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बिहार का चुनाव तो रोमांचक स्थिति में पहुंच गया है दिल थाम लीजिए...

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 24 अक्टूबर, 2020 05:21 PM
  • 24 अक्टूबर, 2020 05:21 PM
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बिहार के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) में अब गिनती के दिन रह गए हैं, और सियासी समीकरण लगातार बदल रहे हैं. रोमांच से भरा यह चुनाव किस पटरी करवट लेगा इसका अंदाज़ा लगा पाना अंधेरे में तीर चलाने जैसा है. फिलहाल नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की चिंता बढ़ी हुई है.

बिहार का विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) अब सिर पर है और समीकरण हैं कि रोजाना बदल रहे हैं. चुनावी पंडित भी कशमकश मे हैं. हर दिन बिहार की सियासत में उलटफेर देखने को मिल रहा है. नए नए मुद्दों को उछालने की कोशिश हो रही है, तो राज्य के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए वादे पर वादे किए जा रहे हैं. मौजूदा हालात की बात की जाए तो बिहार में सत्ता पर बैठे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पर लालू यादव (Lalu Yadav) के बेटे तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं. राज्य में कौन किस पर हावी होगा इस पर अभी संशय बरकरार है लेकिन तेजस्वी का पलड़ा क्यों भारी है इस पर चर्चा होनी चाहिए. दरअसल अभी तक बिहार में जो भी मुद्दे उठे हैं वह तेजस्वी के द्वारा ही उठाए गए हैं. तेजस्वी यादव जिस तरह चाह रहे हैं वह वैसी ही राजनीतिक गुणा गणित तैयार कर रहे हैं. बिहार में मुख्य मुकाबला नीतीश और तेजस्वी के बीच है लेकिन तेजस्वी का कहना है कि नीतीश तो दौड़ में ही नहीं हैं बल्कि उनका मुकाबला तो भाजपा (BJP) से हैं जो नीतीश के चेहरे को मैदान में रख दोहरा खेल खेल रही है. तेजस्वी की मानें तो भाजपा नीतीश के चेहरे पर चुनाव तो लड़ रही है लेकिन अधिक सीट आने पर मुख्यमंत्री (Chief Minister) अपना ही बनाएगी.

बिहार में चुनाव से पहले जैसे समीकरण बन रहे हैं सीएम नीतीश कुमार की मुसीबत बढ़ने वाली है

यही बात लोजपा के चिराग पासवान भी मानते हैं जो नीतीश के तो खिलाफ हैं लेकिन भाजपा के साथ हैं. चिराग पासवान पिछले चुनाव से बेहतर की स्थिति में हैं और जातीय वोट के समीकरण में जुटे हुए हैं, अगर चिराग थोड़ा भी मुनाफे में आए तो नीतीश की चिंता बढ़ जानी तय है. बिहार के चुनाव में घमासान अपनी चरम सीमा पर पहुंच रही है. मुख्य मुकाबला एनडीए और...

बिहार का विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) अब सिर पर है और समीकरण हैं कि रोजाना बदल रहे हैं. चुनावी पंडित भी कशमकश मे हैं. हर दिन बिहार की सियासत में उलटफेर देखने को मिल रहा है. नए नए मुद्दों को उछालने की कोशिश हो रही है, तो राज्य के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए वादे पर वादे किए जा रहे हैं. मौजूदा हालात की बात की जाए तो बिहार में सत्ता पर बैठे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पर लालू यादव (Lalu Yadav) के बेटे तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं. राज्य में कौन किस पर हावी होगा इस पर अभी संशय बरकरार है लेकिन तेजस्वी का पलड़ा क्यों भारी है इस पर चर्चा होनी चाहिए. दरअसल अभी तक बिहार में जो भी मुद्दे उठे हैं वह तेजस्वी के द्वारा ही उठाए गए हैं. तेजस्वी यादव जिस तरह चाह रहे हैं वह वैसी ही राजनीतिक गुणा गणित तैयार कर रहे हैं. बिहार में मुख्य मुकाबला नीतीश और तेजस्वी के बीच है लेकिन तेजस्वी का कहना है कि नीतीश तो दौड़ में ही नहीं हैं बल्कि उनका मुकाबला तो भाजपा (BJP) से हैं जो नीतीश के चेहरे को मैदान में रख दोहरा खेल खेल रही है. तेजस्वी की मानें तो भाजपा नीतीश के चेहरे पर चुनाव तो लड़ रही है लेकिन अधिक सीट आने पर मुख्यमंत्री (Chief Minister) अपना ही बनाएगी.

बिहार में चुनाव से पहले जैसे समीकरण बन रहे हैं सीएम नीतीश कुमार की मुसीबत बढ़ने वाली है

यही बात लोजपा के चिराग पासवान भी मानते हैं जो नीतीश के तो खिलाफ हैं लेकिन भाजपा के साथ हैं. चिराग पासवान पिछले चुनाव से बेहतर की स्थिति में हैं और जातीय वोट के समीकरण में जुटे हुए हैं, अगर चिराग थोड़ा भी मुनाफे में आए तो नीतीश की चिंता बढ़ जानी तय है. बिहार के चुनाव में घमासान अपनी चरम सीमा पर पहुंच रही है. मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है. ऐसे में दोनों के ही शीर्ष नेता ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं.

एनडीए के सर्वोच्च नेता नरेंद्र मोदी भी पहुंच चुके हैं औऱ सामने कमान राहुल गांधी ने भी संभाल ली है. हालांकि तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के खिलाफ अकेले ही मोर्चा बनाए हुए हैं जिसकी काट न तो नीतीश की जदयू निकाल पाई है और न ही बिहार की भाजपा. चुनावी मैदान में मुद्दों को बहकाने के लिए योगी आदित्यनाथ भी उतर चुके हैं और देवेन्द्र फड़नवीस भी. लेकिन तेजस्वी द्वारा बिछाए गए जाल को अभी तक तोड़ने में दोनों ही विफल रहे हैं.

तेजस्वी यादव की रैलीयों में जनसैलाब उमड़ रहा है तो नीतीश कुमार की रैली में भी लालू ज़िंदाबाद के नारे लग रहे हैं. ये नीतीश कुमार की चिंता बढ़ा रहा है. हालांकि नरेंद्र मोदी के मैदान में आने से उलटफेर तो होगा लेकिन कितना होगा इसका अंदाज़ा फिलहाल नहीं लगाया जा सकता है. तेजस्वी यादव इस चुनाव में पूरी रणनीति के साथ चुनाव प्रचार कर रहे हैं. वह नरेंद्र मोदी को घेरने के बजाय नीतीश कुमार की सरकार को घेरने पर ज़्यादा फोकस कर रहे हैं.

राष्ट्रीय मुद्दे के बजाए स्थानीय मुद्दों पर बात कर रहे हैं और नीतीश के सवाल का जवाब देने के बजाय खुद सवाल खड़े कर रहे हैं. अपने सियासी हमले में तेजस्वी यादव तीखे हमले करने के साथ साथ युवा वर्ग को भी लुभाने की खूब मशक्कत कर रहे हैं. वह बेरोजगारी को लेकर सवाल दाग रहे हैं और 10 लाख नौकरी पहले ही साल देने का वादा कर रहे हैं. आवेदन में लगने वाली फीस को भी माफ करने की बात पर जोर दे रहे हैं. यही बात है कि उनकी चुनावी रैलियों के दौरान युवा वर्ग सबसे अधिक संख्या में जुट रहा है जोकि नीतीश कुमार के लिए खतरे की घंटी साबित हो रहा है.

तेजस्वी तो तेजस्वी, नीतीश कुमार खुद ही अपने बयानों में फंसते चले जा रहे हैं. नीतीश पहले तो तेजस्वी के 10 लाख नौकरी पर सवाल खड़े कर रहे थे लेकिन उनके अपने ही साथी भाजपा ने 19 लाख नौकरी का वादा कर डाला है जिसपर नीतीश को जवाब देते नहीं बन पा रहा है. नीतीश का एक बयान और उनके लिए काल बन गया जिसमें उन्होंने कहा था कि बिहार में कारखाने नहीं लग सकते हैं तेजस्वी हर रैली में अब नीतीश को घेर रहे हैं कि कारखाने लग सकते हैं अगर मंशा हो तब.

नीतीश की तो मंशा ही नहीं है कारखाने खोलने की वह थक चुके हैं. नीतीश कुमार तेजस्वी पर हमला करने के बजाए लालू यादव की बातें कर रहे हैं. लालू यादव के कार्यकाल को याद दिलाकर नीतीश खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं क्योंकि लालू यादव के कार्यकाल के बाद पिछले चुनाव में ही नीतीश ने लालू की पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था और अब अलग होने के बाद फिर लालू पर हमला करना नीतीश की ही छवी को खराब कर रहा है.

तेजस्वी यादव इस बात का पूरा फायदा उठा रहे हैं और सीधे नीतीश पर सियासी तीर चला रहे हैं. तेजस्वी सिर्फ रैलीयों में ही नहीं बल्कि सीटों के बंटवारे में भी गुणा-गणित तैयार किए बैठे हैं. तेजस्वी ने जो सीटों का बंटवारा किया है उसमें अधिकतर सीट ऐसी हैं कि जहां उनका मुकाबला नीतीश कुमार की पार्टी से है. एनडीए में नीतीश कुमार को 115 और भाजपा को 110 सीटों पर चुनाव लड़ना तय पाया गया है.

तेजस्वी यादव की राजद 144 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जिसमें 77 सीटों पर वह नीतीश कुमार के सामने है जबकि भाजपा के सामने वह 51 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. बिहार में सत्ता के खिलाफ हल्की लहर के भी चलने की बातें हो रही हैं यानी इसका फायदा तेजस्वी की राजद को होना तय है. वहीं चिराग पासवान का दावा है कि उनकी पार्टी लोजपा तो नीतीश की पार्टी से ज़्यादा सीट जीतने जा रही है.

वह नीतीश के खिलाफ मैदान मे हैं. चिराग पासवान जो भी वोट काटेंगे वह एनडीए का ही नुकसान करेंगे इसीलिए उन्हें वोटकटुआ नाम से भी पुकारा गया है जिसपर वह तिलमिला गए थे. बिहार के चुनाव में मसला जीत हार से ज़्यादा जातीय समीकरणों का है, जो जहां वोटबैंक बना लेगा सत्ता उसी के हाथ लगेगी. बिहार के चुनाव में क्या होगा इसके बारे में अभी कयास लगा पाना भी अंधेरे में तीर चलाने जितना कठिन है, हालांकि एक बात तो तय है कि चिराग के जाने से नीतीश की राह बहुत मुश्किल नज़र आने लगी है.

तेजस्वी यादव प्रचार के मामले में भी 20 साबित हो रहे हैं. वह एक दिन में 10-12 रैलीयां कर रहे हैं जबकि नीतीश कुमार 4-5 रैली ही संबोधित कर पा रहे हैं. लालू प्रसाद यादव की गैरमौजूदगी से तेजस्वी यादव के कंधे पर ज़िम्मेदारी बढ़ गई है जिसका उन्हें एहसास भी है और वह पूरे दमखम के साथ चुनाव प्रचार में हिस्सा ले रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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