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CAB: मुस्लिम शरणार्थियों के प्रति Owaisi का रवैया दोहरा है!

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 13 दिसम्बर, 2019 07:56 PM
  • 13 दिसम्बर, 2019 07:56 PM
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ओवैसी Citizenship Amendment Bill 2019 के खिलाफ हैं, क्योंकि मोदी सरकार (Modi Government) ने इसमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किया है. बता दें कि यही ओवैसी (Asaduddin Owaisi) बांग्लादेश की तस्लीमा नसरीन (Taslima Nasrin) का विरोध करते हैं, जबकि सरकार ने सिर्फ उनका वीजा बढ़ाया था.

विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill 2019) पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में पास हो गया है. अब इसे कानून की शक्ल लेने में बस कुछ ही वक्त और बाकी है. अगर किसी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर नहीं की तो जल्द ही ये कानून का शक्ल ले लेगा, वरना इसे कानून बनने में कुछ वक्त लग सकता है. वैसे अभी तक तो किसी ने नागरिकता संशोधन बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी है, लेकिन AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ये कह चुके हैं कि अगर जरूरत पड़ी तो वह इस बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे. अब जब लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ही ये पारित हो चुका है तो असदुद्दीन के सामने सुप्रीम कोर्ट वाली जरूरत आ ही गई है. अब इसे रोकने की आखिरी कोशिश वह सुप्रीम कोर्ट जाकर ही कर सकते हैं. बता दें कि लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पर बहस के बीच गुस्से में आकर ओवैसी ने बिल की कॉपी तक फाड़ दी थी.

किस मुंह से कर रहे हैं सभी मुस्लिमों को नागरिकता देने की मांग?

ओवैसी इस बिल के खिलाफ हैं कि धर्म के आधार पर इसे बनाया गया है और इसमें मुस्लिमों को जगह नहीं दी गई. उनका कहना है कि मोदी सरकार (Modi Government) भेदभाव कर रही है. सिर्फ कुछ चुनिंदा धर्मों को जगह दे रही है या यूं कहें कि एक चुनिंदा धर्म को जगह नहीं दे रही है. वैसे ओवैसी के मुंह से ये बात अच्छी नहीं लगती, क्योंकि एक मुस्लिम तसलीमा नसरीन (Taslima Nasrin) को तो भारत ने सिर्फ वीजा दिया और वह तिलमिला उठे, तो किस मुंह से वह सभी मुस्लिमों को भी नागरिकता देने की बात कर रहे हैं?

असदुद्दीन ओवैसी को एक बात तय कर लेनी चाहिए कि वह चाहते क्या हैं. क्या वह ये चाहते हैं कि सभी मुस्लिमों को भी इस बिल में शामिल किया जाए, या वो ये चाहते हैं कि उनकी पसंद के कुछ मुस्लिमों को भी इस बिल के तहत नागरिकता मिलनी चाहिए. क्योंकि वह रोहिंग्या मुसलमानों के लिए तो जान छिड़कते हैं, लेकिन वहीं तसलीमा नसरीन की जान लेने को ओतावले से...

विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill 2019) पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में पास हो गया है. अब इसे कानून की शक्ल लेने में बस कुछ ही वक्त और बाकी है. अगर किसी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर नहीं की तो जल्द ही ये कानून का शक्ल ले लेगा, वरना इसे कानून बनने में कुछ वक्त लग सकता है. वैसे अभी तक तो किसी ने नागरिकता संशोधन बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी है, लेकिन AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ये कह चुके हैं कि अगर जरूरत पड़ी तो वह इस बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे. अब जब लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ही ये पारित हो चुका है तो असदुद्दीन के सामने सुप्रीम कोर्ट वाली जरूरत आ ही गई है. अब इसे रोकने की आखिरी कोशिश वह सुप्रीम कोर्ट जाकर ही कर सकते हैं. बता दें कि लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पर बहस के बीच गुस्से में आकर ओवैसी ने बिल की कॉपी तक फाड़ दी थी.

किस मुंह से कर रहे हैं सभी मुस्लिमों को नागरिकता देने की मांग?

ओवैसी इस बिल के खिलाफ हैं कि धर्म के आधार पर इसे बनाया गया है और इसमें मुस्लिमों को जगह नहीं दी गई. उनका कहना है कि मोदी सरकार (Modi Government) भेदभाव कर रही है. सिर्फ कुछ चुनिंदा धर्मों को जगह दे रही है या यूं कहें कि एक चुनिंदा धर्म को जगह नहीं दे रही है. वैसे ओवैसी के मुंह से ये बात अच्छी नहीं लगती, क्योंकि एक मुस्लिम तसलीमा नसरीन (Taslima Nasrin) को तो भारत ने सिर्फ वीजा दिया और वह तिलमिला उठे, तो किस मुंह से वह सभी मुस्लिमों को भी नागरिकता देने की बात कर रहे हैं?

असदुद्दीन ओवैसी को एक बात तय कर लेनी चाहिए कि वह चाहते क्या हैं. क्या वह ये चाहते हैं कि सभी मुस्लिमों को भी इस बिल में शामिल किया जाए, या वो ये चाहते हैं कि उनकी पसंद के कुछ मुस्लिमों को भी इस बिल के तहत नागरिकता मिलनी चाहिए. क्योंकि वह रोहिंग्या मुसलमानों के लिए तो जान छिड़कते हैं, लेकिन वहीं तसलीमा नसरीन की जान लेने को ओतावले से दिखते हैं. जो ओवैसी मोदी सरकार पर सेलेक्टिव होने का आरोप लगा रहे हैं, वह खुद भी तो सेलेक्टिव ही हैं. आखिर तसलीमा नसरीन भी तो रोहिंग्याओं की तरह एक मुस्लिम ही हैं.

असदुद्दीन ओवैसी नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ जिस बात को लेकर हैं, उसी पर अमल नहीं करते.

तस्लीमा से नफरत, रोहिंग्या से प्यार!

बात करीब दो साल पहले जुलाई 2017 की है. कुछ समय पहले ही भारत सरकार ने तस्लीमा नरसीन का वीजा बढ़ाया था. इसी दौरान तस्लीमा नरसीन औरंगाबाद गई थीं, जहां पर AIMIM नेता इम्तियाज जलील ने पहले तो एयरपोर्ट के बाहर उनके विरोध में 'तस्लीमा वापस जाओ' के नारे लगाए और फिर उस होटल के बाहर भी नारे लगाए, जहां वह रुकने वाली थीं. कानून व्यवस्था ना बिगड़े इसलिए पुलिस कमिश्नर ने भी तस्लीमा से वापस जाने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने मान भी लिया. बता दें कि इम्तियाज जलील औरंगाबाद सेंट्रल से विधायक थे. उनका कहना था कि तस्लीमा नसरीन के लेखों ने दुनिया भर के मुस्लिमों की भावनाओं को आहत किया है. बता दें कि तस्लीमा नसरीन बांग्लादेश की लेखिका हैं, जो वहां से भागी हुई हैं क्योंकि वहां उनकी जान को खतरा है. मौजूदा समय में वह स्वीडन की नागरिक हैं, लेकिन 2004 से वह लगातार भारत में ही रह रही हैं और हर बार उनका वीजा बढ़ा दिया जाता है.

जहां एक ओर तस्लीमा नसरीन से पूरी AIMIM पार्टी ही नफरत करती है, वहीं रोहिंग्या मुसलमानों के लिए उनका प्यार काफी बढ़ चुका है. इतना अधिक कि ओवैसी ये भी कह चुके हैं कि अगर तस्लीमा नरसीन पीएम मोदी की बहन हो सकती हैं तो रोहिंग्या मुसलमान उनके भाई क्यों नहीं हो सकते?

एक ओर तो ओवैसी नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में हैं. उसकी कॉपी तक को भरे सदन में फाड़ दे रहे हैं. आखिर क्यों, क्योंकि मुस्लिमों को नागिरकता संशोधन बिल में शामिल नहीं किया गया है? कहां के मुस्लिम? पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के ना...? भारत के मुस्लिमों को तो इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है. तो आखिर ओवैसी दूसरे देशों के मुसलमानों के लिए इतना क्यों परेशान हो रहे हैं? और परेशान हो भी रहे हैं तो उसमें भी अपनी पसंद के क्यों? अगर वह खुद को मुसलमानों का हिमायती मानते ही हैं तो भेदभाव किस बात का? ओवैसी को पहले ये तय कर लेना चाहिए कि वह चाहते क्या हैं और ये भी साफ कर देना चाहिए कि उनके हिसाब से मुस्लिम कौन हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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