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किसानों के मुद्दे पर सत्ताधारी बीजेपी चारों ओर से घिरती जा रही है

    • आईचौक
    • Updated: 17 जून, 2017 01:29 PM
  • 17 जून, 2017 01:29 PM
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देखा गया है कि किसान आत्महत्याओं की आधी से ज्यादा घटनाएं महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से दर्ज की जाती हैं. फिलहाल इन तीनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं.

EVM पर फ्लॉप शो के बाद विपक्षी दल अब किसानों पर फोकस कर रहे हैं. विपक्ष की मीटिंग होती तो है राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करने को लेकर लेकिन मेन टॉपिक हो जाता है - किसानों की कर्जमाफी. ऐसा लगता है किसानों का मामला विपक्ष को प्याज सा अहसास दे रहा है जिसके नाम पर सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ मजबूत घेरेबंदी की जा सकती है.

'हाइवे जाम' के बाद 'भारत बंद' की तैयारी

22 राज्यों के 62 किसान यूनियन एक साथ आंदोलन कर रहे हैं, जिसमें विपक्ष को अपने लिए पूरा स्कोप नजर आ रहा है. पहले तमिलनाडु के किसान जंतर मंतर पर पहुंचे और हर रोज नये नये तरीके से प्रदर्शन करने लगे. मंदसौर की घटना के बाद किसानों ने एकजुट होकर देश के विभिन्न हिस्सों अलग अलग प्रदर्शन के बाद हाइवे जाम का फैसला किया - और उसके बाद नयी रणनीति के साथ आंदोलन की धार तेज करने की तैयारी है. किसानों ने खास स्ट्रैटेजी के तहत दिल्ली को ही आंदोलन का केंद्र बनाया है.

निशाने पर मोदी सरकार...

मौके का फायदा उठाने के मकसद से विपक्षी दल आंदोलन को अखिल भारतीय स्तर पर बड़ा कैनवास देने के कोशिश में हैं. राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करने के लिए बनी एक कमेटी में इस मसले पर गंभीर चर्चा हुई. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र की मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए 'भारत बंद' की योजना भी बनाई जा रही है.

विरोध प्रदर्शन ऐसे भी...

विपक्षी पार्टियां, दरअसल, किसानों के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने के लिए भी दबाव बनाना चाहती हैं. ये...

EVM पर फ्लॉप शो के बाद विपक्षी दल अब किसानों पर फोकस कर रहे हैं. विपक्ष की मीटिंग होती तो है राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करने को लेकर लेकिन मेन टॉपिक हो जाता है - किसानों की कर्जमाफी. ऐसा लगता है किसानों का मामला विपक्ष को प्याज सा अहसास दे रहा है जिसके नाम पर सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ मजबूत घेरेबंदी की जा सकती है.

'हाइवे जाम' के बाद 'भारत बंद' की तैयारी

22 राज्यों के 62 किसान यूनियन एक साथ आंदोलन कर रहे हैं, जिसमें विपक्ष को अपने लिए पूरा स्कोप नजर आ रहा है. पहले तमिलनाडु के किसान जंतर मंतर पर पहुंचे और हर रोज नये नये तरीके से प्रदर्शन करने लगे. मंदसौर की घटना के बाद किसानों ने एकजुट होकर देश के विभिन्न हिस्सों अलग अलग प्रदर्शन के बाद हाइवे जाम का फैसला किया - और उसके बाद नयी रणनीति के साथ आंदोलन की धार तेज करने की तैयारी है. किसानों ने खास स्ट्रैटेजी के तहत दिल्ली को ही आंदोलन का केंद्र बनाया है.

निशाने पर मोदी सरकार...

मौके का फायदा उठाने के मकसद से विपक्षी दल आंदोलन को अखिल भारतीय स्तर पर बड़ा कैनवास देने के कोशिश में हैं. राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करने के लिए बनी एक कमेटी में इस मसले पर गंभीर चर्चा हुई. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र की मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए 'भारत बंद' की योजना भी बनाई जा रही है.

विरोध प्रदर्शन ऐसे भी...

विपक्षी पार्टियां, दरअसल, किसानों के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने के लिए भी दबाव बनाना चाहती हैं. ये रिपोर्ट पांच हिस्सों में है जो 2006 में तैयार की गई थी. रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार की सिफारिशें हैं जिनमें भू-सुधार, कृषि बीमा, खाद्य सुरक्षा, कृषि उपज की मार्केटिंग, कृषि क्षेत्र में तकनीक का बेहतर इस्तेमाल पर जोर दिया गया है.

बीजेपी के घिरने की वजह

देखा गया है कि किसान आत्महत्याओं की आधी से ज्यादा घटनाएं महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से दर्ज की जाती हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार देश में होने वाली कुल किसान आत्महत्याओं में 65 फीसदी से ज्यादा घटनाएं इन्हीं तीन राज्यों से रिपोर्ट की गयीं. फिलहाल इन तीनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं.

महाराष्ट्र के किसान आंदोलन में भी एक नया ट्रेंड देखने को मिला है. बीते दिनों में विदर्भ या मराठवाड़ा किसान आंदोलन के केंद्र हुआ करते थे, लेकिन इस बार ये नासिक और पश्चिम महाराष्ट्र के इलाकों में देखने को मिल रहा है जिन्हें अपेक्षाकृत अमीर इलाकों में शुमार किया जाता है.

करें तो क्या करें?

मंदसौर में किसानों पर फायरिंग के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अमन कायम करने के मकसद से उपवास पर भी बैठे. इससे किसानों के बवाल में जो भी फर्क पड़ा हो लेकिन आत्महत्या की खबरें अब भी आ रही हैं.

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद राजस्थान और हरियाणा सरकारों के लिए भी किसान आंदोलन सिरदर्द बन रहा है. यूपी की योगी सरकार ने 36 हजार करोड़ की कर्जमाफी की घोषणा तो कर दी लेकिन बात उतने से नहीं बनती दिखती. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब किसान क्रांति की बात करने लगे हैं.

मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन के जरिये जिस शख्स ने शिवराज सरकार की नाक में दम किया हुआ है उसकी पृष्ठभूमि भी संघ की ही रही है. महाराष्ट्र में तो बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ही विरोध की आवाज बुलंद किये हुए है. किसानों के मुद्दे पर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर लगातार हमलावर रुख अख्तियार किये हुए हैं. ऊपर से उन्होंने किसान नेता राजू शेट्टी को भी अपने पक्ष में कर लिया है. मुख्यमंत्री फडणवीस इतना दबाव महसूस कर रहे हैं कि राज्य में मध्यावधि चुनाव तक की बात कह डाले हैं. इस पर भी उद्धव ठाकरे ने चुटकी ली है कि जो उसमें खर्ज आएगा अगर वो किसानों को दे दें तो ऐसी नौबत ही न आये.

ऐसा भी नहीं कि किसानों का आंदोलन बीजेपी के शासन वाले राज्यों तक ही सीमित है. पंजाब में भी किसान आंदोलन के संकेत देखे जा रहे हैं तो कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को राहुल गांधी की ओर से मैसेज भेजे जाने की चर्चा है. राहुल गांधी ने सिद्धरमैया को किसानों की कर्जमाफी के मामले में कदम उठाने की सलाह दी है.

किसान बनाम गरीबी

अरसे से देखा गया है कि देश की सियासत में गरीबी हटाने की बात सबसे मजबूत और असरदार टूल साबित होता आया है. ये शब्द कभी इंदिरा गांधी की राजनीतिक का ब्रह्मास्त्र रहा और हाल फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी किसी न किसी रूप में इसका जिक्र करते रहे हैं. चायवाला अंदाज भी तकरीबन उसी नैरेटिव का हिस्सा है जिसे पेश करते वक्त सहानुभूति के साथ गौरवमयी ग्लैमर की भी झलक महसूस की जा सकती है.

किसान और राजनीति...

गूगल की न्यूज कैटेगरी में गरीबी शब्द के लिए 84, 300 नतीजे मिलते हैं जबकि सामान्य में ये संख्या 14, 20, 000 है. मगर, किसान शब्द गूगल करने पर न्यूज में 10, 10, 000 मिलते हैं और सामान्य में 85, 90, 000. इस हिसाब से देखें तो खबरों के अलावा भी किसान शब्द ने गरीबी को पीछे छोड़ दिया है. अखिलेश यादव के कृषि क्रांति की जगह किसान क्रांति की बात करने की एक वजह ये भी हो सकती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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