• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

नागरिकता बिल पर JDU-शिवसेना जो भी स्टैंड लें - फायदा BJP को ही होगा

    • आईचौक
    • Updated: 11 दिसम्बर, 2019 07:10 PM
  • 11 दिसम्बर, 2019 07:10 PM
offline
नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Ammendment Bill) पर उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) का यू-टर्न और नीतीश कुमार का खुला सपोर्ट आखिरकार बीजेपी को ही फायदा पहुंचाने वाला है. अमित शाह (Amit Shah) इसे पहले ही भांप चुके थे.

राजनीति में सारे फैसले तात्कालिक फायदे के लिए नहीं लिये जाते हैं - कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं जो फौरी तौर पर किसी के लिए नुकसानदेह तो किसी और के लिए फायदेमंद लगती हैं. नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Ammendment Bill) पर हो रहे राजनीतिक फैसले भी दूरगामी नतीजों के हिसाब से तय किये जा रहे हैं.

Citizenship Ammendment Bill को लेकर पहले जेडीयू और शिवसेना दोनों ही का एक ही स्टैंड रहा. लोक सभा में दोनों ही दलों ने मोदी सरकार के इस प्रस्ताव का पूरा सपोर्ट किया. ऐसा तब भी किया जब दोनों ही के राजनीतिक समीकरण पहले जैसे नहीं रहे. जेडीयू तो एनडीए में ही है, लेकिन शिवसेना एनडीए छोड़ कर महाविकास अघाड़ी का हिस्सा बन चुकी है, जिसकी महाराष्ट्र में सरकार है और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हैं.

बिल पर अपडेट ये है कि कांग्रेस नेतृत्व के दबाव में शिवसेना ने कदम पीछे खींच लिये हैं. जेडीयू के स्टैंड में भी बदलाव साफ नजर आ रहा है, तीन तलाक और धारा 370 को लेकर विरोध जता चुकी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने नागरिकता संशोधन बिल का खुला सपोर्ट किया है.

शिवसेना और जेडीयू दोनों ही दलों ने अपने अपने फायदे के हिसाब से ये कदम उठाया है, लेकिन थोड़ा आगे बढ़ कर सोचें तो इन फैसलों का सीधा फायदा बीजेपी उठाने वाली है - आज न सही, लेकिन कल तो पक्का है.

ताकि उद्धव भी नीतीश को फॉलो करें

नागरिकता संशोधन बिल को कैबिनेट की मंजूरी मिलते ही, संजय राउत ने ये कहते हुए सपोर्ट की घोषणा की थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर शिवसेना केंद्र में किसी की भी सरकार हो सपोर्ट करेगी. शिवसेना प्रमुख के एक सेक्युलर सरकार का मुख्यमंत्री होने के बावजूद संजय राउत का ये बयान थोड़ा अजीब लगा - लेकिन बयान में राजनैतिक साहस भी दिखा. मगर, ये साहस हवा के बुलबुले की तरह रूख बदलते...

राजनीति में सारे फैसले तात्कालिक फायदे के लिए नहीं लिये जाते हैं - कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं जो फौरी तौर पर किसी के लिए नुकसानदेह तो किसी और के लिए फायदेमंद लगती हैं. नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Ammendment Bill) पर हो रहे राजनीतिक फैसले भी दूरगामी नतीजों के हिसाब से तय किये जा रहे हैं.

Citizenship Ammendment Bill को लेकर पहले जेडीयू और शिवसेना दोनों ही का एक ही स्टैंड रहा. लोक सभा में दोनों ही दलों ने मोदी सरकार के इस प्रस्ताव का पूरा सपोर्ट किया. ऐसा तब भी किया जब दोनों ही के राजनीतिक समीकरण पहले जैसे नहीं रहे. जेडीयू तो एनडीए में ही है, लेकिन शिवसेना एनडीए छोड़ कर महाविकास अघाड़ी का हिस्सा बन चुकी है, जिसकी महाराष्ट्र में सरकार है और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हैं.

बिल पर अपडेट ये है कि कांग्रेस नेतृत्व के दबाव में शिवसेना ने कदम पीछे खींच लिये हैं. जेडीयू के स्टैंड में भी बदलाव साफ नजर आ रहा है, तीन तलाक और धारा 370 को लेकर विरोध जता चुकी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने नागरिकता संशोधन बिल का खुला सपोर्ट किया है.

शिवसेना और जेडीयू दोनों ही दलों ने अपने अपने फायदे के हिसाब से ये कदम उठाया है, लेकिन थोड़ा आगे बढ़ कर सोचें तो इन फैसलों का सीधा फायदा बीजेपी उठाने वाली है - आज न सही, लेकिन कल तो पक्का है.

ताकि उद्धव भी नीतीश को फॉलो करें

नागरिकता संशोधन बिल को कैबिनेट की मंजूरी मिलते ही, संजय राउत ने ये कहते हुए सपोर्ट की घोषणा की थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर शिवसेना केंद्र में किसी की भी सरकार हो सपोर्ट करेगी. शिवसेना प्रमुख के एक सेक्युलर सरकार का मुख्यमंत्री होने के बावजूद संजय राउत का ये बयान थोड़ा अजीब लगा - लेकिन बयान में राजनैतिक साहस भी दिखा. मगर, ये साहस हवा के बुलबुले की तरह रूख बदलते ही हवा हवाई हो गया.

लोक सभा में सपोर्ट के बावजूद शिवसेना ने कदम पीछे खींच लिये. बताते हैं कांग्रेस नेतृत्व ने शिवसेना प्रमुख को संदेश भिजवाया कि एक सूबे की सत्ता में कुछ मंत्रालय इतने भी महत्वपूर्ण नहीं हैं, गठबंधन छोड़ते देर नहीं लगेगी. बिलकुल सीधा और साफ संदेश है - सरकार चलानी है तो सेक्युलर बने रहो.

ज्यादा देर भी नहीं लगी, उद्धव ठाकरे को भी अपने यू-टर्न को सही ठहराने के लिए कुछ तो कहना ही था, 'जब तक चीजें स्पष्ट नहीं हो जाती, हम बिल का समर्थन नहीं करेंगे. अगर कोई भी नागरिक बिल की वजह से डरा हुआ है तो उनका संदेह दूर होना चाहिए. वे भी हमारे नागरिक हैं, इसलिए उनके सवालों के भी जवाब दिए जाने चाहिए.'

उद्धव ठाकरे और नीतीश कुमार दोनों अमित शाह की राजनीति में उलझ गये हैं - आगे खतरनाक मोड़ भी है!

उद्धव ठाकरे के बाद संजय राउत ने फिर मोर्चा संभाला, ट्विटर पर समझाने लगे - जो हुआ उसे भूल जाइए. फिर संजय राउत को टैग करते हुए एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक ने भी टिप्पणी की. संजय राउत की शेरो-शायरी को कॉम्प्लीमेंट देते हुए नवाब मलिक रोमांटिक गाने गुनगुनाने लगे हैं - 'धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना है...'

राज्य सभा में शिवसेना के बदले रूख से भी बहुत फर्क नहीं पड़ने वाला है, नागरिकता संशोधन बिल को बीजेपी ने बहुत सोच समझ कर इसी सत्र में लाया है - और बिल के निशाने पर आम-अवाम से थोड़ा आगे बढ़ कर देखें तो सियासी तबके पर सबसे ज्यादा असर होने वाला है. असर को संसद में और बाहर राजनीतिक दलों की छटपटाहट के जरिये आसानी से समझा जा सकता है.

सोनिया गांधी और राहुल गांधी का दबाव बीजेपी को समझ में आ चुका है. संभव है बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पहले ही इस बात का अंदाजा लगा लिया हो. बीजेपी को मालूम है कि उद्धव ठाकरे के लिए कांग्रेस नेतृत्व वैसा ही माहौल तैयार कर रहा है जैसा कभी महागठबंधन में आरजेडी नेता लालू प्रसाद और उनके साथी नीतीश कुमार के लिए कर रहे थे - फिर तो नतीजे भी वैसे हो सकते हैं!

कांग्रेस की वजह से घुटन ज्यादा होने पर उद्धव ठाकरे भी देर सवेर नीतीश कुमार की ही राह पकड़ेंगे, तय मान कर चलना चाहिये. शिवसेना के लिए धर्मनिरपेक्षता की राह पकड़नी मुश्किल है. अगर वो धर्म निरपेक्षता की राह पकड़ती है तो उसे एनसीपी और कुछ हद तक कांग्रेस से चुनौती मिलने लगेगी - जब राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों के आधार पर वोटों का बंटवारा होगा तो बीजेपी शिवसेना के हिस्से के वोट भी बटोर लेगी - ऐसे में शिवसेना के लिए यही ठीक रहेगा कि वो बीजेपी के साथ फिर से लौट आये. बिलकुल वैसे ही जैसे नीतीश कुमार ने 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हरा कर मोदी-शाह से 2014 का बदला ले लिया था, उद्धव ठाकरे भी मुख्यमंत्री बन कर अपनी मन वाली कर ही चुके हैं - फिर तो घुटन के नाम पर बीजेपी से दोबारा हाथ मिलाने में कोई संकोच भी नहीं रहेगा.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी का ताजा बयान इसी पॉलिटिकल लाइन को आगे बढ़ा रहा है, 'छोटे मुद्दों पर लड़ने की जगह बेहतर है कि कुछ बातों को बर्दाश्त किया जाये. जिन मुद्दों को आप दृढ़ता के साथ महसूस करते हैं, उसे साझा करना अच्छा है. अगर दोनों दल साथ में काम करते हैं तो ये दोनों के लिए बेहतर होगा.'

मनोहर जोशी वही बात कह रहे हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह सोच कर बैठे हैं. जोशी ये तस्वीर भी साफ कर देते हैं, 'ऐसा नहीं है कि शिवसेना अब कभी भी बीजेपी के साथ नहीं जाएगी. उद्धव ठाकरे सही समय पर सही निर्णय लेंगे.'

नीतीश कुमार भी आगे की ही सोच रहे हैं

ऊपर से भले न लग रहा हो, लेकिन नीतीश कुमार ने भी यू-टर्न ही लिया है. ये यू-टर्न राजनीतिक समीकरण के साथ साथ सामाजिक समीकरणों में में नये सिरे से फिट होने की वजह लगती है.

जरा सोचिये. तीन तलाक और फिर धारा 370 पर विरोध करने वाले नीतीश कुमार ने नागरिकता संशोधन बिल पर ऐसा कोई दिखावा भी नहीं किया है. हां, प्रशांत किशोर और पवन के. वर्मा जैसे जेडीयू के कुछ नेताओं ने बगावती स्वर जरूर बुलंद करने की कोशिश की है. वैसे ये अभी बाद में पता चलेगा कि ये उनकी निजी राय है या नीतीश कुमार की रणनीति का कोई हिस्सा. गौर करने वाली बात ये भी है कि न तो किसी ने इन नेताओं के बयान को खारिज किया है, न सपोर्ट ही किया है. प्रशांत किशोर को लेकर अगर किसी ने रिएक्शन दिया है तो वो हैं बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल. संजय जायसवाल ने प्रशांत किशोर को राजनीति का कारोबारी बताया है.

2015 के चुनाव में बिहार का फॉरवर्ड क्लास नीतीश कुमार से बहुत नाराज रहा - क्योंकि जेडीयू नेता ने लालू प्रसाद से हाथ मिलाकर महागठबंधन कर लिया था. करीब डेढ़ साल के भीतर ही नीतीश कुमार ने पाला बदल कर बीजेपी के साथ एनडीए में फिर से आकर मैसेज दिया - और लोक सभा चुनाव की मोदी लहर में उसका पूरा फायदा भी उठाया. लेकिन उपचुनावों में नीतीश कुमार को काफी निराशा हाथ लगी है, जबकि माना जाता है कि उपचुनावों के नतीजे सूबे के सत्ताधारी दल या गठबंधन के हिस्से में ही जाते हैं.

चाहे वो तीन तलाक हो या धारा 370, नीतीश कुमार अल्पसंख्यक वोटों के चलते दूरी बनाने की कोशिश करते रहे हैं. 2014 के आम चुनाव के बाद एनडीए छोड़ने की कई वजहों में से एक ये माना जाता है. आगे से ऐसा नहीं होने वाला है.

जेडीयू सूत्रों के हवाले से इकनॉमिक टाइम्स ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसके मुताबिक पार्टी ने काफी सोच समझ कर ये जोखिम उठाया है. दरअसल, जेटीयू नेतृत्व को तय करना था कि वो अल्पसंख्यक वोटों के लिए एक छोर पर अकेले खड़े होकर राजनीति करें और सवर्ण तबके की नाराजगी झेलते रहें - या वक्त की नजाकत समझें और नये सिरे से आगे बढ़ें. जेडीयू नेतृत्व को लगने लगा था कि तमाम कोशिशों के बावजूद मुस्लिम समुदाय का झुकाव आरजेडी की ही तरफ रह रहा है और पार्टी को वैसा फायदा नहीं मिल पा रहा है.

रिपोर्ट में एक जेडीयू नेता की बात काफी महत्वपूर्ण लगती है, 'हां, हम कुछ मुस्लिम वोटर खो देंगे. हालांकि, ये देखना भी दिलचस्प होगा कि इससे हमें बिहार में उच्च जाति के कितने वोट मिलेंगे.'

फिलहाल नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे जो भी कर रहे हैं उसका सीधा फायदा एक दिन बीजेपी को ही मिलना है. उद्धव ठाकरे तो लौटेंगे ही, नीतीश कुमार जो बीच बीच में महागठबंधन को लेकर ललचाये लगते हैं - उनके सामने भी बीजेपी के साथ बने रहने के अलावा शायद ही कोई विकल्प बचे.

इन्हें भी पढ़ें :

Citizenship Amendment Bill को 'कुछ शब्दों' में समेटना राहुल की गंभीरता दर्शाता है!

CAB: क्‍या वाकई अफगानिस्‍तान के साथ लगती है भारत की सीमा, जानिए...

Citizenship Amendment Bill 2019: सभी जरूरी बातें, और विवादित पहलू



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲