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केजरीवाल के साथ भी बीजेपी सिसोदिया जैसा ही सलूक चाहती है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 01 मार्च, 2023 10:12 PM
  • 01 मार्च, 2023 10:12 PM
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मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) की गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का आक्रामक हो जाना स्वाभाविक है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ तो वो शुरू से ही हमलावर रहे हैं - अपने मंत्रियों की गिरफ्तारी के बाद अब देश में इमरजेंसी जैसे हालात बता रहे हैं.

मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के खिलाफ सीबीआई की कार्रवाई के बाद, बीजेपी भी एक्शन में आ गयी है. अब तो बीजेपी प्रवक्ता अयोध्या आंदोलन की तर्ज पर नया नारा भी गढ़ चुके हैं - "मनीष-सत्येंद्र झांकी है, अरविंद केजरीवाल बाकी है." अंदाज भी करीब करीब वैसा ही है जैसे, अयोध्या तो झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है.

ये बीजेपी की तरफ से दिया गया राजनीतिक बयान है, लिहाजा अभी न तो इसे अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के लिए कोई चेतावनी समझ सकते हैं न ही कोई संकेत. ऐसा समझना टीम केजरीवाल और तमाम बीजेपी विरोधियों के उन आरोपों को सही मान लेने जैसा होगा जिसमें वो कहते हैं कि जांच एजेंसियां मोदी सरकार के इशारे पर काम करती है.

ऐसा इसलिए भी क्योंकि जब केंद्र सरकार और बीजेपी की तरफ से दावे तो यही किये जाते हैं कि जांच एजेंसियां स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं. और मौजूदा राजनीतिक माहौल में बीजेपी को संदेह का लाभ भी मिल जाता है.

सरकार और संगठन दोनों ही ऐसे सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं दे पाते कि अगर एजेंसियां स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं, तो निशाने पर विपक्ष के ही नेता क्यों नजर आते हैं - क्या सत्ता पक्ष के सभी नेता वास्तव में कट्टर इमानदार हैं?

लेकिन न तो ऐसे सवालों का कोई मतलब रह जाता है, न बहस का - क्योंकि असली फैसला तो जनता की अदालत में ही होता है.

और जनता की अदालत में बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों ही जा रहे हैं. ये अच्छी बात है. बीजेपी की तरफ से जनजागरण अभियान चलाया जा रहा है - और आम आदमी पार्टी की तरफ से भी घर घर दस्तक देने का एक्शन प्लान तैयार हो चुका है.

बीजेपी कार्यकर्ता दिल्ली में जगह जगह अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा के निशाने पर दिल्ली के...

मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के खिलाफ सीबीआई की कार्रवाई के बाद, बीजेपी भी एक्शन में आ गयी है. अब तो बीजेपी प्रवक्ता अयोध्या आंदोलन की तर्ज पर नया नारा भी गढ़ चुके हैं - "मनीष-सत्येंद्र झांकी है, अरविंद केजरीवाल बाकी है." अंदाज भी करीब करीब वैसा ही है जैसे, अयोध्या तो झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है.

ये बीजेपी की तरफ से दिया गया राजनीतिक बयान है, लिहाजा अभी न तो इसे अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के लिए कोई चेतावनी समझ सकते हैं न ही कोई संकेत. ऐसा समझना टीम केजरीवाल और तमाम बीजेपी विरोधियों के उन आरोपों को सही मान लेने जैसा होगा जिसमें वो कहते हैं कि जांच एजेंसियां मोदी सरकार के इशारे पर काम करती है.

ऐसा इसलिए भी क्योंकि जब केंद्र सरकार और बीजेपी की तरफ से दावे तो यही किये जाते हैं कि जांच एजेंसियां स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं. और मौजूदा राजनीतिक माहौल में बीजेपी को संदेह का लाभ भी मिल जाता है.

सरकार और संगठन दोनों ही ऐसे सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं दे पाते कि अगर एजेंसियां स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं, तो निशाने पर विपक्ष के ही नेता क्यों नजर आते हैं - क्या सत्ता पक्ष के सभी नेता वास्तव में कट्टर इमानदार हैं?

लेकिन न तो ऐसे सवालों का कोई मतलब रह जाता है, न बहस का - क्योंकि असली फैसला तो जनता की अदालत में ही होता है.

और जनता की अदालत में बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों ही जा रहे हैं. ये अच्छी बात है. बीजेपी की तरफ से जनजागरण अभियान चलाया जा रहा है - और आम आदमी पार्टी की तरफ से भी घर घर दस्तक देने का एक्शन प्लान तैयार हो चुका है.

बीजेपी कार्यकर्ता दिल्ली में जगह जगह अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा के निशाने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, 'शराब घोटाले के सूत्रधार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं... उन्हें भी इस्तीफा देना होगा... हम दिल्ली के हर दरवाजे को खटखटाएंगे... शराब की काली कमाई में कितने करोड़ रुपये का घोटाला हुआ, दिल्ली की जनता को बताएंगे.'

मनीष सिसोदिया की गैरमौजूदगी में अरविंद केजरीवाल अपनी टीम के साथ क्राइसिस मैनेजमेंट में लगे हुए हैं. वो मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये सामने आकर बीजेपी पर हमले और अपने मंत्रियों का बचाव तो कर ही रहे हैं, एक टीम अदालतों में कानूनी लड़ाई में लगी है - और फिर पार्टी फिर से लोगों के बीच जा रही है.

आम आदमी पार्टी के विधायकों के साथ अरविंद केजरीवाल की बैठक के बाद बताया गया है कि 5 मार्च से नुक्कड़ सभाओं के जरिये दिल्ली के लोगों को मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के इस्तीफे की इनसाइड स्टोरी बतायी जाएगी - और उसके साथ ही डोर-टू-डोर कैंपेन भी जारी रहेगा.

सिसोदिया के बाद केजरीवाल के निशाने पर मोदी

सीबीआई के छापों के बाद मनीष सिसोदिया भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को ही टारगेट कर रहे थे. अरविंद केजरीवाल भी उसी रणनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं - और मौजूदा दौर को इमरजेंसी जैसा बता रहे हैं.

अरविंद केजरीवाल ने मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के शासन को भी कांग्रेस की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जमाने जैसा बताया है. ईश्वर की दुहाई देते हुए, अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं - 'एक जमाने में इंदिरा गांधी ने अति की थी, अब प्रधानमंत्री जी कर रहे हैं... ऊपरवाला अपनी झाड़ू चलाएगा.'

मनीष सिसोदिया की कुर्बानी के बावजूद अरविंद केजरीवाल की मुश्किल कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही है

एक प्रेस कांफ्रेंस में आप नेता अरविंद केजरीवाल का कहना रहा, मेरी हजारों लोगों से बात हुई... जनता में भारी रोष है... जनता कह रही है कि बीजेपी वाले क्या कर रहे हैं? जिसको मर्जी जेल में डाल देते हैं!

बीजेपी को अपनी तरफ से आगाह करते हुए अरविंद केजरीवाल कहते हैं, आम आदमी पार्टी को ये रोकना चाहते हैं... जब से पंजाब जीते हैं... बर्दाश्त नहीं हो रहा... आम आदमी पार्टी आंधी है... ये अब रुकने नहीं वाली है... आम आदमी पार्टी का वक्त आ गया.'

बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया अरविंद केजरीवाल को उनके ही पिच पर जाकर घेर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल बच्चों के भविष्य का सवाल उठाकर मनीष सिसोदिया का बचाव कर रहे हैं, और बीजेपी की तरफ से भी जो सवाल उठाया जा रहा है, बच्चों को लेकर ही है.

बीजेपी असल में ये समझाने की कोशिश कर रही है कि मनीष सिसोदिया को बचाने के लिए अरविंद केजरीवाल बच्चों की आड़ ले रहे हैं. बीजेपी प्रवक्ता कहते हैं, 'कोई व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है... किसी एजेंसी को पैसा देकर नाटक कराया जा रहा है - बच्चे तो ये भी पूछ रहे हैं हमारे स्कूलों के सामने ठेके क्यों खुलवा दिये?'

केजरीवाल को फिर भगोड़ा साबित करना चाहती है बीजेपी

2013 में जब पहली बार आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी, 49 दिन बाद ही अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया था. अरविंद केजरीवाल के इस कदम को बीजेपी ने खूब प्रचारित किया और लोगों के मन में बिठा दिया कि अरविंद केजरीवाल भगोड़ा हैं.

2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के लिए इस तोहमत से निजात पाना काफी मुश्किल हो रहा था, लिहाजा आप नेता ने वही तरीका इस्तेमाल किया जो बुरी तरह फंस जाने पर अख्तियार करते रहे हैं - माफी.

आपको ये भी याद होगा कैसे अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी नेता अरुण जेटली से लेकर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल और उन सभी नेताओं से माफी मांग ली थी, जिनके खिलाफ कभी प्रेस कांफ्रेंस बुला कर भ्रष्टाचार के आरोप लगाया करते थे.

पूरे चुनाव अरविंद केजरीवाल घूम घूम कर दिल्ली के लोगों से माफी मांगते रहे और गुजारिश करते रहे कि खुद को साबित करने के लिए उनको एक मौका और दिया जाये. दिल्ली के लोग इतने दयालु निकले कि 70 में से 67 सीटें अरविंद केजरीवाल की झोली में और बीजेपी के हिस्से में सिर्फ तीन सीटें ही डालीं.

बीजेपी एक बार फिर अरविंद केजरीवाल को भगोड़ा साबित करने पर तुली हुई है, और समझने वाली बात ये है कि मौका भी खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री ही दे रहे हैं - बीजेपी लोगों के बीच जाकर सवाल उठाने वाली है कि आखिर केजरीवाल चीफ मिनिस्टर विदाउट पोर्टफोलियो क्यों बने रहना चाहते हैं?

बीजेपी ने अपने हिसाब से अरविंद केजरीवाल की एक और कमजोर नस पकड़ ली है. अब वो दिल्ली भर घूम घूम कर अरविंद केजरीवाल को जिम्मेदारियों से भागने वाले नेता के तौर पर पेश करने वाली है. अरविंद केजरीवाल के बारे में भी बीजेपी वैसे ही प्रचारित करेगी, जैसे वो कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ कैंपेन चलाती रही है - 'पप्पू' भले न कहे?

बीजेपी की तरफ से दिल्ली सरकार के मंत्रियों के इस्तीफे पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं. बीजेपी पूछ रही है कि जब नौ महीने तक सत्येंद्र जैन से इस्तीफा नहीं लिया तो मनीष सिसोदिया से तत्काल प्रभाव से क्यों ले लिया?

आरोप लगने की सूरत में सरकार के मंत्री के खिलाफ तत्काल एक्शन लेने और न लेने के अलग अलग अर्थ होते हैं. जैसे लोग ट्विटर पर इस्तीफा देने लगे हैं, 2015 में अरविंद केजरीवाल प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे - और उसी दौरान अपने मंत्री आसिम अहमद खान को कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया था.

लेकिन सत्येंद्र जैन के मामले में ऐसा नहीं किया. तत्काल इस्तीफे ले लेने का मतलब ये मान लेने जैसा ही होता है कि जो आरोप लगे हैं, वो हवा हवाई नहीं हैं. जैसे ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल सरकार में मंत्री पार्थ चटर्जी के साथ किया था.

तो अब सवाल उठता है कि क्या अरविंद केजरीवाल ने सत्येंद्र जैन को भी आसिम अहमद खान जैसा मान लिया है? और मनीष सिसोदिया के इस्तीफे के बाद वही सवाल उनके मामले में भी लागू होता है - लेकिन अरविंद केजरीवाल अपनी तरफ से अब भी अपने दोनों ही मंत्रियों को राजनीति के कारण फंसाया हुआ ही बता रहे हैं.

लेकिन बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया नया सवाल खड़ा कर रहे हैं, 'रेजिग्नेशन लेटर अपनेआप में महत्वपूर्ण सवाल उठाता है... उस पर कोई तारीख नही है.'

जिस दिन पेशी के लिए मनीष सिसोदिया को सीबीआई दफ्तर जाना था, हाव भाव तो ऐसे ही संकेत दे रहे थे कि गिरफ्तारी की आशंका उनको और उनसे जुड़े सभी को हो चुकी थी. मनीष सिसोदिया पूरे दल बल के साथ घर से निकले. राजघाट जाकर भाषण भी दिया और इमोशनल होते हुए घर पर पत्नी के बीमार और अकेले होने की बात भी कही.

मनीष सिसोदिया के भाषण के बाद अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर अपनी तरफ से आश्वस्त किया कि वो बेफिक्र होकर जायें, अनहोनी की सूरत में वे लोग उनके परिवार का ख्याल निश्चित तौर पर रखेंगे. और बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ अरविंद केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया के घर जाकर परिवार को मुसीबत की घड़ी में साथ खड़े होने का भरोसा भी दिलाया.

दिल्ली के बाद पंजाब पर बीजेपी की नजर लगी

दिल्ली के बाद बीजेपी पंजाब जाकर भी अरविंद केजरीवाल को घेरने की तैयारी कर चुकी है. पंजाब में भगवंत मान सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर कैंपेन की तैयारी हो चुकी है. बीजेपी की रणनीति ये है कि अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में उलझा कर पंजाब में भगवंत मान को घेरा जाये - भगवंत मान के लिए अकेले बचाव करना मुश्किल होगा.

अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पंजाब में नशा मुक्ति यात्रा को हरी झंडी दिखाने वाले हैं. यात्रा का नाम जो भी हो, बातें तो वही होंगी जिनसे भगवंत मान के बहाने अरविंद केजरीवाल को घेरा जा सके.

अजनाला में अमृतपाल सिंह और उसके साथियों के थाने पर हमले ने भगवंत मान सरकार को पहले ही सवालों के घेरे में ला दिया है. अमित शाह को सीधे सीधे धमकी देकर उसने केंद्र को दखल देने का भी मौका दे दिया है. वैसे तो अमृतपाल सिंह अपने बयान से यूटर्न ले चुका है, लेकिन पहले तो उसने कहा ही था कि अमित शाह का हाल भी इंदिरा गांधी जैसा हो सकता है.

अमित शाह के दौरे के बीच ही, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी कई सारे कार्यक्रम शुरू करने वाले हैं, जिनकी बदौलत आप सरकार को कठघरे में खड़ा किया जा सके. अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी दौरे होंगे ही, वैसे ही जैसे तेलंगाना या गैरबीजेपी शासित दूसरे राज्यों में होते रहे हैं. मकसद भी सबको मालूम ही है, बीजेपी 2014 के आम चुनाव में अरविंद केजरीवाल को बड़ी चुनौती नहीं बनने देना चाहती.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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