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अपर्णा अगर बीजेपी में जाती हैं तो अखिलेश यादव के लिए शिवपाल जितनी अहम नहीं

    • आईचौक
    • Updated: 17 जनवरी, 2022 08:23 PM
  • 17 जनवरी, 2022 08:23 PM
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अपर्णा यादव (Aparna Yadav) और शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) में बहुत बड़ा फर्क है - और ये अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को तय करना है कि वो अपर्णा को लेकर क्या सोचते हैं - और उनको बीजेपी ज्वाइन करने से रोकने की कोशिश करते भी हैं या नहीं.

अपर्णा यादव (Aparna Yadav) को लेकर बड़ी चर्चा है कि बीजेपी से उनकी बातचीत करीब करीब फाइनल हो चुकी है. ये चर्चा कोई पहली बार नहीं हो रही है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भी अपर्णा यादव को लेकर ऐसे कयास लगाये जाते रहे. जब तक कि लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर उनका नामांकन दाखिल नहीं हो गया.

असल में चुनावों से तीन-चार महीने पहले ही अपर्णा यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान सेल्फी ली थी. अपर्णा की सेल्फी को लेकर कयास लगाये जाने लगे कि वो समाजवादी पार्टी छोड़ सकती हैं. वैसे भी तब समाजवादी पार्टी में झगड़ा चल रहा था. अखिलेश यादव और शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) तब आमने सामने हुआ करते थे - और अपर्णा यादव तब शिवपाल यादव के पक्ष में खड़ी नजर आ रही थीं.

अपर्णा यादव से जब उनकी सेल्फी को लेकर सवाल पूछे जाने लगे तो वो ही पूछ बैठीं, ‘इसमें गलत क्‍या है?’ ऊपर से दलील भी देने लगीं कि उनके ससुर यानी मुलायम सिंह यादव ने भी तो प्रधानमंत्री मोदी के साथ फोटो खिंचवाई ही थी.

हाल ही में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू की पोती के शादी समारोह में मुलायम सिंह यादव और संघ प्रमुख मोहन भागवत की एक साथ सोफे पर बैठी तस्वीर वायरल हुई थी - और कांग्रेस की तरफ से टिप्पणी भी आ गयी - "नई सपा" में 'स' का मतलब 'संघवाद' है?

अपर्णा यादव को लेकर फिलहाल ये चर्चा इसलिए भी गंभीर लगती हैं क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य सहित बीजेपी विधायकों के पार्टी छोड़ने में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की ही भूमिका है - और बीजेपी के भीतर बदले की आग पहले से ही धधक रही है.

अमित शाह के यूपी दौरे में क्या क्या होने वाला है

जब अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष हुआ...

अपर्णा यादव (Aparna Yadav) को लेकर बड़ी चर्चा है कि बीजेपी से उनकी बातचीत करीब करीब फाइनल हो चुकी है. ये चर्चा कोई पहली बार नहीं हो रही है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भी अपर्णा यादव को लेकर ऐसे कयास लगाये जाते रहे. जब तक कि लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर उनका नामांकन दाखिल नहीं हो गया.

असल में चुनावों से तीन-चार महीने पहले ही अपर्णा यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान सेल्फी ली थी. अपर्णा की सेल्फी को लेकर कयास लगाये जाने लगे कि वो समाजवादी पार्टी छोड़ सकती हैं. वैसे भी तब समाजवादी पार्टी में झगड़ा चल रहा था. अखिलेश यादव और शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) तब आमने सामने हुआ करते थे - और अपर्णा यादव तब शिवपाल यादव के पक्ष में खड़ी नजर आ रही थीं.

अपर्णा यादव से जब उनकी सेल्फी को लेकर सवाल पूछे जाने लगे तो वो ही पूछ बैठीं, ‘इसमें गलत क्‍या है?’ ऊपर से दलील भी देने लगीं कि उनके ससुर यानी मुलायम सिंह यादव ने भी तो प्रधानमंत्री मोदी के साथ फोटो खिंचवाई ही थी.

हाल ही में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू की पोती के शादी समारोह में मुलायम सिंह यादव और संघ प्रमुख मोहन भागवत की एक साथ सोफे पर बैठी तस्वीर वायरल हुई थी - और कांग्रेस की तरफ से टिप्पणी भी आ गयी - "नई सपा" में 'स' का मतलब 'संघवाद' है?

अपर्णा यादव को लेकर फिलहाल ये चर्चा इसलिए भी गंभीर लगती हैं क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य सहित बीजेपी विधायकों के पार्टी छोड़ने में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की ही भूमिका है - और बीजेपी के भीतर बदले की आग पहले से ही धधक रही है.

अमित शाह के यूपी दौरे में क्या क्या होने वाला है

जब अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष हुआ करते थे तो चुनावी राज्यों में उनके दौरे से पहले ही तोड़फोड़ शुरू हो जाया करती थी. मोदी सरकार में शामिल होने और जेपी नड्डा को गद्दी सौंप देने के बाद ये थोड़ा कम हो गया था - लेकिन पश्चिम बंगाल चुनाव आते आते तो जैसे तृणमूल कांग्रेस पर कहर बन कर ही टूट पड़े थे.

अपर्णा यादव के मामले में अखिलेश यादव का रुख और रिएक्शन सबसे ज्यादा मायने रखता है.

जाने को पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद बीजेपी छोड़ कर भी मुकुल रॉय सहित कई नेता वापस चले गये, लेकिन उत्तर प्रदेश का मामला बिलकुल अलग है. ये समझने में कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिये कि बीजेपी में मची भगदड़ के बाद उनके दिमाग में क्या चल रहा होगा?

तोड़फोड़ का नया दौर शुरू होने वाला है: अब तो ये खबर भी पक्की बतायी जा रही है कि 23 जनवरी के बाद अमित शाह के यूपी दौरे के कार्यक्रम तय हो चुके हैं - फिर तो लखनऊ में बामुलाहिजा होशियार गूंजने ही वाला है.

आईपीएस अफसर रहे असीम अरुण के बीजेपी ज्वाइन करने पर भी अखिलेश यादव का बयान आया है. पूछा है - वर्दी में कैसे कैसे लोग छुपे थे? अखिलेश यादव का कहना है कि वो चुनाव आयोग से शिकायत करेंगे कि ऐसे लोगों से वोटिंग प्रभावित हो सकती है.

चर्चा तो अपर्णा यादव की भी असीम अरुण के साथ ही बीजेपी ज्वाइन करने की रही, लेकिन वीआरएस ले चुके पूर्व आईपीएस अधिकारी ने यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की मौजूदगी में भगवा धारण कर लिया.

अब तो लगता है अपर्णा यादव का कार्यक्रम अमित शाह के लिए ही टाल दिया गया होगा. अपर्णा यादव के अलावा समाजवादी पार्टी के तीन एमएलसी और एक एमएलए के साथ साथ एक पूर्व मंत्री की भी बीजेपी नेताओं से बातचीत की खबर आयी है. मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि ये नाम अमित शाह के दौरे से पहले ही तय कर लिये जाएंगे. ऐसे नेताओं में पिछड़े वर्ग से आने वाले एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का भी नाम लिया जा रहा है. वो भी कुछ बीजेपी नेताओं के संपर्क में बताये जाते हैं - हालांकि, वो फिलहाल कांग्रेस में बताये जाते हैं.

वैसे अपर्णा यादव की राय क्या है: योगी आदित्यनाथ के शपथग्रहण के मौके पर एक तस्वीर खूब चर्चित रही. मंच पर ही मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कान में कुछ कह रहे थे और अखिलेश यादव पीछे खड़े थे.

लेकिन अपर्णा यादव अलग से बीजेपी के साथ अपनी नजदीकियों के सबूत भी पेश करती रहती हैं. जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने थे तब मिलने जाने वालों में अपर्णा यादव की तरह शिवपाल यादव भी शामिल थे. बाद में अपर्णा यादव के बुलाने पर योगी आदित्यनाथ उनकी गौशाला में भी गये थे.

जब ये सब लगातार होता रहेगा तो अपर्णा यादव से सवाल भी तो वैसे ही पूछे जाएंगे. एक टीवी इंटरव्यू में ऐसा ही एक सवाल था - 'अगर आपको बीजेपी से चुनाव लड़ने का ऑफर आता है तो आप क्या करेंगीं?'

सवाल सुनते ही अपर्णा दार्शनिक अंदाज में आ गयीं और कहने लगीं, 'किसी पार्टी से ऑफर आता है या नहीं... सबसे पहले तो तत्कालीन परिस्थिति में राजनीति होती है... आज की राजनीति पर बात की जानी चाहिये... कल किसने देखा है... बड़े-बड़े संत महर्षि कह गये हैं कि अगर हम अपना सुधार लेंगे तो कल अपने आप सुधर जाएगा... हम तो अपना आज बनाने में लगे हुए हैं.'

अपर्णा के सपा में होने की अहमियत

बीजेपी में जाने या न जाने की बात तो बाद की है. पहले ये समझना महत्वपूर्ण है कि अपर्णा यादव के समाजवादी पार्टी छोड़ने की परिस्थितियां क्या बनती हैं?

अगर अपर्णा की बीजेपी से बातचीत चल रही है या हो चुकी है तो ये भी देखना होगा कि वो कितनी गंभीर हैं? और ये भी समझना होगा कि क्या अपर्णा को ऐसा कोई कदम न उठाने की बात कर भी रहा है क्या?

ऐसे में जबकि न तो अपर्णा यादव की तरफ से ही कोई बात कही गयी है और न ही बीजेपी की ही तरफ से खुल कर कोई कुछ बोल रहा है, पहला रिएक्शन शिवपाल यादव की तरफ से ही आया है - और साथ में अपर्णा यादव के लिए नसीहत भी है.

अपर्णा यादव को लेकर बीजेपी की तरफ से गोल मोल जवाब देकर बच निकलने की कोशिश हो रही है. बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी से पूछने पर कुछ बताने से पहले मुस्कुराते हैं, लेकिन जो कहते हैं वो तो बस टालने वाली बात होती है, 'अभी उनके आने की हमारे पास कोई खबर नहीं है, लेकिन वो आएंगीं तो हम स्वागत करेंगे.'

और यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह भी इस मामले में खुद को बेखबर बताने लगते हैं, 'देखिये कौन आने और कौन जाने वाला है... कौन आ सकता है. कौन जा सकता है… ये मैं बता नहीं सकता... अभी हम लोगों को जानकारी नहीं है.' हो भी सकता है. वैसे भी ये उनके लेवल से ऊपर का मामला तो है ही.

शिवपाल की सलाह और नसीहत: पिछले चुनाव में अपनी हार को लेकर अपर्णा यादव ने कभी किसी का नाम तो नहीं लिया था, लेकिन इशारों में मन की बातें समझाने से खुद को रोक भी नहीं पा रही थीं.

2017 की चुनावी हार को लेकर अपर्णा यादव का कहना रहा है, मुझे ऐसी जगह से टिकट दिया गया था जहां पर सपा मजबूत नहीं थी... अगर हमारी हार की समीक्षा रिपोर्ट देखी जाये तो मुझे वहीं से कम वोट मिले हैं जहां पर हमारे लोग थे... मैं उन लोगों का नाम भी लेना नहीं चाहूंगी.'

2019 के आम चुनाव से पहले जब शिवपाल यादव ने सेक्युलर मोर्चा बनाया था तो अपर्णा यादव को उनके साथ मंच शेयर करते भी देखा गया था. तब की बात और थी. अब स्थितियां बदल रही हैं - क्योंकि शिवपाल यादव तो अब अखिलेश यादव को ही नया नेताजी मान चुके हैं.

बदले हालात में शिवपाल यादव की सलाह है कि अपर्णा यादव को समाजवादी पार्टी में ही रहना चाहिये - और नसीहत ये कि पहले पार्टी के लिए काम करें, फिर कोई उम्मीद करें.

अखिलेश के मन में क्या है: बाकी सारी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन अब ये देखना है कि अखिलेश यादव का रुख क्या रहता है. एक अड़चन सीट को लेकर भी हो सकती है - अगर वो कैंट विधानसभा से ही चुनाव लड़ना चाहती हैं तो बीजेपी में भी दिक्कत हो सकती है. पहले दावेदार तो बीजेपी के मौजूदा विधायक सुरेश चंद्र तिवारी ही होंगे. कहा ये भी जा रहा है कि बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी भी अपने बेटे के लिए अपनी पुरानी सीट चाहती हैं.

महीना भर पहले की बात है जब अपर्णा यादव अमेठी पहुंची थीं. अमेठी के तिलोई विधानसभा क्षेत्र के अहोरवा भवानी मंदिर में माथा टेकने के बाद वहां समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं को भी संबोधित किया था. बोली कि चुनाव लड़ना है या नहीं, ये फैसला राष्ट्रीय अध्यक्ष करेंगे.

अपर्णा के अमेठी दौरे के साथ ही ये चर्चा भी शुरू हो गयी कि गांधी परिवार के हाथ से निकल जाने के बाद अमेठी में समाजवादी पार्टी अपने लिए मौका देख रही है. अपर्णा यादव स्मृति ईरानी को आने वाले दिनों में चुनौती दे सकती हैं - और हो सकता है पहले से ही तिलोई से अपर्णा को मैदान में उतार कर अमेठी संसदीय सीट के लिए जमीन तैयार करने की कोशिश हो रही हो. हालांकि, ये भी अब पुरानी चर्चा लगती है.

बहरहाल, सबसे महत्वपूर्ण ये है कि अखिलेश यादव के मन में अपर्णा यादव को लेकर क्या चल रहा है? ये तो लगता ही है कि एक बार अखिलेश यादव किसी ठोस ऑफर के साथ अपर्णा यादव से बात कर लें तो वो शांत हो जाएंगी - अगर वो अखिलेश यादव के लिए शिवपाल यादव जितनी अहमियत नहीं रखतीं तो बात अलग है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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