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Mayawati Birthday: यूपी की राजनीति में पहली हलचल मायावती के तेवर बदले हैं!

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 15 जनवरी, 2021 05:57 PM
  • 15 जनवरी, 2021 05:57 PM
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दलितों की मसीहा कहलायी जाने वाली बहन मायावती का जन्मदिन (Mayawati Birthday) है, अपने जन्मदिन के मौके पर मायावती ने जो ऐलान किये हैं उससे तो लगता है जैसे कि मायावती एक बहुत बड़ा प्लान तैयार कर रही हैं जिससे दलित और मुस्लिम वोट जादुई तरीके से उनकी झोली में आ गिरेगा.

दिन दिन की बात है, कभी उत्तर प्रदेश से लेकर केंद्र की सत्ता तक BSP Supremo Mayawati का वर्चस्व हुआ करता था. सियासत में एक बड़ा नाम था मायावती का, प्रधानमंत्री पद के सर्वे हुआ करते थे तो मायावती को पीएम उम्मीदवार के रूप में सामने रखा जाता था. मायावती दलितों की मसीहा कहलायी जाती थीं, राजनीति में उन्हें बहनजी का खिताब दिया गया है. मायावती एक ऐसी नेता के तौर पर पहचानी जाती हैं जो कहीं भी किसी भी विचारधारा के साथ आसानी के साथ फिट हो जाती हैं. वह यूपीए का हिस्सा रह चुकी हैं, कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ चुकी हैं और कांग्रेस की धुर विरोधी भाजपा के साथ भी, वह अपनी ही धुर विरोधी समाजवादी पार्टी के साथ भी चुनाव लड़ चुकी हैं. यानी किसी भी विचारधारा की पार्टी के साथ आराम से वह अपनी जगह खोज लेती हैं. आज मायावती का जन्मदिन है, मायावती का जन्मदिन जब कभी भी आता था तो बसपाइयों में एक जश्न का माहौल देखने को मिलता था.

मायावती का शुमार उन नेताओं में है जिन्होंने अपना जन्मदिन हमेशा ही वैभवशाली अंदाज में मनाया है

मायावती लखनऊ में होती थी और पूरे प्रदेश में ज़बरदस्त उत्साह के साथ उनका जन्मदिन मनाया जाता था. वक्त बदलता गया और मायावती का कद छोटा होता गया. अपने कद को बनाए रखने के लिए मायावती ने कई राजनीतिक दांवपेंच भी आज़माए लेकिन उन्हें सिर्फ और सिर्फ निराशा ही हाथ लगी. वर्ष 2012 में मुलायम सिंह यादव ने मायावती से एक बड़़े बहुमत के साथ मुख्यमंत्री पद की गद्दी छीन ली थी और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपने अखिलेश यादव को बिठा दिया था.

मायावती का कद उस वक्त बड़ा था क्योंकि वह केंद्र में बैठी यूपीए सरकार में हिस्सा थी. साल 2014 में लोकसभा के चुनाव हुए और इस चुनाव में मायावती की पार्टी का सूपड़ा ही साफ हो गया था. मायावती की...

दिन दिन की बात है, कभी उत्तर प्रदेश से लेकर केंद्र की सत्ता तक BSP Supremo Mayawati का वर्चस्व हुआ करता था. सियासत में एक बड़ा नाम था मायावती का, प्रधानमंत्री पद के सर्वे हुआ करते थे तो मायावती को पीएम उम्मीदवार के रूप में सामने रखा जाता था. मायावती दलितों की मसीहा कहलायी जाती थीं, राजनीति में उन्हें बहनजी का खिताब दिया गया है. मायावती एक ऐसी नेता के तौर पर पहचानी जाती हैं जो कहीं भी किसी भी विचारधारा के साथ आसानी के साथ फिट हो जाती हैं. वह यूपीए का हिस्सा रह चुकी हैं, कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ चुकी हैं और कांग्रेस की धुर विरोधी भाजपा के साथ भी, वह अपनी ही धुर विरोधी समाजवादी पार्टी के साथ भी चुनाव लड़ चुकी हैं. यानी किसी भी विचारधारा की पार्टी के साथ आराम से वह अपनी जगह खोज लेती हैं. आज मायावती का जन्मदिन है, मायावती का जन्मदिन जब कभी भी आता था तो बसपाइयों में एक जश्न का माहौल देखने को मिलता था.

मायावती का शुमार उन नेताओं में है जिन्होंने अपना जन्मदिन हमेशा ही वैभवशाली अंदाज में मनाया है

मायावती लखनऊ में होती थी और पूरे प्रदेश में ज़बरदस्त उत्साह के साथ उनका जन्मदिन मनाया जाता था. वक्त बदलता गया और मायावती का कद छोटा होता गया. अपने कद को बनाए रखने के लिए मायावती ने कई राजनीतिक दांवपेंच भी आज़माए लेकिन उन्हें सिर्फ और सिर्फ निराशा ही हाथ लगी. वर्ष 2012 में मुलायम सिंह यादव ने मायावती से एक बड़़े बहुमत के साथ मुख्यमंत्री पद की गद्दी छीन ली थी और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपने अखिलेश यादव को बिठा दिया था.

मायावती का कद उस वक्त बड़ा था क्योंकि वह केंद्र में बैठी यूपीए सरकार में हिस्सा थी. साल 2014 में लोकसभा के चुनाव हुए और इस चुनाव में मायावती की पार्टी का सूपड़ा ही साफ हो गया था. मायावती की पार्टी बसपा अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी. केंद्र में एनडीए की सरकार आ गई, मायावती उत्तर प्रदेश के बाद केन्द्र की सत्ता से भी बाहर हो गई थी.

ये मायावती का सबसे बुरा दौर था, उन्हें साल 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वापसी करने का पूरा भरोसा था. लेकिन मायावती की इस चुनाव में फिर से धज्जियां उड़ चुकी थी.उत्तर प्रदेश की कुल 403 विधानसभा सीटों में से बसपा केवल 19 सीट ही जीत सकी थी. लोकसभा चुनाव में क्लीन स्विप हो जाने के बाद विधानसभा चुनावों में फिसड्डी हो जाने से मायावती को तगड़ा झटका लग चुका था.

वह साल 2019 के चुनाव में किसी भी कीमत पर वापसी चाहती थी और इसकी तैयारी वह साल 2017 से ही करने में जुट गई थी जब उत्तर प्रदेश के सहारनपुर हिंसा के मामले में राज्यसभा में बहस की प्रक्रिया चल रही थी तो मायावती ने चर्चा के दौरान ही राज्यसभा में समय न मिल पाने का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे बैठी थीं.

अपने कार्यकाल पूरा होने के 8 महीने पहले ही इस्तीफा देकर मायावती ने साफ संकेत दे दिए थे कि वह अब पूरी तरह से 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए रणनीतियां तैयार करना चाहती हैं क्योंकि अगर इस चुनाव में भी मायावती फिसड्डी हुयी तो उनका राजनैतिक कैरियर दांव पर आ जाएगा और उनकी पार्टी बसपा का भविष्य अधर में गिर जाएगा.मायावती ने साल 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए कड़ी मेहनत करना शुरू कर दिया था और चुनाव के ऐन वक्त अपने धुर विरोधी सपा से गठबंधन में बंध गई थी.

इसे राजनीतिक मजबूरी ही कहा जाएगा हालांकि चुनाव हुए तो मायावती को इस गठबंधन से फायदा हुआ और वह 10 सीट जीत गईं वहीं उनकी साथी पार्टी सपा 5 के 5 ही सीट पर रह गई. इस गठबंधन का पूरा फायदा मायावती को मिला और उनकी पार्टी की थोड़ी बहुत ही सही लेकिन लाज तो बच ही गई.अब मायावती की नज़र वर्ष 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश के चुनाव पर है.

चुनाव में अभी समय है लेकिन मायावती ने जन्मदिन के मौके पर ही चुनावी बिगुल फूंक डाला है और कहा है कि उनकी सरकार अगर बनती है तो उत्तर प्रदेश में सभी को कोरोना की वैक्सीन फ्री लगाई जाएगी. मायावती ने केंद्र सरकार से जन्मदिन का गिफ्ट मांगते हुए किसानों की मांगें मान लेने का भी अनुरोध किया है. मायावती ने आगामी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विधानसभी चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान किया है यानी वह किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन में नहीं जाएगी.

अब जो दो महीने से चर्चा है कि मायावती और ओवैसी बिहार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी गठबंधन करके चुनाव लड़ेंगीं उसपर फिलहाल विराम लग चुका है. मायावती का उत्तर प्रदेश के चुनाव में अकेले जाना इस बात का संकेत है कि उन्हें एक बार फिर अपनी काबिलियत पर भरोसा है, उन्हें पूरी उम्मीद है कि जो वोटबैंक भाजपा ने बसपा से छीना है उसे मायावती अपनी ओर वापिस ला सकती हैं.

हालांकि अभी तक मायावती ने चुप्पी ही साधे रखा है और कोई भी पत्ते नहीं खोले हैं कि कैसे दलित व मुस्लिम वोटबैंक भाजपा या सपा के हाथ से बिखर कर मायावती की झोली में आएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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