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UP Assembly Elections 2022: चंद्रशेखर आजाद रावण की तीन बातें, तीनों विरोधाभासी...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 19 जनवरी, 2022 03:48 PM
  • 19 जनवरी, 2022 03:44 PM
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भले ही अभी बीते दिनों चंद्रशेखर रावण ने ये कहकर यूपी की सियासी सरगर्मियां तेज कर दी हों कि उनकी पार्टी अकेली ही उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections 2022) लड़ेगी. मगर जैसा रुख रावण का रहा है न केवल उनकी बातों में गहरा विरोधाभास है बल्कि उनकी कथनी और करनी में भी एक बड़ा अंतर हमें दिखाई देता है.

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. मुख्य मुकाबला भाजपा बनाम समाजवादी पार्टी है. कतार में प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस भी है और बसपा एवं पार्टी सुप्रीमो मायावती इस चुनावी चौपड़ से गायब हैं. मायावती और उत्तर प्रदेश के परिदृश्य में ये कहना गलत नहीं है कि यूपी चुनाव में बसपा से ज्यादा सक्रियता छोटे दल दिखा रहे हैं. जिक्र जब छोटे दलों का हुआ है तो आजाद समाज पार्टी और चंद्रशेखर आजाद रावण का जिक्र स्वतः ही हो जाएगा. भले ही सपा भाजपा द्वारा चंद्रशेखर रावण को वोट कटवा की भूमिका में देखा जा रहा हो लेकिन चंद्रशेखर रावण पर बात करना इसलिए भी जरूरी है कि रावण उस वैक्यूम को भरने की कोशिश कर रहे हैं जो यूपी की राजनीति से मायावती के गायब होने के बाद दलितों और छोटी जातियों में आया है.

रावण मौजदा वक़्त में खुद को दलितों और शोषितों का रॉबिन हुड समझ रहे हैं लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क यही है कि, आजाद समाज पार्टी उत्तर प्रदेश चुनावों में तुरुप का इक्का साबित हो. अभी मुश्किल है.

जैसी बातें हैं और जैसा रवैया है खासी गफलत में नजर आ रहे हैं आजाद समाज पार्टी मुखिया चंद्रशेखर आजाद रावण

भले ही अभी बीते दिनों चंद्रशेखर रावण ने ये कहकर यूपी की सियासी सरगर्मियां तेज कर दी हों कि उनकी पार्टी अकेली ही उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़ेगी. मगर जैसा रुख रावण का रहा है न केवल उनकी बातों में गहरा विरोधाभास है बल्कि उनकी कथनी और करनी में भी एक बड़ा अंतर हमें दिखाई देता है.

भारत एक लोकतंत्र है. ये एक लोकतंत्र के रूप में भारत की खूबसूरती ही है कि यहां कोई भी चुनाव लड़कर सत्ता परिवर्तन कर सकता है. जिक्र चूंकि रावण का हुआ है तो जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं कि एक बड़ा विरोधाभास है जो हमें चंद्रशेखर रावण की...

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. मुख्य मुकाबला भाजपा बनाम समाजवादी पार्टी है. कतार में प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस भी है और बसपा एवं पार्टी सुप्रीमो मायावती इस चुनावी चौपड़ से गायब हैं. मायावती और उत्तर प्रदेश के परिदृश्य में ये कहना गलत नहीं है कि यूपी चुनाव में बसपा से ज्यादा सक्रियता छोटे दल दिखा रहे हैं. जिक्र जब छोटे दलों का हुआ है तो आजाद समाज पार्टी और चंद्रशेखर आजाद रावण का जिक्र स्वतः ही हो जाएगा. भले ही सपा भाजपा द्वारा चंद्रशेखर रावण को वोट कटवा की भूमिका में देखा जा रहा हो लेकिन चंद्रशेखर रावण पर बात करना इसलिए भी जरूरी है कि रावण उस वैक्यूम को भरने की कोशिश कर रहे हैं जो यूपी की राजनीति से मायावती के गायब होने के बाद दलितों और छोटी जातियों में आया है.

रावण मौजदा वक़्त में खुद को दलितों और शोषितों का रॉबिन हुड समझ रहे हैं लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क यही है कि, आजाद समाज पार्टी उत्तर प्रदेश चुनावों में तुरुप का इक्का साबित हो. अभी मुश्किल है.

जैसी बातें हैं और जैसा रवैया है खासी गफलत में नजर आ रहे हैं आजाद समाज पार्टी मुखिया चंद्रशेखर आजाद रावण

भले ही अभी बीते दिनों चंद्रशेखर रावण ने ये कहकर यूपी की सियासी सरगर्मियां तेज कर दी हों कि उनकी पार्टी अकेली ही उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़ेगी. मगर जैसा रुख रावण का रहा है न केवल उनकी बातों में गहरा विरोधाभास है बल्कि उनकी कथनी और करनी में भी एक बड़ा अंतर हमें दिखाई देता है.

भारत एक लोकतंत्र है. ये एक लोकतंत्र के रूप में भारत की खूबसूरती ही है कि यहां कोई भी चुनाव लड़कर सत्ता परिवर्तन कर सकता है. जिक्र चूंकि रावण का हुआ है तो जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं कि एक बड़ा विरोधाभास है जो हमें चंद्रशेखर रावण की बातों में दिखाई दे रहा है तो ये यूं ही नहीं है. इस कथन के पीछे हमारे पास पर्याप्त कारण हैं.

तो आइये नज़र डालें उन कारणों पर जो हमें बताएंगे कि आखिर कैसे एक पार्टी प्रमुख के रूप में खुद चंद्रशेखर रावण खासी गफ़लत में हैं.

यूपी में अकेले चुनाव लड़ेंगे

जैसा कि हम ऊपर ही बता चुके हैं अभी बीते दिन ही चंद्रशेखर रावण ने ये घोषणा की है कि अउनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में अकेले ही चुनाव लड़ेगी. साथ ही उन्होंने विधायक या मंत्री बनने की बात को भी खारिज किया था. रावण ने कहा था मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में उनका एकमात्र उद्देश्य भाजपा के विजय रथ को रोकना या ये कहें कि भाजपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता से बेदखल करना है.

रावण ने इस बात का भी जिक्र किया था कि उन्हें अपने व्यक्तिगत लाभ की कोई चिंता नहीं है. इसके अलावा उन्होंने उन यातनाओं का भी जिक्र किया जो उन्हें उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने दी.

रावण का मानना है कि यदि विपक्ष के एकजुट न होने के कारण भाजपा दोबारा सत्ता में आती है तो इससे किसी व्यक्ति विशेष का नहीं बल्कि सबका नुकसान होगा.

कांग्रेस से बात भी चल रही है

यहां तक रावण की बातें ठीक थीं. लेकिन हमारे सहयोगी आजतक द्वारा ये पूछे जाने पर की क्या वो कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकते हैं? रावण ने जो जवाब दिया वो हैरत में डालने वाला था. रावण का कहना था कि गठबंधन के लिए उनकी कांग्रेस से बात चल रही है और वो जल्द ही कुछ बड़ी घोषणाएं करेंगे.

सवाल ये है कि जहां एक तरफ रावण और उनका दल यानी कि आजाद समाज पार्टी अकेले चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं. वहीं उनका ये कहना कि कांग्रेस से बात हुई है और जल्द ही कुछ बड़े फैसले लिए जा सकते हैं उनका असली चाल, चरित्र और चेहरा दर्शा रहा है.

बसपा से बात की, लेकिन मायावती ने सुनी नहीं.

जैसा कि हम ऊपर ही इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि आजाद समाज पार्टी चीफ चंद्रशेखर रावण खुद को दलितों, शोषितों और पिछड़ी जातियों का रॉबिन हुड समझ रहे हैं और साथ ही उस वैक्यूम को भरने की लगातार कोशिश कर रहे हैं जो मायावती के जाने के बाद इन जातियों के बीच आया है.

ऐसे में रावण का ये कहना कि उन्होंने बसपा से बात तो की लेकिन मायावती ने उनकी एक न सुनी खुद-ब-खुद सभी सवालों के जवाब दे दे रहा है. सिर्फ सूबे की ही नहीं, देश की राजनीति के संदर्भ में भी बात करें तो मायावती न तो अपरिपक्व हैं न ही उन्होंने कच्ची गोलियां खेली हैं.

मायावती को अपने वोटबैंक और रावण के कद दोनों पर पूरा भरोसा है. मायावती भी इस बात को जानती हैं कि रावण थाली के वो बैगन हैं जो किसी भी वक़्त कहीं भी लुड़क सकते हैं.

रावण के प्रति मायावती की भी ये सोच यूं ही नहीं है. मायावती रावण को सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात करते देख चुकी हैं. सपा और आजाद समाज पार्टी की उस मुलाकात के क्या नतीजे निकले? अलग अलग दलों की तरफ रावण की दौड़ धूप के रूप में हमारे सामने है.

उपरोक्त कारण यूपी के सन्दर्भ में रावण की नीयत बताने के लिए काफी हैं. तस्दीख हो जाती है कि यूपी की राजनीति में चंद्रशेखर रावण की एंट्री खेल जीतने के लिए नहीं बल्कि खेल को बिगाड़ने के लिए है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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