• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

Citizenship Amendment Bill नतीजा है नेहरू-लियाकत समझौता की नाकामी का

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 11 दिसम्बर, 2019 05:41 PM
  • 11 दिसम्बर, 2019 05:41 PM
offline
अमित शाह ने नागरिकता संशोधन बिल 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019) का बचाव करते हुए संसद में कहा कि नेहरू-लियाकत (Nehru-Liaquat pact) समझौता फेल साबित हुआ. अगर इस समझौते को पाकिस्तान (Pakistan) ने माना होता तो आज इस बिल की जरूरत नहीं पड़ती.

अमित शाह (Amit Shah) ने विपक्ष के उन दावों को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें आरोप लगाए जा रहे थे कि नागरिकता संशोधन बिल 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019) मुस्लिमों के खिलाफ भेदभाव वाला विधेयक है. संसद में कई मौकों पर अमित शाह अपनी बात को मजबूती देने के लिए नेहरू-लियाकत समझौते का जिक्र कर चुके हैं. अमित शाह ने कहा- नेहरू-लियाकत (Nehru-Liaquat pact) समझौता फेल साबित हुआ. अगर इस समझौते को पाकिस्तान (Pakistan) ने माना होता तो आज इस बिल की जरूरत नहीं पड़ती. बता दें कि लियाकत अली खान उस वक्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली में 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते को नेहरू-लियाकत समझौते के नाम से ही जाना जाता है.

दिल्ली में 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.

पहले समझिए कैसे नेहरू लियाकत समझौते को पाकिस्तान ने खुद धूल में मिलाया-

भारत में अल्पसंख्यक बढ़े

भारत में 1951 की जनगणना के मुताबिक देश की कुल आबादी 36.1 करोड़ थी, जिसमें 30.3 करोड़ यानी करीब 85 फीसदी आबादी हिंदू थी. इसके अलावा 3.54 करोड़ यानी करीब 1 फीसदी आबादी मुस्लिम थी और बाकी की 14 फीसदी आबादी ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन आदि थे. वहीं अगर अब देखें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की कुल आबादी करीब 99.60 करोड़ हो गई, जिसमें 79.8% हिंदू हैं, बाकी अल्पसंख्यक हैं. इनमें भी 14.2 फीसदी मुस्लिम हैं, बाकी 6% ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन आदि हैं. यानी एक बात तो साफ है कि हिंदुओं और अन्य धर्मों की आबादी का प्रतिशत कम हुआ है, जबकि मुस्लिमों का तेजी से बढ़ा है.

पोल खुलने के डर से पाकिस्तान ने जारी नहीं किए आंकड़े

1951 में पाकिस्तान में...

अमित शाह (Amit Shah) ने विपक्ष के उन दावों को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें आरोप लगाए जा रहे थे कि नागरिकता संशोधन बिल 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019) मुस्लिमों के खिलाफ भेदभाव वाला विधेयक है. संसद में कई मौकों पर अमित शाह अपनी बात को मजबूती देने के लिए नेहरू-लियाकत समझौते का जिक्र कर चुके हैं. अमित शाह ने कहा- नेहरू-लियाकत (Nehru-Liaquat pact) समझौता फेल साबित हुआ. अगर इस समझौते को पाकिस्तान (Pakistan) ने माना होता तो आज इस बिल की जरूरत नहीं पड़ती. बता दें कि लियाकत अली खान उस वक्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली में 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते को नेहरू-लियाकत समझौते के नाम से ही जाना जाता है.

दिल्ली में 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.

पहले समझिए कैसे नेहरू लियाकत समझौते को पाकिस्तान ने खुद धूल में मिलाया-

भारत में अल्पसंख्यक बढ़े

भारत में 1951 की जनगणना के मुताबिक देश की कुल आबादी 36.1 करोड़ थी, जिसमें 30.3 करोड़ यानी करीब 85 फीसदी आबादी हिंदू थी. इसके अलावा 3.54 करोड़ यानी करीब 1 फीसदी आबादी मुस्लिम थी और बाकी की 14 फीसदी आबादी ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन आदि थे. वहीं अगर अब देखें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की कुल आबादी करीब 99.60 करोड़ हो गई, जिसमें 79.8% हिंदू हैं, बाकी अल्पसंख्यक हैं. इनमें भी 14.2 फीसदी मुस्लिम हैं, बाकी 6% ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन आदि हैं. यानी एक बात तो साफ है कि हिंदुओं और अन्य धर्मों की आबादी का प्रतिशत कम हुआ है, जबकि मुस्लिमों का तेजी से बढ़ा है.

पोल खुलने के डर से पाकिस्तान ने जारी नहीं किए आंकड़े

1951 में पाकिस्तान में अल्संख्यकों की कुल आबादी 23 फीसदी थी. बता दें कि उस वक्त के पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) थे. बता दें कि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बन गया था, जिसमें 78 फीसदी मुस्लिम थे और 22 फीसदी अल्पसंख्यक. 1971 में पाकिस्तान में 1.6 फीसदी अल्पसंख्यक थे. बता दें कि 1951 में भी पाकिस्तान में 1.6 फीसदी अल्पसंख्य ही थे.

2017 की जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान की कुल आबादी 20.7 करोड़ है. हालांकि, पाकिस्तान ने धर्म के आधार पर आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन 1998 की जनगणना के मुताबिक देश में 96.3 फीसदी मुस्लिम हैं यानी बाकी के 3.7 फीसदी अल्पसंख्यक हैं. यूं लग रहा है 2017 के आंकड़े धर्म के आधार पर पाकिस्तान किसी डर से जारी नहीं कर रहा है.

बांग्लादेश में तेजी से घटे अल्पसंख्यक

1971 में बांग्लादेश में 22 फीसदी अल्पसंख्यक थे, जबकि आज की तारीख में वहां करीब 9.6 फीसदी अल्पसंख्यक हैं. बाकी की 90.4 फीसदी आबादी मुस्लिम है. यानी 4 दशकों में बांग्लादेश में अल्संख्यकों की आबादी में करीब 12 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. इसकी सबसे बड़ी वजह है माइग्रेशन. बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता है तो वह चुपके से भारत में घुसपैठ कर लेते हैं. बांग्लादेश की सीमा से सटे इलाकों में घुसपैठियों की संख्या काफी अधिक हो चुकी है.

यह एग्रीमेंट तब साइन किया गया था जब अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे थे और दोनों देशों से लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे. उसी दौरान पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) में हिंदुओं का नरसंहार होने लगा था. इसी तरह पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों को दौड़ा-दौड़ाकर मारा जाने लगा था. भारत और पाकिस्तान के बीच के रिश्ते पहले ही पाकिस्तान की ओर से जम्मू-कश्मीर में हो रही घुसपैठ की वजह से खराब हो चुके थे. उस समय पाकिस्तान में हिंदुओं, सिखों, जैनों और बौद्धों को मारा जाने लगा और भारत में मुस्लिमों को काटा जाने लगा. इसकी वजह से शरणार्थियों का एक बड़ा संकट सामने आ गया था.

बता दें, नेहरू और लियाकत ने बातचीत का रास्ता अपनाया था और 1950 में ये समझौता किया. नेहरू लियाकत समझौते के तहत-

- शरणार्थियों को बिना किसी परेशानी के वापस लौटने की इजाजत होगी, ताकि वह अपनी प्रॉपर्टी का निपटारा कर सकें.

- अगवा की गई महिलाएं और लूटा गया सामान वापस दिया जाएगा.

- जबरन धर्म परिवर्तन मान्य नहीं होगा.

- अल्पसंख्यकों को अधिकारी तय किए जाएंगे.

नेहरू-लियाकत समझौते की पूरी कॉपी यहां पढ़ें

इसका नतीजा ये हुआ कि दोनों देशों में अल्पसंख्यक कमीशन बनाए गए, ताकि नेहरू-लियाकत समझौते को लागू किया जा सके. यह वही नेहरू-लियाकत समझौता था, जिस पर हस्ताक्षर होने से महज दो दिन पहले ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था. मुखर्जी ने बाद में भारतीय जन संघ की स्थापना की, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी. हालांकि, नेहरू-लियाकत समझौते ने अपना उद्देश्य पूरा किया या नहीं, ये आज भी बहस का विषय है. नेहरू-लियाकत समझौते पर हस्ताक्षर होने के बावजूद कई महीनों तक पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं का नरसंहार और पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों की हत्या होती रही.

अगस्त 1966 में जन संघ लनेता निरंजन वर्मा ने विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह से तीन सवाल पूछे थे, जो ये थे-

1- नेहरू-लियाकत समझौते की स्थिति अभी क्या है, जो 1950 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ था?

2- क्या अभी भी दोनों देश उसी समझौते के हिसाब से काम कर रहे हैं?

3- पाकिस्तान कब से (किस सन् से) इस समझौते का उल्लंघन कर रहा है?

इसके जवाब में सरदार स्वर्ण सिंह ने कहा था- 1950 का नेहरू-लियाकत समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच हमेशा चलने वाले समझौता है. हर देश को ये सुनिश्चित करना जरूरी है कि वहां के अल्पसंख्यकों को नागरिकता का बराबर का अधिकार मिल रहा है और उनके साथ भी वैसा ही बर्ताव हो रहा है, जैसा देश के बाकी लोगों के साथ होता है.

राज्य सभा के सवाल और जवाब आप यहां पढ़ सकते हैं.

दूसरे सवाल के जवाब में स्वर्ण सिंह बोले- जहां एक ओर भारत में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकार का पूरा ध्यान रखा गया है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान लगातार इस समझौते का उल्लंघन करता आ रहा है और अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जा रहा है.

और तीसरे सवाल का जवाब अमित शाह के दावे को बढ़ाने वाला था कि नेहरू-लियाकत समझौता फेल हो गया है. स्वर्ण सिंह ने कहा- पाकिस्तान की तरफ से इस समझौते का उल्लंघन समझौता होने के कुछ ही समय बाद से शुरू हो गया था.

धारा 370 पर निरंजन वर्मा के सवाल का जवाब देते हुए स्वर्ण सिंह ने कहा था- जहां तक मुझे याद है मुझे नहीं लगता कि नेहरू-लियाकत समझौते में कश्मीर को लेकर कुछ भी कहा गया था.

नागरिकता संशोधन बिल का बचाव करते हुए अमित शाह ने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों ही बंटवारे के बाद अपने देशों के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने में नाकाम साबित हुए हैं. उन्होंने दावा किया कि नरेंद्र मोदी सरकार इस ऐतिहासिक भूल को सुधारने का काम कर रही है और इसी के तहत इन देशों के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने की पहल की जा रही है.

ये भी पढ़ें-

Citizenship Amendment Bill 2019: सभी जरूरी बातें, और विवादित पहलू

उद्धव सरकार के अस्तित्व पर टिकी है मोदी के खिलाफ पवार की अगली उम्मीद!

CAB: क्‍या वाकई अफगानिस्‍तान के साथ लगती है भारत की सीमा, जानिए...


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲