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Bihar Election है उथल-पुथल होना तो लाजमी है!

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 19 जुलाई, 2020 11:10 PM
  • 19 जुलाई, 2020 11:10 PM
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कोई भी राज्य हो विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) में सियासी उठापटक देखने को मिलती है लेकिन बिहार (Bihar) में उठापटक का दौर कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है. बिहार में चुनाव (Bihar Assembly Elections) जैसे जैसे करीब आएगा सियासत का खेल अपना मोहरा बदलता जाएगा जिसमें शह-मात का खेल भरपूर देखने को मिलेगा.

कोरोना (Coronavirus ) के संकट के बीच बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) को लेकर सरगर्मियां अपने पूरे शबाब पर हैं. जुबानी जंग का सिलसिला इस कद्र हावी है कि लगता है कि कोरोना वायरस का बिहार की राजनीति से कोई लेना देना ही नहीं है. सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी परवान पा चुका है. चुनाव आयोग की ओर से अभी सिर्फ इतना ही कहा गया है कि बिहार में चुनाव अपने तय समय पर ही होंगे. माना जा रहा है कि चुनाव आयोग नंवबर महीने में बिहार विधानसभा का चुनाव करा सकती है. बिहार के विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नज़र होती है. राजनीति का अखाड़ा उत्तर प्रदेश के बाद बिहार ही है, जहां विधानसभा की कुल 243 सीटों पर चुनाव होना है. बिहार के चुनाव में जितनी उठापटक देखने को मिलती है उतनी शायद ही किसी अन्य प्रदेश के चुनाव में देखने को मिलती हो.

जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएंगे एक के बाद एक कई चीजें हमें रोचक दिखाई देंगी

बिहार में गठबंधन और महागठबंधन, दोनों ही एक ही चुनाव में दिखने को मिल जाते हैं. फिलहाल गठबंधन सत्तापक्ष मे है. सत्ता पर नीतीश कुमार के नेतृव्य में भाजपा, जदयू और लोजपा का गठबंधन है. इस गठबंधन ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन दिखाया था. वहीं दूसरी ओर महागठबंधन के रूप में विपक्षी धड़े के दल शामिल हैं जिनका 2019 में सूपड़ा ही साफ हो गया था.

इस महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, रालोसपा, हम और वीआईपी सब मिलकर साथ चुनाव लड़े थे इसके बावजूद बिहार की 40 सीटों में से सिर्फ 1 सीट ही इनके खाते में आ पाई थी. महागठबंधन ने जो गलतियां लोकसभा चुनावों के वक्त की थी वही गलती अब विधानसभा चुनावों में भी दोहरा रही है. एक ओर जहां सत्ता पक्ष नीतीश कुमार के नेतृव्य में मैदान में पूरी तरह से कूद गई है और...

कोरोना (Coronavirus ) के संकट के बीच बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) को लेकर सरगर्मियां अपने पूरे शबाब पर हैं. जुबानी जंग का सिलसिला इस कद्र हावी है कि लगता है कि कोरोना वायरस का बिहार की राजनीति से कोई लेना देना ही नहीं है. सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी परवान पा चुका है. चुनाव आयोग की ओर से अभी सिर्फ इतना ही कहा गया है कि बिहार में चुनाव अपने तय समय पर ही होंगे. माना जा रहा है कि चुनाव आयोग नंवबर महीने में बिहार विधानसभा का चुनाव करा सकती है. बिहार के विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नज़र होती है. राजनीति का अखाड़ा उत्तर प्रदेश के बाद बिहार ही है, जहां विधानसभा की कुल 243 सीटों पर चुनाव होना है. बिहार के चुनाव में जितनी उठापटक देखने को मिलती है उतनी शायद ही किसी अन्य प्रदेश के चुनाव में देखने को मिलती हो.

जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएंगे एक के बाद एक कई चीजें हमें रोचक दिखाई देंगी

बिहार में गठबंधन और महागठबंधन, दोनों ही एक ही चुनाव में दिखने को मिल जाते हैं. फिलहाल गठबंधन सत्तापक्ष मे है. सत्ता पर नीतीश कुमार के नेतृव्य में भाजपा, जदयू और लोजपा का गठबंधन है. इस गठबंधन ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन दिखाया था. वहीं दूसरी ओर महागठबंधन के रूप में विपक्षी धड़े के दल शामिल हैं जिनका 2019 में सूपड़ा ही साफ हो गया था.

इस महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, रालोसपा, हम और वीआईपी सब मिलकर साथ चुनाव लड़े थे इसके बावजूद बिहार की 40 सीटों में से सिर्फ 1 सीट ही इनके खाते में आ पाई थी. महागठबंधन ने जो गलतियां लोकसभा चुनावों के वक्त की थी वही गलती अब विधानसभा चुनावों में भी दोहरा रही है. एक ओर जहां सत्ता पक्ष नीतीश कुमार के नेतृव्य में मैदान में पूरी तरह से कूद गई है और वर्चुअल रैलियां कर रही है तो वहीं दूसरी ओर महगठबंधन में आपसी तालमेल ही नहीं बैठ पाया है.

महागठबंधन न तो अभी तक अपना चेहरा ढ़ूंढ़ पाया है और न ही सीटों का गुणा-गणित तय हो सका है. लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने तो ऐलान कर दिया है कि महागठबंधन का चेहरा पूर्व मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव होंगें लेकिन अभी तक महागठबंधन में इस पर फैसला नहीं हो सका है. माना यह भी जा रहा है कि महागठबंधन में बहुत हद तक फूट पड़ ही चुकी है बस ऐलान होना बाकी है.

महागठबंधन में शामिल हम के मांझी नाराज़ चल रहे हैं जिनको मनाना महागठबंधन के अन्य दलों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है. वहीं कांग्रेस भी हमेशा की तरह लेटलतीफी करती ही जा रही है जिसका नुकसान महागठबंधन को उठाना तय है. ये तमाम मुश्किलें महागठबंधन को खुद भी मालूम हो गई है, तभी तो इस महागठबंधन के मुख्य चेहरों में से एक तेजस्वी यादव चुनाव पर ही सवाल खड़े करने लगे हैं.

तेजस्वी यादव ने इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सवाल उठा दिया है कि 'कारोनाकाल चुनाव के लिए उपयुक्त समय नहीं है, शवों के ढ़ेर पर चुनाव कराना सही नहीं है.' हालांकि इससे पहले चुनाव आयोग ने बिहार के सभी दलों की बैठक बुलाई थी और चुनाव को लेकर उनकी राय मांगी थी तब किसी भी दल ने कोरोना का हवाला देकर चुनाव को स्थगित करने की कोई मांग नहीं की थी.

लेकिन अचानक से तेजस्वी यादव का समय पर होने वाले चुनाव को लेकर जो बयान आया है वह साफ इशारा करता है कि तेजस्वी यादव कहीं न कहीं चुनाव में खुद को पिछड़ता हुआ मान रहे हैं जिसकी वजह से वह अभी चुनाव में नहीं जाना चाहते हैं. हालांकि इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि बिहार में कोरोना वायरस का कहर कम नहीं हुआ है.

अभी वहां कोरोना के मामले बढ़ेंगें. चुनाव आयोग कितनी भी पुख्ता तैयारी कर ले लेकिन बिहार में सोशल डिस्टेंस को बनाए रख कर चुनाव करा पाना चुनाव आयोग के लिए किसी बड़े किले को भेदने से कम नहीं होगा. फिर भी अगर चुनाव आयोग ने ठान ही लिया है तो वह चुनाव में अपने बंदोबस्त को दुरूस्त कर चुनाव करा ही सकती है.

चुनाव कब कराना है कब नहीं कराना है यह तो सीधे चुनाव आयोग पर ही निर्भर करता है लेकिन तेजस्वी यादव ने चुनाव को लेकर जिस तरह नीतीश कुमार को अपने लपेटे में घसीटा है वह उनका अपना राजनैतिक एजेंडा भी हो सकता है लेकिन हकीकत यह भी है कि बिहार के विधानसभा चुनाव जैसे जैसे नज़दीक आते जाएंगे वहां की सियासी उठापटक भी वैसे वैसे ही अपना रंग बदलती रहेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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