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चिदंबरम ने 'फरार' होकर अपने साथ कांग्रेस को भी लपेट लिया

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 21 अगस्त, 2019 05:35 PM
  • 21 अगस्त, 2019 05:35 PM
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P. Chidambaram के केस में राजनीतिक तौर पर जो कुछ भी हो रहा है वो साफ है. मुद्दा ये भी नहीं कि मामला राजनीतिक है या कानूनी? सबसे बड़ा सवाल है कि जिस शख्स का कानून से इतना गहरा रिश्ता हो वो सामने क्यों नहीं आया?

INX media case में P. Chidambaram का गिरफ्तार होना या न हो पाना, उतना अहम नहीं लगता. अहम बात ये है कि वो कहीं भूमिगत हो गये हैं. जिस किसी पर भी आरोप लगता है और अगर वो CBI और ED जैसी जांच एजेंसियों से भागता नजर आता है तो उसके बारे में ऐसी ही धारणा बनती है. हालांकि, चिदंबरम के वकील, साथी नेता और समर्थक इस बात से इंकार कर रहे हैं कि वो कहीं छुपे हुए हैं या भागते फिर रहे हैं.

सारी कवायद अपनी जगह, कानून और राजनीति भी अपनी अपनी जगह - लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर पी. चिदंबरम ऐसा व्यवहार करके खुद अपने और कांग्रेस के बारे में देश की जनता को क्या मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं?

सत्ता के गलियारे का 'बदलापुर'

कांग्रेस चिदंबरम के खिलाफ जांच एजेंसियों के एक साथ इस तरीके से झपट पड़ने को सियासत के 'बदलापुर' का रंग देने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस यही समझाने की कोशिश कर रही है कि चिदंबरम के खिलाफ मामला कानूनी कम और राजनीतिक ज्यादा है - ये एक मौजूदा गृह मंत्री के एक पूर्व गृह मंत्री के खिलाफ बदले की कार्रवाई है. कांग्रेस की इस थ्योरी को समझें तो गुजरात के सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में इस ताजा सियासी शह-मात की नींव पड़ी लगती है.

पी. चिदंबरम 29 नवंबर, 2008 से 31 जुलाई 2012 तक केंद्र सरकार में गृह मंत्री थे. 25 जुलाई 2010 को सीबीआई ने अमित शाह को गिरफ्तार किया था और फिर जेल भेज दिया था. यही वो वजह है जिसे आधार बनाकर कांग्रेस बीजेपी सरकार पर 'बदलापुर' आरोप लगा रही है - क्योंकि अब अमित शाह देश के गृह मंत्री बन चुके हैं. अमित शाह तो पहले ही इस केस में बरी हो चुके थे - और हाल फिलहाल तो अदालत ने केस के सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट से लेकर मीडिया और सोशल मीडिया तक - हर जगह कांग्रेस पार्टी पी. चिदंबरम के बचाव में लामबंद होकर मोर्चे पर डट गयी है. चिदंबरम के खिलाफ जांच एजेंसियों की सक्रियता पर सवाल तो राहुल गांधी ने भी उठाया है, लेकिन सबसे पहले प्रियंका गांधी वाड्रा मैदान में उतरीं.

INX media case में P. Chidambaram का गिरफ्तार होना या न हो पाना, उतना अहम नहीं लगता. अहम बात ये है कि वो कहीं भूमिगत हो गये हैं. जिस किसी पर भी आरोप लगता है और अगर वो CBI और ED जैसी जांच एजेंसियों से भागता नजर आता है तो उसके बारे में ऐसी ही धारणा बनती है. हालांकि, चिदंबरम के वकील, साथी नेता और समर्थक इस बात से इंकार कर रहे हैं कि वो कहीं छुपे हुए हैं या भागते फिर रहे हैं.

सारी कवायद अपनी जगह, कानून और राजनीति भी अपनी अपनी जगह - लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर पी. चिदंबरम ऐसा व्यवहार करके खुद अपने और कांग्रेस के बारे में देश की जनता को क्या मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं?

सत्ता के गलियारे का 'बदलापुर'

कांग्रेस चिदंबरम के खिलाफ जांच एजेंसियों के एक साथ इस तरीके से झपट पड़ने को सियासत के 'बदलापुर' का रंग देने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस यही समझाने की कोशिश कर रही है कि चिदंबरम के खिलाफ मामला कानूनी कम और राजनीतिक ज्यादा है - ये एक मौजूदा गृह मंत्री के एक पूर्व गृह मंत्री के खिलाफ बदले की कार्रवाई है. कांग्रेस की इस थ्योरी को समझें तो गुजरात के सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में इस ताजा सियासी शह-मात की नींव पड़ी लगती है.

पी. चिदंबरम 29 नवंबर, 2008 से 31 जुलाई 2012 तक केंद्र सरकार में गृह मंत्री थे. 25 जुलाई 2010 को सीबीआई ने अमित शाह को गिरफ्तार किया था और फिर जेल भेज दिया था. यही वो वजह है जिसे आधार बनाकर कांग्रेस बीजेपी सरकार पर 'बदलापुर' आरोप लगा रही है - क्योंकि अब अमित शाह देश के गृह मंत्री बन चुके हैं. अमित शाह तो पहले ही इस केस में बरी हो चुके थे - और हाल फिलहाल तो अदालत ने केस के सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट से लेकर मीडिया और सोशल मीडिया तक - हर जगह कांग्रेस पार्टी पी. चिदंबरम के बचाव में लामबंद होकर मोर्चे पर डट गयी है. चिदंबरम के खिलाफ जांच एजेंसियों की सक्रियता पर सवाल तो राहुल गांधी ने भी उठाया है, लेकिन सबसे पहले प्रियंका गांधी वाड्रा मैदान में उतरीं.

देखा जाये तो प्रियंका गांधी वाड्रा ने पी. चिंदबरम का वैसे ही सपोर्ट किया है जैसे वो रॉबर्ट वाड्रा के साथ खड़ी रही हैं. संयोग से दोनों मामलों में जांच एजेंसी ED ही है. एक में परिवार के साथ, दूसरे में पार्टी के साथ. परिवार और पार्टी साथ साथ.

कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह ने पूरे प्रकरण को लेकर सवाल उठाते हुए पूछा कि आखिर ये सब बीजेपी विरोधियों के साथ क्यों होता है और भगवा ओढ़ते ही सारे केस क्यों खत्म हो जाते हैं?

सबूत कितने दमदार हैं?

जांच एजेंसियों से बचने के लिए पी. चिदंबरम अब तक दिल्ली हाई कोर्ट की मदद लेते रहे हैं. 25 जुलाई, 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट ने चिदंबरम को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी थी - और उसे एक्सटेंशन मिलता गया.

जब चिदंबरम एजेंसियों के हाथ नहीं लगे तो, उनके वकील ने ज्यादा तैयारी के साथ दलील पेश की और हत्या के एक मामले में गिरफ्तार इंद्राणी मुखर्जी का इकबालिया बयान भी. ये बयान ही चिदंबरम के खिलाफ केस को मजबूत बना रहा है.

24 पेज के फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने चिदंबरम को मनी लॉन्ड्रिंग के INX मीडिया केस में 'किंगपिन' यानी 'मुख्य साजिशकर्ता' माना है - और इसी के चलते उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो गयी है.

राहुल गांधी चाहते तो पी. चिदंबरम को मिसाल बना सकते थे...

ये मामला INX मीडिया समूह को 305 करोड़ रुपये के विदेशी फंड लेने के लिए मंजूरी देने में अनियमितता का है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक ED के चार्जशीट में लिखा है, 'इंद्राणी मुखर्जी ने जांच अधिकारियों को बताया कि चिदंबरम ने FIPB मंज़ूरी के बदले अपने बेटे कार्ती चिदंबरम को विदेशी धन के मामले में मदद करने की बात कही थी.' FIPB, फॉरेन इनवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड को कहते हैं.

INX मीडिया की पूर्व डायरेक्टर इंद्राणी मुखर्जी ने जांच के दौरान पूछताछ में बताया कि कार्ती चिदंबरम ने पैसों की मांग की थी और ये सौदा दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में तय हुआ था.

इंद्राणी मुखर्जी अपनी बेटी शीना बोरा की हत्या के आरोप में जेल में हैं. दिल्ली की एक अदालत ने इंद्राणी मुखर्जी को INX केस में एप्रूवर बनने की इजाजत दे दी है. ऐसी सूरत में इंद्राणी मुखर्जी को सही और सारी जानकारी देने के बदले माफी मिल सकती है.

इंद्राणी मुखर्जी का यही बयान चिदंबरम के खिलाफ ठोस सबूत माना जा रहा है और यही इस केस की कमजोर कड़ी है. बचाव पक्ष इसी बात को आधार बनाकर दलील पेश करेगा कि एजेंसियों ने दबाव बना कर और माफी दिलाने के नाम पर बयान दर्ज कराया है - देखना होगा अदालत ऐसी दलीलों को कितना तवज्जो देती है?

चिदंबरम को डर किस बात का है?

पी. चिदंबरम का बचाव करते हुए कांग्रेस नेता और सीनियर वकील अश्विनी कुमार पूछते हैं - 'कानून की किस किताब में लिखा है कि अगर किसी की अग्रिम जमानत खारिज हो गयी हो तो उसे घर में ही रहना चाहिये? वो व्यक्ति अपने वकील के पास गया हो सकता है - किसी सोशल फंक्शन में गया हो सकता है!'

बिलकुल ठीक बात है - लेकिन ये दलील तो कोई भी वकील अपने मुवक्किल के बचाव में दे सकता है. वकील का मुवक्किल कोई बड़ा अपराधी भी हो सकता है. अगर किसी संगीन जुर्म को लेकर किसी आरोपी की जांच एजेंसियों को तलाश होती तो भी कोई भी वकील यही दलील देता.

पी. चिदंबरम का केस बिलकुल अलग है, आरोप जो भी हों. जितने भी गंभीर हों. चिदंबरम के खिलाफ केस में अदालत की जो भी टिप्पणी हो. ये तो मानना ही पड़ेगा कि पी. चिदंबरम कोई आम आरोपी नहीं हैं - बल्कि, केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए भ्रष्टाचार का आरोप लगा है. क्या चिदंबरम को देश की न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है?

पी. चिदंबरम केंद्र सरकार में गृह मंत्री रह चुके हैं, फिलहाल कांग्रेस के राज्य सभा सांसद हैं और पेशे से वकील हैं. हाई कोर्ट से चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद CBI और ED के अफसर उनकी गिरफ्तारी के लिए उनके घर तक पहुंचे लेकिन नहीं मिलने पर खाली हाथ लौट आये. बाद में दरवाजे पर नोटिस चिपका दिया गया. गिरफ्तारी से बचाने के लिए चिदंबरम के वकीलों की ओर से SLP यानी स्पेशल लीव पेटिशन दायर कर हाई कोर्ट के आदेश से राहत देने की मांग की है.

CBI और उसके बाद ED सुप्रीम कोर्ट में कैविएट फाइल की है. ये एजेंसियां चाहती हैं कि उनका पक्ष जाने बिना सुप्रीम कोर्ट इस केस में कोई फैसला न सुनाये.

बेशक, किसी को इस बात से भी इंकार नहीं हो सकता कि चिदंबरम की ओर से जो भी कानूनी मदद लेने की कोशिश की जा रही है, वो उनका हक है - लेकिन क्या सार्वजनिक जीवन में एक लंबा अरसा बिताने के बाद चिदंबर की ओर से ऐसे ही व्यवहार की अपेक्षा की जानी चाहिये?

अच्छा तो ये होता कि पी. चिदंबरम CBI और ED अफसरों के साथ चले गये होते. जांच में आगे भी वैसे ही सहयोग करते जैसे अब तक करते आ रहे थे. जो कुछ भी होता सरेआम होता. आखिर तमाम कोशिशों के बाद भी वो बेटे कार्ती चिदंबरम को भी गिरफ्तार होने से तो बचा नहीं पाये थे. फिर डर किस बात का?

चिदंबरम को तो वो सारी चीजें मालूम ही होंगी कि जांच एजेंसियां किस हद तक पूछताछ में जा सकती हैं - और ये भी मालूम ही होगा कि बगैर उस प्रक्रिया से गुजरे जांच एजेंसियों से पीछा भी नहीं छूटने वाला - जब तक कि उनके काम में राजनीतिक दखलंदाजी न हो. हो सकता है कि जांच एजेंसियां चिदंबरम के साथ वैसा व्यवहार करतीं जिसके लिए उनके पूछताछ का तौर-तरीका 'कुख्यात' है. वैसे इस तरीके से उनके बेटे भी गुजर ही चुके हैं.

अगर चिदंबरम को यकीन है कि वो बेकसूर ही नहीं बल्कि कानूनी तौर पर भी उनके खिलाफ केस में दम नहीं है, फिर तो कोई बात ही नहीं. जैसे ए. राजा को मालूम था कि उनके खिलाफ केस कितने दिन टिकेगा - फिर उसी के हिसाब से उन्होंने तैयारी की. इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायण जानते थे कि वो बेकसूर हैं और वो 25 साल बाद बरी हुए कि नहीं हुए. ये सारी बातें पी. चिदंबरम तो किसी भी आम शख्स से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से जानते होंगे. सारी बातों के बावजूद ये नहीं समझ आ रहा कि आखिर पी. चिदंबरम को डर किस बात का लग रहा है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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