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बिहार चुनाव में 'लालू तड़का' तो तेजप्रताप यादव ही लगाएंगे!

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 22 अक्टूबर, 2020 08:09 PM
  • 22 अक्टूबर, 2020 08:09 PM
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बिहार के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की कमी तो सबको ही महसूस हो रही है, लेकिन इसका नुकसान अकेले तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) उठाएंगे. लालू प्रसाद का मुखर अंदाज ही काफी है भीड़ जुटाने के लिए, इस चुनाव में उनके जेल में होने से महागठबंधन में भी टूट पड़ चुकी है.

बिहार का चुनाव हो और उसमें लालू प्रसाद यादव का नाम न हो ये लगभग नामुमकिन सा है. बिहार के मुख्यमंत्री समेत सत्ता में बैठे हर एक नेता के ज़बान पर बस लालू प्रसाद यादव हैं. सभी लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार का रट्टा मारे बैठे हुए हैं. लेकिन इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि लालू प्रसाद यादव के झोली में कई सारी उपलब्धियां भी हैं जो उन्हें बाकी नेताओं से अलग करती है. वर्तमान में बिहार के चुनाव में एक हफ्ते से भी कम का समय रह गया है और इस चुनाव से लालू प्रसाद यादव पूरी तरह से दूर हैं और जेल में सजा काट रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव और नितीश कुमार एक साथ थे, वह मुकाबला तो एकतरफा था लेकिन लालू ने उस चुनाव में भी अपनी पूरी मेहनत झोंक रखी थी. उनकी हर एक रैली में जनसैलाब देखने को मिलता था. बिहार के लोगों का कहना है कि 'लालू को वोट देना न देना मैटर नहीं करता है उनको सुनना अच्छा लगता है, जरूरी नहीं कि जो भी उनको सुनने आया है वह उन्हीं को वोट देगा. यहां तो जो भी आता है वह सिर्फ लालूजी को सुनने आता है.' 

बिन लालू यादव के बिहार चुनाव की कल्पना करना व्यर्थ है

यह बात सुनने में तो ज़रूर अटपटी लग रही होगी लेकिन सच यही है. लालू प्रसाद यादव बिहार के ज़मीनी नेता माने जाते हैं और नितीश कुमार से ज़्यादा पापूलर भी हैं. दोनों ही नेताओं का राजनीतिक जीवन एक दूसरे के साथ ही मिलकर शुरू हुआ था. इतिहास की बात न करके वर्तमान स्थिति की बात करते हैं. बिहार के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव के न होने से तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी को बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा इसमें किसी को भी कोई श़क नहीं है.

लालू प्रसाद यादव की बातें बिहार के लोगों पर गहरा असर पैदा करती है, महागठबंधन से उपेंद्र कुशवाहा और मांझी के...

बिहार का चुनाव हो और उसमें लालू प्रसाद यादव का नाम न हो ये लगभग नामुमकिन सा है. बिहार के मुख्यमंत्री समेत सत्ता में बैठे हर एक नेता के ज़बान पर बस लालू प्रसाद यादव हैं. सभी लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार का रट्टा मारे बैठे हुए हैं. लेकिन इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि लालू प्रसाद यादव के झोली में कई सारी उपलब्धियां भी हैं जो उन्हें बाकी नेताओं से अलग करती है. वर्तमान में बिहार के चुनाव में एक हफ्ते से भी कम का समय रह गया है और इस चुनाव से लालू प्रसाद यादव पूरी तरह से दूर हैं और जेल में सजा काट रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव और नितीश कुमार एक साथ थे, वह मुकाबला तो एकतरफा था लेकिन लालू ने उस चुनाव में भी अपनी पूरी मेहनत झोंक रखी थी. उनकी हर एक रैली में जनसैलाब देखने को मिलता था. बिहार के लोगों का कहना है कि 'लालू को वोट देना न देना मैटर नहीं करता है उनको सुनना अच्छा लगता है, जरूरी नहीं कि जो भी उनको सुनने आया है वह उन्हीं को वोट देगा. यहां तो जो भी आता है वह सिर्फ लालूजी को सुनने आता है.' 

बिन लालू यादव के बिहार चुनाव की कल्पना करना व्यर्थ है

यह बात सुनने में तो ज़रूर अटपटी लग रही होगी लेकिन सच यही है. लालू प्रसाद यादव बिहार के ज़मीनी नेता माने जाते हैं और नितीश कुमार से ज़्यादा पापूलर भी हैं. दोनों ही नेताओं का राजनीतिक जीवन एक दूसरे के साथ ही मिलकर शुरू हुआ था. इतिहास की बात न करके वर्तमान स्थिति की बात करते हैं. बिहार के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव के न होने से तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी को बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा इसमें किसी को भी कोई श़क नहीं है.

लालू प्रसाद यादव की बातें बिहार के लोगों पर गहरा असर पैदा करती है, महागठबंधन से उपेंद्र कुशवाहा और मांझी के चले जाने से अब महागठबंधन महज गठबंधन रह गया है, इसी महागठबंधन को लालू प्रसाद यादव ने खड़ा किया था 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त. लालू प्रसाद यादव की गैरमौजूदगी ने महागठबंधन को तितर बितर कर दिया है. ऐसा ही पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त भी हुआ था.

नितीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के एक होने में लालू प्रसाद यादव का ही मुख्य योगदान था उन्होंने ही नितीश कुमार को पूरा भरोसा दे रखा था कि चुनाव में जीतने के बाद नितीश ही मुख्यमंत्री बनेंगे. लालू ने अपने वादे के अनुसार खुद ज़्यादा सीट जीतने के बाद भी नितीश को ही मुख्यमंत्री पद सौंपा, जबकि अपने बेटे को उपमुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठाया. अब गठबंधन का कोई भी दूसरा नेता लालू प्रसाद यादव जैसा असर नहीं रखता है फिर वह तेजस्वी यादव हों या फिर राहुल गांधी.

बिहार चुनाव के दरमियान चुनाव प्रचार में लालू प्रसाद यादव अपने मुखर अंदाज और मज़ाकिया अंदाज़ में जनता से रूबरू हुआ करते थे. उनका ठहाके लगाकर जनता को हसांना हो या फिर अंग्रेज़ी शब्दों का इस्तेमाल कर विपक्षी दल के नेताओं को कठघरे में खड़ा करना, वह इन सबसे लोगों को दिल भी जीत लिया करते थे, और इसी अंदाज़ के चलते लोग उनको खूब सुनते और पसंद भी किया करते थे. अब वह जेल मे हैं तो लोग उनको याद कर रहे हैं.

चुनाव प्रचार करने लालू के बेटे तेजस्वी के साथ साथ तेजप्रताप यादव भी निकल चुके हैं, वह समस्तीपुर के हसनपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और जनसंपर्क के दौरान खूब हंसी ठिठोली लगा रहे हैं. हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान वह एक टूटी सड़क पर रुक गए और सड़क के टूटे डामर को हाथ में लेते हुए तस्वीर खिंचा डाली और ट्वीट करते हुए कहा कि 'कुशासन (नितीश कुमार) ने बिहार में पोर्टेबल विकास किया है, हसनपुर की सड़क ऐसी है कि आप चाहें तो मुट्ठी में दबाइये और घर लेते जाइए.'

उनके इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर उनकी तुलना लालू प्रसाद यादव से होने लगी. लालू प्रसाद यादव भी ऐसी ही बातें करते हैं. तेज प्रताप यादव अपने अनोखे तरीके से चुनाव प्रचार करने के लिए जाने जाते हैं, वह सुर्खियों में भी छा जाते हैं लेकिन लालू प्रसाद यादव की कला सीखने के लिए तेजप्रताप यादव को अभी काफी मेहनत करनी पड़ेगी.

बिना लालू प्रसाद यादव के बिहार चुनाव का नतीजा कैसा रहेगा अभी इसपर कुछ इंतजार करना पड़ेगा लेकिन लालू प्रसाद यादव की कमी न सिर्फ उनकी पार्टी बल्कि बिहार की जनता और पत्रकारों को भी खूब खल रही है. चुनाव कैसा हो नतीजा कैसा हो लेकिन बिहार के चुनाव में असल तड़का तो लालू प्रसाद यादव ही लगाते हैं, वह तड़का इस चुनाव में पूरी तरह से गायब है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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