• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

मनीष सिसोदिया के बगैर केजरीवाल के लिए कितना मुश्किल होगा राजनीति करना?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 01 मार्च, 2023 08:20 PM
  • 01 मार्च, 2023 08:20 PM
offline
सत्येंद्र जैन (Satyendra Jain) के जेल चले जाने के बाद मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) ने सब कुछ ऐसे संभाल लिया था, जैसे कुछ हुआ ही न हो. लेकिन उनको जेल भेजे जाने के बाद तो अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के लिए - दिल्ली छोड़ कर हटना भी दूभर हो गया है.

कभी कभी कुछ दिन भी काफी ज्यादा लगते हैं. बहुत भारी पड़ते हैं. मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) की गिरफ्तारी के बाद से अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भी ऐसी ही चिंता से गुजर रहे होंगे. करीब नौ महीने तो सत्येंद्र जैन को भी जेल गये होने को आये, तभी तो मनीष सिसोदिया के साथ रहते अरविंद केजरीवाल ने उनको मंत्री बनाये रखा - जैसे अपने चीफ मिनिस्टर विदाउट पोर्टफोलियो रहे, सत्येंद्र जैन का भी नाम चलता रहा.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राजनीति के लिए सत्येंद्र जैन (Satyendra Jain) का जेल जाना भी बहुत बड़ा झटका रहा, लेकिन तब मनीष सिसोदिया ने सब ऐसे संभाल लिया था, जैसे कुछ हुआ ही न हो - और वो बेफिक्र होकर चुनावी मुहिम चलाते रहे.

वैसे भी जो मंत्री पहले से ही दर्जन भर से ज्यादा विभाग संभालता रहा हो, उसके लिए एक-दो और का जिम्मा लेना तो बायें हाथ के खेल जैसा ही है - और ये बड़ी वजह रही कि दिल्ली को मनीष सिसोदिया के हवाले कर अरविंद केजरीवाल दिल्ली से बाहर आम आदमी पार्टी के विस्तार पर फोकस कर रहे थे.

अन्ना आंदोलन तो बहुत बाद की बात है, मनीष सिसोदिया तो अरविंद केजरीवाल के साथ तब से हैं जब वो लोग सूचना के अधिकार पर काम कर रहे थे - और दिल्ली में आप की सरकार बन जाने के बाद तो अरविंद केजरीवाल के लिए राजनीतिक रूप से मनीष सिसोदिया अपरिहार्य से हो गये.

चुनाव नतीजों के हिसाब से देखें तो अरविंद केजरीवाल गुजरात में जमे रहने के बावजूद महज सात सीटें जीत पाये और दिल्ली को मनीष सिसोदिया के भरोसे छोड़ कर भी अरविंद केजरीवाल ने एमसीडी में पार्टी का पताका तो फहराया ही - अब तो मेयर भी आम आदमी पार्टी का ही है.

ये मनीष सिसोदिया पर खुद से भी ज्यादा भरोसा ही रहा है जो अरविंद केजरीवाल उनको डिप्टी सीएम बनाने के बाद अपने...

कभी कभी कुछ दिन भी काफी ज्यादा लगते हैं. बहुत भारी पड़ते हैं. मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) की गिरफ्तारी के बाद से अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भी ऐसी ही चिंता से गुजर रहे होंगे. करीब नौ महीने तो सत्येंद्र जैन को भी जेल गये होने को आये, तभी तो मनीष सिसोदिया के साथ रहते अरविंद केजरीवाल ने उनको मंत्री बनाये रखा - जैसे अपने चीफ मिनिस्टर विदाउट पोर्टफोलियो रहे, सत्येंद्र जैन का भी नाम चलता रहा.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राजनीति के लिए सत्येंद्र जैन (Satyendra Jain) का जेल जाना भी बहुत बड़ा झटका रहा, लेकिन तब मनीष सिसोदिया ने सब ऐसे संभाल लिया था, जैसे कुछ हुआ ही न हो - और वो बेफिक्र होकर चुनावी मुहिम चलाते रहे.

वैसे भी जो मंत्री पहले से ही दर्जन भर से ज्यादा विभाग संभालता रहा हो, उसके लिए एक-दो और का जिम्मा लेना तो बायें हाथ के खेल जैसा ही है - और ये बड़ी वजह रही कि दिल्ली को मनीष सिसोदिया के हवाले कर अरविंद केजरीवाल दिल्ली से बाहर आम आदमी पार्टी के विस्तार पर फोकस कर रहे थे.

अन्ना आंदोलन तो बहुत बाद की बात है, मनीष सिसोदिया तो अरविंद केजरीवाल के साथ तब से हैं जब वो लोग सूचना के अधिकार पर काम कर रहे थे - और दिल्ली में आप की सरकार बन जाने के बाद तो अरविंद केजरीवाल के लिए राजनीतिक रूप से मनीष सिसोदिया अपरिहार्य से हो गये.

चुनाव नतीजों के हिसाब से देखें तो अरविंद केजरीवाल गुजरात में जमे रहने के बावजूद महज सात सीटें जीत पाये और दिल्ली को मनीष सिसोदिया के भरोसे छोड़ कर भी अरविंद केजरीवाल ने एमसीडी में पार्टी का पताका तो फहराया ही - अब तो मेयर भी आम आदमी पार्टी का ही है.

ये मनीष सिसोदिया पर खुद से भी ज्यादा भरोसा ही रहा है जो अरविंद केजरीवाल उनको डिप्टी सीएम बनाने के बाद अपने हिस्से के विभाग भी सौंप दिये थे - और सत्येंद्र जैन के जेल चले जाने के बावजूद मनीष सिसोदिया के भरोसे ही उनको मंत्री बनाये रखा.

मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल के पास ऑपशन तो कई रहे होंगे. हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने आसान रास्ता ही चुना है. अपनी पसंद के दो विधायकों को मंत्री बनाने का प्रस्ताव उप राज्यपाल के पास भेज दिया है - वो चाहते तो मनीष सिसोदिया वाले विभाग अपने पास भी रख सकते थे.

वैसे तो ये मुख्यमंत्री का अधिकार होता है कि वो कैसे अपनी सरकार चलाता है, लेकिन पहले सत्येंद्र जैन को महीनों तक मंत्री बनाये रखना और फिर मनीष सिसोदिया के गिरफ्तार होते ही अचानक से दोनों ही मंत्रियों से इस्तीफा ले लिया जाना - ऐसा फैसला है जिसने अरविंद केजरीवाल को अपने राजनीतिक विरोधियों के सामने बचाव की मुद्रा में ला दिया है.

अरविंद केजरीवाल अगर चाहे होते तो अपने पास मनीष सिसोदिया वाले सारे डिपार्टमेंट रख सकते थे - और सत्येंद्र जैन की तरह मनीष सिसोदिया को भी मंत्री बनाये रख सकते थे. जाहिर है, अरविंद केजरीवाल ने संकटकाल से उबरने को लेकर कोई खास रणनीति तो बनायी ही होगी.

मनीष सिसोदिया की जगह अरविंद केजरीवाल ने अगर सौरभ भारद्वाज और आतिशी पर भरोसा जताया है, तो ये दोनों ही लंबे समय से अरविंद केजरीवाल के भरोसेमंद और मजबूत सहयोगी के तौर पर काम करते रहे हैं. निश्चित तौर पर वे दोनों आगे भी वैसे प्रदर्शन जारी रखेंगे.

लेकिन ये तो है ही कि मनीष सिसोदिया के बगैर अरविंद केजरीवाल के लिए रूटीन का कामकाज ही नहीं राजनीतिक लड़ाई भी काफी मुश्किल होगी - और अगर कानूनी या किसी राजनीतिक तरीके से मनीष सिसोदिया को जल्दी बाहर नहीं ला सके तो 2024 के सपने तो शेप लेने से पहले ही बिखर जाएंगे.

सिसोदिया की गैरमौजूदगी में काम कैसे होंगे?

मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी की आशंका तो अरविंद केजरीवाल और उनके सारे साथी तभी से जताने लगे थे जिस दिन पहली बार सीबीआई की टीम के छापे पड़े थे - और यही वजह रही कि जिस रणनीति पर आम राय बनी थी, मनीष सिसोदिया खुद भी बार बार गिरफ्तारी की आशंका जताते आ रहे थे.

अरविंद केजरीवाल के लिए कौन बनेगा अगला मनीष सिसोदिया?

आशंका ही नहीं, बल्कि मनीष सिसोदिया तो बार बार नाम लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज भी कर रहे थे कि गिरफ्तार करके दिखायें. लेकिन तभी गुजरात चुनाव और एमसीडी चुनाव होने लगे - और फिर सिसोदिया के केस में सीबीआई की तरफ से फील्ड वर्क कम और ऑफिस में काम ज्यादा होने लगा.

मनीष सिसोदिया के बचाव के लिए अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली का शिक्षा का मॉडल सामने रखा. शराब नीति को लेकर जब मनीष सिसोदिया घिरे तो अरविंद केजरीवाल और साथियों ने स्कूली बच्चों के भविष्य से जोड़ कर इमोशनल कार्ड खेलने की कोशिश की.

लेकिन बीजेपी की तरफ से दिल्ली के नेता बार बार आम आदमी पार्टी के नेतृत्व को भ्रष्टाचार में डूबा साबित करने में जुट गये - अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया दोनों ही के लिए ये बहुत बड़ा चैलेंज साबित हुआ.

कल तक केजरीवाल और सिसोदिया की जोड़ी खुद को छोड़ कर देश के सारे ही नेताओं को भ्रष्ट बताती रही, आज दोनों के सामने खुद को ही पाक साफ साबित करने की चुनौती आ खड़ी हुई है - और ये शायद केजरीवाल और सिसोदिया को अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाये रखने के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.

जो केजरीवाल कल तक घूम घूम कर जोर शोर से बताया करते थे कि संसद में बैठे सारे ही डकैत और बलात्कारी हैं. जो केजरीवाल किसी पर भी भ्रष्ट होने की तोहमत मढ़ दिया करते थे. जो केजरीवाल खुद को देश का सबसे इमानदार मुख्यमंत्री होने का सर्टिफिकेट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले होने का दावा करते रहे - राजनीति में आये कुछ ही साल होने के बाद ये नहीं समझ पा रहे हैं कि अपने साथियों पर लगे आरोपों से उनका कैसे बचाव करें तो कैसे करें?

राजनीति में सिर्फ खुद को बेगुनाह ही साबित नहीं करना होता, परफॉर्म भी करना होता है. वरना, कब सीन से गायब हो जाएंगे किसी को भनक तक नहीं लगेगी - फिलहाल अरविंद केजरीवाल के सामने ये भी एक चैलेंज है कि वो लोगों की नजरों में बने रहें, नजरों से उतर जाने का खतरा भी अभी सबसे ज्यादा है.

अरविंद केजरीवाल की मुश्किल ये है कि मनीष सिसोदिया, सिर्फ साथ ही काम नहीं करते थे. सिर्फ साये की तरह हर सुख दुख में मौजूद ही नहीं रहते थे. सिर्फ अरविंद केजरीवाल के हिस्से की प्रशासनिक जिम्मेदारियां ही नहीं संभालते थे - वो तमाम मामलों में सलाहकार भी होते हैं. अच्छे बुरे फैसलों में साथ साथ रणनीतिकार भी रहे हैं.

और हां, सबसे बड़ी बात अरविंद केजरीवाल के सबसे बड़े राजदार भी रहे हैं. और वो ऐसे भी नहीं हैं कि जांच एजेंसी के सामने किसी पेशेवर आरोपी की तरह सारे टॉर्चर के बावजूद छुपा लें - अगर वास्तव में कुछ छिपाने को है तो?

अगर ऐसी कोई चीज नहीं है जो छिपाने के लिए है, जैसा कि मनीष सिसोदिया का लगातार दावा रहा है - तो भी राजनीतिक रूप से कोई अहम बात निकल गयी तो वो अरविंद केजरीवाल के लिए मुश्किल वाली हो सकती है.

आपको याद होगा जब राहुल गांधी से ईडी के दफ्तर में पूछताछ हो रही थी, तो एजेंसी पर कांग्रेस नेताओं की तरफ से आरोप लगाया गया था कि वहां की बातें लीक कैसे हो रही हैं? मतलब, अंदर के कुछ लोग, भले ही वो कर्मचारी हों या अफसर कुछ लोगों के लिए सूत्रों का काम कर रहे थे. सूत्र तो सूत्र होते हैं - उनके लिए तो 'हर आदमी एक जोड़ी जूता है...'

सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के फंसने का असर?

साल दर साल बीतते गये, और मनीष सिसोदिया बिलकुल किसी हमसफर की तरह अरविंद केजरीवाल के साथ बने रहे, लेकिन कुछ देर के लिए उसमें ब्रेक का वक्त आ गया है - और भले ही वो बोल कर गये हों कि जल्दी ही लौटेंगे, लेकिन ये तय करने वाला तो कोई और ही है. ये जल्दी भी हो सकता है, और लंबा वक्त भी लग सकता है.

अरविंद केजरीवाल के लिए मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की अलग अलग अहमियत है, लेकिन दोनों में बहुत बड़ा फर्क भी है - क्योंकि दोनों ही अलग अलग तरीके से अरविंद केजरीवाल के सहयोगी रहे हैं, और बड़े ही मजबूत खंभे की तरह बगैर कुछ सोच विचार या सवाल के चुपचाप पीछे खड़े रहे हैं. जैसे हां में हां मिलना ही फितरत बन चुकी हो.

कामकाज के हिसाब से देखें तो जितना गहरा संबंध अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया में लगता है, करीब करीब वैसा ही रिश्ता मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन में नजर आता है. दिल्ली सरकार की तरफ से लायी गयी शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर ऐसी कई योजनाएं हैं, जिनकी पहल सत्येंद्र जैन की तरफ से हुई - क्योंकि आइडिया भी तो उनके ही थे.

आपको हैरानी हो सकती है. दिल्ली की जिस शिक्षा व्यवस्था को क्रांतिकारी बताया जा रहा है, जिसके नाम पर शुरू से लेकर अभी तक मनीष सिसोदिया का आम आदमी पार्टी की तरफ से बचाव किया जा रहा है - वो मूल आइडिया मनीष सिसोदिया का नहीं बल्कि सत्येंद्र जैन का बताया जाता है.

चाहे वो मोहल्ला क्लिनिक की बात हो या फिर मुफ्त में बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधायें देने की - बताते तो यही हैं कि ओरिजिनल आइडिया सत्येंद्र जैन की तरफ से पहले सामान्य बातचीत और फिर औपचारिक मीटिंग में सत्येंद्र जैन की तरफ से ही सामने आये थे.

अरविंद केजरीवाल के लिए अगर सत्येंद्र जैन बेहतरीन आइडियेटर हैं, तो ये भी मान लीजिये कि मनीष सिसोदिया बेहतरीन एग्जीक्यूटर हैं - जरा सोचिये सत्येंद्र जैन के बाद मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल का क्या हाल हो रहा होगा?

इन्हें भी पढ़ें :

MCD elections: भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 'हार' गए केजरीवाल!

सत्येंद्र जैन का बचाव अरविंद केजरीवाल के लिए घाटे का सौदा साबित होगा

केजरीवाल-तेजस्वी मुलाकात के पीछे दिमाग तो लालू का है, निशाने पर कौन?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲