• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए हर पार्टी की सौतन आ गई

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 28 अगस्त, 2021 08:04 PM
  • 28 अगस्त, 2021 08:04 PM
offline
यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में हर स्थापित दल से नाराज मतदाताओं के सामने अलग-अलग विकल्प होंगे. भाजपा एवं कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों और सपा व बसपा जैसे दलों के अलावा दलितों-पिछड़ों और मुसलमानों के कथित खैरख्वाह कुछ छोटे दल एक मोर्चा तैयार करने की कवायद की तस्वीरें पेश कर रहे हैं.

यूपी की सियासत की तस्वीर अभी साफतौर से सामने नहीं आई है लेकिन धुंधले आइने में बहुत कुछ दिखाई दे रहा है. मसलन जाति और और धर्म के आधार पर वोट लेने वाली तमाम पार्टियों की सौतन बनने को तैयार बैठी हैं उनके ही जैसे एजेंडे वाली छोटी-छोटी पार्टियां. एक तरह ये ठीक भी होगा. क्योंकि धर्म और जाति के नाम पर पैदा हो रहे छोटे दल यदि धर्म-जाति की राजनीति पर एकक्षत्र राज करने वाले बड़े दलों को कमजोर करेंगे तो ये समझ कर राहत महसूस कीजिएगा कि ज़हर-ज़हर को मार रहा है. कम से कम धर्म और जातिवाद की राजनीति करने वाले आपस में टकरा कर ही सही कमज़ोर तो हों.

असदुद्दीन ओवैसी, ओम प्रकाश राजभर और चंद्रशेखर रावण के साथ आने ने यूपी चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है

हर किसी का विकल्प

लोकतांत्रिक व्यवस्था और मतदाताओं के लिए विकल्प मुफीद होते हैं. दुकानों का अभाव हो तो खरीदार को खराब क्वालिटी का सामान खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है.

यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में हर स्थापित दल से नाराज मतदाताओं के सामने अलग-अलग विकल्प होंगे. भाजपा एवं कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों और सपा व बसपा जैसे दलों के अलावा दलितों-पिछड़ों और मुसलमानों के कथित खैरख्वाह कुछ छोटे दल एक मोर्चा तैयार करने की कवायद की तस्वीरें पेश कर रहे हैं.

जिसमें एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर के गठबंधन के साथ भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद रावण भी शामिल होंगे तो मुस्लिम, पिछड़-दलित वोटबैंक को एक प्लेटफार्म पर लाने के लक्ष्य पर काम होगा.

कहा ये जा रहा है कि इस तरह का मोर्चा भाजपा से मुकाबले का दावा कर रहे सपा के लिए के लिए घातक साबित होगा. ओवेसी के कारण मुस्लिम वोट बिखरेगा और भाजपा से नाखुश गैर यादव पिछड़े वर्ग के मतदाताओं...

यूपी की सियासत की तस्वीर अभी साफतौर से सामने नहीं आई है लेकिन धुंधले आइने में बहुत कुछ दिखाई दे रहा है. मसलन जाति और और धर्म के आधार पर वोट लेने वाली तमाम पार्टियों की सौतन बनने को तैयार बैठी हैं उनके ही जैसे एजेंडे वाली छोटी-छोटी पार्टियां. एक तरह ये ठीक भी होगा. क्योंकि धर्म और जाति के नाम पर पैदा हो रहे छोटे दल यदि धर्म-जाति की राजनीति पर एकक्षत्र राज करने वाले बड़े दलों को कमजोर करेंगे तो ये समझ कर राहत महसूस कीजिएगा कि ज़हर-ज़हर को मार रहा है. कम से कम धर्म और जातिवाद की राजनीति करने वाले आपस में टकरा कर ही सही कमज़ोर तो हों.

असदुद्दीन ओवैसी, ओम प्रकाश राजभर और चंद्रशेखर रावण के साथ आने ने यूपी चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है

हर किसी का विकल्प

लोकतांत्रिक व्यवस्था और मतदाताओं के लिए विकल्प मुफीद होते हैं. दुकानों का अभाव हो तो खरीदार को खराब क्वालिटी का सामान खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है.

यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में हर स्थापित दल से नाराज मतदाताओं के सामने अलग-अलग विकल्प होंगे. भाजपा एवं कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों और सपा व बसपा जैसे दलों के अलावा दलितों-पिछड़ों और मुसलमानों के कथित खैरख्वाह कुछ छोटे दल एक मोर्चा तैयार करने की कवायद की तस्वीरें पेश कर रहे हैं.

जिसमें एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर के गठबंधन के साथ भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद रावण भी शामिल होंगे तो मुस्लिम, पिछड़-दलित वोटबैंक को एक प्लेटफार्म पर लाने के लक्ष्य पर काम होगा.

कहा ये जा रहा है कि इस तरह का मोर्चा भाजपा से मुकाबले का दावा कर रहे सपा के लिए के लिए घातक साबित होगा. ओवेसी के कारण मुस्लिम वोट बिखरेगा और भाजपा से नाखुश गैर यादव पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को राजभर सपा में जाने से रोक सकते हैं.

इसी तरह बसपा के दलित वोट बैंक में चंद्रशेखर आजाद रावण सेंध लगाएंगे. हांलाकि इस मोर्चे के मुख्य कर्ताधर्ता ओम प्रकाश राजभर खुद स्थिर नहीं हैं.

कभी ओवेसी और चंद्रशेखर आजाद और अन्य दलों के साथ फ्रंट को मजबूती देने की बात करते हैं तो कभी वो सपा, बसपा या कांग्रेस के साथ जाने के विकल्पों को दोहरा रहे हैं.

भाजपा को फायदा, नुकसान क्यों नहीं!

ओवेसी, राजभर और रावण गठबंधन भाजपा को फायदा पंहुचाएगा और सपा-बसपा और कांग्रेस जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों का नुकसान करेगा. ये धारणा गलत भी साबित हो सकती है.

सिक्के के दूसरे पहलू को देखिए तो यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव और पिछले दो लोकसभा चुनावी नतीजों पर ग़ौर कीजिए तो भाजपा ने यूपी के सपा-बसपा के जनाधार पर सेंध लगाकर ओबीसी और दलितों के विश्वास को जीतकर भारी बहुमत से पिछले तीन चुनावों (एक विधानसभा और दो लोकसभा) में जीत हासिल की थी.

यानी आज सबसे पिछड़ा और दलित समाज भाजपा के जनाधार से जुड़ा है. इस लिहाज़ से राजभर और चंद्रशेखर रावण की क्रमशः पिछड़े-दलितों को साथ लाने की कोशिशें भाजपा को भी नुकसान पंहुचा सकती हैं. उधर कहां ये भी जा रहा है कि यूपी में किसी हद तक ब्राह्मण समाज भाजपा से नाखुश है.

यदि ये सच है और कांग्रेस ने ब्राह्मण मुख्यमंत्री का इशाराभर भी कर दिया और ज्यादा ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे तो यहां भी भाजपा का ये पारंपरिक कोर वोट बैंक भी कतर जाएगा.

भाजपा के वोट कतरने की रणनीति बना रही आप

विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि यूपी के चुनावों के मद्देनजर समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी ने मिलकर अंदरखाने एक साइलेंट रणनीति तैयार की है. जिसके तरह आप भाजपा से नाराज उन भाजपाई मतदाताओं को प्रभावित कर भाजपा का वोट काटने की तैयारी करेगी जो सपा, बसपा और कांग्रेस को विकल्प नहीं चुनते.

जातिवाद और धर्मनिरपेक्षता से अलग आप राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दों को लेकर भाजपा के विकल्प के तौर पर खुद को पेश करेगी. पेट्रोल के बढ़ते दाम, मंहगी बिजली, मंहगाई, बेरोजगारी, किसानों की समस्याओं और कोविड में बद इंतेजामी को लेकर सामान्य वर्ग का एक तब्का भाजपा से नाखुश होकर भी विकल्प के अभाव में मजबूरी में दोबारा भाजपा के समर्थन की बात कर रहा है.

सपा, बसपा और कांग्रेस को बेहतर विकल्प न मानने वाले ऐसे तब्के पर डोरे डालने के लिए आम आदमी पार्टी लोकलुभावने वादों के साथ चुनाव में उतरेगी. और भाजपा के लिए वोटकटवा बनकर सपा को फायदा पंहुचाने की कोशिश भी करेगी.

सब कुछ ठीक रहा तो उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च के दरम्यान विधानसभा चुनाव होंगे और तकरीबन दिसम्बर-जनवरी के बीच चुनावी तारीखीं घोषित होने की संभावना है. 75 जिलों और 403 विधानसभा सीटों वाले इस बड़े चुनाव की तैयारी के लिए अब ज्यादा समय नहीं बचा है.

ऐसे में कुछ छोटे दल जहां भाजपा और सपा के गठबंधन का हिस्सा बन चुके हैं वहीं बहुत सारे छोटे दल बड़े दलों के वोट बैंक का प्यार और विश्वास बांटने के लिए सौतन की तरह सज-धज कर तैयार हो रहे हैं.

ये भी पढ़ें -?बानी बाउंसर तो भूपेश बघेल के लिए संजीवनी बूटी बन गये!

सिद्धू के 'सलाहकार' ने कैप्टन के खिलाफ जंग को निजी बना दिया

उन्नाव के मियागंज का क्या है 'माया' कनेक्शन, जो नाम बदला जा रहा है  

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲