• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

कितनी सरकारें बदल गयीं मगर पिटनी बहू रही वैसी की वैसी...

    • हिमांशु सिंह
    • Updated: 04 अप्रिल, 2019 01:45 PM
  • 04 अप्रिल, 2019 01:45 PM
offline
भारत बहुदलीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाला देश है. यहां न चीन की तरह एक दल वाला नकली लोकतंत्र है. न ही अमेरिका की तरह द्विदलीय व्यवस्था. ऐसे में देश-भर के तमाम चुनाव अगर दो बड़ी पार्टियों का आपसी संघर्ष बन कर रह जाते हैं तो ये चिंता की बात है.

हरिशंकर पारसाई जी किसी पिटनी बहू के बारे में बताते थे. बताते थे कि जब पिटनी बहू घर में सास की मार-पिटाई और गाली-गलौज से ऊब जाती थी तो नुक्कड़ के राम-मंदिर में भजन-कीर्तन करने चली जाती थी. और जब वो भजन-कीर्तन से ऊब जाती तो वापस घर चली आती थी. इस तरह उसके दो ठिकाने थे - घर और मंदिर.

पिटनी बहू ने कभी तीसरे ऑप्शन बारे में नहीं सोचा. तीसरा ऑप्शन उसे अपनी इमेज के खिलाफ़ लगता था. तो इस तरह पिटनी बहू की जिन्दगी सास से मार-पिटाई और गालियां खाकर भजन-कीर्तन करते बीती. इस देश की जनता भी पिटनी बहू हो गयी है. इसकी जिन्दगी भी सास और राम मंदिर के बीच उलझी हुई है. सास घर में चैन से रहने नहीं देती और मंदिर के भरोसे कोई कब तक जिन्दगी काट सकता है?

फिर भी, हमारे देश की जनता खानदानी है, यहां के लोग खानदानी हैं, और तो और हमारे यहां राजनीतिक रुझान भी खानदानी होते हैं. तमाम लोग तो आज भी सिर्फ इसीलिये कांग्रेसी हैं क्योंकि उनके बाप-दादा कांग्रेसी थे. बहुतेरे आज भी भाजपायी हैं क्योंकि उनके बाप-दादा जनसंघ से जुड़े थे.

दलों द्वारा भी जनता को इस बात का एहसास कराया जाता है कि वो राममंदिर के लिए आगे आएं

अब चूंकि खानदानी लोग परंपराओं का सम्मान करते हैं, तो अव्वल तो उनमें विचलन नहीं होता, और होता भी है तो उनका विचलन भी खानदानी होता है. मतलब कांग्रेसी आदमी कांग्रेस से मोहभंग होने पर किसी दूसरे विकल्प के बारे में नहीं सोचेगा और चुपचाप भाजपायी हो जायेगा. और भाजपायी आदमी भी भाजपा से रूठकर सिवाय कांग्रेस के कहीं और नहीं जायेगा. पारसाई जी की पिटनी बहू भी दरअसल ऐसी ही खानदानी बहू थी.

पिछले साल देश के पांच राज्यों - मिजोरम, राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में हुए चुनावों के नतीजे देश की जनता के खानदानी होने का सुबूत हैं. अगर आपके...

हरिशंकर पारसाई जी किसी पिटनी बहू के बारे में बताते थे. बताते थे कि जब पिटनी बहू घर में सास की मार-पिटाई और गाली-गलौज से ऊब जाती थी तो नुक्कड़ के राम-मंदिर में भजन-कीर्तन करने चली जाती थी. और जब वो भजन-कीर्तन से ऊब जाती तो वापस घर चली आती थी. इस तरह उसके दो ठिकाने थे - घर और मंदिर.

पिटनी बहू ने कभी तीसरे ऑप्शन बारे में नहीं सोचा. तीसरा ऑप्शन उसे अपनी इमेज के खिलाफ़ लगता था. तो इस तरह पिटनी बहू की जिन्दगी सास से मार-पिटाई और गालियां खाकर भजन-कीर्तन करते बीती. इस देश की जनता भी पिटनी बहू हो गयी है. इसकी जिन्दगी भी सास और राम मंदिर के बीच उलझी हुई है. सास घर में चैन से रहने नहीं देती और मंदिर के भरोसे कोई कब तक जिन्दगी काट सकता है?

फिर भी, हमारे देश की जनता खानदानी है, यहां के लोग खानदानी हैं, और तो और हमारे यहां राजनीतिक रुझान भी खानदानी होते हैं. तमाम लोग तो आज भी सिर्फ इसीलिये कांग्रेसी हैं क्योंकि उनके बाप-दादा कांग्रेसी थे. बहुतेरे आज भी भाजपायी हैं क्योंकि उनके बाप-दादा जनसंघ से जुड़े थे.

दलों द्वारा भी जनता को इस बात का एहसास कराया जाता है कि वो राममंदिर के लिए आगे आएं

अब चूंकि खानदानी लोग परंपराओं का सम्मान करते हैं, तो अव्वल तो उनमें विचलन नहीं होता, और होता भी है तो उनका विचलन भी खानदानी होता है. मतलब कांग्रेसी आदमी कांग्रेस से मोहभंग होने पर किसी दूसरे विकल्प के बारे में नहीं सोचेगा और चुपचाप भाजपायी हो जायेगा. और भाजपायी आदमी भी भाजपा से रूठकर सिवाय कांग्रेस के कहीं और नहीं जायेगा. पारसाई जी की पिटनी बहू भी दरअसल ऐसी ही खानदानी बहू थी.

पिछले साल देश के पांच राज्यों - मिजोरम, राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में हुए चुनावों के नतीजे देश की जनता के खानदानी होने का सुबूत हैं. अगर आपके मुताबिक़ विधानसभा चुनावों के परिणाम मेरी बात से मैच न करते हों तो पिछ्ले 30 सालों के लोकसभा चुनावों के परिणाम देख लीजिये. कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस, कभी सास तो कभी राम-मंदिर.

अपनी अयोध्या यात्रा पर हनुमानगढ़ी मंदिर में पूजा archana करतीं प्रियंका गांधी

मई में लोकसभा चुनाव हैं और लोग फिर से इन्हीं दो दलों की राजनीति में उलझे हुए हैं. जबकि और भी तमाम राजनीतिक दल आपसी गठबंधन कर जनता को रिझाने में लगे हुए हैं. देखना ये है कि इस बार जनता पिटनी बहू बनने से इनकार करती है, या फिर अपने खानदानीपने को सच साबित करते हुए फिर से अगले पांच सालों के लिये सास और राम मंदिर के बीच उलझना स्वीकार करती है.

ये भी पढ़ें -

अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए तीनों मध्यस्थ दक्षिण भारतीय ही क्यों?

'जनेऊधारी राहुल गांधी का मुस्लिम-ईसाई बहुल वायनाड से चुनाव लड़ने का मतलब?'

चुनाव से पहले योगी ने माया-अखिलेश से 'हाफ बदला' तो ले ही लिया


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲