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हाथरस केस की CBI जांच का आदेश योगी आदित्यनाथ के लिए इम्यूनिटी बूस्टर है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 04 अक्टूबर, 2020 09:44 PM
  • 04 अक्टूबर, 2020 09:44 PM
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यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) हाथरस केस (Hathras Case) की जांच सीबीआई (CBI) को सौंप कर भले ही राहत की सांस ले रहे हों, लेकिन बीजेपी को जो राजनीतिक नुकसान हुआ है उसकी तात्कालिक भरपाई तो मुश्किल है - संघ के भीतर भी ऐसी ही चिंता है.

हाथरस केस (Hathras Case) में CBI जांच की सिफारिश कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश की है. ये बात अलग है कि जिस तरीके से हाथरस केस को योगी आदित्यनाथ की पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने उलझा दिया है, पीछा भी इतनी जल्दी छूट पाएगा, ऐसा बिलकुल नहीं लगता.

अब तक हर छोटी बड़ी घटना में सीबीआई (CBI) जांच की डिमांड उठती रही है, लेकिन इस केस में ऐसा नहीं हुआ है. पीड़ित परिवार के लोग कह रहे हैं कि वे तो कभी सीबीआई जांच की मांग तो किये ही नहीं. उनका कहना है कि वे तो न्यायिक जांच की मांग और हाथरस के डीएम पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. साथ में, डीएनए टेस्ट की जांच भी, ताकि मालूम हो सके कि जो शव जलाया गया वो परिवार की बिटिया का ही रहा.

निश्चित रूप से योगी आदित्यनाथ की सीबीआई जांच की सिफारिश विपक्ष का मुंह बंद कराने के लिए तो ठीक है, लेकिन चुनावी राजनीति के हिसाब से बीजेपी का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई होने में वक्त लगेगा. हाथरस की घटना ने संघ की चिंता भी बढ़ा दी है क्योंकि इससे दलितों और सवर्णों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गयी है जो उसके 'एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान' के सिद्धांतों के खिलाफ जा रही है.

देखा जाये तो योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक सेहत के लिए हाथरस केस में सीबीआई जांच इम्यूनिटी बूस्टर से ज्यादा कारगर नहीं लगता - ये विपक्ष के राजनीतिक हमलों से मुकाबले में सक्षम तो हो सकता है लेकिन बीमारी का इलाज तो कतई नहीं है.

तिल का ताड़ बना डाला

हाथरस का मामला उन्नाव गैंगरेप केस की तरह तो बिलकुल न था जिसमें पुलिस को उसी पार्टी के विधायक के खिलाफ केस दर्ज करना हो जिसकी सूबे में सरकार हो. और जब एक्शन लेने पर बवाल मचे तो भी पुलिस के सीनियर अफसरों को आरोपी के नाम के पहले माननीय लगाने की मजबूरी हो. हाथरस केस में न कुलदीप सेंगर जैसा आरोपी था और न ही स्वामी चिन्मयानंद जैसा जो केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री रह चुका हो और जिसके आगे सत्ताधारी दल के सीनियर नेता सिर झुकाते...

हाथरस केस (Hathras Case) में CBI जांच की सिफारिश कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश की है. ये बात अलग है कि जिस तरीके से हाथरस केस को योगी आदित्यनाथ की पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने उलझा दिया है, पीछा भी इतनी जल्दी छूट पाएगा, ऐसा बिलकुल नहीं लगता.

अब तक हर छोटी बड़ी घटना में सीबीआई (CBI) जांच की डिमांड उठती रही है, लेकिन इस केस में ऐसा नहीं हुआ है. पीड़ित परिवार के लोग कह रहे हैं कि वे तो कभी सीबीआई जांच की मांग तो किये ही नहीं. उनका कहना है कि वे तो न्यायिक जांच की मांग और हाथरस के डीएम पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. साथ में, डीएनए टेस्ट की जांच भी, ताकि मालूम हो सके कि जो शव जलाया गया वो परिवार की बिटिया का ही रहा.

निश्चित रूप से योगी आदित्यनाथ की सीबीआई जांच की सिफारिश विपक्ष का मुंह बंद कराने के लिए तो ठीक है, लेकिन चुनावी राजनीति के हिसाब से बीजेपी का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई होने में वक्त लगेगा. हाथरस की घटना ने संघ की चिंता भी बढ़ा दी है क्योंकि इससे दलितों और सवर्णों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गयी है जो उसके 'एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान' के सिद्धांतों के खिलाफ जा रही है.

देखा जाये तो योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक सेहत के लिए हाथरस केस में सीबीआई जांच इम्यूनिटी बूस्टर से ज्यादा कारगर नहीं लगता - ये विपक्ष के राजनीतिक हमलों से मुकाबले में सक्षम तो हो सकता है लेकिन बीमारी का इलाज तो कतई नहीं है.

तिल का ताड़ बना डाला

हाथरस का मामला उन्नाव गैंगरेप केस की तरह तो बिलकुल न था जिसमें पुलिस को उसी पार्टी के विधायक के खिलाफ केस दर्ज करना हो जिसकी सूबे में सरकार हो. और जब एक्शन लेने पर बवाल मचे तो भी पुलिस के सीनियर अफसरों को आरोपी के नाम के पहले माननीय लगाने की मजबूरी हो. हाथरस केस में न कुलदीप सेंगर जैसा आरोपी था और न ही स्वामी चिन्मयानंद जैसा जो केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री रह चुका हो और जिसके आगे सत्ताधारी दल के सीनियर नेता सिर झुकाते हों.

हाथरस के बुलगढ़ी गांव का ये मामला तो चंदपा थाने के लेवल पर ही सुलझाया जा सकता था. इंसाफ की नींव भी तो थाने में ही पड़ती है. केस कोई भी एफआईआर तो थाने में ही लिखी जाती है और वहीं दर्ज केस की बदौलत अदालत में मुकदमे का ट्रायल होता है और फिर फैसला सुनाया जाता है.

फर्ज कीजिये अगर चंदपा थाने में पहले ही दिन केस दर्ज कर लिया गया होता. बुरी तरह जख्मी पीड़ित लड़की को अगर पुलिस ने सूचना मिलते ही अस्पताल पहुंचा दिया होता तो क्या उसकी जान नहीं बच सकती थी? चंदपा थाने के हेड मुहर्रिर से लेकर जिले के एसपी तक को सस्पेंड नहीं होना पड़ता अगर पीड़िता की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज कर ली गयी होती और आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया होता. अदालत में मुकदमा चलता और कानून सजा देता. आखिरकार इंसाफ भी मिल जाता - लेकिन इसे तो तिल का ताड़ बना डाला गया. जो चीजें सामान्य प्रक्रिया के तहत आसानी से हो जातीं उसे हर स्तर पर जितना भी उलझाया जा सकता था, उलझने दिया गया.

पीड़ित परिवार के साथ यूपी सरकार के आला अफसर और राहुल-प्रियंका गांधी

पीड़ित को इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल तक ले जाया गया लेकिन बचाया न जा सका - और शव को उसके गांव ले जाकर आधी रात को अंतिम संस्कार कर दिया गया. घर वालों को पास फटकने तक न दिया गया. ऊपरे से जिले के डीएम घर वालों को समझा रहे थे कि अगर वे शव देख लेते तो 10 दिन तक खाना न खा पाते. अपनी बेटी का शव देख कर घर वाले खाना खाते या नहीं खा पाते इसकी फिक्र डीएम को क्यों होनी चाहिये - अव्वल तो फिक्र इस बात की होनी चाहिये थी कि कैसे परिवार को इंसाफ मिले. डीएम प्रवीण कुमार की ड्यूटी तो यही बनती है.

वायरल वीडियो से ये भी मालूम हुआ कि कैसे वो परिवार को धमका रहे थे. परिवार वालों का ये भी आरोप है कि डीएम कह रहे थे कि कोरोना से लड़की की मौत होती तो क्या इतने पैसे मिलते. यही वजह है कि परिवार के लोग सीबीआई जांच के आदेश के बावजूद डीएम को सस्पेंड करने की मांग कर रहे हैं - और चाहते हैं कि डीएनए टेस्ट कराकर कंफर्म किया जाये कि जिस शव का अंतिम संस्कार हुआ वो उनकी ही बच्ची थी.

डीएम के खिलाफ एक्शन न होने से आईपीएस एसोसिएशन भी खफा है. एसोसिएशन की दलील है कि प्रशासनिक व्यवस्था तो डीएम की जिम्मेदारी होती है. दलील तो दमदार है. ठीक है कि पुलिस ने लापरवाही बरती और एक्शन भी हुआ, लेकिन डीएम को कार्रवाई के दायरे से बाहर क्यों रखा गया जबकि जिले के एसपी सहित पांच पुलिस अफसरों को स्सपेंड कर दिया गया है. हाथरस केस में सीबीआई जांच की सिफारिश कर देखा जाये तो योगी आदित्यनाथ ने बीएसपी नेता मायावती की मांग ही मान ली है. मायावती ने ही हाथरस केस की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी.

योगी आदित्यनाथ ने हाथरस केस की सीबीआई जांच की सिफारिश भी ठीक वैसे ही किया है जैसे 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने आरुषि तलवार केस की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी. वैसे हाथरस केस तो आरुषि तलवार जैसा भी नहीं था जिसमें डबल मर्डर मिस्ट्री सुलझानी हो - और सीबीआई जांच का नतीजा क्या निकला सबको पता ही है.

हाथरस के पीड़ित परिवार की तरफ से घठना की न्यायिक जांच या न्यायाधीश की निगरानी में एसआईटी से जांच की मांग की गयी है. परिवार से मुलाकात के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ये बात बतायी है. प्रियंका गांधी और राहुल गांधी दूसरे प्रयास में हाथरस पहुंच कर पीड़ित परिवार से मिले हैं - वैसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के स्वतः संज्ञान लेने के बाद कोर्ट का रूख सामने आना बाकी है.

संघ को हिंदू वोटों के बंट जाने का खतरा सता रहा है

आरएसएस नेताओं के हवाले से आयी कुछ मीडिया रिपोर्ट में हाथरस मामले को लेकर संघ की चिंता मालूम होती है. संघ ने महसूस किया है कि हाथरस कांड के बहाने हिंदुओं को आपस में बांटने की कवायद शुरू हो गयी है. वैसे भी हाथरस और आसपास के इलाकों से सवर्णों की मीटिंग की खबर आ रही है. मीटिंग के जरिये आरोपियों के बचाव में लोगों के एकजुट कर आगे लाने की कोशिश बतायी गयी है. हाथरस कांड को लेकर दलित और ठाकुरों और उनके समर्थन में सवर्णों में विभाजन साफ तौर पर सामने आ गया है.

मायावती की राजनीतिक सोच जो भी लेकिन भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद रावण शुरू से ही इस केस को लेकर एक्टिव देखे गये हैं. मामले की गंभीरता को देखते हुए बीजेपी नेतृत्व ने जहां योगी आदित्यनाथ को समझदारी से काम लेने की सलाह दी है, वहीं संघ जमीनी स्तर पर डैमेज कंट्रोल में जुट गया है.

हाथरस कांड के बाद कांग्रेस को अपने दलित-मुस्लिम गठजोड़ की राजनीति में फायदा नजर आ रहा है. बीजेपी नेतृत्व और संघ को इसी बात की फिक्र है. वैसे मायावती भी ऐसा प्रयोग कर चुकी हैं और फेल रही हैं. कांग्रेस - बिहार चुनाव में भी चिराग पासवान की ऐसे गठजोड़ पर नजर है.

सीएए विरोध के समय से ही प्रियंका गांधी मुस्लिम समुदाय से कनेक्ट होने की कोशिश कर रही हैं. डॉक्टर कफील खान को योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोहरे के तौर पर पहले से ही अपने पाले में मिला लिया है - और अब हाथरस के बहाने दलितों के बीच घुसपैठ का मौका मिल गया है. कांग्रेस जहां दलितों के साथ आगे नजर आ रही है वहीं मायावती इस मामले में अखिलेश यादव से भी पीछे पीछे चल रही हैं - हो सकता है बीएसपी किसी मजबूरी या दूरगामी सोच के तहत ऐसा कर रही हो.

योगी आदित्यनाथ के सीबीआई जांच की सिफारिश का असर तत्काल तो हाथरस पर मचे बवाल से निजात दिला सकता है, लेकिन संघ को जो चिंता सता रही है वो काफी गंभीर है. सीबीआई जांच से कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों को योगी आदित्यनाथ और बीजेपी को घेरने के लिए अब नयी रणनीति बनानी पड़ सकती है - अगर योगी आदित्यनाथ ने इस बार सबक नहीं लिया तो उनको और उनकी टीम को मान कर चलना होगा कि इम्यूनिटी बूस्टर बीमारी से लड़ने की ताकत तो देता है लेकिन न तो वो इलाज की कारगर दवा है और न ही वैक्सीन!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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