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Hathras का सच क्या है जिसे परेशान ही नहीं पराजित करने की भी कोशिश हो रही है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 02 अक्टूबर, 2020 02:57 PM
  • 02 अक्टूबर, 2020 02:56 PM
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योगी सरकार के मंत्री चाहें तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा (Rahul Gandhi and Priyanka Gandhi Vadra) के हाथरस पहुंचने की कोशिश को ड्रामा करार दे, कोई दिक्कत वाली बात नहीं है, लेकिन हाथरस (Hathras Case) के डीएम के वायरल वीडियो (DM Viral Video) के बाद तो सच जानना और भी जरूरी हो गया है.

हाथरस (Hathras Gangrape Case) का सच क्या है? वो कौन सा सच है जिस पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है? आखिर हाथरस की हकीकत क्या है जिसे छुपाने की कवायद चल रही है? हाथरस के मामले में रहस्य गहराता जा रहा है. पूरा सरकारी अमला हर उस बात को झुठलाने का प्रयास कर रहा है जो दूसरी छोर से आ रही है. सरकार से जुड़ा हर व्यक्ति यही समझाने की कोशिश में जुटा है कि हाथरस का पीड़ित परिवार झूठ बोल रहा है.

माजरा क्या है जो हाथरस के डीएम (DM Viral Video) को खुद पीड़ित परिवार को बैठा कर समझाना पड़ रहा है - वायरल वीडियो अगर सही है तो हाथरस के डीएम लड़की के पिता से कौन सा बयान बदलने की बात कर रहे हैं?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा (Rahul Gandhi and Priyanka Gandhi Vadra) के हाथरस पहुंचने की कोशिश को योगी सरकार के मंत्री ड्रामा करार दें, चलेगा और राजनीति भी चलती रहेगी, लेकिन डीएम का वीडियो वायरल होने के बाद सच का सामने आना भी जरूरी हो गया है.

हाथरस की हकीकत कभी सामने आ पाएगी भी?

हाथरस की घटना ने अगस्त, 2017 की गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत की याद दिला दी है. खबर आयी कि ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत हुई, लेकिन तब भी सरकारी अमला जोर जोर से बताने लगा बच्चों की मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी नहीं है. फिर भी ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले ही पुलिस-प्रशासन के एक्शन के शिकार हुए. जो अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई करता था वो भी - और डॉक्टर कफील खान जिनके दोस्तों से ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर बच्चों की जान बचाने की खबर आयी थी. अभी कुछ ही दिन पहले वो जेल से तीसरी बार हाईकोर्ट की फटकार के बाद छूटे हैं. हाईकोर्ट ने पाया कि कफील खान के जिस भाषण के लिए तारीफ होनी चाहिये उसी के लिए उन पर NSA लगा दिया गया.

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के जो प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह तब बता रहे थे कि 'अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं', वही राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से सवाल पूछ रहे हैं कि हाथरस की बजाय वो राजस्थान क्यों नहीं जाते -...

हाथरस (Hathras Gangrape Case) का सच क्या है? वो कौन सा सच है जिस पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है? आखिर हाथरस की हकीकत क्या है जिसे छुपाने की कवायद चल रही है? हाथरस के मामले में रहस्य गहराता जा रहा है. पूरा सरकारी अमला हर उस बात को झुठलाने का प्रयास कर रहा है जो दूसरी छोर से आ रही है. सरकार से जुड़ा हर व्यक्ति यही समझाने की कोशिश में जुटा है कि हाथरस का पीड़ित परिवार झूठ बोल रहा है.

माजरा क्या है जो हाथरस के डीएम (DM Viral Video) को खुद पीड़ित परिवार को बैठा कर समझाना पड़ रहा है - वायरल वीडियो अगर सही है तो हाथरस के डीएम लड़की के पिता से कौन सा बयान बदलने की बात कर रहे हैं?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा (Rahul Gandhi and Priyanka Gandhi Vadra) के हाथरस पहुंचने की कोशिश को योगी सरकार के मंत्री ड्रामा करार दें, चलेगा और राजनीति भी चलती रहेगी, लेकिन डीएम का वीडियो वायरल होने के बाद सच का सामने आना भी जरूरी हो गया है.

हाथरस की हकीकत कभी सामने आ पाएगी भी?

हाथरस की घटना ने अगस्त, 2017 की गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत की याद दिला दी है. खबर आयी कि ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत हुई, लेकिन तब भी सरकारी अमला जोर जोर से बताने लगा बच्चों की मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी नहीं है. फिर भी ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले ही पुलिस-प्रशासन के एक्शन के शिकार हुए. जो अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई करता था वो भी - और डॉक्टर कफील खान जिनके दोस्तों से ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर बच्चों की जान बचाने की खबर आयी थी. अभी कुछ ही दिन पहले वो जेल से तीसरी बार हाईकोर्ट की फटकार के बाद छूटे हैं. हाईकोर्ट ने पाया कि कफील खान के जिस भाषण के लिए तारीफ होनी चाहिये उसी के लिए उन पर NSA लगा दिया गया.

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के जो प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह तब बता रहे थे कि 'अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं', वही राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से सवाल पूछ रहे हैं कि हाथरस की बजाय वो राजस्थान क्यों नहीं जाते - राजस्थान के बारां में दो नाबालिग बहनों के साथ बलात्कार की खबर आयी थी, लेकिन पुलिस के मुताबिक, रेप नहीं हुआ है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि लड़कियां अपनी मर्जी से साथ गयी थीं.

क्या उत्तर प्रदेश की किसी घटना पर सवाल इसलिए नहीं पूछा जा सकता क्योंकि वैसी ही कोई घटना किसी और सूबे में हुई है जहां किसी और राजनीतिक दल की सरकार है?

ये ठीक है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा राजनीतिक वजहों से हाथरस जाना चाहते थे. यूपी पुलिस ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को आईपीसी की धारा 188 के तहत हिरासत में लिया और वापस दिल्ली भेज दिया. ऐसा पहले भी होता रहा है और आगे भी होता रहेगा. सब अपना अपना काम कर रहे हैं.

पहले प्रियंका गांधी वाड्रा ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इस्तीफा मांगा था, अब मायावती बीजेपी नेतृत्व को सलाह दे रही हैं कि योगी आदित्यनाथ के वश का काम नहीं है, उनकी जगह किसी और को मुख्यमंत्री बना दिया जाये - और अगर ये भी मुमकिन न हो तो यूपी में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाये.

गोरखपुर अस्पताल की तरह ही हाथरस केस में फंसी लगती है योगी सरकार

मायावती का कहना है, 'उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था और महिलाओं के खिलाफ अपराध को देखते हुए केंद्र को योगी आदित्यनाथ को हटाकर किसी योग्य व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाना चाहिये और अगर ये संभव नहीं है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाये.

प्रियंका गांधी वाड्रा हों या मायावती दोनों ही यूपी में 2022 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हैं - और दोनों की ये मांगे उसी मकसद से हो सकती हैं.

राजनीति अपनी जगह है, लेकिन हाथरस के बाद लखनऊ के पास बलरामपुर में एक लड़की को बुरी तरह जख्मी हालत में रिक्शे पर बिठा कर घर भेज दिया जाता है. भदोही से भी एक लड़की पर ऐसे ही हमला होने की खबर आ रही है. आजमगढ़ की बच्ची को इलाज के लिए बनारस लाया गया है और उसकी हालत नाजुक बतायी जा रही है. ये हो क्या रहा है?

हाथरस के डीएम का जो वीडियो वायरल हुआ है उसमें वो पीड़ित परिवार को धमका रहे हैं कि ये मीडिया वाले चले जाएंगे तब क्या हाल होगा? आखिर वीडियो में वो कौन सा बयान बदलने की बात कर रहे हैं?

वायरल वीडियो में हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार को साफ साफ सुना जा सकता है - "आप अपनी विश्वसनीयता खत्म मत कीजिए... मीडिया वाले आधे चले गये हैं... कल सुबह आधे निकल जाएंगे... दो-चार बचेंगे कल शाम... हम आपके साथ खड़े हैं... अब आपकी इच्छा है कि आपको बयान बदलना है या नहीं?

पुलिस ने बलात्कार के आरोप में चार लड़कों को गिरफ्तार किया हुआ है. राहुल गांधी के साथ चल रहे कांग्रेस कार्यकर्ता हाथों में तख्ती लिये हुए थे. लिखा था - चारो को फांसी दो. राहुल गांधी के साथ चल रहे कांग्रेस कार्यकर्ता हाथों में भीमराव अंबेडकर की तस्वीर भी लिये हुए थे - और यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू और कुछ नेताओं के गले में नीले रंग का गमछा भी देखने को मिला. आमतौर पर ऐसा नीला गमझा मायावती के समर्थक लेते हैं या फिर भीम आर्मी के कार्यकर्ता. कांग्रेस का राजनीतिक संदेश साफ है, वो मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है.

हाथरस की पीड़िता की भाभी का भी कहना है कि पापा को धमकाया जा रहा है. कहा जा रहा है कि अगर तुम्हारी लड़की कोरोना से मर जाती तो इतना मुआवजा मिलता भला. योगी आदित्यनाथ ने पीड़ित परिवार को 25 लाख रुपये, घर, सरकारी नौकरी देने का वादा किया है. पीड़िता की भाभी का कहना है कि ऐसी स्थिति रही कि जो मन में आ रहा था वे लोग बोलते गये, लेकिन अब वो बातें उन पर भारी पड़ रही हैं. परिवार को लगता है कि उनको वहां रहने नहीं दिया जाएगा.

दरअसल, पीड़ित परिवार और गांव के ही कुछ और लोगों के साथ पुराना विवाद बताया जा रहा है. जो चार लड़के पकड़े गये हैं उनमें से एक की मां का कहना है कि बेटे को फंसाया जा रहा है. पहले भी उनके परिवार को SC/ST का केस झेलना पड़ा है.

इसी बीच यूपी पुलिस के एडीजी प्रशांत कुमार का बयान आया है कि मेडिकल रिपोर्ट में लड़की के साथ रेप की पुष्टि नहीं हुई है. न ही पीड़िता ने अपने बयान में बलात्कार की बात की थी. प्रशांत कुमार की समझ से लड़की की मौत चोट के कारण हुई है.

हाथरस के एसपी विक्रांत वीर तो शुरू से ही बलात्कार का मामला नहीं मान रहे हैं. पुलिस ने शुरू में मारपीट का केस दर्ज कर लिया था. फिर लड़की के बयान के बाद केस में तब्दीली हुई - और अब एक बार फिर वैसा ही होगा. कुल मिलाकर लगता यही है कि पुलिस हत्या का मामला चलाएगी और बलात्कार की बात खत्म हो चुकी है.

वैसे भी जिस हड़बड़ी में शव का अंतिम संस्कार किया गया है, पोस्टमॉर्टम किन परिस्थितियों में हुआ या दोबारा पोस्टमॉर्टम कराये जाने का स्कोप खत्म हो चुका है. पूरे मामले में एक ही सच सामने है कि लड़की गंभीर रूप से जख्मी थी. रीढ़ और गर्दन की हड्डी टूटी हुई थी. जीभ कटी हुई थी - और आखिरकार उसे बचाया न जा सका. लिहाजा जो गिरफ्तार किये गये हैं उन पर हत्या का मुकदमा चलेगा - लेकिन हत्या के मामले में गवाह कहां हैं?

बलात्कार की पुष्टि मेडिकल रिपोर्ट से होती है - और डीएनए टेस्ट से सब पता चल जाता है. फिर आरोपियों के खिलाफ दूसरे सबूत की जरूरत नहीं पड़ती. हत्या के मामले में चश्मदीद या फिर परिस्थितिजन्य साक्ष्य होने चाहिये - अगर ये सब नहीं रहा तो आरोपी को संदेह का लाभ मिल जाता है और वो अदालत से छूट जाता है.

हाथरस केस में भी परिस्थितियां यही इशारा कर रही हैं कि आरोपियों के खिलाफ केस तो चलेगा, लेकिन बेहद कमजोर केस. रही सही कसर जो बच रही है उसके लिए जब खुद जिले के डीएम केस हैंडल कर रहे हों और बयान बदलने का दबाव डाल रहे हों, फिर क्या उम्मीद की जाये - हाथरस केस की हकीकत कभी सामने आ सकेगी?

सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद जरूर है!

हाथरस केस में पीड़ित लड़की के शव के अंतिम संस्कार में भी पुलिस और प्रशासन का इरादा सामने आ गया था - जो थोड़ी बहुत आस थी वो वायरल वीडियो और पीड़िता की भाभी की बातों से खत्म होती लग रही है.

ऐसे में ले देकर अब सुप्रीम कोर्ट से ही इंसाफ की आस बच रही है. सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है. याचिका में हाथरस केस की जांच सीबीआई या एसआईटी से कराने की मांग की गई है. जांच की निगरानी भी सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के मौजूदा या रिटायर्ड जज से कराने की मांग भी की गई है.

जनहित याचिका में केस के यूपी में निष्पक्ष ट्रायल पर भी शक जताया गया है और अदालत से दरख्वास्त की गयी है कि केस को दिल्ली ट्रांसफर किया जाये. उन्नाव रेप के मामले में भी केस को दिल्ली ट्रांसफर किया गया था और पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर को आजीवन कारावास की सजा हुई है.

राहत की बात ये है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हाथरस मामले को स्वतः संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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