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बंगाल में ओवैसी की रणनीति बीजेपी और कांग्रेस दोनों के गले की हड्डी बन सकती है

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 21 नवम्बर, 2020 05:39 PM
  • 21 नवम्बर, 2020 05:39 PM
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बिहार में 5 सीटों पर कब्ज़ा ज़माने के बाद अब ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की नजर बंगाल पर है जो राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे. यदि ऐसा हो जाता है तो इसका अगर किसी को सबसे ज्यादा नुकसान होगा तो वो सिर्फ कांग्रेस (Congress) है.

'पश्चिम बंगाल (West Bengal) और यूपी जैसे राज्यों के क्षेत्रीय दलों के लिए ओवेसी (Owaisi) की दोस्ती का पैग़ाम गले की हड्डी साबित होगा. यदि पैग़ाम क़ुबूल लिया तो ध्रुवीकरण और फिर भाजपा (BJP) को फायदा मिलेगा. और यदि ठुकरा दिया तो क्षेत्रीय दलों के हिस्से का मुस्लिम वोट बैंक (Muslim Vote Bank) एआईएमआईएम (AIMIM) की झोली में सटक जायेगा.' पश्चिम बंगाल में टीएमसी सुप्रीमों ममता बेनर्जी (Mamata Banerjee) से चुनावी समझौता करने का प्रस्ताव रखकर एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी (Asaduddin Owaisi) ने कांग्रेस (Congress) की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. यदि टीएमसी ने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तो कांग्रेस के हिस्से के मुस्लिम वोट सटक कर ओवेसी के आकर्षण से टीएमसी की झोली में एकतरफा पंहुच सकते हैं. एआईएमआईएम दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही फार्मूला अपनाकर क्षेत्रीय दलों से हाथ मिला कर कांगेस को अलग-थलग कर सकता है. बिहार के नतीजों के बाद वैसे भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस से परहेज और ओवेसी के राजनीतिक वजन का एहसास करने लगे हैं.

बिहार में पांच सीटें जीतने की सफलता हासिल करने वाले एआईएमआईएम से घबराकर कांग्रेस ने ओवेसी पर आरोपों के हमले तेज कर दिए हैं. भाजपा की बी टीम और संघ के एजेंट जैसे इल्जामों से बचने और कांग्रेस पर पलटवार करने के लिए एआईएमआईएम ने एक तीर से कई निशाने लगाने की रणनीति बनाई है. उनका पहला निशाना कांग्रेस को बर्बाद करना है. ममता दीदी मान गईं तो ममता और एआईएमआईएम का गठबंधन कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान पहुंचाएगा.

बिहार में पांच सीटों के बाद ओवैसी की नजर अब बंगाल पर है

पश्चिम बंगाल में टीएमसी कांग्रेस के साथ कोई समझौता करने के मूड में नहीं है. पश्चिमी बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस- लेफ्ट, टीएमसी और एआईएमआईएम एवं...

'पश्चिम बंगाल (West Bengal) और यूपी जैसे राज्यों के क्षेत्रीय दलों के लिए ओवेसी (Owaisi) की दोस्ती का पैग़ाम गले की हड्डी साबित होगा. यदि पैग़ाम क़ुबूल लिया तो ध्रुवीकरण और फिर भाजपा (BJP) को फायदा मिलेगा. और यदि ठुकरा दिया तो क्षेत्रीय दलों के हिस्से का मुस्लिम वोट बैंक (Muslim Vote Bank) एआईएमआईएम (AIMIM) की झोली में सटक जायेगा.' पश्चिम बंगाल में टीएमसी सुप्रीमों ममता बेनर्जी (Mamata Banerjee) से चुनावी समझौता करने का प्रस्ताव रखकर एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी (Asaduddin Owaisi) ने कांग्रेस (Congress) की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. यदि टीएमसी ने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तो कांग्रेस के हिस्से के मुस्लिम वोट सटक कर ओवेसी के आकर्षण से टीएमसी की झोली में एकतरफा पंहुच सकते हैं. एआईएमआईएम दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही फार्मूला अपनाकर क्षेत्रीय दलों से हाथ मिला कर कांगेस को अलग-थलग कर सकता है. बिहार के नतीजों के बाद वैसे भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस से परहेज और ओवेसी के राजनीतिक वजन का एहसास करने लगे हैं.

बिहार में पांच सीटें जीतने की सफलता हासिल करने वाले एआईएमआईएम से घबराकर कांग्रेस ने ओवेसी पर आरोपों के हमले तेज कर दिए हैं. भाजपा की बी टीम और संघ के एजेंट जैसे इल्जामों से बचने और कांग्रेस पर पलटवार करने के लिए एआईएमआईएम ने एक तीर से कई निशाने लगाने की रणनीति बनाई है. उनका पहला निशाना कांग्रेस को बर्बाद करना है. ममता दीदी मान गईं तो ममता और एआईएमआईएम का गठबंधन कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान पहुंचाएगा.

बिहार में पांच सीटों के बाद ओवैसी की नजर अब बंगाल पर है

पश्चिम बंगाल में टीएमसी कांग्रेस के साथ कोई समझौता करने के मूड में नहीं है. पश्चिमी बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस- लेफ्ट, टीएमसी और एआईएमआईएम एवं भाजपा, ये तीन शक्तियां त्रिशंकु मुकाबला बन सकती हैं. जिसमें कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोटों से हाथ धोना पड़ सकता है. क्योंकि टीएमसी के पारंपरिक बंगाली मूल के समर्थकों के साथ ओवेसी के सहयोग से एकतरफा मुस्लिम समर्थन मिल सकता है. जबकि ऐसे में भाजपा को ध्रुवीकरण का लाभ होगा.

इन समीकरणों के बीच बड़ा घाटा कांग्रेस और लेफ्ट का हो सकता है. ओवेसी का दूसरा निशाना भाजपा की बी टीम जैसे आरोपों से बचने की रणनीति है. इन आरोपों को गलत साबित करके वो सौ फीसद मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में करना चाहते हैं. विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो कांग्रेस को बर्बाद करने के लिए हर राज्य के उस क्षेत्रीय दल से ओवैसी दोस्ती का हाथ बढ़ायेंगे जो भाजपा को टक्कर देने की कूबत रखता है.

ऐसे में उनपर से वो आरोप भी गलत साबित हो जायेगा जिसके तहत उन्हें भाजपा का मददगार कहा जाता है. और यदि क्षेत्रीय दल एआईएमआईएम का प्रस्ताव मंजूर नहीं करते हैं तो ओवेसी मुस्लिम क़ौम को ये जता देंगे कि वो तो भाजपा को हराने और हुकुमत में मुस्लिम नुमांइदगी के लिए भाजपा विरोधी गठबंधन में शामिल होना चाहते हैं लेकिन उनको मौका ही नहीं दिया जा रहा है. ऐसे में उन्हें मजबूरी में अकेले या कम प्रभावशाली छोटे दलों के साथ मिल कर चुनाव लड़ना पड़ रहा है.

बताया जा रहा है कि जिस तरह पश्चिम बंगाल में ममता बेनर्जी के साथ हाथ मिलाने का प्रस्ताव रखकर ओवेसी ने ये संदेश दे दिया कि वो भाजपा को टक्कर देने वाली शक्ति की ताकत बनना चाहते हैं, उसी तरह वो उत्तर प्रदश के सपा-बसपा जैसे ताकतवर क्षेत्रीय दलों के सामने भी प्रस्ताव रखेंगे. ऐसी स्थिति में पहले से ही कमज़ोर कांग्रेस अलग-थलग पड़ कर और भी कमज़ोर पड़ जायेगी.

हांलाकि राज्यों के क्षेत्रीय दलों के लिए ओवेसी का दोस्ती का पैग़ाम गले की हड्डी बनेगा. यदि वो इस प्रस्ताव को कुबूल करते हैं तो ध्रुवीकरण होगा और भाजपा बाजी मार लेगी. बसपा ओवेसी से हाथ मिलाती है तो उसके साथ बचा खुचा दलित नाराज होकर भाजपा का हाथ थाम सकता है. इसी तरह सपा को ओवेसी से इसलिए एलर्जी होगी कि कट्टर छवि वाले दल से दोस्ती यादव और अन्य पिछड़े वर्ग के कॉडर को नाराज ना कर दे.

इन कारणों से सपा और बसपा ओवेसी के संभावित पैगाम को ठुकरा देंगे तो एआईएमआईएम को मुस्लिम वोट बैंक तोड़ने का मौका मिल जायेगा. बिहार चुनाव में भाजपा को जिताने के इल्जाम से बरी होने के लिए ओवेसी ने बताया था कि उनकी पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले भाजपा विरोधी महागठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव रखा था लेकिन उनका प्रस्ताव नहीं कुबूल किया गया.

अब इसीलिए ओवेसी ने सार्वजनिक तौर पर ममता बेनर्जी का साथ देने के पैगाम को प्रचारित किया है. हांलाकि टीएमसी सुप्रीमों अप्रत्यक्ष रूप से असदुद्दीन ओवेसी पर आक्रमक हो चुकी हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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