• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

बलिया कांड क्या है? यदि ये 'जंगलराज' नहीं तो बिहार को BJP डरा क्यों रही है?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 16 अक्टूबर, 2020 09:05 PM
  • 16 अक्टूबर, 2020 08:59 PM
offline
बलिया में हुए एक मर्डर (Ballia Murder) के बाद बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह (BJP MLA Surendra Singh) ने बड़े ही अजीब तरीके से मुख्य आरोपी का बचाव किया है - अफसरों को तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ (Yogi Adityanath) ने सस्पेंड कर दिया है, लेकिन बीजेपी क्या अपने विधायक के खिलाफ भी कोई एक्शन लेगी?

बलिया के एक गांव में हुआ मर्डर (Ballia Murder) उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की पूरी पोल-पट्टी खोल दे रहा है. दिन दहाड़े मर्डर और वो भी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में, ऊपर से थाने की पुलिस पर हत्या के मुख्य आरोपी को भगा देने का आरोप है - आखिर उत्तर प्रदेश की के कानून-व्यवस्था को लेकर इस घटना से बेहतरीन नमूना और हो भी क्या सकता है!

सिर्फ अधिकारियों की किंकर्तव्यविमूढ़ता और पुलिस की लापरवाही की कौन कहे, इलाके के बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह (BJP MLA Surendra Singh) तो मुख्य आरोपी के बचाव में न्यूटन के नियम की दुहाई दे रहे हैं - 'हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है.' वैसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने SDM और पुलिस के CO को सस्पेंड कर दिया है.

एक तरफ तो बीजेपी नेतृत्व बिहार चुनाव में लोगों को लालू यादव और राबड़ी यादव शासन के 'जंगलराज' की यादों को भूलने नहीं देना चाहता, लेकिन ठीक उसी वक्त यूपी किस रास्ते पर बढ़ रहा है किसी का ध्यान क्यों नहीं जा रहा है, समझना मुश्किल हो रहा है.

हाथरस से लेकर बलिया तक की घटनाएं अगर यूपी 'जंगलराज' का नमूना नहीं हैं, फिर तो सवाल उठता है कि बिहार चुनाव में बीजेपी अपने एनडीए के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार के साथ मिल कर लोगों किस चीज का डर दिखा रही है?

बिहार चुनाव 2020 वोट देने वाली युवा पीढ़ी ने उस जंगलराज को अपनी आंखों से नहीं देखा है - लेकिन क्या यूपी में फिलहाल जो कुछ हो रहा है बिहार में बताया जाने वाला जंगलराज बहुत अलग था? यूपी में भी तो हत्या, बलात्कार, अपहरण हो ही रहे हैं और एनकाउंटर भी - अब तो यूपी पुलिस की गाड़ियों का पलटना भी मुहावरे के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है.

'जंगलराज' कैसा होता है?

खबर तो ऐसे आती है जब दो पक्षों में झगड़ा होता है. मारपीट होती है. लाठी, डंडे और ईंट-पत्थर चलते हैं - और फिर गोली भी चल जाती है. जानकारी मिलते ही पुलिस घटनास्थल की ओर रवाना होती है और अक्सर हमलावरों के भाग जाने के काफी देर बाद...

बलिया के एक गांव में हुआ मर्डर (Ballia Murder) उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की पूरी पोल-पट्टी खोल दे रहा है. दिन दहाड़े मर्डर और वो भी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में, ऊपर से थाने की पुलिस पर हत्या के मुख्य आरोपी को भगा देने का आरोप है - आखिर उत्तर प्रदेश की के कानून-व्यवस्था को लेकर इस घटना से बेहतरीन नमूना और हो भी क्या सकता है!

सिर्फ अधिकारियों की किंकर्तव्यविमूढ़ता और पुलिस की लापरवाही की कौन कहे, इलाके के बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह (BJP MLA Surendra Singh) तो मुख्य आरोपी के बचाव में न्यूटन के नियम की दुहाई दे रहे हैं - 'हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है.' वैसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने SDM और पुलिस के CO को सस्पेंड कर दिया है.

एक तरफ तो बीजेपी नेतृत्व बिहार चुनाव में लोगों को लालू यादव और राबड़ी यादव शासन के 'जंगलराज' की यादों को भूलने नहीं देना चाहता, लेकिन ठीक उसी वक्त यूपी किस रास्ते पर बढ़ रहा है किसी का ध्यान क्यों नहीं जा रहा है, समझना मुश्किल हो रहा है.

हाथरस से लेकर बलिया तक की घटनाएं अगर यूपी 'जंगलराज' का नमूना नहीं हैं, फिर तो सवाल उठता है कि बिहार चुनाव में बीजेपी अपने एनडीए के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार के साथ मिल कर लोगों किस चीज का डर दिखा रही है?

बिहार चुनाव 2020 वोट देने वाली युवा पीढ़ी ने उस जंगलराज को अपनी आंखों से नहीं देखा है - लेकिन क्या यूपी में फिलहाल जो कुछ हो रहा है बिहार में बताया जाने वाला जंगलराज बहुत अलग था? यूपी में भी तो हत्या, बलात्कार, अपहरण हो ही रहे हैं और एनकाउंटर भी - अब तो यूपी पुलिस की गाड़ियों का पलटना भी मुहावरे के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है.

'जंगलराज' कैसा होता है?

खबर तो ऐसे आती है जब दो पक्षों में झगड़ा होता है. मारपीट होती है. लाठी, डंडे और ईंट-पत्थर चलते हैं - और फिर गोली भी चल जाती है. जानकारी मिलते ही पुलिस घटनास्थल की ओर रवाना होती है और अक्सर हमलावरों के भाग जाने के काफी देर बाद इलाके की पुलिस मौके पर पहुंचती है.

उत्तर प्रदेश के बलिया के दुर्जनपुर गांव में ठीक इसका उलटा होता है. एसडीएम और पुलिस के सर्कल ऑफिसर सदल बल पहले से ही मौके पर मौजूद होते हैं. जो कुछ भी होता है वहां सबकी आंखों के सामने होता है. पहले गर्मागर्म बहस होती है. फिर बहस मारपीट में बदल जाती है. देखते ही देखते लाठी-डंडे के साथ ही पत्थरबाजी शुरू हो जाती है - और फिर एक शख्स गोली चला देता है. दूसरे पक्ष के एक व्यक्ति को गोली लगती है, जो अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में ही दम तोड़ देता है.

फिर लोग हमलावर को घेर लेते हैं और तभी पुलिस भी सामने से आ धमकती है. लोग पीछे हट जाते हैं, ये सोच कर कि पुलिस गोली मारने वाले को पकड़ लेगी - लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं होता. बल्कि वो होता है जिसके बारे में शायद ही कोई कल्पना करता हो.

वायरल वीडियो से ली गयी तस्वीर - पुलिसवालों से घिरा हत्या का मुख्य आरोपी

अचानक मालूम होता है कि पुलिस वहीं खड़ी है और हमलावर भाग जाता है. दूर खड़े कुछ लोग वीडियो भी बना रहे होते हैं और ऐसे ही एक वायरल वीडियो में पूरा नजारा नजर आता है. जिस व्यक्ति की हत्या हो जाती है उसके घर वालों का आरोप है कि पुलिस ने जानबूझ कर हमलावर को भगा दिया. आरोप है कि जब लोग लाठी डंडा लेकर हमलावर का पीछा कर रहे थे तो पुलिस ने जानबूझ कर उसे भगाने के लिए घेरा बना लिया था और मौका पाकर उसे भाग जाने दिया.

पुलिस के मौके पर होने के बावजूद हत्या हो जाने और हत्यारे के पुलिस की पकड़ से भाग जाने को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पुलिस क्षेत्राधिकारी के साथ साथ एसडीएम को भी सस्पेंड कर देते हैं. पुलिस के डीआईजी मौके पर पहुंचते हैं और इलाके में डेरा डाल देते हैं. पुलिस धीरेंद्र प्रताप सिंह सहित आठ लोगों के खिलाफ नामजद और करीब दर्जन भर अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करती है. पुलिस की टीम जगह जगह दबिश डाल कर पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर लेती है.

ये घटना तब हुई जब सरकारी कोटे की दो दुकानों के आवंटन के लिए पंचायत भवन पर बैठक बुलायी गयी थी. एसडीएम और सीओ के साथ साथ बीडीओ भी मौजूद थे. एहतियात के तौर पर पुलिस फोर्स को भी बुला लिया गया था. दुकानों के लिए कुछ सेल्फ-हेल्प ग्रुपों की तरफ से आवेदन किया गया था, लेकिन कुछ ऐसी बातें हुईं कि दो पक्षों में झगड़ा हो गया और अंत में एक हत्या भी.

सवाल ये है कि कानून व्यवस्था को लेकर आखिर किन परिस्थितियों में 'जंगलराज' की संज्ञा दी जाती है? भीड़ ने गोली मारने वाले को घेर लिया हो तो बेशक पुलिस को आगे बढ़ कर अपनी ड्यूटी निभानी चाहिये. निश्चित तौर पर पुलिस को किसी को कानून हाथ में लेने का मौका नहीं देना चाहिये. मॉब लिंचिंग भी अपराध ही होता है.

तब क्या कहा जाएगा जब पुलिस भीड़ के आगे आकर आरोपी को पकड़ने और गिरफ्तार करने की जगह उसके भागने में मददगार बन जाये?

जब मौके पर एसडीएम जैसा प्रशासनिक अधिकारी मौजूद हो और पुलिस टीम का अफसर क्षेत्राधिकारी मौजूद हो - तो क्या संभव है कि कुछ सिपाही और दारोगा किसी व्यक्ति को मौके से फरार हो जाने देंगे?

जाहिर है अफसरों के हुक्म की ही तामील हुई होगी. पुलिसकर्मियों ने जो भी किया होगा, अपने अफसरों की मर्जी से ही किया होगा - कोई एनकाउंटर तो चल नहीं रहा था और वो भी कोई पेशेवर अपराधी या गुमनाम चेहरा तो था नहीं कि उसके लिए मौके से भागते वक्त कोई पहचान न पाया हो.

आखिर बीजेपी के लिए बिहार और यूपी में जंगलराज की परिभाषा अलग अलग क्यों है?

क्रिया की प्रतिक्रिया का मतलब कानून हाथ में लेना नहीं होता

हत्या के मुख्य आरोपी धीरेंद्र प्रताप सिंह को सेना का रिटायर्ड जवान बताया जा रहा है और वो भूतपूर्व सैनिक संगठन की बैरिया तहसील इकाई का अध्यक्ष है. धीरेंद्र को बैरिया से बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह का करीबी बताया जा रहा है. बलिया बीजेपी के अध्यक्ष ने तो धीरेंद्र के बीजेपी से जुड़े होने की बात ही खारिज कर दी, लेकिन बिधायक सुरेंद्र सिंह ने माना है कि धीरेंद्र प्रताप सिंह ने 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव में बीजेपी के लिए काम किया है - और वो इस बात से इंकार नहीं कर रहे हैं.

एबीपी न्यूज से बातचीत में सुरेंद्र सिंह ने न्यूटन के नियम के जरिये घटना की व्याख्या की - 'हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है.'

बोले, 'आप लोग जिसे आरोपी बता रहे हैं उसके पिता को डंडे से मारा गया. किसी के पिता, किसी की भाभी और किसी की बहन को कोई मारेगा तो क्रिया की प्रतिक्रिया होगी ही.' सुरेंद्र सिंह ने ये भी बताया कि घटना ने घटना के दौरान धीरेंद्र के परिवार के करीब आधा दर्जन लोग घायल हुए हैं.

जरा सोचिये अगर ऐसे ही क्रिया की प्रतिक्रिया होती रहे तो देश में क्या हाल होगा? फिर तो अंधेरगर्दी ही मची रहेगी. जिसकी जो मर्जी होगी करता फिरेगा.

सवाल ये है कि क्या क्रिया की प्रतिक्रिया में कानून भी हाथ में लेने की छूट होती है क्या?

क्या सत्ताधारी बीजेपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सूबे में कानून व्यवस्था को क्रिया प्रतिक्रिया के भरोसे छोड़ रखा है?

बताने की जरूरत नहीं है कि ये कोई गैंगवार चल रहा है जिसमें अपराधी ही अपराधी को मार रहे हैं. ये किसी एनकाउंटर का भी मामला नहीं है जो योगी आदित्यनाथ के हुक्म की पुलिस ने तामील किया हो - और तो और ये चलते चलते किसी गाड़ी के पलट जाने जैसा भी मामला नहीं है!

हत्या के मुख्य आरोपी को भगाने में अफसरों ने तो जो किया वो किया ही, बीजेपी के विधायक तो चार कदम आगे ही नजर आ रहे हैं. बताने की जरूरत नहीं है कि बीजेपी विधायक सुरेंद्र अपने बयानों को लेकर अक्सर ही चर्चा में रहते हैं. बलात्कार के मामलों में तो उनके बयान कुछ ज्यादा ही विवादित रहे हैं. हाल ही में वो समझा रहे थे कि माता-पिता को अपनी बेटियों को अच्छे संस्कार देने चाहिये.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि बेटियों से तो हर कोई पूछता है कि 'कहां जा रही हो और वापस कब आओगी', लेकिन बेटों से कोई क्यों नहीं पूछता कि 'कि जा कहां रहे हो और आओगे कब?'

उन्नाव गैंगरेप के वक्त भी सुरेंद्र सिंह ने कहा था - 'मनोवैज्ञानिक आधार पर कह सकता हूं कि कोई भी तीन चार बच्चों की मां से दुष्कर्म नहीं कर सकता है... धारा 324, 325 में आसानी से जमानत मिल जाती है, इस मामले में महिला उत्पीड़न का आरोप लगाया ताकि बेल ना मिल सके.' हालांकि, बाद में सुरेंद्र सिंह ने सफाई दी थी, लेकिन अंदाज वही रहा, 'मुझे किसी ने जानकारी दी थी कि वो महिला है और तीन बच्चों की मां है लेकिन ऐसा नहीं है.'

मतलब, बीजेपी विधायक को अपनी बात इसलिए गलत लगी क्योंकि रेप की शिकार युवती की उम्र वो नहीं थी जो वो पहले समझ रहे थे. फिर तो मतलब यही हुआ कि वो तब भी और आगे भी अपनी राय पर कायम रहेंगे कि दुष्कर्म किसके साथ हो सकता है.

अपने इलाके में हत्या के मामले में भी बीजेपी विधायक ने बयान में थोड़ा संशोधन किया है. अब तक वो क्रिया-प्रतिक्रिया की बात कर रहे थे, लेकिन अब आरोपी के बचाव में अलग दलील दे रहे हैं - अब क्रिया प्रतिक्रिया की जगह आत्मरक्षा की बात करने लगे हैं.

कहते हैं, ‘धीरेंद्र सिंह अगर आत्मरक्षा में गोली नहीं चलाया होता, तो कम से कम उसके परिवार के दर्जनों लोग मार दिये गये होते... जिस तरह से प्रशासन अपनी कार्रवाई कर रहा है, मैं आग्रह करूंगा कि दूसरे पक्ष की बात भी करें’.

आगे की दलील भी दिलचस्प है, ‘अगर आरोपी ने गोली चलाई तो वो आत्मरक्षा में चलाई है, ये अपराध हो सकता है लेकिन आत्मरक्षा के लिए ही लाइसेंस मिलती है - लेकिन उनके सामने मरने और मारने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था.’

कांग्रेस नेताओं ने यूपी की कानून व्यवस्था और जंगलराज पर सवाल खड़े किये हैं. कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल बलिया जाकर वस्तुस्थिति का जायजा भी लेने वाला है.

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्रियों अखिलेश यादव और मायावती ने भी राज्य के कानून व्यवस्था के हालात पर सवाल उठाया है. अखिलेश यादव ने तो कटाक्ष भी किया है - देखते हैं गाड़ी पलटती है या नहीं!

इन्हें भी पढ़ें :

योगी आदित्यनाथ को हाथरस केस में गुमराह करने वाले अफसर कौन हैं?

Hathras का सच क्या है जिसे परेशान ही नहीं पराजित करने की भी कोशिश हो रही है!

हाथरस केस की CBI जांच का आदेश योगी आदित्यनाथ के लिए इम्यूनिटी बूस्टर है!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲