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बंगाल में ममता बनर्जी को कांग्रेस की राजनीतिक सीख

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 16 जनवरी, 2021 10:36 PM
  • 16 जनवरी, 2021 10:35 PM
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Congress नेता Adhir Ranjan का एक बयान सुर्खियों में है, जिसमें वह Mamata Banerjee को पार्टी खत्म करके Congress में शामिल हो जाने की सलाह दे रहे हैं. राजनीतिक गलियारों में हलचल है और माथापच्ची भी हो रही है कि आखिर किस आधार पर अधीर रंजन चौधरी ममता बनर्जी को कांग्रेस में वापिस लाना चाह रहे हैं.

West Bengal Elections जैसे-जैसे करीब आ रहा है वैसे-वैसे वहां की राजनीतिक गतिविधियां और बयानबाजी रफ्तार पकड़ रही है. पश्चिम बंगाल की सियासी लड़ाई की चर्चा पूरे देश में है. केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी पूरे दमखम के साथ ममता बनर्जी से लोहा ले रही है वहीं पश्चिम बंगाल में सीपीएम की दशकों पुरानी सत्ता को उखाड़ कर फेंक देने वाली ममता बनर्जी अपनी सत्ता को बचाने में लगी हुयी हैं. Mamata Banerjee को इस बीच उन्हीं की पार्टी के कई नेताओं ने इस राजनीतिक महायुद्ध में अकेला छोड़ दिया है. भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता समेत केंद्रीय नेता भी लगातार ममता बनर्जी पर हमलावर हैं. ममता बनर्जी को ऐसे समय में ज़रूरत है कुछ ऐसे साथियों की जो उनको मज़बूती प्रदान कर सकें और यह भरोसा दे सकें की भाजपा से लड़ाई में वह उनके साथ खड़े हुए हैं. इन साथियों की तलाश में जो सबसे पहला नाम सामने आता है वह है कांग्रेस पार्टी का, क्योंकि कांग्रेस पार्टी कभी नहीं चाहेगी कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की जीत का परचम बुलंद हो.

ममता बनर्जी और कांग्रेस पार्टी का संबंध गहरा है, ममता बनर्जी पहले कांग्रेस का ही हिस्सा थीं. 1 जनवरी, 1998 को ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस यानी टीएमसी का गठन किया था. टीएमसी को शून्य से शिखऱ तक का सफर ममता बनर्जी ने तय कराया. इस समय टीएमसी लोकसभा में देश की चौथी सबसे बड़ी पार्टी है. ममता बनर्जी को दीदी के नाम से जाना जाता है. सियासत के मैदान पर उनका एक अलग वर्चस्व है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ राहुल गांधी

वर्ष 1999 से 2001 तक वह एनडीए गठबंधन में शामिल रहीं तो वर्ष 2009 से 2012 तक वह यूपीए की सरकार में हिस्सा रहीं हैं. साल 2012 से ही वह थर्ड फ्रंट का...

West Bengal Elections जैसे-जैसे करीब आ रहा है वैसे-वैसे वहां की राजनीतिक गतिविधियां और बयानबाजी रफ्तार पकड़ रही है. पश्चिम बंगाल की सियासी लड़ाई की चर्चा पूरे देश में है. केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी पूरे दमखम के साथ ममता बनर्जी से लोहा ले रही है वहीं पश्चिम बंगाल में सीपीएम की दशकों पुरानी सत्ता को उखाड़ कर फेंक देने वाली ममता बनर्जी अपनी सत्ता को बचाने में लगी हुयी हैं. Mamata Banerjee को इस बीच उन्हीं की पार्टी के कई नेताओं ने इस राजनीतिक महायुद्ध में अकेला छोड़ दिया है. भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता समेत केंद्रीय नेता भी लगातार ममता बनर्जी पर हमलावर हैं. ममता बनर्जी को ऐसे समय में ज़रूरत है कुछ ऐसे साथियों की जो उनको मज़बूती प्रदान कर सकें और यह भरोसा दे सकें की भाजपा से लड़ाई में वह उनके साथ खड़े हुए हैं. इन साथियों की तलाश में जो सबसे पहला नाम सामने आता है वह है कांग्रेस पार्टी का, क्योंकि कांग्रेस पार्टी कभी नहीं चाहेगी कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की जीत का परचम बुलंद हो.

ममता बनर्जी और कांग्रेस पार्टी का संबंध गहरा है, ममता बनर्जी पहले कांग्रेस का ही हिस्सा थीं. 1 जनवरी, 1998 को ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस यानी टीएमसी का गठन किया था. टीएमसी को शून्य से शिखऱ तक का सफर ममता बनर्जी ने तय कराया. इस समय टीएमसी लोकसभा में देश की चौथी सबसे बड़ी पार्टी है. ममता बनर्जी को दीदी के नाम से जाना जाता है. सियासत के मैदान पर उनका एक अलग वर्चस्व है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ राहुल गांधी

वर्ष 1999 से 2001 तक वह एनडीए गठबंधन में शामिल रहीं तो वर्ष 2009 से 2012 तक वह यूपीए की सरकार में हिस्सा रहीं हैं. साल 2012 से ही वह थर्ड फ्रंट का हिस्सा हैं. साल 2014 में देश में मोदी लहर होने के बावजूद ममता बनर्जी अपना किला बचाने में कामयाब रहीं और साल 2016 के पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भी एक बार फिर से जीत का परचम लहराया था.

वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस के पास लोकसभा में 22 सीट और राज्यसभा में 13 सीट है. पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में से 213 सीटों पर ममता बनर्जी का कब्ज़ा है. साल 2016 में ही चुनाव आयोग ने टीएमसी को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता भी दे दिया है.तृणमूल कांग्रेस का पश्चिम बंगाल में अपना एक अलग वर्चस्व है जहां भाजपा और कांग्रेस पार्टी उनके मुकाबले कमजोर साबित होती आयी है और ममता बनर्जी का मुकाबल लेफ्ट से होता था.

लेकिन अब समय बदल चुका है, बंगाल की लड़ाई सीधे सीधे टीएमसी और भाजपा के बीच हो गई है. इसकी वजह ये है कि भाजपा जहां 2014 के लोकसभा चुनाव में 3 सीट हासिल कर पाई थी और साल 2016 के विधानसभा चुनाव में महज 2 सीट हासिल कर सकी थी उसने 2019 के लोकसभा चुनाव में ज़बरदस्त प्रदर्शन करते हुए लोकसभा की 18 सीटों पर कब्ज़ा जमा लिया था. वहीं टीएमसी इस चुनाव में 34 सीट से लुढ़ककर 22 सीटों पर आ गिरी थी.

भाजपा ने इसी जीत के फौरन बाद ही बंगाल में विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां तेज़ कर दी थी. भाजपा लगातार ममता बनर्जी को घेरते हुए नज़र आयी, खुद पार्टी के बड़े बड़े नेताओं ने बंगाल के दौरे पर दौरे किए. अब स्थिति यह आ गई है कि बंगाल में मुख्य मुकाबला भाजपा और टीएमसी के बीच हो गया है. इस चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट का ज़िक्र तक नहीं हो रहा है जोकि राज्य की सियासत में एतिहासिक बदलाव के तौर पर दर्ज होता दिखाई पड़ रहा है.

अब बात करते हैं कांग्रेस की, पश्चिम बंगाल कांग्रेस के एक बड़े नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी को कांग्रेस में वापसी की सलाह दे डाली है. आखिर उन्होंने ये सलाह क्यों दी है इसके पीछे का तर्क भी वही समझ सकते हैं क्योंकि ममता बनर्जी खासतौर पर बंगाल में ही कांग्रेस के मुकाबले बेहद मज़बूत हैं अब भला वह क्यों अपनी पार्टी को खत्म करके कांग्रेस में वापसी करेंगी.

अधीर रंजन चौधरी के बयानों की चर्चा हो रही है कि आखिर उनका इस बयान का मकसद क्या हो सकता है लेकिन किसी भी चर्चा में लोग एकमत नहीं हो पा रहे हैं और सारी कयासबाजी सिर्फ कयासों में ही सीमित रह जा रही है.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में कांग्रेस दिनबदिन कमज़ोर होती जा रही है. वह ममता बनर्जी के साथ में सरकार का हिस्सा भी रह चुकी है लेकिन उसका संगठन राज्य में कमजोर होता गया है और उसके सारे वोटबैंक को ममता बनर्जी ने अपनी झोली में डाल लिया है. ऐसे में सवाल बड़े हैं कि आखिर अधीर रंजन चौधरी किस आधार पर ममता बनर्जी को सियासत सिखाते हुए उन्हें कांग्रेस में वापसी की सलाह दे रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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