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बंगाल या महाराष्ट्र नहीं, बिहार उपचुनाव का रिजल्ट भाजपा की चिंता बढ़ाने वाला है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 17 अप्रिल, 2022 10:35 PM
  • 17 अप्रिल, 2022 10:35 PM
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देश के कई राज्यों में हुए उपचुनावों के नतीजे बीजेपी के खिलाफ (Bypoll Resuts against BJP) आये हैं, फिर भी पश्चिम बंगाल में शत्रुघ्न सिन्हा (Shatrughna Sinha) और बाबुल सुप्रियो (Babul Supriyo) की जीत उतनी महत्वपूर्ण नहीं है, जितनी कि बिहार की बोचहां सीट पर बीजेपी की हार है.

उपचुनावों के नतीजों के रूप बीजेपी (Bypoll Resuts against BJP) के लिए बुरी खबर आई है. बीजेपी के खिलाफ बात बात पर हल्ला बोल देने वाले शत्रुघ्न सिन्हा (Shatrughna Sinha) आसनसोल लोक सभा सीट बीजेपी से छीन कर तृणमूल कांग्रेस की झोली में डाल चुके हैं. 1989 से सीपीएम के पास रही आसनसोल सीट पर 2014 में बीजेपी ने बाबुल सुप्रियो की बदौलत कब्जा जमाया था.

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में हार जाने और मंत्री पद से बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के इस्तीफा मांग लेने के बाद बाबुल सुप्रियो (Babul Supriyo) ने पाला बदल कर टीएमसी ज्वाइन कर लिया था. लेकिन उपचुनाव में ममता बनर्जी ने भी बाबुल सुप्रियो को आसानसोल से टिकट नहीं दिया. टीएमसी ने बाबुल सुप्रियो को बालीगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उतारने का फैसला किया - और लोक सभा की जगह अब वो विधानसभा पहुंच गये हैं.

2019 में बीजेपी के शत्रुघ्न सिन्हा का टिकट काट दिये जाने पर वो कांग्रेस में चले गये थे. कांग्रेस ने टिकट भी पटना साहिब से ही दे दिया था, लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी में ही अपने पुराने साथी रविशंकर प्रसाद से हार गये. रविशंकर प्रसाद पहली बार कोई चुनाव लड़े थे, लेकिन मोदी कैबिनेट में हुई फेरबदल में बाबुल सुप्रियो के साथ ही उनकी भी छुट्टी हो गयी थी.

महाराष्ट्र से भी बीजेपी के लिए निराशाजनक समाचार मिला है, जहां कोल्हापुर उत्तर सीट पर कांग्रेस का कब्जा हो गया है. कांग्रेस की जयश्री जाधव कोल्हापुर उत्तर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में गठबंधन की उम्मीदवार रहीं. जयश्री जाधव ने बीजेपी उम्मीदवार सत्यजीत कदम को शिकस्त दे डाली है.

कोल्हापुर में हार को लेकर महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल निशाने पर आ गये हैं. सोशल मीडिया पर लोग चंद्रकांत पाटिल को उनका ही बयान याद दिला रहे हैं, जिसमें कहा था कि कोल्हापुर में कहीं भी चुनाव कराओ, अगर मेरा उम्मीदवार नहीं जीत सका तो मैं राजनीति छोड़ कर हिमालय चला जाऊंगा.

देखा जाये तो न आसनसोल और न ही कोल्हापुर, बल्कि बिहार के बोचहां उपचुनाव में...

उपचुनावों के नतीजों के रूप बीजेपी (Bypoll Resuts against BJP) के लिए बुरी खबर आई है. बीजेपी के खिलाफ बात बात पर हल्ला बोल देने वाले शत्रुघ्न सिन्हा (Shatrughna Sinha) आसनसोल लोक सभा सीट बीजेपी से छीन कर तृणमूल कांग्रेस की झोली में डाल चुके हैं. 1989 से सीपीएम के पास रही आसनसोल सीट पर 2014 में बीजेपी ने बाबुल सुप्रियो की बदौलत कब्जा जमाया था.

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में हार जाने और मंत्री पद से बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के इस्तीफा मांग लेने के बाद बाबुल सुप्रियो (Babul Supriyo) ने पाला बदल कर टीएमसी ज्वाइन कर लिया था. लेकिन उपचुनाव में ममता बनर्जी ने भी बाबुल सुप्रियो को आसानसोल से टिकट नहीं दिया. टीएमसी ने बाबुल सुप्रियो को बालीगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उतारने का फैसला किया - और लोक सभा की जगह अब वो विधानसभा पहुंच गये हैं.

2019 में बीजेपी के शत्रुघ्न सिन्हा का टिकट काट दिये जाने पर वो कांग्रेस में चले गये थे. कांग्रेस ने टिकट भी पटना साहिब से ही दे दिया था, लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी में ही अपने पुराने साथी रविशंकर प्रसाद से हार गये. रविशंकर प्रसाद पहली बार कोई चुनाव लड़े थे, लेकिन मोदी कैबिनेट में हुई फेरबदल में बाबुल सुप्रियो के साथ ही उनकी भी छुट्टी हो गयी थी.

महाराष्ट्र से भी बीजेपी के लिए निराशाजनक समाचार मिला है, जहां कोल्हापुर उत्तर सीट पर कांग्रेस का कब्जा हो गया है. कांग्रेस की जयश्री जाधव कोल्हापुर उत्तर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में गठबंधन की उम्मीदवार रहीं. जयश्री जाधव ने बीजेपी उम्मीदवार सत्यजीत कदम को शिकस्त दे डाली है.

कोल्हापुर में हार को लेकर महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल निशाने पर आ गये हैं. सोशल मीडिया पर लोग चंद्रकांत पाटिल को उनका ही बयान याद दिला रहे हैं, जिसमें कहा था कि कोल्हापुर में कहीं भी चुनाव कराओ, अगर मेरा उम्मीदवार नहीं जीत सका तो मैं राजनीति छोड़ कर हिमालय चला जाऊंगा.

देखा जाये तो न आसनसोल और न ही कोल्हापुर, बल्कि बिहार के बोचहां उपचुनाव में बीजेपी की हार बेइज्जती जैसी है. क्योंकि बोचहां उपचुनाव को छोड़ दें तो बाकी जगह उसी पार्टी के उम्मीदवार जीते हैं जिसकी राज्य में सरकार है. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में हिस्सेदार कांग्रेस.

बोचहां उपचुनाव नीतीश कुमार के लिए होम एक्जाम जैसा ही था और वो फेल हुए हैं. ये चुनाव ऐसे दौर में हुआ है जब नीतीश कुमार को बिहार से हटाये जाने की चर्चा चल रही है, ताकि बीजेपी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपना आदमी बिठा सके. हार को लेकर जवाबदेही तो नीतीश कुमार की ही बनती है - और मान कर चलना होगा बीजेपी तो सवाल खड़े करेगी ही.

तेजस्वी की जीत या नीतीश की हार?

बोचहां उपचुनाव के नतीजों ने तो VIP नेता मुकेश सहनी की दुनिया ही लूट ली है. यूपी चुनाव में मुकेश सहनी की हरकत से खफा बीजेपी ने बोचहां उपचुनाव के जरिये ही सबक सिखाने का फैसला किया था.

तेजस्वी यादव का प्रदर्शन नीतीश कुमार से ज्यादा बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण लगता है

बिहार बीजेपी के नेता बोचहां उपचुनाव में अपना उम्मीदवार उतारने की मांग कर रहे थे. तकरार की शुरुआत भी इसी बात को लेकर हुई. बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बोचहां में तो खड़ा किया ही, अचानक एक दिन वीआईपी के तीन विधायकों की बीजेपी ज्वाइन करा दिया.

बोचहां में वीआईपी कोटे से चुनाव जीते मुसाफिर पासवान के निधन के कारण ये उपचुनाव हुआ था. अभी मुकेश सहनी प्लान ही कर रहे थे कि मुसाफिर पासवान के बेटे अमर पासवान ने वीआईपी छोड़ कर आरजेडी ज्वाइन कर लिया. फिर मुकेश सहनी ने पूर्व मंत्री रमई राम की बेटी गीता कुमारी को चुनाव लड़ाने का फैसला किया.

आरजेडी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे अमर पासवान पिता मुसाफिर पासवान की विरासत अपने पास रखने में सफल रहे. अमर पासवान ने बीजेपी उम्मीदवार बेबी कुमारी को 36 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया. वीआईपी की गीता कुमारी तो तीसरे स्थान पर रहीं, लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार को छठवें स्थान पर भेज दिया. ये हार कन्हैया कुमार के खाते में दर्ज होती है या नहीं, लेकिन जिस तरीके से बिहार में कांग्रेस की कमान उनको थमाने की चर्चा है, नेतृत्व एक बार विचार तो करेगा ही.

बोचहां से पहले दो सीटों पर हुए उपचुनाव के दौरान आरजेडी नेता लालू यादव जेल से बाहर थे. तेजस्वी यादव ने लालू यादव को भी चुनाव मैदान में उतार दिया था. लालू यादव ने आरजेडी उम्मीदवारों के लिए चुनावी रैली तो की, लेकिन उनकी जीत नहीं सुनिश्चित कर सके. बोचहां उपचुनाव से पहले लालू यादव को फिर से जेल चले जाना पड़ा.

हाल ही में बिहार में भी लोकल अथॉरिटीज से विधान परिषद के चुनाव हुए थे - और तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी ने 24 में से छह सीटें जीत ली. एनडीए के हिस्से में 13 सीटें ही आ सकीं - 7 बीजेपी के खाते में और 6 जेडीयू के.

अव्वल तो बोचहां उपचुनाव की जीत बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के खाते में ही दर्ज होगी, लेकिन उससे ज्यादा बड़ी बात ये है कि बीजेपी की हार को नीतीश कुमार से जोड़ कर देखा जाएगा. इससे पहले बिहार की दो सीटों पर चुनाव हुए थे - तारापुर और कुशेश्वर स्थान. ये दोनों ही सीटें जेडीयू के हिस्से की रहीं और नीतीश कुमार को पार्टी की सीटें उसके पास बरकरार रखने का क्रेडिट भी मिला था.

हार में बीजेपी के लिए कोई संदेश भी है क्या

जैसे तारापुर और कुशेश्वर स्थान के लिए एनडीए की टीम ने डेरा डाल रखा था, बोचहां के साथ भी वैसा ही रहा. चूंकि चुनाव बीजेपी के हिस्से का रहा, इसलिए पार्टी ने अपनी तरफ से भी कोई कसर बाकी न रहे, ऐसी भरपूर कोशिश की थी.

केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय जहां बीजेपी के सीनियर नेता अमित शाह के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे थे, बिहार से ही आने वाले एक और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी बढ़ चढ़ कर चुनाव कैंपेन में शामिल थे. बिहार चुनाव के दौरान अमित शाह ने तो नित्यानंद राय पर ही पूरी जिम्मेदारी दे रखी थी और वो कहीं से भी पीछे नजर नहीं आये.

उपचुनावों के नतीजे सत्ताधारी दल के पक्ष में ही सामन्यतया आते हैं, ऐसी मान्यता रही है और मौजूदा नतीजे भी यही बता रहे हैं. यहां तक कि बिहार में हुए पिछले दो उपचुनावों के नतीजे भी सत्ताधारी एनडीए के पक्ष में ही पाये गये - फिर तो सवाल उठेगा ही कि ऐसा क्या हुआ कि नीतीश कुमार ने जेडीयू को तारापुर और कुशेश्वर स्थान में जीत दिला दी और बोचहां में बीजेपी की हार नहीं बचा सके?

थोड़ा पीछे लौट कर देखें तो बोचहां के नतीजे. 2018 में गोरखपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव की याद दिलाते हैं. 2017 में योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद गोरखपुर सीट पर उपचुनाव हुआ. नतीजे आये तो मालूम हुआ कि बीजेपी के उपेंद्र दत्त शुक्ला को समाजवादी पार्टी के प्रवीण कुमार निषाद ने चुनाव में हरा दिया था.

हार का बदला तो बीजेपी ने प्रवीण कुमार निषाद को पार्टी ज्वाइन कराकर और गोरखपुर सीट से भोजपुरी स्टार रवि किशन को सांसद बना कर ले लिया, लेकिन गोरखपुर सदर सीट पर उपेंद्र दत्त शुक्ला की पत्नी सुभावती शुक्ला के प्रदर्शन ने पुराने किस्से ताजा कर दिये थे. सुभावती शुक्ला, योगी आदित्यनाथ के खिलाफ समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में थीं और अच्छा खासा वोट भी पाया था.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तब कहा था कि सपा और बसपा के गठजोड़ को हल्के में ले लिया गया था. हालांकि, तब चर्चा ये भी रही कि योगी आदित्यनाथ ने उपचुनाव में ज्यादा दिलचस्पी इसलिए नहीं ली थी क्योंकि वो उपेंद्र दत्त शुक्ला की जगह किसी और को टिकट दिलाना चाहते थे.

क्या नीतीश कुमार का मामला भी वैसा ही लगता है? उम्मीदवार को लेकर तो नीतीश कुमार का कोई रिजर्वेशन नहीं रहा होगा, लेकिन दिलचस्पी लेने की वजह भी नहीं समझ में आती. भला उस बीजेपी के उम्मीदवार की जीत के लिए नीतीश कुमार क्यों जी जान लगायें जो उनकी बिहार से विदायी की रणनीति पर काम कर रही हो?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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