 साल पुरानी प्रथा को खत्म करने के लिए बिल पारित करने में केवल 7 घंटे लगे. अब मंगलवार को इस बिल को राज्यसभा में पेश किए जाने की संभावना है. राज्यसभा में सरकार की असली परीक्षा होगी. दरअसल लोकसभा में सरकार के पास संख्या बल है, परंतु राज्यसभा में सरकार की स्थिति थोड़ी कमजोर है. लेकिन कांग्रेस के रूख को देखते हुए संभवतः राज्यसभा में भी इसे पारित कराने में ज्यादा कठिनाई न हो. सरकार के लिए यह एक बड़ी जीत होगी. आइये इस बिल के पास होने के मायने बिंदुवार समझते हैं :

इस फैसले को मोदी सरकार के एक बड़े फैसले के रूप में देखा जा रहा है

1- सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक झटके में दिए जाने वाले तीन तलाक को अमान्य -असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद भी इस तरह के मनमाने तलाक के मामले सामने आने के बाद उस पर कानून आवश्यक हो गया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी तीन तलाक के मामले सामने आने से यही प्रकट हो रहा है कि तलाक की इस मनमानी प्रथा ने बहुत गहरी जड़े जमा ली है. ऐसे में इस नए विधेयक के महत्व को समझा जा सकता है.

2- सरकार की ओर से पेश बिल पर एमआईएमआई ( AIMIM ) अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने तीन संशोधन पेश किए. ओवैसी का संशोधन जब ध्वनिमत से खारिज हो गया तब उन्होंने वोटिंग की माँग की. वोटिंग में ओवैसी के तीनों संशोधन लोकसभा में बुरी तरह खारिज हुए. ओवैसी के दोनों संशोधन के समर्थन में सिर्फ 2-2 वोट पड़े. ओवैसी के पहले एवं दूसरे  संशोधन के खिलाफ 241 वोट पड़े जबकि तीसरे संशोधन के खिलाफ भी 248 वोट पड़े. ओवैसी के तीसरे संशोधन के समर्थन में केवल एकमात्र वोट पड़ा, वह भी स्वयं ओवैसी का ही.

3- कांग्रेस ने बिल का विरोध नहीं किया, लेकिन इसमें सुधार के लिए इसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजने की माँग की है. लेकिन सरकार ने साफ कहा कि कांग्रेस को जो भी ऐतराज है, वो बहस में ही बताए. जो सुझाव सही होंगे, उन्हें स्वीकार कर लिया जाएगा.

4- मुस्लिम वुमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइटस ऑन मैरेज जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होगा. यह एक महत्वपूर्ण बिल है जिससे एक साथ तीन तलाक देने के खिलाफ सजा का प्रावधान होगा, जो मुस्लिम पुरुषों को एक साथ तीन तलाक कहने से रोकता है. ऐसे बहुत से मामले हैं, जिनमें मुस्लिम महिलाओं को फोन या सिर्फ एसएमएस या वाट्सएप के जरिए तीन तलाक दे दिया गया है.

5- इस बिल में तीन तलाक को दंडनीय अपराध का प्रस्ताव है. ये बिल तीन तलाक को संवैधानिक नैतिकता और लैंगिक समानता के खिलाफ मानता है. इस बिल के अनुसार दोषी पति को तीन वर्ष तक की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है. लेकिन जुर्माना कितना हो, यह फैसला केस की सुनवाई कर रहे न्यायधीश तय करेंगे.

कांग्रेस मोदी सरकार के इस बिल को स्टैंडिंग कमिटी के सामने भेजने की मांग कर रही है

6- विधेयक सिर्फ एक साथ तीन तलाक पर ही लागू होगा और इसमें पीढ़ित को यह अधिकार होगा कि वह मजिस्ट्रेट से गुजारिश कर अपने लिए और अपने नाबालिग बच्चे के लिए गुजारा भत्ते की मांग करे. इसके अलावा महिला मजिस्ट्रेट से अपना नाबालिग बच्चे को अपने पास रखने के लिए भी मांग कर सकती हैं. अंतिम फैसला मजिस्ट्रेट का ही होगा.

7- तीन तलाक का हर रूप चाहे वह लिखित हो या बोला गया हो या इलेक्ट्रोनिक रूप में हो, गैरकानूनी होगा.

8- सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को तीन तलाक को अवैध घोषित किया था. इसके बाद माना जा रहा था कि तीन तलाक पर रोक लगेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कोर्ट के फैसले के बाद करीब 100 मामले सामने आए हैं. उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मामले आए हैं. 2001 से 2011 के बीच मुस्लिम महिलाओं को तलाक देने में 40% की वृद्धि हुई थी.

9- निस्संदेह मनमाने तीन तलाक के खिलाफ कानून बन जाने मात्र से यह कुरीति समाप्त नहीं होगी. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि महिलाओं को असहाय बनाने वाले कुरीतियों को खत्म करने के लिए कानून का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए. अतीत में भी सती प्रथा, दहेज कुरीति और बाल विवाह के विरूद्ध कानून बनाए गए. इन कानूनों ने इन प्रथाओं पर रोक लगाने का काम किया तो इसमें भी महत्वपूर्ण कारण समाज की जागरूकता थी।इसलिए तीन तलाक वाले कानून के क्रियान्वयन के लिए मुस्लिम समाज में जागरूकता आवश्यक है.

10- बेहतर हो कि इस मामले में राजनीतिक और धार्मिक नेता सकारात्मक भूमिका निभाएं. उन्हें मुस्लिम समाज के उन महिलाओं से सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने तमाम मुसीबतों के बावजूद भी अपने हक की आवाज बुलंद की. यही कारण है कि ये महिलाएं अब आगे बहुविवाह और हलाला के खिलाफ अभियान चलाने के मूड में हैं.  

तीन तलाक कानून को लेकर आशंकाएं और सुझाव

इसी के साथ इस पर भी विचार होना चाहिए कि तीन तलाक के खिलाफ बनने जा रहे कानून कहीं आवश्यकता से अधिक कठोर तो नहीं और वांछित नतीजे मिलेंगे या नहीं? कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि पति के जेल चले जाने के बाद पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण की समस्या पैदा हो जाएगी. पति अगर नौकरी में हुआ तो जेल जाते ही वह बर्खास्त हो जाएगा और उसकी वेतन रुक जाएगी. अगर वह कारोबारी हुआ तो भी उसकी आमदनी पर असर पड़ेगा ऐसे में पीड़िता और उसके बच्चे का जीवन कैसे चलेगा? महिला पति की संपत्ति से गुजारा भत्ता ले सकती है या नहीं, इस बारे में प्रस्तावित कानून में कोई प्रावधान नहीं है.

इस मामले में तलाक अधिकार संरक्षण कानून, 1986 भी लागू नहीं होगा,क्योंकि वह तलाक के बाद की स्थिति में गुजारा भत्ते के लिए बनाया गया था. हां, महिला सीआरपीसी की धारा-125 के तहत भरण-पोषण के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है, लेकिन पति अगर जेल में होगा और उसकी आमदनी ही रुकी होगी तो वह गुजारा भत्ता कैसे देगा? दूसरी तरफ बुनियादी सवाल है कि सजा के खौफ के बिना फौरन तीन तलाक का सिलसिला रूकेगा कैसे? मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी पक्षों पर विचार होना चाहिए. बेहतर हो कि संसद की अंतिम मुहर लगने तक यह प्रस्तावित कानून ऐसे सवालों का समुचित जवाब देने में सक्षम हो जाए.

वास्तव में इस समस्या के समाधान के लिए मुस्लिम महिलाओं को कानूनी संबल के अतिरिक्त उनको आत्मनिर्भर बनाने के लिए विशिष्ट कदम उठाने की आवश्यकता है. इसके लिए सरकार को उनके उत्कृष्ट तालीम के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनाने हेतु कुछ विशेष योजनाओं को लागू करना चाहिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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