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पकौड़ा विमर्श चलता रहेगा, पहले ये जान लें कि यूपी में छात्र परीक्षा छोड़ क्यों रहे हैं?

    • आईचौक
    • Updated: 10 फरवरी, 2018 03:31 PM
  • 10 फरवरी, 2018 03:31 PM
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बेहतर तो ये होगा कि योगी सरकार परीक्षा छोड़ने वाले छात्रों की काउंसिलिंग कराये और यूपी बोर्ड इम्तिहान छोड़ने के पीछे कोई और है तो उसके पीछे एसटीएफ लगाये - तभी अच्छा रिजल्ट मिल पाएगा.

पकौड़ा के बहाने बहस रोजगार पर कम और राजनीति पर ज्यादा चल रही है. रोजगार कैसा? स्वरोजगार या किसी और द्वारा मुहैया कराया हुआ? काफी हद तक ये बहस नौकरी पर आकर ठहरती है और आखिरी स्टॉप है - सरकारी नौकरी.

अगर यूपी के मौजूदा माहौल को देखें तो बगैर इम्तिहान दिये भला क्या मिल सकता है? फिर तो पकौड़े का कारोबार या स्वरोजगार ही सर्वोत्तम उपाय है.

मगर, क्या वहां इम्तिहान नहीं देने पड़ेंगे? जब जिंदगी ने कदम कदम पर टेस्ट सेंटर बना रखा है तो कोई कहां तक भाग सकता है भला? यूपी बोर्ड का इम्तिहान छोड़ने वाले छात्रों ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं. सवाल सिर्फ ये नहीं है कि कितने छात्रों ने इम्तिहान छोड़ दिया, बड़ा सवाल ये है कि इतने सारे छात्र परीक्षा छोड़ क्यों रहे हैं?

और सिर्फ सवाल समझ लेना ही पर्याप्त नहीं होगा - उपाय क्या है. देश का भविष्य कहां कहां से इम्तिहान छोड़कर भागेगा? इसके लिए आगे आने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार या छात्र और उनके अभिभावकों की नहीं है - पूरे समाज की है.

...गंगा सागर एक बार!

सब तीर्थ बार बार, गंगा सागर एक बार. यूपी बोर्ड के इम्तिहानों ने इस जुमले को भी डबल मीनिंग वाला बना दिया था. 'सब तीर्थ' का आशय उन सभी स्कूलों से होता था जहां के प्रिंसिपल सख्ती बरत रहे होते थे - और 'गंगा सागर' उन स्कूलों को कहा जाता था जहां एक बार सेंटर हो जाये तो फेल होने का कोई स्कोप नहीं बचता था. पूर्वांचल के कई स्कूलों में लंबे अरसे तक ये जुमला प्रचलित रहा.

छात्रों की समस्याएं जानकर उनका समाधान खोजना होगा

1992 में ये जुमला लोगों के मुहं से निकलना बंद हो गया था. तब यूपी में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और मौजूदा केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह उनकी कैबिनेट में तब शिक्षा विभाग के प्रभारी थे. नकल विरोधी...

पकौड़ा के बहाने बहस रोजगार पर कम और राजनीति पर ज्यादा चल रही है. रोजगार कैसा? स्वरोजगार या किसी और द्वारा मुहैया कराया हुआ? काफी हद तक ये बहस नौकरी पर आकर ठहरती है और आखिरी स्टॉप है - सरकारी नौकरी.

अगर यूपी के मौजूदा माहौल को देखें तो बगैर इम्तिहान दिये भला क्या मिल सकता है? फिर तो पकौड़े का कारोबार या स्वरोजगार ही सर्वोत्तम उपाय है.

मगर, क्या वहां इम्तिहान नहीं देने पड़ेंगे? जब जिंदगी ने कदम कदम पर टेस्ट सेंटर बना रखा है तो कोई कहां तक भाग सकता है भला? यूपी बोर्ड का इम्तिहान छोड़ने वाले छात्रों ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं. सवाल सिर्फ ये नहीं है कि कितने छात्रों ने इम्तिहान छोड़ दिया, बड़ा सवाल ये है कि इतने सारे छात्र परीक्षा छोड़ क्यों रहे हैं?

और सिर्फ सवाल समझ लेना ही पर्याप्त नहीं होगा - उपाय क्या है. देश का भविष्य कहां कहां से इम्तिहान छोड़कर भागेगा? इसके लिए आगे आने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार या छात्र और उनके अभिभावकों की नहीं है - पूरे समाज की है.

...गंगा सागर एक बार!

सब तीर्थ बार बार, गंगा सागर एक बार. यूपी बोर्ड के इम्तिहानों ने इस जुमले को भी डबल मीनिंग वाला बना दिया था. 'सब तीर्थ' का आशय उन सभी स्कूलों से होता था जहां के प्रिंसिपल सख्ती बरत रहे होते थे - और 'गंगा सागर' उन स्कूलों को कहा जाता था जहां एक बार सेंटर हो जाये तो फेल होने का कोई स्कोप नहीं बचता था. पूर्वांचल के कई स्कूलों में लंबे अरसे तक ये जुमला प्रचलित रहा.

छात्रों की समस्याएं जानकर उनका समाधान खोजना होगा

1992 में ये जुमला लोगों के मुहं से निकलना बंद हो गया था. तब यूपी में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और मौजूदा केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह उनकी कैबिनेट में तब शिक्षा विभाग के प्रभारी थे. नकल विरोधी अध्यादेश में कई चीजों को गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया था. तब तो छात्रों से लेकर परीक्षा ड्यूटी में लगे अध्यापकों और प्रिंसिपल तक सहम गये थे. नकल माफियाओं की कौन कहे. इम्तिहान के दौरान बड़ी संख्या में छात्र जेल भी भेजे गये. ऐसा सिर्फ एक साल ही हो पाया क्योंकि चुनाव में बीजेपी हार गयी और मुलायम सिंह की सरकार ने अध्यादेश को रद्द कर दिया. फिर कुछ साल तक तक ये जुमला मार्केट में फिर से छा गया.

1998 में फिर बीजेपी की सरकार बनी और राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने लेकिन कानून में तब्दीली कर उसे काफी नरम कर दिया गया जिसका लोग फायदा उठाने लगे. यूपी की मौजूदा योगी सरकार ने एक बार फिर वैसी ही सख्ती दिखायी है जो अब तक की बीजेपी सरकारों में देखने को मिलता रहा है. योगी ने तकनीक का इस्तेमाल कर इसे नये सिरे से असरदार बनाने की कोशिश की है और उसका असर नजर भी आ रहा है - सीसीटीवी के कारण लाखों छात्र इम्तिहान छोड़ चुके हैं. हालांकि, कुछ मामले ऐसे भी सामने आ रहे हैं जो तकनीक की देन हैं - और प्रशासन अपने हिसाब से एहतियाती कदम भी उठा रहा है.

1. देखने में ताबीज, हकीकत में कस्टमाइज्ड मोबाइल - सिद्धार्थनगर के एक स्कूल में तमाम इंतजामात को चकमा देते हुए एक छात्र ताबीज पहन कर पहुंचा था. प्रिंसिपल ऑफिस में मॉनिटरिंग के दौरान उसकी गतिविधियां संदिग्ध लगीं. कॉपी मिलने के बाद वो बार बार झुक कर कुछ करने की कोशिश कर रहा था. चेक करने पर पता चला कि ताबीज में तो मोबाइल फोन है. फिर उसके खिलाफ कार्रवाई हुई. दरअसल, वो झुक कर उसे कनेक्ट करने की कोशिश कर रहा था.

अगर सीसीटीवी का इस्तेमाल न हुआ होता तो शायद ही उसकी तरकीब पकड़ में आती. प्रशासन ने छात्रों के उन सभी चीजों को अंदर ले जाने पर रोक लगा दी है जिसका बेजा इस्तेमाल संभव लग रहा है.

2. एक जगह जिला विद्यालय निरीक्षक ने स्टेप्लर ले जाने पर रोक लगायी तो मालूम हुआ परीक्षा केंद्र के बाहर अंबार लग गया. असल में छात्रों द्वारा कॉपी के साथ रुपये नत्थी करने की शिकायतें मिल रही थीं. अक्सर देखा गया है कि छात्र कॉपी के साथ रुपये लगा कर परीक्षा में पास करने की गुजारिश करते हैं. कई छात्र तो इमोशनल लेटर भी लिख कर भेजते हैं. गरीबी और सहानुभूति बटोरने के तमाम बहानों के अलावा दुआओं की भी कामना रहती है.

सही और सटीक हैं सरकारी कदम

पुलिस एनकाउंटर, एंटी रोमियो स्क्वॉड और दूसरे कई ऐसे मामले हैं जिनमें योगी सरकार की नीतियां सवालों के घेरे में रही है - लेकिन नकल रोकने के प्रभावी उपाय के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ करनी चाहिये. योगी ही नहीं, तमाम विवादित नीतियों के लिए निशाने पर रहने वाली बीजेपी भी प्रशंसा की हकदार है. ये बीजेपी की ही तीसरी सरकार है जब नकल पर अंकुश लगाने के लिए ऐसे ठोस उपाय और मजबूत इच्छाशक्ति नजर आ रही है. ये पहला मौका है जब नकल रोकने के लिए सरकार यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स का इस्तेमाल कर रही है. वैसे अखिलेश सरकार में भी ऐसा पहला मौका आया था जब मायावती के खिलाफ टिप्पणी करने वाले दया शंकर सिंह को गिरफ्तार करने के लिए एसटीएफ की मदद ली गयी थी. किसी भी राजनीतिक गिरफ्तारी के लिए ये पहला प्रयोग था. वैसे दया शंकर सिंह फिर से बीजेपी के उपाध्यक्ष बना दिये गये हैं. यूपी बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय ने उन्हें अपनी टीम में शामिल कर लिया है - और उनकी पत्नी तो योगी सरकार में पहले से ही मंत्री हैं.

छात्रों की काउंसिलिंग और माफिया के पीछे एसटीएफ लगाना जरूरी हो गया है

देखा जाये तो योगी सरकार ने नकल रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ शिक्षा विभाग पर नहीं छोड़ा है बल्कि पूरा सरकारी अमला झोंक रखा है. जिला विद्यालय निरीक्षक को खुफिया जानकारी देने के लिए एलआईयू यानि लोकल इंटेलिजेंस यूनिट को भी मोर्चे पर तैनात कर दिया गया है.

सीसीटीवी तो अपना कमाल दिखा ही रहा है, छात्रों को कॉपी के खाली पन्ने क्रॉस करने की भी हिदायत दी गयी है. कॉपी जमा करते वक्त कक्ष निरीक्षकों को चेक कर खाली पन्ने क्रॉस करने को कहा गया है ताकि बाद में कुछ लिखने की गुंजाइश न बचने पाये.

यूपी बोर्ड की परीक्षाएं 6 फरवरी, 2018 से शुरू हुई हैं और अब तक 10 लाख से ज्यादा छात्रों के इम्तिहान छोड़ देने की खबर है. ये हाल तब है जब यूपी बोर्ड ने पहले दस स्थान पर आने वाले छात्रों को एक लाख का पुरस्कार देने की घोषणा की है. समझना बेहद जरूरी हो गया है कि आखिर इतनी बड़ी तादाद में छात्र परीक्षा क्यों छोड़ रहे हैं?

ये कौन हैं परीक्षा छोड़ने वाले छात्र?

हाल फिलहाल परीक्षा में नकल की ताजा स्थिति उस वक्त सामने आयी जब बिहार बोर्ड की टॉपर छात्रा अपना विषय तक नहीं बता पायी, सवालों के जवाब कौन कहे. उसकी एक बात से तो बिहार का पूरा शिक्षा तंत्र ही हंसी का पात्र बन गया जब उसने अपने सब्जेक्ट का नाम बताया - प्रॉडिकल साइंस.

प्रॉडिकल साइंस परीक्षा!

उस छात्रा और उसके पिता सहित फर्जीवाड़े में शामिल तमाम लोगों को जेल तक जाना पड़ा. बाद में बिहार की नीतीश सरकार ने कुछ कड़े कदम भी उठाये. यूपी बोर्ड की परीक्षा देनेवाले करीब 66 लाख छात्र बताये गये हैं. 83 हजार के आवेदन पहले ही निरस्त किये जा चुके हैं. फिर भी 10 लाख से ज्यादा छात्र परीक्षा छोड़ चुके हैं.

ये समझना जरूरी हो गया है कि आखिर ये कौन छात्र हैं? क्या इन छात्रों को पढ़ाई ही नहीं करनी या फिर अगले साल किसी सहूलियत के इंतजार में ऐसा कदम उठा रहे हैं.

क्या इनके इम्तिहान छोड़ने की वजह सीसीटीवी हो सकती है? अगर ऐसा है तो इन्हें सीसीटीवी के दायरे में आने से किस तरह का डर हो सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये ऐसे तत्व हैं जो छात्र के रूप में परीक्षा तो देना चाहते हैं लेकिन पकड़े जाने के डर से परीक्षा से दूर रहना बेहतर समझ रहे हैं. अगर ऐसी बात है तो इसकी निश्चित रूप से गहराई से छानबीन होनी चाहिये.

योगी सरकार को इसकी वजह जानने की कोशिश करनी चाहिये. आखिर उनके डर की वजह क्या है? अगर इसकी वजह वे तत्व हैं जो सूबे में नकल माफिया के नाम से कुख्यात हैं तो एसटीएफ को उनके पीछे भी लगाना चाहिये. अगर कुछ छात्र ऐसे हैं जो 'एग्जाम सिंड्रोम' के चलते ऐसा कर रहे हैं तो सरकार को उन्हें प्यार से बैठाकर उनके काउंसिलिंग के इंतजाम भी करने चाहिए.

देखा तो ये भी गया है कि नकल के मुद्दे पर यूपी की राजनीति भी पलटी मार जाती है, वरना मुलायम सरकार को कल्याण सरकार का नकल विरोधी अध्यादेश रद्द करने की क्या जरूरत थी? बड़ी अच्छी बात है कि योगी सरकार वोट बैंक के चक्कर में न्यू इंडिया के वोटर को रिझाने की बजाय सही रास्ते पर लाने की कोशिश कर रही है. इम्तिहान तो पकौड़े के कारोबार में भी देना होगा. बोर्ड तो एक या दो बार इम्तिहान लेगा. पकौड़ा तो बार बार लेगा - ताउम्र!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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