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अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए तीनों मध्यस्थ दक्षिण भारतीय ही क्यों?

    • संजय शर्मा
    • Updated: 09 मार्च, 2019 06:56 PM
  • 09 मार्च, 2019 06:56 PM
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कोर्ट नहीं चाहता था कि उत्तर भारत का कोई सदस्य इस टीम में हो. इसकी मुख्य वजह ये थी कि उत्तर भारतीय अयोध्या और रामचंद्र को लेकर अलग किस्म के भावुक होते हैं इतनी शिद्दत दक्षिण भारतीयों में नहीं होती.

अयोध्या मसले का हल अब मध्यस्थता से तलाशा जाएगा. सभी पक्ष उम्मीद से हैं सिवाय मीडिया के. सुप्रीम कोर्ट ने खुली अदालत में सुनाये फरमान में साफ कहा कि अदालत चाहती है कि मीडिया मीडिएशन पर अपनी रिपोर्टिंग न करे. वैसे इसमें कैसे क्या किया जाना चाहिए इस पर मीडिएशन पैनल फैसला करे. इस एक जुमले ने मीडिया पर कोर्ट के डगमगाते भरोसे का खुलासा कर दिया. मीडिया चाहे लाख अपनी निष्ठा और नैतिकता या शक्तियों की बात बघारे कोर्ट की निगाह में सच्चाई तो यही दिखती है कि मीडिया कुछ भी सुलगा देगा और बनती हुई बात बिगड़ जाएगी.

ऐसा नहीं है कि अगले हफ्ते से जब अयोध्या यानी फैजाबाद में मध्यस्थों की पंचायत लगेगी तो मीडिया वहां आसपास जरूर होगा. ओबी वैन कुछ दूरी पर ही सही छतरियां तनेंगी जरूर. रिपोर्टर वेश बदल कर ही सही लेकिन गुप्तचर की तरह डोलेंगे जरूर. आखिर अंदर पक रही खिचड़ी की कुछ तो गंध मिले. हालांकि कोर्ट कतई नहीं चाहता कि जायका खराब हो. हां मीडिया के कई संस्थान तो सिर्फ इसलिए वहां जाएंगे और दिखाएंगे कि शायद इसी बहाने जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का आत्मप्रचार करने का मौका मिल जाए. देखिये आप तक खबर पहुंचाने के लिए हमने अपनी रिपोर्टिंग टीम को भी सजा भुगताने से गुरेज नहीं किया.

मध्यस्थता पैनल के तीनों सदस्य श्री श्री रविशंकर, श्रीराम पंचू और जस्टिस कलीफुल्ला तीनों ही उत्तर भारतीय नहीं हैं

ये तो हुई मीडिया और रिपोर्टिंग की बात. अब देखें तीन सदस्यों वाले पैनल की ओर. जस्टिस कलीफुल्ला, श्री श्री रविशंकर और श्रीराम पंचू तीनों ही तमिलनाडु के हैं. उत्तर भारत का कोई नहीं. सूत्र बताते हैं कि कोर्ट नहीं चाहता था कि उत्तर भारत का कोई सदस्य इस टीम में हो. इसकी मुख्य वजह ये थी कि उत्तर भारतीय अयोध्या और रामचंद्र को लेकर अलग किस्म के भावुक होते हैं इतनी...

अयोध्या मसले का हल अब मध्यस्थता से तलाशा जाएगा. सभी पक्ष उम्मीद से हैं सिवाय मीडिया के. सुप्रीम कोर्ट ने खुली अदालत में सुनाये फरमान में साफ कहा कि अदालत चाहती है कि मीडिया मीडिएशन पर अपनी रिपोर्टिंग न करे. वैसे इसमें कैसे क्या किया जाना चाहिए इस पर मीडिएशन पैनल फैसला करे. इस एक जुमले ने मीडिया पर कोर्ट के डगमगाते भरोसे का खुलासा कर दिया. मीडिया चाहे लाख अपनी निष्ठा और नैतिकता या शक्तियों की बात बघारे कोर्ट की निगाह में सच्चाई तो यही दिखती है कि मीडिया कुछ भी सुलगा देगा और बनती हुई बात बिगड़ जाएगी.

ऐसा नहीं है कि अगले हफ्ते से जब अयोध्या यानी फैजाबाद में मध्यस्थों की पंचायत लगेगी तो मीडिया वहां आसपास जरूर होगा. ओबी वैन कुछ दूरी पर ही सही छतरियां तनेंगी जरूर. रिपोर्टर वेश बदल कर ही सही लेकिन गुप्तचर की तरह डोलेंगे जरूर. आखिर अंदर पक रही खिचड़ी की कुछ तो गंध मिले. हालांकि कोर्ट कतई नहीं चाहता कि जायका खराब हो. हां मीडिया के कई संस्थान तो सिर्फ इसलिए वहां जाएंगे और दिखाएंगे कि शायद इसी बहाने जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का आत्मप्रचार करने का मौका मिल जाए. देखिये आप तक खबर पहुंचाने के लिए हमने अपनी रिपोर्टिंग टीम को भी सजा भुगताने से गुरेज नहीं किया.

मध्यस्थता पैनल के तीनों सदस्य श्री श्री रविशंकर, श्रीराम पंचू और जस्टिस कलीफुल्ला तीनों ही उत्तर भारतीय नहीं हैं

ये तो हुई मीडिया और रिपोर्टिंग की बात. अब देखें तीन सदस्यों वाले पैनल की ओर. जस्टिस कलीफुल्ला, श्री श्री रविशंकर और श्रीराम पंचू तीनों ही तमिलनाडु के हैं. उत्तर भारत का कोई नहीं. सूत्र बताते हैं कि कोर्ट नहीं चाहता था कि उत्तर भारत का कोई सदस्य इस टीम में हो. इसकी मुख्य वजह ये थी कि उत्तर भारतीय अयोध्या और रामचंद्र को लेकर अलग किस्म के भावुक होते हैं इतनी शिद्दत दक्षिण भारतीयों में नहीं होती. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जजों की लंबी फेहरिसत में ऐसे नाम तलाशे गये जिनके किसी बयान या फैसले पर कोई उंगली ना उठी हो. कलीफुल्ला मितभाषी हैं और जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में जज रहने के दौरान भी कभी चर्चा या विवादों में नहीं रहे.

कई पक्षकारों को धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर के नाम पर घोर आपत्ति है. उनके पिछले सालों में दिये गये बयान अब आड़े आने लगे हैं. श्री श्री रविशंकर ने कहा था कि अयोध्या में जन्मभूमि पर राम मंदिर नहीं बना तो देश में सीरिया की तरह गृहयुद्ध छिड़ जाएगा. अब पुराने बयान नये तेवर में आ गये.

तीसरे सदस्य श्रीराम पंचू. मद्रास हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट. उनके बारे में अव्वल तो उत्तर भारत के लोग ज्यादा जानते नहीं. दूसरा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर ज्यादा चर्चा भी नहीं हुई है. लिहाजा उनको लेकर लोगों में ना तो चर्चा है ना ही कुचर्चा.

हालांकि राजनीतिक हलकों में इस पहल को लेकर उत्साह का माहौल बनाया जा रहा है. क्योंकि ये तो तय है कि अगले हफ्ते में होने वाली चुनावी घोषणाओं से लेकर अगले दो महीने में संपन्न होने वाले आम चुनावों में राम मंदिर और अयोध्या मुद्दा चुनावी चटखारों में नहीं होगा. इसकी तो बस खिचड़ी सी ही पकती रहेगी.

ये भी उतना ही सच है कि सत्ताधारी दल भी अयोध्या और मंदिर को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए मरा नहीं जा रहा. क्योंकि इससे भी बड़ा तात्कालिक मुद्दा आतंकवाद और पाकिस्तान का मुंह कुचलने का अभियान उसकी नैया पार लगा ही देगा. अब सत्तारूढ़ गठबंधन भी यही चाहता है कि मंदिर बने या ना बने पहले सरकार तो बन जाए. सरकार बन गई तो मंदिर तो भतेरे बन जाएंगे. सिर सलामत रहना चाहिए पगड़ियां तो हजारों मिल जाएंगी. इस बार ना सही तो अगले चुनाव में सही. बस मुद्दा रहना चाहिए. गड़ा हुआ भी उखाड़ लेंगे.

वैसे भी राजनीति ही ऐसा रसोईघर है जहां काठ की हांडी कई बार चढ़ जाती है. खिचड़ी भी पक जाती है. अब मंदिर मुद्दे की हांडी ही देख लो. कई बार इसमें बनी खिचड़ी खाकर नेता डकार मारते हुए सत्ता की ताल ठोक चुके हैं.  

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अयोध्‍या विवाद के मध्‍यस्‍थ श्री श्री रविशंकर की 'अग्नि-परीक्षा'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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